Tuesday, October 15, 2024

पुस्तक समीक्षा | वह पुस्तक जिससे बुंदेलखंड के परिचय को वैश्विक विस्तार मिलेगा | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण

आज 15.10.2024 को  #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई डॉ. नीलिमा पिंपलापुरे द्वारा लिखित पुस्तक "बुंदेलखंड : द हार्टबीट ऑफ मध्यप्रदेश" की समीक्षा।
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पुस्तक समीक्षा 
वह पुस्तक जिससे बुंदेलखंड के परिचय को वैश्विक विस्तार मिलेगा
- समीक्षक डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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पुस्तक        - बुंदेलखंड : द हार्टबीट ऑफ मध्यप्रदेश
लेखिका      - डाॅ. नालिमा पिंपलापुरे
प्रकाशक     - बी बज़ मीडिया, इंडिया
मूल्य        - 1000/- (पेपर बैक)
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      बुंदेलखंड देश का वह क्षेत्र है जिसकी भौगोलिकता अपने आप में अनूठी है। इसके इतिहास में प्राचीनता है और यह कला में बेजोड़ है। प्रागैतिहासिक काल से इंसानों ने बुंदेलखंड को अपने निवास के रूप में चुना। यहां स्थित गुफाचित्र इसका साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं। मृदभाण्ड तथा तांबे के सिक्के इसकी प्राचीनता की कथा कहते हैं। बुंदेलखंड श्रीराम के वनगमन पथ का अभिन्न हिस्सा रहा है तथा प्राचीन वैश्विक व्यापार के ‘‘सिल्क रूट’’ का एक प्रमुख केन्द्र रहा है। बुंदेलखंड की वर्तमान विशेषता यह है कि यह दो राज्यों मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश में फैला हुआ है। बुंदेलखंड के इतिहास, पुरातत्व एवं संस्कृति पर अकादमिक रूप से बहुत लिखा जा चुका है और लिखा जा रहा है क्योकि शोध का कोई अंत नहीं होता है। फिर बुंदेलखंड में आज भी अनेक ऐसे तथ्य हैं जिनका उजागर होना अथवा जिन्हें नवीनदृष्टि से देखा जाना शेष है। इस दिशा में सागर विश्वविद्यालय के प्रो. कृष्णदत्त वाजपेयी, प्रो. एस.के. वाजपेयी, प्रो नागेश दुबे, प्रो. बी.के. श्रीवास्तव, डाॅ. मोहनलाल आदि ने महत्वपूर्ण शोध एवं लेखन का काम किया है। किन्तु अकादमिक कार्य एवं पर्यटन में प्रायः दूरी बनी रहती है। पर्यटक विस्तृत जानकारी से कतराते हैं। वे संक्षेप में जानना चाहते हैं कि यदि वे बुंदेलखंड पहुंचे तो वहां उन्हें क्या-क्या देखना चाहिए। वे सुंदर आकर्षक चित्रों के रूप में पहले ही उसका परिचय पाना चाहते हैं। अतः यह पूर्ति एक पर्यटन पुस्तक ही कर सकती है। सागर निवासी डाॅ. नीलिमा पिंपलापुरे ने इस कमी को अनुभव किया। जो उन्होंने चर्चा के दौरान अपने अनुभव साझा किए उसके अनुसार,‘‘जब वे विदेश में अथवा देश के दूसरे प्रदेशों में बसे लोगों से मिलती हैं तो लोग उनसे पूछते हैं कि वे कहां रहती हैं? जब वे बताती हैं कि सागर में, तो लोग पूछते हैं यह कहां है? वे बताती हैं कि मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड में। तो लोग बुंदेलखंड का नाम सुन कर उलझन में पड़ जाते हैं क्योंकि उन्हें बुंदेलखंड के बारे में जानकारी नहीं है। ऐसे ही अनुभवों से उन्हें विचार आया कि एक ऐसी पुस्तक तैयार की जाए जो लोगों को बुंदेलखंड का संक्षिप्त परिचय भी दे और उन्हें यहां पर्यटन के लिए आने को प्रेरित भी करे।’’

डाॅ. नीलिमा पिंपलापुरे ने अपने इस विचार को विदेशी धरती तक पहुंचाने के लिए अंग्रेजी भाषा के माध्यम को चुना। यद्यपि वे मराठी और हिन्दी की भी जानकार हैं। लेकिन उनका उद्देश्य था बुंदेलखंड की खूबियों को ग्लोबल (वैश्विक) करना। इस दिशा में उनकी पहली पुस्तक प्रकाशित हुई ‘‘बुंदेलखंड द हार्टबीट ऑफ इंडिया’’। यह काॅफी टेबुल बुक थी। आकार-प्रकार में बेहद आकर्षक। इसमें विश्व विख्यात फोटोग्राफर गणेश पंगारे द्वारा खींचे गए फोटोग्राफ थे। यह पुस्तक चर्चा में रही। किन्तु इस पुस्तक में कई जानकारियां छूट गई थीं और काफी टेबुल बुक के रूप में यह स्वदेशी पाठकों के लिए अपेक्षाकृत मंहगी भी थी। अतः उन्होंने अपने पहली पुस्तक के कलेवर को संशोधित एवं परिवर्द्धित किया और पेपरबैक पुस्तक के रूप में तैयार किया। इसमें भी गणेश पंगारे के नयनाभिराम छायाचित्र हैं। जो पुस्तक पढ़ने वालों को आमंत्रण देते प्रतीत होते हैं कि ‘‘आइए और बुंदेलखंड के सौंदर्य को निकट से निहारिए!’’ इस पेपरबैक पुस्तक का नाम भी वही है ‘‘बुंदेलखंड: द हार्टबीट आफॅ इंडिया’’। यह मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड पर केन्द्रित है और इसमें वे तथ्य भी समाहित किए गए हैं जो काॅफीटेबुल बुक में छूट गए थे। दोनों पुस्तकों का नाम एक ही है किन्तु कव्हर और कलेवर में दोनों पुस्तकों में भिन्नता है।

