चर्चा प्लस
11 जनवरी का वह रहस्य और लाल बहादुर शास्त्री जी का निधन
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह
ऐसी कई घटनाएं हैं जो अपने पीछे गहरे रहस्य छोड़ गई हैं। क्या हुआ? कैसे हुआ? सच क्या है? दशकों तक यह प्रश्न हवा में मंडराते रहते हैं, निरुत्तर, कई बार सदियों तक। ऐसा ही एक रहस्य आज भी सच्चाई की पर्तें खुलने की प्रतीक्षा कर रहा है, वह है पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु का। 12 अप्रैल 2019 को एक फिल्म रिलीज हुई थी ‘‘ताशकंद फाईल्स’’ जो इसी रहस्य पर केन्द्रित थी। लेकिन आधिकारिक रूप से रहस्य आज भी रहस्य ही बना हुआ है। ‘‘जय जवान-जय किसान‘‘ का नारा देने वाले व्यक्तित्व की पुण्यतिथि पर उनका स्मरण....
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के बाद लाल बहादुर शास्त्री को देश का प्रधानमंत्री बनाया गया था। लाल बहादुर शास्त्री ने ही ‘जय जवान जय किसान’ का लोकप्रिय नारा दिया था। 11 जनवरी, 1966 को उनकी की ताशकंद में रहस्यमय हालात में मौत हो गई थी। आधिकारिक तौर पर बताया गया था कि शास्त्री जी मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई थी, लेकिन आज भी कई लोग उनकी मौत को रहस्य मानते हैं। फिल्ममेकर विवेक अग्निहोत्री ने पूर्व पीएम की मौत पर सवाल खड़े करती एक फिल्म बनाई, जिसका नाम है ‘द ताशकंद फाइल्स’। बेशक फिल्म एक फिल्म होती है, फिक्शन से भरपूर लेकिन कई सवालों को ताज़ा करने की ताक़त रखती है। यह फिल्म वर्तमान से आरम्भ हो कर अतीत की ओर बढ़ती है क्योंकि अतीत में ही दफ़्न हैं शास्त्री जी की मृत्यु से जुड़े सारे रहस्य।
फिल्म में रागिनी फूले (श्वेता बासु प्रसाद) नाम की पत्रकार पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत का रहस्य जानना चाहती है। इसके लिए वह तत्कालीन नेताओं और पत्रकारों से बात करती है और पूर्व पीएम की मौत से जुड़े उनके पुराने इंटरव्यू देखती है। इस फिल्म के कई पक्ष कमजोर साबित हुए फिर भी इस फिल्म ने तत्कलीन सरकार के नेताओं की भूमिकाओं पर पर जरूर प्रश्नचिन्ह लगाया। लेकिन कई नेता ऐसे भी थे जिन्होंने शास्त्री जी की संदेहास्पद मृत्यु की जांच की मांग की थी। मांग करने वालों में अटल बिहारी वाजपेयी भी शामिल थे। पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने भी शास्त्री जी की मौत का सच सामने लाने के लिए न्यायिक जांच की मांग की थी, लेकिन केंद्र सरकार द्वारा इस मांग को ठुकरा दिया गया था। लाल बहादुर शास्त्री की मौत का रहस्य आज भी बरकरार है। क्या उनकी मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई थी या फिर शास्त्री जी को जहर दिया गया था। पूर्व पीएम की मौत देश और उनके परिवार के लिए आज भी रहस्य बनी हुई है। ‘‘ताशकंद फाईल्स’’ फिल्म आने के पूर्व विवेक रंजन अग्निहोत्री ने पुस्तक ‘‘हू किल्ड शास्त्री’’ प्रकाशित हो चुकी थी जिसमें घटनाक्रम को बारीकी से खंगाला गया था। पत्रकार धर्मेंद्र सिंह के अनुसार-‘‘शास्त्री की मौत के बाद से भारत में कई सरकारें आईं और गईं, लेकिन उनकी मौत आज भी रहस्य है। भारत में राजनेता मांग करते हैं कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री की मौत के रहस्य से पर्दा उठाया जाए। साल 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच जंग खत्म हुई थी जिसके बाद दोनों देशों के बीच ताशकंद में समझौत हुआ था। यह समझौता 10 जनवरी 1966 को हुआ था जिसके 12 घंटे बाद ही 11 जनवरी को तड़के शास्त्री की मौत हो गई थी।’’
