Tuesday, February 8, 2022

पुस्तक समीक्षा | एकांकी विधा को समृद्ध करती एकांकियां | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण

प्रस्तुत है आज 08.02.2022 को #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई दमोह के लेखक डॉ. नाथूराम राठौर के एकांकी संग्रह "संकल्पों के पंख" की समीक्षा...
आभार दैनिक "आचरण" 🙏
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पुस्तक समीक्षा
एकांकी विधा को समृद्ध करती एकांकियां
समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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एकांकी संग्रह - संकल्पों के पंख
लेखक - डॉ. नाथूराम राठौर
प्रकाशक- अयन प्रकाशन, 1/20, महरौली, नई दिल्ली - 110030
मूल्य   - 220 रुपए
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नाटक एक ऐसी विधा है जो मंचन के दौरान दृश्य और श्रव्य दोनों का आनंद देती है। यह एक विस्तृत विधा है। इसीलिए यह नाटककार से अतिरिक्त श्रम की मांग करती है। चाहे वृहद नाटक हो या लघु नाटक अथवा एकांकी सभी के तत्व लगभग एक समान होते हैं। वृहद नाटक एवं एकांकी में मात्र इतना अंतर रहता है कि नाटक में एक से अधिक घटनाएं, दृश्य एवं अंतर्कथाएं उपस्थित रहती हैं। जबकि एकांकी में एक घटना ही होती है तथा लगभग एक ही स्थान के दृश्य का चयन किया जाता है। यद्यपि कभी-कभी कथानक के अनुसार एक से अधिक दृश्य हो सकते हैं किंतु विशेष परिस्थितियों में। वस्तुतः ‘एकांकी’ का अर्थ ‘‘एक अंक वाला’’ है अर्थात लेखक जिसमें एक अंक के अन्दर ही अपनी परिकल्पना को समावेशित करता है। वर्तमान में नाट्य लेखन के प्रति रचनाकारों का रुझान सीमित हो गया है। साहित्य की विविध विधाएं जैसे कविता, कहानी, उपन्यास आदि के प्रति अधिक लगाव देखा जाता है किंतु नाटक के प्रति कम देखने को मिलता है। इसका एक कारण यह भी है कि छोटे शहरों में मंचन की पर्याप्त सुविधा नहीं है।  दूसरा कारण जो मैंने पहले उद्धृत किया कि नाट्य लेखन श्रमसाध्य सृजन है जिसमें विविध पक्षों का ध्यान रखना पड़ता है जैसे ध्वनि प्रभाव, मंच सज्जा, पात्रों का चयन, पात्रों की उपस्थिति का क्रम आदि। इसके साथ ही रेडियो, मंच और टेलीविजन तीनों के नाट्यलेखन में भी अंतर होता है। चूंकि मैंने तीनों माध्यमों के लिए नाट्य लेखन किया है अतः मैं अनुभव के आधार पर अधिकारपूर्वक इस तथ्य की चर्चा कर सकती हूं।
   इस बार जिस पुस्तक की समीक्षा कर रही हूं उसका नाम है ‘‘संकल्पों के पंख’’। यह लेखक डॉ. नाथूराम राठौर का एकांकी संग्रह है। इसमें कुल 7 एकांकियां संग्रहीत हैं। नाट्य लेखन के प्रति अपने रुझान के आरंभ के संबंध में लेखक डॉ. राठौर ने भूमिका में लिखा है कि ‘‘नाटकों से मेरा परिचय रामलीला और रासलीला के नियमित दर्शन से हुआ। गांवों में पचास-साठ के दशक में दूरागत रामलीलाएं अपना प्रदर्शन करती थीं। सतना से लेकर प्रयाग और वृंदावन तक की मंडलियां गांवों में महीनों डेरा डालती थीं। गांव का गांव मध्य रात्रि तक इन लीलाओं में खोया रहता था। मैं भी छह-छह घंटे अभिनेताओं, पर्दों, मुकुटों और चेहरों को देखता रहता था। हाव-भाव, अंग संचालन और कथनों के उतार-चढ़ाव सब पर मेरी दृष्टि होती थी। मन-मस्तिष्क पर महीनों रामलीला का दृश्य बना रहता था।’’
