योग, स्वास्थ्य और स्लम बस्तियां
(विश्व योग दिवस पर विशेष)
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह
संयुक्त राष्ट्र महासभा में ‘‘विश्व योग दिवस’’ घोषित करा कर प्रधानमंत्री ने विश्वस्तर पर योग को स्थापना दिलाई। ताकि दुनिया के हर व्यक्ति तक योग पहुंच सके। अफ़सोस कि हमारे देश में ही स्लम बस्तियों तक योग की हज़ारों साल पुरानी पद्धति आज तक नहीं पहुंच सकी है। यूं भी, श्रेष्ठ मार्गदर्शक के बिना योगासनों को करना जोखि़म भरा होता है। इसीलिए हर व्यक्ति उससे नहीं जुड़ सका, और न जुड़ सकता है। उच्चवर्ग से मध्यमवर्ग तक तो योग पहुंच गया है किन्तु बीपीएल कार्डधारी एक बड़ा वर्ग आज भी योग और उसके लाभों से बहुत दूर है। इस दूरी को मिटाने की दिशा में राज्य सरकारों को विचार करना चाहिए। मुफ़्त सामान, रुपया आदि देने के साथ मुफ़्त में योग रूपी स्वस्थ जीवनशैली भी उपलब्ध कराएं, तो इससे उनका अधिक हित होगा।
21 जून 2023, योग दिवस। निःसंदेह भारतीय योग शास्त्र का लोहा समूचा विश्व मानता है। वर्तमान में विश्व के अनेक देशों में योग संस्थाएं मौजूद हैं। लोग समझ चुके हैं कि योग, दवाओं पर निर्भरता को कम करता है और एक स्वस्थ जीवन देता है। वस्तुतः योग अपने आप में एक स्वस्थ जीवन शैली है और एक स्वस्थ जीवन शैली को जीने वाला व्यक्ति बीमार कैसे पड़ सकता है? यदि वातावरण भी प्रदूषित न हो कर शुद्ध रहता तो योग के बल पर बीमारियों हम स्वयं से कोसों दूर रख सकते थे। किन्तु विश्व योग दिवस पर मुझे अपना वह प्रश्न और प्रस्ताव याद आ रहा है जो मैंने मई 2016 में उज्जैन के सिंहस्थ महाकुंभ के दौरान उज्जैन के पास ही निनौरा नामक स्थान में हुए अंतरराष्ट्रीय विचार महाकुंभ के योग सत्र में योगाचार्यों के सम्मुख रखा था। उस सत्र में परमानंद इंस्ट्यूट आॅफ योगा साईंस, इंडिया के योगाचार्यों के साथ ही तिब्बतीमूल के एक योगगुरु (अफ़सोस कि मुझे अब उनका नाम याद नहीं है) भी आए थे।
सत्र में चर्चा चल रही थी कि समाज के प्रत्येक स्तर तक योग की पहुंच कैसे बनाई जाए? एक योगाचार्य ने बताया कि उनके पास उच्चवर्ग एवं मध्यवर्ग के ऐसे लोग भी आए जिन्हें शराब, भांग, अफीम आदि की लत थी। वे भी योग के विभिन्न आसनों एवं ध्यान साधना के द्वारा नशे की लत से मुक्त हो गए। अतः योग समाज में अच्छे संस्कार एवं व्यवहार को बढ़ाने में मदद कर सकता है। उन सभी योगाचार्यों की बातें सुनने के बाद मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उनसे प्रश्न किया कि आप लोगों ने योग और जनजीवन के पारस्परिक संबंध की जितनी भी जानकारियां यहां दीं, उसमें झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले मजदूर वर्ग की चर्चा तो आई ही नहीं। जबकि सबसे अधिक नशा करने वाले स्लम बस्तियों में मिलते हैं, सबसे अधिक बीमारियों का प्रकोप स्लम बस्तियों पर होता है और स्लम बस्तियों के रहवासी भी गहरे मानसिक तनाव से गुज़रते हैं। फिर मैंने प्रस्ताव रखा कि झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों के लिए भी दैनिक नहीं तो कम से कम साप्ताहिक योग प्रशिक्षण का कोई अभियान चलाया जा सकता है। इस पर एक योगाचार्य ने बताया कि उनके शिष्यों द्वारा मुंबई में यह प्रयास किया गया किन्तु बहुत अधिक प्रभावी नहीं रहा। उन लोगों को राजी करना कठिन होता है। वे सोचते हैं कि इसमें पैसे तो मिलने नहीं है तो हम अपना समय क्यों खराब करें?