रहस्य की तह तक जाने के लिए आरटीआई का भी सहारा लिया गया। आरटीआई कार्यकर्ता रोहित चैधरी ने शास्त्री की मौत को लेकर कई खुलासे किए। उनके द्वारा लगाई गई आरटीआई के जवाब में शास्त्री के मेडिकल रिपोर्ट से चौंकाने वाली बातें सामने आई। रोहित ने बताया कि उन्होंने पूर्व पीएम शास्त्री की मौत की जांच की रिपोर्ट को लेकर आरटीआई लगाई जिसके जवाब में पाया कि पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री मरने से 30 मिनट पहले तक बिलकुल ठीक थे। 15 से 20 मिनट में तबियत खराब हुई और उनकी मौत हो गई। इसमें कहा गया है कि शास्त्री की मौत के बाद उनके शव का पोस्टमार्टम भी नहीं किया गया था। आरटीआई से मिले जवाब के अनुसार, शास्त्री 10 जनवरी 1966 की रात 12.30 बजे तक बिलकुल ठीक थे। इसके बाद अचानक उनकी तबियत खराब हुई, जिसके बाद वहां मौजूद लोगों ने डॉक्टर को बुलाया। डॉक्टर आरएन चुग ने पाया कि शास्त्री की सांसें तेज चल रही थीं और वो अपने बेड पर छाती को पकड़कर बैठे थे। इसके बाद डॉक्टर ने इंट्रा मस्कूलर इंजेक्शन दिया। इंजेक्शन देने के तीन मिनट के बाद शास्त्रीजी का शरीर शांत होने लगा। सांस की रफ्तार धीमी पड़ गई। इसके बाद सोवियत डॉक्टर को बुलाया गया। इससे पहले कि सोवियत डॉक्टर इलाज शुरू करते रात 1.32 बजे शास्त्री की मौत हो गई।
आरटीआई कार्यकर्ता ने सवाल किया था कि पूर्व पीएम शास्त्री की मौत की जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया, उसे गुप्त क्यों रखा गया? जबकि, शास्त्री का परिवार भी इसके बारे में जानना चाहता है। यहां तक कि उनके पोते ने भी मौत के कारणों को जानने के लिए इसकी मांग की थी। उनकी मौत के बाद उनकी पत्नी ललीता शास्त्री ने दावा किया कि उनके पति को जहर देकर मारा गया। उनके बेटे सुनील शास्त्री ने सवाल ने कहा था कि उनके पिता की बॉडी पर नीले निशान थे. साथ ही उनके शरीर पर कुछ कट भी थे।
शास्त्री जी की संदेहास्पद मृत्यु के संबंध में कुलदीप नैयर ने अपनी पुस्तक ‘‘बियोंड द लाईन’’ में कई वास्तविक तथ्य लिखे हैं। लाल बहादुर शास्त्री के साथ उनके सूचना अधिकारी कुलदीप नैय्यर भी ताशकंद गए थे। नैय्यर ने बीबीसी को दिए इंटरव्यू में बताया था, ‘‘उस रात लाल बहादुर शास्त्री ने घर पर फोन मिलाया था। जैसे ही फोन उठा, उन्होंने कहा अम्मा को फोन दो। उनकी बड़ी बेटी फोन पर आई और बोलीं अम्मा फोन पर नहीं आएंगी। उन्होंने पूछा क्यों? जवाब आया इसलिए क्योंकि आपने हाजी पीर और ठिथवाल पाकिस्तान को दे दिया। वो बहुत नाराज हैं। शास्त्री को इससे बहुत धक्का लगा। कहते हैं इसके बाद वो कमरे का चक्कर लगाते रहे। फिर उन्होंने अपने सचिव वैंकटरमन को फोन कर भारत से आ रही प्रतिक्रियाएं जाननी चाहीं। वैंकटरमन ने उन्हें बताया कि तब तक दो बयान आए थे, एक अटल बिहारी वाजपेई का था और दूसरा कृष्ण मेनन का और दोनों ने ही उनके इस फैसले की आलोचना की थी।’’
समझौते के 12 घंटे के भीतर उनकी अचानक मौत हो गई. क्या उनकी मौत सामान्य थी या फिर उनकी हत्या की गई थी। कहा जाता है कि समझौते के बाद कई लोगों ने शास्त्री को अपने कमरे में परेशान हालत में टहलते देखा था। कुलदीप नैय्यर ने अपनी किताब में ‘‘बियोंड द लाइन’’ में लिखा है, ‘‘उस रात मैं सो रहा था। अचानक एक रूसी महिला ने दरवाजा खटखटाया। उसने बताया कि आपके प्रधानमंत्री मर रहे हैं। मैं जल्दी से उनके कमरे में पहुंचा। मैंने देखा कि रूसी प्रधानमंत्री एलेक्सी कोस्गेन बरामदे में खड़े हैं, उन्होंने इशारे से बताया कि शास्त्री नहीं रहे।’’
उन्होंने देखा कि उनका चप्पल कॉरपेट पर रखा हुआ है और उसका प्रयोग उन्होंने नहीं किया था। पास में ही एक ड्रेसिंग टेबल था जिस पर थर्मस फ्लास्क गिरा हुआ था जिससे लग रहा था कि उन्होंने इसे खोलने की कोशिश की थी। कमरे में कोई घंटी भी नहीं थी।
यह भी शंका प्रकट की जाती रही है कि शास्त्रीजी के भोजन में ज़हर मिलाया गया था। जिस रात शास्त्री की मौत हुई, उस रात खाना उनके निजी सहायक रामनाथ ने नहीं, बल्कि सोवियत रूस में भारतीय राजदूत टीएन कौल के रसोइए जान मोहम्मद ने खाना बनाया था। भोजन कर के शास्त्रीजी सोने चले गए थे। उनकी मौत के बाद शरीर के नीला पड़ने पर लोगों ने आशंका जताई थी कि शायद उनके खाने में जहर मिला दिया गया था। मृत्यु के उपरांत शास्त्रीजी के पार्थिव शरीर को भारत भेजा गया। शव देखने के बाद उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने दावा कि उनकी मौत संदिग्ध परिस्थितियों में हुई है। अगर दिल का दौरा पड़ा तो उनका शरीर नीला क्यों पड़ गया था और सफेद चकत्ते कैसे पड़ गए। शास्त्री का परिवार उनकी मौत पर लगातार सवाल खड़ा करता रहा। 2 अक्टूबर, 1970 को शास्त्री के जन्मदिन के अवसर पर ललिता शास्त्री ने उनके निधन के जांच की मांग की थी।
