बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
------------------------
बतकाव बिन्ना की
ढिग धर आंगन लिपाओ, संगे माटी को दिया जलाओ
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
दिवारी होय औ गूझा, पपड़ियां औ अंदरसे ने बने तो दिवारी, दिवारी घांई नईं लगत। सो भौजी ने सोची के कछू घरे बनाओ जाए। कोनऊं दिवारी मिलबे खों आहे सो खवाबे को लगहे, फेर पास-पड़ोस में देने-लेने खों लगहे। बजार में तो ऊंसई इत्तो मिलावटी सामान बिकन लगो के बा खरीदबे को जी नईं करत। भौजी खों पतो के मैं कछू ने बनाहों, सो उन्ने मोय अपने हाथ बंटाबे खों बुला लओ। जोन से मोरो जी लगो रए औ मोय अकेलो सो ने लगे।
मैं भौजी के घरे पौंची तो भैयाजी घरे ने हते। कोनऊं सामान बढ़ा गओ रओ, सो बे बोई लेबे के लाने बजार गए रए। भौजी ने मैदा माढ़ के रखो हतोे। मैं पौंची तो बे ऊ टेम पे खोबा और सुजी कढ़इया में भून रई हतीं। पूरे घर में ऐसी नोनी सुगंध भरी हती के ने पूछो।
‘‘जो लौं मैं जो भरबे को मसाला भून रई, तब लौं जे मैदा की पुड़ी बेल लेओ गूझा के लाने।’’ भौजी ने बेलन औ पटा मोरे आंगू सरकात भई कई।
‘‘हऔ! ईमें का धरो।’’ मैंने कई। फेर पैले मैदा की एक बरोबर मुतकी लोइयां बना लईं औ फेर ऊके बाद ऊं लोइयां बेलन लगी। संगे हम दोई की बतकाव चलन लगी। हम दोई पुरानी बाते करन लगे। मोए अपने बचपन के दिन याद आन लगे। ऊ टेम पे जबे कढ़इया चूला पे चढ़त्ती तो हम बच्चा हरों को चूला के लिंगे फटकबो बी मना रैत्तो। काय से के कोनऊं बच्चा कढाई में ने टपक परे। पर तनक सोचो के घरे बेसन के सेव तले जा रहे होंय औ चींखबे खों बी ने मिले सो ऐसो कैसे हो सकत्तो? कोनऊं ने कोनऊं बहाना से हम बच्चा पार्टी चैका में जा पौंचत्ते और मौका पातई मूंठा भर के सेव अपने खींसा में भर के उते से खसक लेत्ते। हमाई जान में तो बनाबे वारन खों पतो नई परत्तो। मनो, सई तो जा हती के बे हम ओरन खों देखतई ताड़ जात्तीं के हमाओ अगलो कदम का हुइए। बे ओरे देख के अनदेखी कर देत्तीं। उने जे सहूरी रैती के अब हम ओरें जल्दी दुबारा उते ने मंडराहें। गूझा की पुड़ी बेलत-बेलत मोए आंगन लीपबे की सुरता आन लगी। मैंने भौजी खों सुनाबो शुरू करो।
‘‘जब मैं छोटी रई तो ऊ टेम पे एक खाना पकाबे वारी हमाए इते आत्तीं जिने हम सबई ‘बऊ’ कहत्ते। बाकी तो लिपाई हम ओरें बी कर लेत्ते मनो सामने वारे आंगन में बऊ लिपाई करत्ती औ बोई लिपाई के बाद ढिग धरत्ती। ढिग धरे जाबे के बाद बा आंगन ऐसो दिखत्तो मनो उते मैंगी दरी बिछी होय। ऊके बाद मोरी और मोरी दीदी की बारी आऊत्ती। हम दोई मिल के ऊ लिपे आंगन में सातिया काढ़त्ते। बाकी सई बात जो जे हती के असली सातिया तो दीदी काढ़त्तीं, मैं तो उनकी हेल्परी करत्ती। ऊ हेल्परी में मच्छर मारबे को काम सोई शामिल हतो। काय से के संझा की बिरियां सातिया काढ़ो जात्तो जोन से लछमी मैया की पूजा के टेम लौं सातिया सुदरो रए। औ बोई अेम मच्छरों को मंडराबे को रैत्तो। पैले छुई से एक बड़ो सातिया दीदी बनाऊत्तीं, फेर ऊमें रंग भरबे के टेम पे मैं सोई उनको हाथ बंटाऊत्ती। ऊ टेम पे जे सब करे में बड़ो अच्छो, नोनो लगत्तो।
सबसे मजो आऊत्तो लिपाई के बी पैले गोबर बीनबे में। वैसे बऊ गोबर को जुगाड़ कर लेत्ती। काय से के उनकी एक-दो दउआ हरों के इते सेंटिग रई के बे कोऊ और खों गोबर दें के ने दें, बाकी बऊ के लाने बे मना नईं कर सकत्ते। कभऊं-कभऊं हम ओरन को गोबर बीनबे जाने परत्तो। तब हम ओरें अपने हाथन में बांस की छोटी-छोटी टुकनिया ले लेत्ते औ गऊ माता के पांछे-पांछे घूमत्ते। इत्ती दूरी बना के, के बे हमें लत्ती ने मार सकें। बाकी हम ओरन की नन्ना जू मने हमाई मम्मी जू हमें डांट-डपट के वापस बुला लेत्तीं। ऊ टेम पे गऊ माता हरों खों इते-उते बी खाबे के लाने अच्छो घास-पतूला मिल जात्तो। ईसे उनको गोबर ऊ टाईप से बास नई मारत्तो, जोन टाईप से अब मारत आए। अब तो गोबर छूबे में घिनईं आऊत आए।’’ मैंने गूझा की लोई बेलत साथ अपने बचपने की किसां बताई।
