चर्चा प्लस
जैवविविधता भी है खजुराहो की मूर्तियों में
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
आज जब हम पर्यावरण और जैव विविधता की बातें करते हैं तो हमें लगता है कि जैव विविधता को लेकर हमारे भीतर ही जागरूकता उत्पन्न हुई है हमसे पहले अर्थात् हमारे पूर्वजों का ध्यान इस ओर गया ही नहीं था यह हमारा भ्रम है क्योंकि वेदों की ऋचाओं से लेकर खजुराहो की मूर्तियों तक जैव विविधता का विशेष उल्लेख एवं प्रदर्शन है। विशेष इस अर्थ में कि हमने प्रकृति और उसके तत्वों को मात्र जैव अथवा अजैव घटकों के रूप में देखा है जबकि हमारे पूर्वजों ने उन्हें जीवन के अभिन्न अंग के रूप में सम्मानित स्थान दिया, उन्हें देवत्व प्रदान किया और देवत्व प्रदान करते हुए संरक्षण का एक मजबूत धरातल दिया। यही कारण है कि हमारे पूर्वजों के समय न तो बेतहाशा जंगल काटे गए और न प्रकृति के प्रति निर्ममता का व्यवहार किया गया।
विश्व प्रसिद्ध कला तीर्थ खजुराहो अपनी मूर्ति कला की सुंदरता कलात्मकता और मानव समूहों की मनोहरी प्रस्तुति के लिए विख्यात है। खजुराहो में चंदेल राजवंश के शासकों के द्वारा मंदिरों का निर्माण कराया गया। खजुराहो का प्राचीन नाम ‘खर्जुरवाहक’ था। खजुराहो की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के संबंध में ह्वेनसांग, अबू रिहान-अली-बरूनी तथा इब्नबतूता के द्वारा दिए गए विवरणों से पता चलता है। अबू रिहान-अल-बरूनी सन् 1021 ई. में महमूद गजनवी के कालंजर अभियान के दौरान उसके साथ बुन्देलखण्ड आया था। उसने अपने यात्रा विवरण में ‘‘जिझोती’’ की राजधानी ‘‘खजुराहा’’ का उल्लेख किया है। चंदेलों का राजनीतिक जीवन गुर्जर-प्रतिहार सम्राटों के सामंत रूप में प्रारम्भ हुआ। चंदेलों ने खजुराहो में लगभग 85 मंदिरों का निर्माण कराया। वर्तमान में उनमें से लगभग 25 मंदिर विद्यमान हैं। सन् 1998-99 में आर्कियोलाॅजिकल सर्वे आॅफ इंडिया द्वारा कराए गए उत्खनन कार्य में एक और भव्य मंदिर के अवशेष मिले। जो कि खजुराहो में ही जटकारा नामक स्थान पर स्थित हैं। इन अवशेषों में मिथुन मूर्तियों की उपलब्धता हिन्दू मंदिर होने का संकेत करती है। खजुराहो के सभी मंदिर पूर्वमध्यकालीन स्थापत्यकला के बेजोड़ नमूने हैं। इन मंदिरों के शिखर नागर शैली के बने हुए हैं। मंदिरों को ऊंचे चबूतरों पर बनाया गया है। शैव और वैष्णव धर्म से संबंधित मंदिर एक स्थान पर बनाए गए हैं तथा जैन मंदिर कुछ दूर अलग स्थान पर स्थित हैं। इन सभी मंदिरों का निर्माण काल 950 से 1050 ईस्वी के मध्य का माना जाता है। दुख की बात है कि हम अपने अतीत को भी अपने दृष्टिकोण के हिसाब से देखते हैं। खजुराहो में मिथुन मूर्तियां अपेक्षाकृत कम हैं किन्तु हमारे व्यापार जगत को पता था कि इस तरह की मूर्तियों का होना पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए लाभप्रद है। इस धारणा के कारण खजुराहो शिल्प में मौजूद अन्य संदेशप्रद प्रतिमाएं उपेक्षित रह गईं। जबकि मंदिर भित्तियों पर बनी प्रतिमाओं में रहन-सहन-वेशभूषा, दैनिक जीवन, पठन-पाठन, क्रीड़ा और जैवविविधता जैसे अनेक विषय प्रदर्शित हैं।