सरकार द्वारा शास्त्री की मौत पर जांच के लिए एक जांच समिति का गठन करने के बाद उनके निजी डॉक्टर आरएन सिंह और निजी सहायक रामनाथ की मौत अलग-अलग हादसों में हो गई। विशेष यह कि ये दोनों शास्त्रीजी के साथ ताशकंद के दौरे पर गए थे। लाल बहादुर शास्त्री के शव का पोस्टमार्टम भी नहीं कराया गया था। कहा जाता है कि अगर उस समय पोस्टमार्टम कराया जाता तो उनकी मौत का असली कारण सामने आ सकता था।
चलिए दृष्टिपात करते हैं लाल बहादुर शास्त्री जी के जीवन और उनकी उपलब्धियों पर। लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को मुगलसराय, उत्तरप्रदेश में मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव के यहां हुआ था। उनकी माता का नाम रामदुलारी था। लाल बहादुर शास्त्री के पिता प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे। ऐसे में सब उन्हें ‘मुंशी जी’ ही कहते थे। बाद में उन्होंने राजस्व विभाग में क्लर्क की नौकरी कर ली थी। परिवार में सबसे छोटा होने के कारण लालबहादुर जी का बचपन का नाम नन्हें पड़ गया था। जब नन्हे अठारह महीने के हुए तब दुर्भाग्य से उनके पिता का निधन हो गया। उनकी मां रामदुलारी अपने पिता हजारीलाल के घर मिर्जापुर चली गईं। कुछ समय बाद उसके नाना भी नहीं रहे। बिना पिता के बालक नन्हे की परवरिश करने में उसके मौसा रघुनाथ प्रसाद ने उसकी मां का बहुत सहयोग किया। ननिहाल में रहते हुए नन्हे ने प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद की शिक्षा हरिश्चंद्र हाई स्कूल और काशी विद्यापीठ में हुई। काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि मिलते ही शास्त्री जी ने अपने नाम के साथ जन्म से चला आ रहा जातिसूचक शब्द श्रीवास्तव हमेशा के लिए हटा दिया और अपने नाम के आगे शास्त्री लगा लिया।
भारत में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन के एक कार्यकर्ता लाल बहादुर थोड़े समय (1921) के लिए जेल गए। रिहा होने पर उन्होंने एक राष्ट्रवादी विश्वविद्यालय काशी विद्यापीठ (वर्तमान में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ) में अध्ययन किया और स्नातकोत्तर शास्त्री (शास्त्रों का विद्वान) की उपाधि पाई। संस्कृत भाषा में स्नातक स्तर तक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे भारत सेवक संघ से जुड़ गए और देशसेवा का व्रत लेते हुए यहीं से अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की। शास्त्री जी सच्चे गांधीवादी थे जिन्होंने अपना सारा जीवन सादगी से बिताया और उसे गरीबों की सेवा में लगाया। भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों व आंदोलनों में उनकी सक्रिय भागीदारी रही और उसके परिणामस्वरूप उन्हें कई बार जेलों में भी रहना पड़ा। स्वाधीनता संग्राम के जिन आंदोलनों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही उनमें 1921 का असहयोग आंदोलन, 1930 का दांडी मार्च तथा 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन उल्लेखनीय हैं।
1961 में गृह मंत्री के प्रभावशाली पद पर नियुक्ति के बाद उन्हें एक कुशल मध्यस्थ के रूप में प्रतिष्ठा मिली। तीन साल बाद जवाहरलाल नेहरू के बीमार पड़ने पर उन्हें बिना किसी विभाग का मंत्री नियुक्त किया गया और नेहरू की मृत्यु के बाद जून 1964 में वह भारत के प्रधानमंत्री बने। किन्तु दुर्भाग्यवश उनका कार्यकाल अल्प समय का रहा। प्रति वर्ष 11 जनवरी को शास्त्री जी की पुण्यतिथि मनाते हुए यही आशा जागती है कि शायद अगली पुण्यतिथि तक उनकी मृत्यु के रहस्यों से पर्दा उठ चुका होगा।
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यह बेहद दुखद और अफ़सोसजनक है कि आजतक सच को सामने नहीं लाया जा सका है
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