"आज शादियों में डीजे संस्कृति के चलते हम विवाहोत्सव में गाए जाने वाले संस्कार गीतों को भूलते जा रहे हैं जबकि यह हमारी सांस्कृतिक पहचान हैं। लोक से ही हम जन्मे हैं और लोक ही हमारी वास्तविक ज़मीन हैं जिसे जानना ज़रूरी है यानी अपनी जड़ों को पहचानने के लिए लोक संस्कृति को जानना जरूरी है और इस दिशा में लोक भाषा में लिखी हुई किताबें बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।" मैंने (डॉ सुश्री शरद सिंह) अपने ये विचार व्यक्त किए स्थानीय कवि बिहारी सागर की काव्य कृति "बुंदेली मकुइया" के लोकार्पण के अवसर पर।
📙पुस्तक लोकार्पण के पूर्व पाठक मंच की सागर इकाई द्वारा लेखक सूर्यकांत बाली के उपन्यास "दीर्घतमा" पर डॉ प्रदीप पाण्डेय द्वारा समीक्षा आलेख का वाचन किया गया। जिसकी अध्यक्षता कवयित्री श्रीमती कुसुम सुरभि ने की तथा अध्यक्षता की दामोदर अग्निहोत्री जी ने। पाठक मंच सागर के संयोजक श्री आर के तिवारी द्वारा आयोजित इस गोष्ठी का संचालन किया हरीसिंह ठाकुर जी ने तथा आभार प्रदर्शन किया मुकेश तिवारी जी ने। इसी आयोजन के अंतर्गत श्री उमाकांत मिश्र जी एवं श्यामलम संस्था के सहयोग से "बुंदेली मकुइया" काव्य संग्रह का लोकार्पण हुआ। श्यामलम संस्था की ओर से कवि बिहारी सागर को शॉल, श्रीफल और सम्मानपत्र से सम्मानित भी किया गया।
🏛️जेजे इंस्टीट्यूट के सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में नगर के साहित्य मनीषी उपस्थित हुए।
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