मित्रो, मैं बताना चाहूंगी कि मेरे शहर में साहित्य, कला, भाषा और संस्कृति को समर्पित संस्था है "श्यामलम"।साहित्यकारों एवं कलाकारों के दिवंगत होने पर उन्हें श्रद्धांजलि देने के उद्देश्य से इस संस्था की स्थापना श्री उमाकांत मिश्र जी ने अपने अग्रज बॉलीवुड अभिनेता स्व. श्यामाकांत मिश्र जी की स्मृति में की थी। क्योंकि, कई बार यह होता है कि साहित्यकार एवं कलाकारों के परिजन भी समाज में उनके महत्व को समझ नहीं पाते हैं किंतु जब इस प्रकार के आयोजन में वहां उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति अपने श्रद्धासुमन अर्पित करता है तो परिजन को भी यह गौरव महसूस कर पाते हैं कि उनके अपने परिवार का सदस्य समाज में कितना महत्वपूर्ण स्थान रखता था। इस प्रकार की श्रद्धांजलि सभा का आयोजन करते समय आर्थिक रूप से समर्थ अथवा असमर्थ का भेदभाव नहीं किया जाता है अपितु सभी के लिए समान भावना से श्रद्धांजलि सभा आयोजित की जाती है।
एक पवित्र उद्देश्य को लेकर स्थापित श्यामलम संस्था का कारवां जैसे-जैसे बढ़ता गया, वह बहुआयामी क्षेत्रों में विस्तारित होता गया। यह अपने आप में एक अनूठी और अद्वितीय संस्था है।
🚩इसी श्यामलम संस्था ( Shyamlam Kala ) द्वारा आज आयोजित श्रद्धांजलि सभा में सागर नगर के हम सभी साहित्यकारों ने अपने वरिष्ठ साथी स्वर्गीय पुष्पदंत हितकर जी को श्रद्धांजलि अर्पित की, जिनका विगत 15 फरवरी 2022 को देहावसान हो गया था। इस अवसर पर मैंने उस आलेख का अंश पढ़ा जो अपने कॉलम "सागर : साहित्य एवं चिंतन" के अंतर्गत 12 सितम्बर 2018 को मेरी दीदी डॉ वर्षा सिंह जी ने पुष्पदंत हितकर जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर लिखा था। अंशवाचन के साथ ही मैंने अपने श्रद्धासुमन भी अर्पित किए.......
पुष्पदंत हितकर जी को विनम्र श्रद्धांजलि - डॉ (सुश्री) शरद सिंह
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा
न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।
अर्थात....जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर नये वस्त्रों को ग्रहण करता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने शरीर को त्यागकर नये शरीर को प्राप्त करती है।
पुरानी तेरे को त्याग चुके हमारे वरिष्ठ साथी पुष्पदंत हितकर जी का स्मरण करती हूं उन्हें अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करती हूं 🙏
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एक साहित्यकार अपने विचारों और अपनी कृतियों अपनी रचनाओं के रूप में हमेशा हमारे साथ अस्तित्व में रहता है और इसीलिए जो मैं मेरी दीदी डॉक्टर वर्षा सिंह द्वारा लिखा गया लेख का अंश यहां पढ़ने जा रहे हो उसमें वर्तमान काल का संबोधन है अतः उसे उसी रूप में स्वीकार करें यह लेख 12 सितंबर 2018 को आचरण में प्रकाशित हुआ था जिसे मेरी दीदी डॉ वर्षा सिंह ने अपने कॉलम "सागर : साहित्य एवं चिंतन" के अंतर्गत कवि "पुष्पदंत हितकर सहज अभिव्यक्ति ही जिनकी खूबी है" - शीर्षक से एक लेख हितकर जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को रेखांकित करते हुए लिखा था। उसी का एक अंश मैं यहां प्रस्तुत कर रही हूं....
"कवि हितकर के जीवन पर अपने माता-पिता के धार्मिक विचारों एवं सहृदयता का गहरा प्रभाव पड़ा। सागर विश्वविद्यालय से बी.एस-सी. फाइनल तक शिक्षा ग्रहण करने वाले पुष्पदंत हितकर ने सन् 1975 से लेखन कार्य आरम्भ किया। साहित्य में रुचि रखने वाले कवि हितकर की कविताएं अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं।
साहित्य सेवा के साथ ही पुष्पदंत हितकर समाज सेवा से जुड़ गए। इसी तारतम्य में जैन छात्र समिति के द्वारा प्रकाशित वार्षिक पत्रिका ‘रश्मि’ का संपादन किया। इसी दौरान उन्हें जैन संतो ंके समागम में काव्यपाठ का सुअवसर प्राप्त हुआ। सन् 1993 में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में आचार्य श्री विद्यासागर महराज का सानिध्य प्राप्त होने के साथ ही कवि हितकर को गजरथ स्मारिका का संपादन करने का अवसर भी प्राप्त हुआ। कवि हितकर का अभी तक कोई काव्य संकलन तो प्रकाशित नहीं हो सका है किन्तु नगर की साहित्यिक गोष्ठियों में उनकी सक्रियता निरंतर बनी रहती है।
पुष्पदंत हितकर यह मानते हैं कि यदि प्रत्येक मनुष्य मनुष्यता का पाठ पढ़ ले और स्वयं को बुराईयों से बचा ले तो व्यक्तिगत कठिनाईयों के साथ ही समाज में व्याप्त बुराईयां भी दूर हो सकती हैं। ‘‘हमें ऐसे इंसान चाहिए’’ शीर्षक कविता में उन्होंने अपनी इसी आकांक्षा को व्यक्त किया है -
क्या ज़रूरी है कि हम
गीता कुरान पर हाथ रख कर
झूठी कसमें खाएं
गुनाहों को छिपाने के लिए
और गुनाह करते जाएं।
हमें तोड़ने वाले धर्म नहीं
जोड़ने वाले मन चाहिए।
प्रार्थना, इबादत तो हम कभी भी
बैठ कर कर लेंगे
जो दूसरों के दुख-दर्द को समझें
हमें ऐसे इंसान चाहिए
कवि पुष्पदंत हितकर सरल शब्दों में अपने भाव व्यक्त करने वाले लगनशील कवि हैं, जो सागर की साहित्यिकता में वृद्धि करते रहते हैं।"
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पुष्पदंत हितकर जी एक सरल हृदय व्यक्ति थे। उन्हें मेरा विनम्र नमन 🙏
विनम्र श्रद्धांजलि 🙏
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Newspapers of 19.02.2022
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