यह देखकर सुखद अनुभूति होती है कि चंदेल कालीन कलाकारों ने इन मूर्तियों में मानव के रचनात्मक एवं संहारात्मक संवेगों के साथ ही जैवविविधता को भी बड़ी सुंदरता से प्रदर्शित किया है। मंदिर भित्तियों पर जैव विविधता का यह प्रदर्शन इस तथ्य को सत्यापित करता है कि चंदेल काल में पर्यावरण और जैव विविधता के प्रति जागरूकता पाई जाती थी। स्वयं खजुराहो का नामकरण वानस्पतिक आधार पर किया गया था। यद्यपि खजुराहो के नामकरण को लेकर दो तरह के मत प्रचलित है किंतु दोनों मतों में यही माना गया है कि खजुराहो का नाम खर्जूर अर्थात खजूर के पेड़ों के कारण रखा गया। पहले मत के अनुसार खजुराहो ग्राम के द्वार पर खजूर के दो सुनहरे पेड़ थे। इसलिए ग्राम का नाम ‘खर्जूर’ यानी खजूर धारण करने वाला अर्थात् खजुराहो पड़ा। दूसरे मत के अनुसार खजुराहो ग्राम जहां बसाया गया वहां खजूर के पेड़ों की अधिकता होने के कारण यह नाम रखा गया।
बुंदेलखंड में स्थित खजुराहो के चारों और सघन वन क्षेत्र होने के कारण चंदेल नागरिकों में पर्यावरण एवं जैव विविधता के प्रति जागरूकता होनी स्वाभाविक थी। चंदेल मूर्तिकारों ने पशु, पक्षी, जलचर, वनस्पतियां, वायु, सूर्य, चंद्र आदि के साथ-साथ दिशाओं को भी मानवकृत रूप देते हुए मानव जीवन के प्रति उनके महत्व एवं उनकी उपादेयता को स्थापित किया है। इसके साथ ही प्रकृति एवं विविध प्राणियों के साथ मानव के पारस्परिक संबंधों का भी सूक्ष्मता से प्रदर्शन किया है।
जैव विविधता शब्द का प्रयोग पृथ्वी पर जीवन की विशाल विविधता का वर्णन करने के संदर्भ में किया जाता है। इसका उपयोग विशेष रूप से एक क्षेत्र या पारिस्थितिकी तंत्र में सभी प्रजातियों को संदर्भित करने हेतु किया जा सकता है। जैव विविधता पौधों, बैक्टीरिया, जानवरों और मनुष्यों सहित हर जीवित चीज को संदर्भित करती है। और सरल शब्दों में कहा जाए तो जैव विविधता या जीव भिन्नता पृथ्वी पर पाई जाने वाली विविध प्रकार की उन जैवीय प्रजातियों को कहते हैं जो अपने-अपने प्राकृतिक आवास क्षेत्रों में पाई जाती हैं। इसमें पेड़-पौधे, सूक्ष्म जीव, पशु-पक्षी आदि सभी प्राणी सम्मिलित हैं। जैव विविधता का महत्व पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने के लिए इसका रखरखाव करना बहुत महत्वपूर्ण है। जानवरों, पौधों और सूक्ष्मजीवों की एक विस्तृत श्रृंखला के बिना, हम स्वस्थ पारिस्थितिकी प्रणालियों की आशा भी नहीं कर सकते हैं। ये सभी पारिस्थितिकी तंत्र में अहम भूमिका निभाते हैं। ऐसी बहुत सी चीजें हैं जिसके लिए हम जैव विविधता पर निर्भर करते हैं और हमारे लिए इसे संरक्षित करना महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए कृषि को ही ले लीजिए अकशेरूकीय