लेखिका ने अपनी यह पुस्तक बुंदेलखंड के निवासियों को समर्पित की है। इस पुस्तक में जो मुख्य विषय लिए गए हैं, वे हैं- बुंदेलखंड द रीजन, एम्प्लायमेंट एंड लिवलीहुड, फोर्ट एंड टेम्पल्स तथा कल्चरल हेरीटेज। अंत में संदर्भ प्रस्तुत किए गए हैं।

प्रथम अध्याय है ‘‘बुंदेलखंड द रीजन’’ अर्थात बुंदेलखंड की भौगोलिकता का। इसका परिचय देते हुए अध्याय के आरंभ में ही लेखिका ने काव्यात्मक शब्दों में लिखा है कि -‘‘हवाओं के मंत्रमुग्ध कर देने वाले संगीत के साथ झूमते हरे-भरे खेत, नम काली मिट्टी की मीठी सुगंध, घने जंगल, वनस्पतियों और जीव-जंतुओं की विविधता, क्रिस्टल जैसी स्वच्छ नदियों का शुद्ध बहता पानी, शानदार पहाड़ी इलाके, हजारों वर्षों की समृद्ध विरासत और संस्कृति - यह सब और भी बहुत कुछ, यह बेहद खूबसूरत बुंदेलखंड है, जो भारत की धड़कती धड़कन है!’’ इस अध्याय में उन्होंने बुंदेलखंड की भौगोलिक स्थिति, बुंदेलखंड का मानचित्र तथा बुंदेलखंड का संक्षिप्त इतिहास दिया है। बुंदेलखंड के इतिहास में लेखिका ने इस क्षेत्र की प्राचीनता को ध्यान में रखते हुए प्रीहिस्टोरिक अर्थात प्रागैतिहासिक काल से आरंभ किया है। फिर रामायण काल, महाभारत काल, छठीं शताब्दी ईसा पूर्व, ईसा उपरांत तीसरी शताब्दी, तीसरी से चौथी शताब्दी, वाकाटकों की चैथी शताब्दी, चैथी से छठीं शताब्दी गुप्ता राजवंश, आठवीं शती गुर्जर-प्रतिहार, नवीं से तेरहवीं शती चंदेल राजवंश, चौदहवीं से सोलहवीं शती बुंदेला साम्राज्य तथा 1720 सं 1760 तक मराठाओं का बुंदेलखंड पर राजनैतिक प्रभाव का परिचय दिया गया है। इसी अध्याय में प्राचीन नगर एरण, खजुराहो के मंदिर, महाराज छत्रसाल, ब्रिटिश साम्राज्य के समय बुंदेलखंड के बारे में जानकारी है। रानी लक्ष्मी बाई के संदर्भ में झांसी का परिचय है। सागर का परिचय देते हुए यहां की लाखा बंजारा झील से जुड़ी रोचक किंवदंती तथा सागर विश्वविद्यालय का परिचय है। अंत में देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बुंदेलखंड का स्वरूप जो विंध्यप्रदेश तथा मध्यभारत के अंग के रूप में रहा तथा वर्तमान बुंदेलखंड की जानकारी है।  

दूसरे अध्याय ‘‘एम्प्लायमेंट एंड लिवलीहुड’’ में बुंदेलखंड के आर्थिक पक्ष को लिया है। यहां का आर्थिक परिचय देते हुए आरम्भ में ही डाॅ नीलिमा पिंपलापुरे ने लिखा है कि -‘‘कृषि विकास इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को गति देता है, जबकि तेंदू पत्ता संग्रहण और महुआ आज भी वन-आश्रित समुदायों के लिए आय के महत्वपूर्ण स्रोत हैं।’’ इस अध्याय में बुंदेलखंड की कृषि संबंधी तथा वनोपज की जानकारी दी गई है। चूंकि बीड़ी व्यवसाय बुंदेलखंड का एक प्रमुख व्यवसाय है अतः तेंदू पत्ता जिसका उपयोग बीड़ी निर्माण में होता है तथा बीड़ी बनाने की चर्चा की गई है। वनोपज पर आधारित दूसरा बड़ा व्यवसाय है महुआ का। महुआ बीनने तथा इसके विविध उपयोग की संक्षिप्त जानकारी दी गई है।