उन योगाचार्य की बात में दम थी। जिसके पास पैसों की तंगी हो वह हर अवसर में पैसे पाने की ही चाह रखेगा। यह स्वाभाविक है। लेकिन यदि हम उन्हें सही ढंग से यह समझा सकें कि यदि वे योग और ध्यान को अपनाते हैं तो कम बीमार पड़ेगे और अधिक काम कर के अधिक पैसे कमा सकेंगे, तो शायद वे एक बार योग की दुनिया में कदम रख कर देखेंगे। आखिर स्लम बस्तियों में स्कूल चलाना और गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों के बच्चों को पढ़ाना भी किसी चुनौती से कम नहीं रहा है। लेकिन समाजसेवी शिक्षकों ने हार नहीं मानी। हर स्थिति में टिके रहे। यहां तक कि प्रौढ़ शिक्षा की कक्षाएं भी कई इलाकों में सफलतापूर्वक चलाई गईं और प्रौढ़ों को शिक्षित किया गया। तो फिर योग का रास्ता स्लम बस्तियों की ओर क्यों नहीं मुड़ सकता है? प्रश्न उठाया था मैंने 2016 में लेकिन 2023 में भी वह अनुत्तरित है।
वैश्विक स्तर पर योग को लोकप्रिय बनाने की दिशा में उस समय एक बड़ा कदम माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा उठाया गया जब उन्होंने 27 सितम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण में कहा था कि -‘‘योग दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक है। मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य है। विचार, संयम और पूर्ति प्रदान करने वाला है तथा स्वास्थ्य और भलाई के लिए एक समग्र दृष्टिकोण को भी प्रदान करने वाला है। यह व्यायाम के बारे में नहीं है, लेकिन अपने भीतर एकता की भावना, दुनिया और प्रकृति की खोज के विषय में है। हमारी बदलती जीवनशैली में यह चेतना बनकर, हमें जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद कर सकता है।’’
प्रधानमंत्री ने अपील की कि योग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थान दिया जाए। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की अपील के बाद 27 सितंबर 2014 को ही संयुक्त राष्ट्र महासभा में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के प्रस्ताव को अमेरिका द्वारा मंजूरी दी गई। 21 जून को ‘‘अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस’’ घोषित किए जाने के बाद 11 दिसम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र के 177 सदस्यों द्वारा 21 जून को ‘‘ अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’’ को मनाने के प्रस्ताव को अंतिम मंजूरी मिली। जिसके बाद सर्वप्रथम इसे 21 जून 2015 को पूरे विश्व में ‘‘विश्व योग दिवस’’ के नाम से मनाया गया। प्रधानमंत्री मोदी के इस प्रस्ताव को 90 दिन के अन्दर पूर्ण बहुमत से पारित किया गया, जो संयुक्त राष्ट्र संघ में किसी दिवस प्रस्ताव के लिए सबसे कम समय है।