पर अविश्वसनीय रूप से निर्भर है, वे मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करते हैं, जबकि कई फल, नट और सब्जियां कीटों द्वारा परागित होती हैं। दुनिया के एक तिहाई फसल उत्पादन में परागणकर्ता (पोलिनेटर) जैसे पक्षी, मधुमक्खी और अन्य कीड़े अहम भूमिका निभाते हैं। सूक्ष्म जीव मृदा में पोषक तत्वों को मुक्त करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। महासागरों में, मछली और समुद्री जीवन के अन्य रूप लगभग एक अरब लोगों के लिए प्रोटीन का मुख्य स्रोत प्रदान करते हैं।
खजुराहो की मूर्तियों में प्रदर्शित जैव विविधता को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है - 1.मौलिक रूप एवं 2. प्रतीक रूप।
मंदिर की बाहरी दीवारों पर उकेरी गई मूर्तियों में जैव विविधता के मौलिक रूप का सर्वत्र चित्रण है। मंदिरों के प्रवेश द्वारों पर वृक्ष की शाखाएं उकेरी गई हैं। यह शाखाएं भी तीन प्रकार की है त्रिशाखा, पंच शाखा और सप्त शाखा। इन शाखाओं में लताएं, पुष्प एवं बेलबूटों का अंकन है। इसी के साथ कल्पवृक्ष भी उकेरे गए हैं। कंदरिया महादेव मंदिर के गर्भगृह द्वार पर सप्त शाखाएं हैं। जबकि अधिकांश मंदिरों में पंच शाखाएं हैं। इन द्वारशाखाओं पर फूल, पत्तियां, मिथुन मूर्तियां तथा साधना में लीन तपस्वी बनाए गए हैं। इन द्वारशाखाओं के निचले सिरे पर एक और मकर वाहिनी गंगा तथा दूसरी ओर कूर्मवाहिनी यमुना की प्रतिमाएं हैं।
खजुराहो की मूर्तियों में फूलों का भी भरपूर प्रदर्शन है। लक्ष्मण मंदिर तथा दूल्हा देव मंदिर में चार पंखुड़ियों वाला फूल बनाया गया है तो चैसठ योगिनी मंदिर में पूर्ण विकसित त्रिचक्रीय शतदल पुष्प प्रदर्शित है। इसी मंदिर में चार और छह पंखुड़ियों वाले फूल भी बनाए गए हैं।
फूल, पत्तियों, लता, पेड़ों के अतिरिक्त वृक्षों को भी स्थान दिया गया है। लक्ष्मण मंदिर में एक स्त्री को आम्र वृक्ष की छाया में खड़े हुए दिखाया गया है। यह मानव और वनस्पति के पारस्परिक संबंध का द्योतक है। वामन मंदिर में चित्रकारी करती हुई स्त्री के पास में वृक्ष की शाखाएं अंकित हैं जो यह दर्शाती हंै कि वह स्त्री अपने कैनवास पर पेड़-पौधों और वृक्षों को चित्रित कर रही है।
खजुराहो की मूर्तियों में वनस्पतियों के साथ ही पशु, पक्षियों को भी स्थान दिया गया है। खजुराहो संग्रहालय में संग्रहीत नारी मूर्ति में र्दाइं हथेली पर एक पक्षी को दिखाया गया है। विश्वनाथ मंदिर में दो नारी मूर्तियां हैं जिनमें से एक में पक्षी को कलाई पर बैठे हुए तथा दूसरे में दाना चुगाते हुए दिखाया गया है। जगदंबा मंदिर में सारिका पक्षी, कंदरिया महादेव में तोता, वामन मंदिर में मैना तथा लक्ष्मण मंदिर में उलूक पालतू पक्षी के रूप में उकेरा गया है। मोर, हंस, और उल्लू आदि पक्षी वाहन प्रतीक के रूप में भी दर्शाए गए हैं।