‘‘सई में बिन्ना! पर गऊ माता हरें बी का करें? उने पनी लौं खाने परत आए। सई में खाबे की चीजें पनी में भर के कभऊं नईं मैको जानो चाइए। बिचारी गऊएं खाबे की चीज खों खाबे के चक्कर में पनी सोई खा लेत आएं और ईसे उनके मरबे-जीबे की होन लगत आए। अभईं दो दिनां पैले एक गइया इतई मैदान में ऐसी हली जा रई हती के हमें देख के अचरज भओ। फेर हमने तनक देर ठैर के ऊको देखो। बा उल्टी-सी कर रई हती। जबे ऊने बड़ी मुस्कल से उल्टी करी तो ऊके मों से पनी निकरी। हमें लगो के जो बा पनी ने निकर पाती औ ऊके फेफड़न में, ने तो आंतन में चपक जाती तो ऊको मरबो तो तै हतो।’’ भौजी ने कई।
फेर भौजी बतान लगीं के ‘‘हमाए इते सोई खीब लिपाई होत्ती। दो ठईया भौत बड़े आंगन रए। एक बाहरे और एक भीतरे। बाहर के आंगन में लुगाइयां आत्तीं लिपाई करबे के लाने। भीतर को आंगन अम्मा, फुआ औ हम ओरें लीपत्ते। हमाये इते चूना से ढिग धरी जात्ती। रात को एक घड़ा में चूना भिगा दओ जात्तो औ भुनसारे बा तपो धरो मिलत्तो। फेर ऊको ठंडो करो जात्तो। रामधई! का बे बी दिन हते। ऊ टेम पे ने तो टीवी हती औ ने मोबाईल। खूब टेम रैत्तो काम करबे के लाने। ज्यादा से ज्यादा रेडियो चला लेत्ते।’’ भौजी लम्बी संास भरत साथ बोलीं। मोय सोई अपने लड़कौरे के दिन याद आन लगे।
तब लौं गूझा भरबे को टेम आ गओ। मैं पुड़ी में मसालो भरन लगी औ भौजी उने तोप-तोप के अंगूठा-उंगरियन से डिजायन बनान लगीं। बे ई काम में बड़ी एक्सपर्ट ठैरीं।
अबे हम ओरन के गुझा तले जा रए हते के इत्ते में भैयाजी आ गए।
‘‘का हो रओ?’’उन्ने बोई पूछी, जो सब पूछत आएं। देखत बी जैहें औ पूछहें के ‘‘का हो रओ?’’
‘‘ताजो गूझा खाने?’’ भौजी ने भैयाजी से पूछी।
‘‘अबे नईं! तनक जुड़ान देओ। फेर पूरे घर में ईकी गमक भरी, सो घर में घुसत साथ ऊंसई मूंड़ चढ़न लगो।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सई कई आपने, ऐसई होत आए। अभई भौजी ने मोसे बी कई रई के एकाध गूझा चींक के देखो, मैंेने बी मना करी। बाकी, आप का-का ले आए?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘अजवाइन बढ़ा गई रई। संगे तिली सोई लाने हती। सुफेद तीली ढूंढबे में ई तो टेम लग गओ। तुमाई भौजी बोली हतीं के जो चकली बनावाने होय तो अच्छी साफ-सुफेद तिली ले के आओ। तो अपन तो हुकम के गुलाम ठैरे।’’ कैत भए भैयाजी हंसन लगे।
‘‘हऔ, रैन तो देओ! आपकी गुलामी खीबईं देखी हमने।’’ भौजी सोई हंसत भई बोलीं।
‘‘औ का ले आए?’’ मैंने फेर पूछी।
‘‘दिया ल्याए औ झालरें। ई बेर तो पानी वारे दिया सोई मिल रए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, हमने सोई उनके बारे में पढ़ी रई। बा तो लाइटें आएं दिया के डिजायन की।’’ मैंने कई।
‘‘औ का! हमने तो तुमाए भैयाजी से कै दई रई के चाए झालरें लाओ, चाए पानी वारे दिया लाओ, मनो हमें तो माटी के दिया चाउनें, जीमें तेल डार के बाती लगा के जलाओ जा सके। बिना माटी के दिया के दिवारी कैसी?’’ भौजी बोलीं।
‘‘हऔ, आपको सोई बा गीत याद हुइए जोन में कओ गओ के-
ढिग धर आंगन लिपाओ
संगे माटी के दिया जलाओ...
लछमी जी आहें, बिष्णु को लाहें
उनके लाने हम अनरसा बनाहें
सातें पे पटा बिठाओ....
संगे माटी के दिया जलाओ...
मोरे संगे भौजी बी जा गानो गान लगीं। जेई के संगे बनन लगो दिवारी को सई माहौल। बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। खूब दिवारी मनाओ! खूब दिया जलाओ! लछमी मैया सबकी भली करहें।
सबई जनन खों हैप्पी दिवारी!!!
-----------------------------
#बतकावबिन्नाकी #डॉसुश्रीशरदसिंह #बुंदेली #batkavbinnaki #bundeli #DrMissSharadSingh #बुंदेलीकॉलम #bundelicolumn #प्रवीणप्रभात #praveenprabhat
No comments:
Post a Comment