Tuesday, January 3, 2023

पुस्तक समीक्षा | पीले हाफ पैंट वाली लड़की | समीक्षक डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | आचरण


प्रस्तुत है आज 03.01.2023 को  #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई लेखक अरुण अर्णव खरे के कहानी संग्रह "पीले हाफ पैंट वाली लड़की" की समीक्षा...
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पुस्तक समीक्षा
मानवीय विमर्श की बेहतरीन कहानियां 
समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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कहानी संग्रह -पीले हाफपैंट वाली लड़की
लेखक      - अरुण अर्णव खरे
प्रकाशक    - हंस प्रकाशन, बी-336/1, गली नं. 3, दूसरा पुस्ता, सोनिया विहार,
             नई दिल्ली -110094
मूल्य       - 395/- (हार्ड बाउंड)
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     हिन्दी कथा साहित्य में अरुण अर्णव खरे ने अपनी कहानियों से विशेष जगह बनाई है। वे भारत कथामाला के अंतर्गत ‘‘21 श्रेष्ठ युवा मन की कहानियां: मध्यप्रदेश’’ का संपादन कर चुके हैं तथा उनका एक उपन्यास ‘‘कोचिंग एट कोटा’’ चर्चित हो चुका है। उनका ताज़ा कहानी संग्रह ‘‘पीली हाफ पैंट वाली लड़की’’ उनकी कुल बारह कहानियों का संग्रह है। हिन्दी कथा साहित्य में अनेक विमर्श हैं। यथा- स्त्रीविमर्श, दलित विमर्श, थर्डजेंडर विमर्श आदि। अरुण अर्णव की कहानियां किसी एक विमर्श में बंध कर नहीं चली हैं। इस संग्रह में कुछ कहानियां स्त्रीविमर्श रचती हैं तो कुछ प्रथा विमर्श तो कुछ, प्रचलित समाजविमर्श। इसीलिए इन बारहों कहानियों के कथानकों में पुनरावृृत्ति नहीं है। प्रत्येक कहानियां अपना अलग विमर्श और संवाद लिए हुए हैं। यूं तो संग्रह का नाम ‘‘पीले हाफ पैंट वाली लड़की’’ सहसा उदय प्रकाश की बहुचर्चित कहानी ‘‘पीली छतरीवाली लड़की’’ याद दिला देती है। यद्यपि इन दोनों कहानियों में कोई समानता नहीं है। यह एक ऐसी लड़की की कहानी है जो अपने जीवन की कठोरतम सच्चाई से परिचित है, फिर भी वह टूटने या हारने के बजाए अपनी जिन्दगी को पूरे उत्साह के साथ जी लेना चाहती है। कहानी का विस्तार पूरी रोचकता लिए हुए है। वर्तमान युवाओं की जीवनशैली और जेनेरैशनगैप की बात करती हुई यह कहानी उस मोड़ पर जा कर समाप्त होती हैं जहां पाठक किंकत्र्तव्यविमूढ़ रह जाता है। एक असंभावित-सा सच अपने सामने पाता है, बहुत कुछ फिल्मी-सा। लेकिन कभी-कभी जीवन का सच फिल्मी हो जाता है क्योंकि फिल्मों के कथानक भी तो जीवन से ही उपजे होते हैं। एक यह आग्रह भी मौजूद है इस कहानी में।
संग्रह की पहली कहानी सबसे सशक्त कहानी है, जिसका शीर्षक है-‘‘हारेगी नहीं आनंदिता’’। यह कहानी तेजाबकांड पर आधारित है। लेकिन यह कहानी वहां से शुरू होती है जहां इस विषय से संबधित अन्य कहानियां समाप्त होती हैं। क्या एक तेजाब प्रभावित लड़की सामान्य वैवाहिक जीवन जी सकती है? क्या उसका प्रेमी उसके कुरूप होने के बाद भी अपने जीवन में शामिल कर सकता है? समाज का क्या दृष्टिकोण रहता है ऐसी कुरूप दिखने वाली स्त्री के प्रति? ये कुछ ऐसे ज्वलंत प्रश्न हैं जिनका उत्तर सहजता से नहीं दिया जा सकता है। समाज की आंखें बाहरी सुंदरता देखने की आदी होती हैं। जिस समाज में विवाह के लिए लड़की की त्वचा के गोरे रंग को आधार बनाया जाता हो, उस समाज में तेजाब से झुलसे चेहरे