इसके पूर्व ‘‘योग: विश्व शान्ति के लिए एक विज्ञान’’ नामक सम्मेलन 4 से 5 दिसम्बर 2011 के बीच आयोजित किया गया था। यह संयुक्त रूप से लिस्बन, पुर्तगाल के योग संघ, आर्ट ऑफ लिविंग फाउण्डेशन और एस.वी.वाई.ए.एस, योग विश्वविद्यालय, बेंगलुरु के द्वारा आयोजित किया गया। उस सम्मेलन में सदस्य के रूप में उपस्थित थे- श्री श्रीरवि शंकर, संस्थापक, आर्ट ऑफ लिविंग, आदि गिरि मठ के श्री स्वामी बाल गंगाधरनाथ, स्वामी परमात्मानंद, हिन्दू धर्म आचार्य सभा के महासचिव बीकेएस अयंगर, राममणि आयंगर मेमोरियल योग संस्थान, पुणेय स्वामी रामदेव, पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार, डॉ. नागेन्द्र, विवेकानन्द योग विश्वविद्यालय, बंगलुरू, जगत गुरु अमृत सूर्यानन्द महाराज, पुर्तगाली योग परिसंघ के अध्यक्षय अवधूत गुरु दिलीपजी महाराज, विश्व योग समुदाय, सुबोध तिवारी, कैवल्यधाम योग संस्थान के अध्यक्षय डॉ. डी.आर कार्तिकेयन, कानून-मानव जिम्मेदारियों व कारपोरेट मामलों के सलाहकार और डॉ॰ रमेश बिजलानी, श्री अरबिन्दो आश्रम, नई दिल्ली।
ऐसा माना जाता है कि जब से सभ्यता शुरू हुई है तभी से योग किया जा रहा है। योग के विज्ञान की उत्पत्ति हजारों साल पहले हुई थी, पहले धर्मों या आस्था के जन्म लेने से काफी पहले हुई थी। योग विद्या में शिव को पहले योगी या आदि योगी तथा पहले गुरु या आदि गुरु के रूप में माना जाता है। यह भी कहा जाता है कि कई हजार वर्ष पहले, हिमालय में आदि योगी ने अपने प्रबुद्ध ज्ञान को अपने प्रसिद्ध सप्तऋषि को प्रदान किया था। सप्तऋषियों ने योग के इस विज्ञान को एशिया, मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका एवं दक्षिण अमरीका सहित विश्व के भिन्न - भिन्न भागों में पहुंचाया। सूर्य नमस्कारपूर्व वैदिक काल (2700 ईसा पूर्व) में एवं इसके बाद पतंजलि काल तक योग किए जाने के साक्ष्य मिलते हैं। वेदों, पुराणों, उपनिषदों, स्मृतियों, बौद्ध ग्रंथों, जैन ग्रंथों एवं महाकाव्यों में योग की वृहद चर्चा है।
योग मनुष्य के जीवन में काफी महत्वपूर्ण होता है। योग मनुष्य को स्वस्थ बनाए रखने का कार्य करता है। जो लोग योग करते है, वें मानसिक व शारीरिक दोनों रूप से स्वस्थ रहते है। योग से मन को शांति मिलती है। वर्तमान समय में जिस स्तर से रोग बढ़ रहे है, उसमें योग और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। योग करने से व्यक्ति इन सभी बीमारियों से आसानी से लड़ सकता है। योग करने से कईं बीमारियाँ, जैसे- हृदय रोग, रक्तचाप की समस्या, अर्थराईटिस आदि से छुटकारा प्राप्त किया जा सकता है। योग करने से मोटापा भी नहीं आता है और शरीर जल्दी से थकता भी नहीं है। भारत में हजारों वर्षों से योग किया जाता रहा है। यह एक प्रकार का व्यायाम है जिसमे कई प्रकार के आसन शामिल है। योग हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाता है तथा हमे शारीरिक तथा मानसिक रूप से स्वस्थ रखता है एवं शरीर के अंगो को लाभ पहुचता है। पुराने समय से योग को एक स्वस्थ जीवनशैली के लिए उपयोग किया जाता आ रहा है। हर किसी को योग करना चाहिए यह हमारी मानसिक क्षमता को भी बढ़ाता है। नियमित योग करने से अनेक लाभ मिलते है। यह हमारे मस्तिष्क को मजबूत करता है और हमारे शरीर की मांसपेशियों के लिए भी लाभकारी है। अब तो विज्ञान ने भी सिद्ध कर दिया है कि प्रतिदिन योग करने से हमे कई लाभ मिलते हैं।