पालतू पशु के रूप में गाय, बैल, वानर, घोड़ा, हाथी, कुत्ता, मेष आदि का प्रदर्शन किया गया है। वन्य पशुओं में शेर, हिरण, भालू, भेड़िया, वनशूकर को उत्कीर्ण किया गया है। इनके अतिरिक्त छोटे जानवर जैसे मूषक और नेवला को भी अंकित किया गया है। जलचर प्राणियों में मत्स्य, शंख, कूर्म और मकर को वाहन प्रतीक के रूप में उकेरा आ गया है।
पृथ्वी पर निवास करने वाले समस्त जीवधारी समस्त प्रकार के जीवित एवं अजैविक घटकों अर्थात प्राकृतिक संसाधनों पर आश्रित होते हैं। पर्यावरण ही प्राकृतिक संसाधनों जैसे ऊर्जा, वायु, जल, मृदा, खनिज तत्व आदि का स्रोत है। खजुराहो की मूर्ति शिल्प की एक विशेषता यह भी है कि जीवन और प्रकृति को मानव आकार प्रस्तुत किया गया है। जैसे नदी देवियां और जल देवता। ब्रह्मा मंदिर, जगदंबा मंदिर, कंदरिया महादेव मंदिर, विश्वनाथ मंदिर के प्रवेश द्वार पर गंगा और यमुना की मानव आकृति मूर्तियां बनाई गई हैं। यह मूर्तियां चंदेल कालीन जीवन में नदियों के महत्व की परिचायक है। वाराह मंदिर में वाराह प्रतिमा के विशालकाय शरीर पर गंगा तथा यमुना को मानवीय रूप में बनाया गया है। नदी देवियों के समान ही जल देवता को भी स्थान दिया गया है। वैदिक एवं पौराणिक कल्पना के अनुसार जल देवता वरुण की मूर्तियां वाराह के विशाल शरीर के अतिरिक्त लक्ष्मण मंदिर, जगदंबा मंदिर, चित्रगुप्त मंदिर, दूल्हा देव मंदिर, चतुर्भुज मंदिर, वामन मंदिर ,पार्श्वनाथ मंदिर तथा खजुराहो संग्रहालय में मौजूद हैं।
खजुराहो की मूर्ति कला में जैव विविधता को जिस विशिष्टता के साथ प्रस्तुत किया गया है वह अद्भुत है। इन मूर्तियों में विषैले जीव जंतुओं को भी स्थान दिया गया है। विभिन्न प्रकार के सर्प तथा बिच्छू का अंकन इस बात को प्रमाणित करता है कि चंदेल समाज जीवों के सभी रूपों को समान रूप से महत्व देता था। जैवविविधता के प्रत्येक रूप को पाषाण शिल्प में ढालकर प्रस्तुत किया गया है, फिर चाहे जैव जगत हो अथवा अजैव जगत।
खजुराहो के मूर्ति शिल्प में अंकित जैव विविधता यह भी संदेश देती है कि यदि खजुराहो के शिल्प की तरह है वर्तमान जीवन को भी कालजयी बनाना है तो जीवन के लिए आवश्यक समस्त तत्वों का संरक्षण करना होगा और उन्हें समाप्त होने से बचाना होगा, चाहे वह वन हो या वन्य जीवन अथवा हर प्रकार के पशुपक्षी और वनस्पतियां, सभी को संरक्षित करना होगा। लुप्त होने से बचाना होगा। जैवविधता के महत्व को समझते हुए खजुराहो के शिल्प की भांति हमें अपने वर्तमान तथा भविष्य को बचाना होगा और इस दिशा में खजुराहो की मूर्तियों में मौजूद जैव विविधता का शिल्पांकन हमारे लिए प्रेरणा स्रोत है।
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(23.02.2022)
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खजुराहो के मंदिरों को देखने का सौभाग्य तो प्राप्त नहीं हुआ है पर आपके आलेख से काफ़ी जानकारी प्राप्त हुई है, शोधपरक इस लेख के लिए बधाई
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