इसके बाद लेखक ने अपने विद्यालयीन जीवन में एकांकी विधा को जाना और समझा तथा नाटकों में अभिनय भी किया। उनकी यही रुचि और विकसित हुई तथा आगे चल कर लेखक ने स्वयं एकांकियों का सृजन किया। जिनमें से सात एकांकियां इस संग्रह में रखी गई हैं। पहली एकांकी है ‘‘दहेज की आग’’। नाम से ही स्पष्ट है कि इस एकांकी का मूल विषय उस कुरीति को सामने लाना है जो समाज में दहेज के रूप में जानी जाती है और जिसके कारण न केवल लड़की का जीवन वरन दांपत्य जीवन भी तहस-नहस हो जाता है। इस एकांकी में पांच प्रमुख पात्र हैं- नरेश वह युवक जिसका विवाह होता है। नमिता नरेश की पत्नी। यशोदा नरेश की मां। उमा नरेश की बहन तथा महेश उमा का प्रेमी। इनके अतिरिक्त 2-3 पड़ोसी जिनमें एक स्त्री पात्र भी है रखे गए हैं। यह एक संदेशपरक एकांकी है, जिसमें दहेज न लेने का संदेश दिया गया है।
दूसरी एकांकी का नाम है ‘‘दूसरी बेटी’’। इसमें कुल 9 पात्र हैं। यह एकांकी बेटी के जन्म को अभिशाप मानने की कुत्सित विचारधारा का खंडन करती है तथा इस बात की पैरवी करती है की बेटियां भी बेटों के समान सक्षम होती है। इस एकांकी में यह भी दृश्य प्रस्तुत किया गया है कि बेटों के प्रति अतिरिक्त लाड़-प्यार उन्हें बिगाड़ देता है और वे अपराध में प्रवृत्त होने लगते हैं। यदि अच्छी शिक्षा दी जाए तो चाहे बेटा हो या बेटी, दोनों ही परिवार के लिए गौरव का विषय होते हैं।
तीसरी एकांकी है ‘‘एक ही संकल्प’’। इसमें कुल 8 पात्र हैं जिनमें से सात पुरुष पात्र हैं तथा एक स्त्री पात्र। इस एकांकी में कर्मचारी नेता, विद्यार्थी नेता तथा मजदूर नेता के माध्यम से उन विसंगतियों एवं भ्रष्टाचार को सामने रखा गया है जो समाज के विभिन्न स्तरों पर व्याप्त हैं।
चौथी एकांकी ‘‘फाइटर’’ में कुल 3 पात्र हैं - कॉलेज में अध्ययनरत छात्रा अनीता, अनीता की सहेली मनीषा और अनीता की मां सुमित्रा। एकांकी का कथानक अत्यंत संवेदनशील है। एकांकी की नायिका अनीता की अभिन्न सहेली के साथ बलात्कार एवं हत्या की अमानवीय घटना घटती है जिसका गहरा प्रभाव अनीता के मन मस्तिष्क पर पड़ता है। अंततः वह तय करती है कि वह बॉक्सिंग सीखेगी यानी आत्मरक्षा के गुर सीखेगी ताकि समय पड़ने पर वह कमजोर न साबित हो।
पांचवी एकांकी है ‘‘अनचाही’’। इसमें कुल 5 पात्र हैं। यह एक ऐसी बेटी के जीवन का कथानक है जिसका जन्म माता-पिता की इच्छा के अनुरूप नहीं हुआ। माता-पिता बेटा चाहते थे किंतु बेटी होने पर वह उनके लिए अनचाही संतान बन कर रह गई और उस बेटी के प्रति इतना तिरस्कार बरता गया कि उसका नाम ही ‘अनचाही’ रख दिया गया। इस नामकरण के पीछे समाज में प्रचलित उस तर्क का उल्लेख लेखक ने किया है जिसमें अनचाही बेटी का नाम ‘‘अनचाही’’ रख देने से उसके बाद जन्म लेने वाली संतान बेटा ही होता है, यह धारणा है। जबकि यह कोई वैज्ञानिक तथ्य नहीं है बल्कि एक कुरीति है और इस कुरीति की पीड़ा बेटियों को जीवन भर झेलनी पड़ती है। इस कुरीति को लेकर एकांकी में समाज के साथ ही मनोवैज्ञानिक पक्ष को भी सामने रखा गया है।
छठी एकांकी है ‘‘मातृभाषा का आंगन’’। इसमें कुल 9 पात्र हैं। यह एकांकी इस बात को तार्किक ढंग से सामने रखती है कि मातृभाषा में शिक्षा दिए जाने पर बच्चों का सर्वांगीण विकास होता है। अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा दिलाने की माता-पिता की अंधी दौड़ पर कटाक्ष करते हुए यह कथानक मातृभाषा की महत्ता को स्थापित करता है। यद्यपि इस एकांकी का शीर्षक एकांकी से अधिक किसी निबंध का शीर्षक प्रतीत होता है।
