"कथा लेखन एक जिम्मेदारी भरा दायित्व है क्योंकि एक कथाकार समाज में व्याप्त विसंगतियों और विद्रूपताओं का एक चिकित्सक की तरह डायग्नोसिस भी करता है और उपचार भी सुझाता है। एक समीक्षक के रूप में मुझे नवोदित कथाकारों के कई कहानी संग्रह एवं उपन्यास पढ़ने का अवसर मिलता रहता है जिन्हें पढ़ कर मुझे एहसास हुआ कि कुछ नवोदित कथाकारों में ठहराव की कमी है। वे किसी रैप सिंगर की तरह सब कुछ जल्दबाजी में कह डालना चाहते हैं। इस प्रवृत्ति से बचना जरूरी है। साथ ही उन्हें अपना यथार्थ बोध बढ़ाना होगा, कथा या उपन्यास तभी अपना सही स्वरूप ले सकेंगे। दरअसल, साहित्य वही जो पाठकों की चेतना को जागृत कर उन्हें झकझोर दे।"- अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ (सुश्री) शरद सिंह ने यानी मैंने अपने विचार व्यक्त किए।
अवसर था लघुकथा शोध केंद्र भोपाल,वनमाली सृजन पीठ एवं रवीन्द्रनाथ टैगोर विश्विद्यालय द्वारा Google Meet पर आयोजित पुस्तक पखवाड़े के ऑनलाईन आयोजन का। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थे कथाकार श्री मनीष वैद्य। पुस्तक पखवाड़े के सप्तम दिवस (7 जनवरी 2023) डॉ. पद्मा शर्मा के उपन्यास 'लोकतंत्र के पहरुए ' एवं राज बोहरे के उपन्यास 'आड़ा वक्त ' पर समीक्षात्मक विमर्श हुआ।
यूं मैं ऑनलाइन आयोजनों में बहुत कम शामिल होती हूं किंतु डॉ. कांता राय जी के आत्मीय आग्रह को टालना मेरे लिए मुमकिन नहीं था। अतः कांता राय जी का हार्दिक आभार 🙏
इस पूरे संगोष्ठी को आप यूट्यूब के निम्नलिखित लिंक पर देख-सुन सकते हैं...
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