वाली लड़की को भला कौन अपनाएगा? जबकि अपनाया जाना चाहिए क्योंकि वह अपराधी नहीं अपितु पीड़िता है। इसी दृष्टिकोण को लेखक ने बड़े धैर्य के साथ सामने रखा है। इस प्रकार की घटनाओं का दूसरा पक्ष भी कहानी में उभर कर आया है कि ये घटनाएं प्रायः परिचित ही अर्थात् मन में शत्रुता पाले हुए निकटतम लोग ही घटित करते हैं। उद्देश्य चाहे सीधे लड़की को प्रताड़ित करने का हो अथवा लड़की को प्रताड़ित कर उसके किसी निकटतम से बदला लेने का हो। बहरहाल प्रताड़ित तो लड़की ही होती है। वह स्थिति और अधिक दुखदायी है कि जब अपराधी साफ बच जाए और अपना अपराध छुपा कर एक आरामदायक सामान्य जीवन जी रहा हो। लेखक ने त्रासदी के सारे कोणों को एकदम सटीक बिठाया है। इसीलिए यह स्त्रीविमर्श ही नहीं वरन मानवीय विमर्श की एक उम्दा कहानी बन गई है।
    संग्रह की दूसरी कहानी ‘‘पीले हाफ पैंट वाली लड़की’’ है तथा तीसरी कहानी है-‘‘तुम बुद्धू हो डियर’’। यह रोचक कहानी है -‘‘तुम बुद्धू हो डियर’’, जो सोशल मीडिया पर विदेशी महिलाओं से होने वाली मित्रता के प्रति सचेत करती है। कथानायक जो परिपक्व आयु का है। जिसे कह सकते हैं कि दुनियादारी का अनुभव है, वह एक विदेशीमूल की सुंदर लड़की की फ्रेंडरिक्वेस्ट बिना सोचे-समझे स्वीकार कर लेता है और धीरे-धीरे उसकी सुन्दरता के गहरे वशीभूत होता जाता है। अचानक वह लड़की सूचित करती है कि वह भारत आ रही है, उसी के पास ठहरेगी और उसके साथ खजुराहो आदि पर्यटनस्थल देखने जाएगी। कथानायक मना नहीं कर पाता है और वह लड़की आ जाती है। कथानायक अंतरंगता की सीमा तक उसके समीप होते हुए भी अपनी भावनाओं को अपने वश में रखता है लेकिन उस सच्चाई को वह नहीं भांप पाता है जो उस लड़की के कथन में छिपी थी कि ‘‘तुम बुद्धू हो डियर’’। जब तक उसे इस कथन का मर्म समझ में आता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। यानी वह लड़की कथानायक को अच्छे से चूना लगा चुकी होती है। पूरा घटनाक्रम बड़ा ही रोचक है और उन लोगों के लिए विशेषरूप से सचेत करने वाला है जो विदेशी लड़कियों से आंखमूंद कर मित्रता कर लेते हैं, उनके बारे में सच्चाई जाने बिना। यह कहानी इंटरनेट की आभासीय दुनिया के स्याहपक्ष को उजागर करती है।
‘‘गुडमार्निंग आर.ए.सी.’’ एक प्रेमकथा है तो ‘‘माधव चैधरी की आत्महत्या’’ छात्रावास में किए जाने वाले कुकर्मों पर प्रकाश डालती है। इन दोनों कहानियों को युवा विमर्श की कहानी कहा जा सकता है। ‘‘गुडमार्निंग आर.ए.सी.’’ यह आग्रह करती है कि समय रहते यदि भावनाओं को प्रकट न किया जाए तो जिन्दगी अपना अर्थ खोने लगती है। फिर भी यदि ज़िन्दगी दूसरा अवसर दे तो उसे गंवाना नहीं चाहिए। इस कहानी के ठीक विपरीत ‘‘माधव चैधरी की आत्महत्या’’ इस तथ्य पर प्रकाश डालती छात्रावास में एक छात्र द्वारा दूसरे छात्र के साथ किया गया कुकर्म किस तरह दूसरे छात्र के पूरे जीवन को प्रभावित कर देता है। वह योग्य ओर विद्वान होते हुए भी उस कुकर्म की छाया से कभी बाहर नहीं आ पाता है, क्योंकि वह स्वयं उसकी कमजोरी बन चुकी होती है। यह एक ऐसी कहानी है जो छात्रावास के छात्रों की समय-समय पर मनोवैज्ञानिक कौंसलिंग किए जाने की आवश्यकता की ओर ध्यान दिलाती है।