योग को किसी धर्म, जाति या समुदाय विशेष से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए। यह एक स्वस्थ जीवन जीने की शैली है। यूं भी प्रत्येक धर्म के संतों एवं महापुरुषों ने किसी न किसी रूप में योग को अपनी जीवनचर्या बनाया था। तप, ध्यान, साधना आदि योग के ही तो अंग हैं। योग के मार्ग पर चल कर ही उन्होंने अपने जीवन को अपनी इच्छानुसार दिशा दी अतः हमें भी योग को अपनाना चाहिए, बल्कि अपनी दिनचर्या का अभिन्न हिस्सा बनाना चाहिए।
लेकिन मैं योग पर इस चर्चा को उसी बिन्दु पर ला कर रोकना चाहूंगी जिस बिन्दु पर इस चर्चा में स्लम बस्तियों के लिए योग का अभियान प्लस हो सके। जो गरीब योग संस्थानों तक चल कर नहीं जा सकते हैं क्या योग केन्द्र उनकी बस्तियों तक नहीं पहुंच सकते हैं? योग जनहित भी तो सिखाता है। अन्यथा यदि स्वास्थ्य सेवाओं के संबंध में विचार करें, तो कई बार लगता है कि उच्चस्तरीय और अत्याधुनिक स्वास्थ्य सेवाएं सिर्फ़ पैसे और कुर्सी वालों के लिए ही होती है, गरीब तबका आज भी सरकारी स्वास्थ्य कार्ड बनवा कर अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं हासिल नहीं कर पाता है। किसी मंत्री अथवा उच्चाधिकारी को छींक भी पड़ती है तो एक इशारे पर एम्बुलेंस उसके बंगले के दरवाज़े पर खड़ी दिखाई देती है, वहीं एक गरीब व्यक्ति को अपने बेटे का शव भी थैले में रख कर घर तक ले जाना पड़ता है। हम बोलें या न बोलें पर, सरकारी और गैरसरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के सच से हम सभी परिचित हैं। अतः कम से कम योग को जन-जन तक पहुंचना चाहिए। मंहगी दवाएं खरीदने की हैसियत न रखने वालों को योग की निःशुल्क सेवाएं मिलनी ही चाहिए। अच्छा स्वास्थ्य पाना एक नागरिक की हैसियत से उनका भी तो अधिकार है। नीमहकीमों के हाथों खिलवाड़ बनने से वे बचेंगे। बाबा रामदेव के बारे में हम कितनी भी विपरीत सोच रखें, लेकिन यह तो मानना ही पड़ता है कि उन्होंने आयुर्वेदिक औषधियों को हर परिवार के बजट के अनुकूल बनाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। योग को भी उन्होंने लोकप्रिय बनाया। प्रधानमंत्री ने विश्वस्तर को योग को स्थापना दिलाई। किन्तु श्रेष्ठ मार्गदर्शक के बिना योगासनों को करना जोखिम भरा होता है। इसीलिए हर व्यक्ति उससे नहीं जुड़ सका ओर न जुड़ सकता है। उच्चवर्ग से मध्यमवर्ग तक तो योग पहुंच गया है किन्तु बीपीएल कार्डधारी एक बड़ा वर्ग आज भी योग और उसके लाभों से बहुत दूर है। इस दूरी को मिटाने की दिशा में राज्य सरकारों को विचार करना चाहिए। मुफ्त सामान, रुपया आदि देने के साथ मुफ्त में स्वस्थ जीवनशैली भी उपलब्ध कराएं तो उनका अधिक हित होगा।
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