संग्रह की सातवीं और अंतिम एकांकी है ‘‘वृक्षप्रिया’’। यह अन्य एकांकियों से अधिक विस्तृत है। इसमें कुल छह पुरुष पात्र तथा तीन स्त्री पात्र हैं। इसका संपूर्ण कथानक एवं घटनाक्रम सात दृश्यों में विभक्त है। यह दुष्यंत और शकुंतला की कथा पर आधारित है। इसमें पुत्र-जन्म तथा दुष्यंत और शकुंतला के पुनर्मिलाप तक की कथा पिरोई गई है। पौराणिक कथा पर आधारित होने के कारण इस एकांकी की भाषा संस्कृतनिष्ठ एवं परिमार्जित है, जो देशकाल को स्पष्ट रेखांकित करती है।
‘‘संकल्पों के पंख’’ एकांकी संग्रह के रूप में लेखक डॉ. नाथूराम राठौर ने एकांकी विधा में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनके एकांकी लेखन में संवादों की सुघड़ता एवं चुटीलापन है। सभी एकांकियां संदेशपरक हैं। यद्यपि कुछ एकांकियों में अधिक दृश्य परिवर्तन उनके मंचन में दुरुहता उत्पन्न कर सकते हैं। इस ओर संकेत करते हुए अपनी भूमिका में साहित्यकार डॉ रमेश चंद्र खरे ने भी उल्लेख किया है कि ‘‘एकांकियों में कई बार दृश्य परिवर्तन हैं। समीक्षकों के अनुसार इनमें देशकाल और कार्य व्यवहार का ‘संकलन त्रय’ अनिवार्य होता है।’’
फिर भी इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह एकांकी संग्रह रोचक है तथा मंचन किए जाने योग्य है जैसा कि संग्रह की भूमिका में ‘युवा नाट्य मंच’ के निर्देशक राजीव अयाची ने लिखा है- ‘‘संकल्पों के पंख - नवोदित रंग कर्मियों के लिए नाट्य शिल्प, भाषा विकास, कल्पनाशीलता, अभिनय परिमार्जन एवं विषय परिवर्तन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कृति है। नाट्य निर्देशक संगीत संयोजन, प्रकाश आकलन एवं वस्त्र विन्यास पर सार्थक कार्य करें तो यह एक उत्कृष्ट प्रस्तुति होगी।’’
चाहे नाटक हो या एकांकी, उनमें प्रभाव उत्पन्न करने के लिए दृश्य एवं ध्वनि संकेतों का बहुत महत्व होता है। मुझे याद है कि जब 2008 में मैं यूनीसेफ के लखनऊ में आयोजित नाट्यलेखन वर्कशाप में शामिल हुई थी। साहित्य और रंगमंच से जुड़े दस लेखक आमंत्रित थे। मध्यप्रदेश से मैं थी। मैंने नाटक लिखा किन्तु उसका आरम्भ मुझे प्रभावी नहीं लग रहा था और समझ में भी नहीं आ रहा था कि उसमें प्रभाव कैसे पैदा करूं? दृश्य था कि एक महिला सफाईकर्मी सुबह सड़क पर झाडू लगा रही है। मेरे ग्रुप में लखनऊ रंगमंच के प्रतिष्ठित निदेशक एवं लेखक ललित पोखरिया भी थे। मैंने उनसे सलाह ली। उन्होंने ध्यानपूर्वक मेरे नाटक के आरम्भिक अंश को पढ़ा और बोले-‘‘बस, इसमें यह लिख दीजिए कि झाड़ू लगाए जाने की छर्र-छर्र की आवाज़ आ रही थी और उड़ती धूल से सूरज की किरणें धुंधली पड़ गई थीं।’’ मैं चकित रह गई कि दृश्य तो मैंने ही लिखा लेकिन यह दृश्यात्मकता मुझे क्यों नहीं सूझी? यह दृश्यात्मकता सुबह के दृश्य के साथ ही उस पात्र के कार्य को भी प्रभावी ढंग से स्पष्ट कर रही थी। उसके बाद मैंने अपने हर नाटक में दृश्यात्मकता पर विशेष ध्यान दिया। यही तो वह तत्व है जो मंचन के समय प्रस्तुति में जान डाल देता है। रंगमंचीयता की दृष्टि से डॉ. राठौर ने मंच सज्जा, आवरण का उठाव और गिराव का विवरण दिया है। इनमें प्रकाश एवं ध्वनि का संकेत भी दिया गया होता तो नवोदित नाट्य निर्देशकों के लिए अधिक सुविधाजनक हो जाता। यद्यपि कथ्य, शिल्प और दृश्यात्मकता की दृष्टि से डॉ. राठौर की एकांकियों को निःसंदेह बेहतरीन एकांकियां कहा जा सकता है जो ‘‘संकल्पों के पंख’’ को एक सार्थक एकांकी संग्रह साबित करता है।
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