‘‘बादशाह सलामत की मोहब्बत झूठी है’’ ताजमहल के निर्माण के दर्दनाक पहलू पर आधारित है। एक बादशाह अपने प्रेम के अमरत्व के लिए ताजमहल बनवाता है और बनाने वालों को भरपूर ईनाम भी देता रहता है, यह जताते हुए कि उसे अपने कारीगरों से मोहब्बत है। जबकि वास्तविकता में वह उन्हें अपनी मोहब्बत के भ्रम में रखना चाहता है ताकि उनसे मनचाहा काम करा सके। काम समाप्त होते ही अपने कारीगरों के हाथ काटने का आदेश दे कर वह अपना असली चेहरा दिखा देता है। जबकि उसकी झूठी मोहब्बत से कारीगरों के परिवार की वास्तविक मोहब्बत लहूलुहान हो जाती है। इतिहास की एक जघन्य घटना पर आधारित यह कहानी लेखक ने कारीगर की बेटी और उसके परिवार के नज़रिए से लिखने का प्रयास किया है।
‘‘कहानी अपने-अपने मकड़जाल’’ पुराने छात्रों के री-यूनियन आरंभ हो कर अतीत और वर्तमान के तानों-बानों से गुज़रती हुई एक ड्रामेटिक अंत पर पहुंचती है। कहानी का विस्तार रोचक है किन्तु विचित्र ‘संयोग’ पाठक को शायद किसी फिल्मी ट्विस्ट जैसे लगेगा। ‘‘रोशनी वाले दीए’’ और ‘‘चरखारीवाली काकी’’ बुंदेलखंड का सोंधापन लिए हुए हैं। इन दोनों कहानियों में बुंदेली बोली का भी प्रयोग किया गया है जो इनके कथानक को ज़मीन से जोड़ता है तथा सशक्त बनाता है।
‘‘वज़ूद’’ कहानी तीन तलाक प्रथा पर आधारित है। यद्यपि अब सरकार ने उसे अमान्य करार दे दिया है लेकिन इस प्रथा में मौजूद विसंगतियों ने अनेक स्त्रियों को छला है। इस प्रथा में पति अपनी पत्नी को तीन तलाक कह कर तलाक दे देता है और फिर अपनी गलती महसूस होने पर पुनः उससे विवाह करना चाहता है तो इसके लिए उसकी पत्नी को पहले किसी और से विवाह करना पड़ता है। फिर जब दूसरा पति उसे तलाक देता है, तब वह अपने पहले पति से पुनः विवाह कर पाती है। यह नियम इसीलिए बनाया गया होगा कि पुरुषवर्ग तीन तलाक कह कर तलाक देने के पहले सौ बार सोचें। वह इस बात को याद रखे कि उसे अपनी पत्नी आसानी से दोबारा नहीं मिलेगी। किन्तु दुर्भाग्यवश स्त्रियों को दबाए रखने के लिए इस प्रथा का भरपूर दुरुपयोग भी किया गया। अनेक मुस्लिम देशों में तो यह प्रथा है भी नहीं। इस प्रथा का एक अवसरवादी ने किस तरह दुरुपयोग किया, इसी घटना पर आधारित है यह कहानी।
‘‘पुनर्जन्म’’ भारतीय और पाश्चात्य जीवनशैली की तुलनात्मक कथा है। एक लड़का रिची किस तरह अपनों के प्रेम से वंचित हो कर भारतीय परिवार में प्रेम पा कर खुश रहता है, यही इस कहानी का मूल तत्व है। भारतीय संस्कृति में पारिवारिक रिश्तों की बुनावट इतनी सघन होती है कि वह परायों को भी अपने परिवार में समेट लेती है। एक बालमन अपनत्व और प्रेम के अलावा और कुछ नहीं चाहता है, वह चाहे भारत का हो या किसी पाश्चात्य देश का। यह कहानी एक सुंदर सांस्कृतिक एवं सामाजिक विमर्श रचती है। बस, इसमें अंग्रेजी संवादों का बाहुल्य हिन्दी भाषी पाठकों के लिए बाधा पहुंचा सकता है। अन्यथा कहानी आज के बदलते भारतीय समाज को भी आगाह करती है। शेष कहानियों की भाषा सरल, सहज और रोचक है।
‘‘पीले हाफ पैंट वाली लड़की’’ विभिन्न प्रकार के विमर्शों को ले कर लिखी गई लेखक अरुण अर्णव खरे उन कहानियों का संग्रह है जिन्हें सारांशतः मानवीय विमर्श की कहानियां कहा जा सकता है। ये सभी कहानियां अपने-अपने कथानकों के साथ न्याय करती हुई मध्यमवर्गीय परिवार, विचार, संस्कार और परिवर्तन का एक बेहतरीन परिदृश्य प्रस्तुत करती हैं। ये कहानियां पठनीय हैं और अपनी उपदेयता के तत्व पर भी खरी उतरती हैं और एक रोचक मनोविज्ञान का दिग्दर्शन कराती हैं।
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