इसी दूसरे अध्याय में ही वाइल्ड टूरिज्म अर्थात वन्य पर्यटन की अति संक्षिप्त जानकारी है। यहां मैं कहना चाहूंगी कि यदि लेखिका ने वन्य पर्यटन को एक अलग अध्याय के रूप में रखा होता तो उसकी ओर अधिक ध्यानाकर्षण होता तथा पन्ना नेशनल पार्क और नौरादेही अम्यारण्य की विस्तृत जानकारी वे दे पातीं। यूं भी आजकल प्रकृति-पर्यटन अधिक लोकप्रिय है।  

तीसरा अध्याय है ‘‘फोर्ट एंड टेम्पल्स’’ यानी किलों और मंदिरों का। इस संबंध में लेखिका ने परिचयात्मक ढंग से अध्याय के आरंभ में ही लिखा है कि -‘‘प्राचीन संस्कृति और परंपराओं की भूमि बुंदेलखंड अपने पुरातात्विक स्मारकों और सभी धर्मों, हिंदू, मुस्लिम, जैन और बौद्धों के लिए तीर्थ स्थानों के लिए प्रसिद्ध है। शानदार किले गौरवशाली अतीत, महान राजवंशों, सम्राटों और योद्धाओं की याद दिलाते हैं।’’ इसमें कोई संदेह नहीं कि बुंदेलखंड स्थापत्य और कला का धनी है। यहां के किलों का पुराणों में उल्लेख मिलता है। डाॅ. पिंपलापुरे ने इस अध्याय में जिन किलों का उल्लेख किया है, वे हैं- कालिंजर, झांसी (यद्यपि यह वर्तमान में उत्तरप्रदेश में स्थित है), ओरछा के किले, मंदिर एवं छतरियां। साथ ही ओरछा की रानी गणेशकुंवरी, लाला हरदौल की कथा का भी उल्लेख है। इसके अतिरिक्त अजयगढ़ का किला, दतिया महल, खजुराहो, धामोनी, चंदेरी, तालबेहट, धुबेला संग्रहालय, हृदयशाह का महल तथा पन्ना के प्रसिद्ध मंदिरों का परिचय दिया गया है। वैसे खजुराहो को एक स्वतंत्र अध्याय बनाया जा सकता था तथा ‘खजुराहो और उसके आस-पास’ के रूप में उस पूरे क्षेत्र चंदला, मंड़ला, बसारी आदि को हाईलाईट किया जा सकता था।
चौथा अध्याय ‘‘कल्चरल हेरीटेज’’ अर्थात सांस्कृतिक धरोहर का है। लेखिका डाॅ नीलिमा पिंपलापुरे के शब्दों में-  ‘‘बुंदेलखंड का खूबसूरत इलाका परंपराओं का शाही इतिहास दर्ज करता है। चाहे वह विरासत हो, कला और शिल्प, हथकरघा या संस्कृति, यह अपनी विशिष्टता के लिए जाना जाता है। बुंदेलखंड का पारंपरिक संगीत और नृत्य, त्यौहार और समारोह, साहित्य और ऐतिहासिक स्मारक बुंदेलखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के कई पहलुओं में से कुछ हैं।’’ इस अध्याय में बुंदेलखंड में प्रचलित काष्ठ एवं धातु शिल्प, चंदेरी के वस्त्र उद्योग, ताराग्राम ओरछा के हस्त निर्मित कागज उद्योग की जानकारी है। इसके साथ ही बुंदेली चित्रकला एवं बुंदली लोकनृत्यों, बुंदेली पकवानों तथा बुंदेली भाषा का संक्षिप्त परिचय है।

वस्तुतः यह एक ऐसी हैण्डबुक है जो बुंदेलखंड के बारे में जानकारी नहीं रखने वालों को बुंदेलखंड के बारे में संक्षिप्त किन्तु समग्रता से जानकारी उपलब्ध कराती है। इसका मूल उद्देश्य पर्यटकों को बुंदेलखंड की ओर आकर्षित करना है, जिसमें यह पुस्तक खरी उतरती है। पुस्तक का कव्हर, मुद्रण तथा कागज बेहतरीन है। लेखिका डाॅ. नीलिमा पिंपलापुरे ने इसे लिखने में निश्चित रूप से श्रम किया है क्योंकि जानकारी भले ही संक्षेप में दी जाए किन्तु वह जानकारी जब तक समग्रता से ज्ञात न हो सब तक उसका संक्षेपीकरण भी नहीं किया जा सकता है। बुंदेलखंड की कला एवं संस्कृति के प्रति लेखिका का प्रेम प्रशंसनीय है। इस पुस्तक से बुंदेलखंड के परिचय को वैश्विक विस्तार मिलेगा। इसकी भाषा सरल अंग्रेजी है जिससे अंग्रेजी भाषा की कम जानकारी रखने वाले भी इसे सुगमता से पढ़ सकते हैं तथा छायाचित्रों की सहायता से समझ सकते हैं। निःसंदेह यह पुस्तक पठनीय एवं संग्रहणीय है।    ----------------------------
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