Monday, September 14, 2020

हिन्दी दिवस पर विशेष : बस, एक सीढ़ी और ऊपर चढ़ जाए हिन्दी - डाॅ शरद सिंह

हिन्दी दिवस पर विशेष :    
बस, एक सीढ़ी और ऊपर चढ़ जाए हिन्दी
        - डाॅ शरद सिंह
हमारे देश के तीन नाम हैं-भारत, हिन्दुस्तान और इंडिया। लेकिन अभाव है तो एक राष्ट्रभाषा का। भारत में किसी भी भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा नहीं दिया गया है। संविधान का अनुच्छेद 343, अंग्रेजी के साथ हिंदी (देवनागरी लिपि में लिखित) को संघ की आधिकारिक भाषा यानी भारत सरकार की अनुमति देता है। अनेक बार प्रयास किए गए कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्ज़ा मिल सके लेकिन हर बार हिन्दी एक सीढ़ी नीचे ही रह गई। जबकि हिन्दी में विविध भाषाओं के शब्द समाहित हैं और यह देश के विविध भाषा-भाषियों के बीच एक अच्छी, सरल संपर्क की भाषा की भूमिका निभा सकती है। बस, आवश्यकता है हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्ज़ा मिलने की। 
भारत में जो भी विदेशी आया उसे हिन्दी सीखना सबसे आसान लगा, वह चाहे अंग्रेज हो या मुग़ल, अफ़गान। चैदहवीं सदी में अमीर खुसरो ने अपनी कविताओं में ‘हिन्दवी’ का प्रयोग किया जिसमें एक पंक्ति फारसी की तो दूसरी हिन्दी (हिन्दवी) की होती थी। वर्तमान में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गुजराती भाषी होते हुए भी धाराप्रवाह हिन्दी बोल लेते हैं। जिससे यह तथ्य सिद्ध होता है कि यदि हिन्दी के प्रति प्रेम और इच्छाशक्ति है तो हिन्दी को सीखना, बोलना और समझना सबसे आसान है, क्योंकि यह एक लचीली भाषा है। इसने विभिन्न भाषाओं और बोलियों के शब्द समाहित हैं। इसकी प्रकृति सार्वभौमिक (यूनीवर्सल) भाषा की प्रकृति है। हिंदी में एक भी ऐसा शब्द नहीं है जिसका उच्चारण उसके लिखने से थोड़ा भी अलग हो। इसी वजह से अंग्रेजों ने हिंदी को ‘फोनेटिक लेंग्वेज़’ कहा था। किन्तु उल्लेखनीय यह कि जहां हमारे देश के तीन-तीन नाम हैं- भारत, हिन्दुस्तान और इंडिया। वहां अभाव है तो एक राष्ट्रभाषा का। भारत में किसी भी भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा नहीं दिया गया है। संविधान का अनुच्छेद 343, अंग्रेजी के साथ हिंदी (देवनागरी लिपि में लिखित) को संघ की आधिकारिक भाषा यानी भारत सरकार की अनुमति देता है। अनेक बार प्रयास किए गए कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्ज़ा मिल सके लेकिन हर बार हिन्दी एक सीढ़ी नीचे ही रह गई। जबकि हिन्दी में विविध भाषाओं के शब्द समाहित हैं और यह देश के विविध भाषा-भाषियों के बीच एक अच्छी, सरल संपर्क की भाषा की भूमिका निभा सकती है। बस, आवश्यकता है हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्ज़ा मिलने की। 

किसी भी देश या राष्ट्र द्वारा किसी भाषा को जब अपने राजकार्य के लिए भाषा घोषित किया जाता है तो उसे उसकी राष्ट्र भाषा कहा जाता है। भारतीय संविधान में कोई भाषा राष्ट्रभाषा के रूप में उल्लिखित नहीं है। कई बार हिंदी को राष्ट्रभाषा कह दिया जाता हैै, लेकिन वास्तविकता यह है कि संविधान के सत्रहवें अध्याय में हिंदी को राजभाषा अर्थात राजकाज की भाषा के रूप में अंकित किया गया है। अन्य राज्यों या प्रदेशों की 22 भाषाओं को भी राज्य की राजभाषा के रूप में रखा गया है। भाषा, राजभाषा और राष्ट्रभाषा को लेकर देश में अनेक आंदोलन, प्रदर्शन और विरोध प्रदर्शन होते रहे हैं, फलतः देश की कोई भी भाषा राष्ट्रभाषा का दर्ज़ा नहीं पा सकी है। भारत की आधिकारिक भाषा, हिन्दी है और अंग्रेजी सहायक या गौण आधिकारिक भाषा है, भारत के राज्य अपनी आधिकारिक भाषा या भाषाएं विधिक रूप से घोषित कर सकते हैं। भारतीय संविधान और भारतीय कानून किसी भाषा को देश की राष्ट्रभाषा के रूप में  परिभाषित नहीं करता है। उल्लेखनीय है कि जिस समय संविधान लागू किया जा रहा था, उस समय अंग्रेजी आधिकारिक रूप से केन्द्र और राज्य दोनो स्तरों पर उपयोग में थी। संविधान द्वारा यह परिकल्पित किया गया था कि अगले 15 वर्ष में अंग्रेजी को चरणबद्ध रूप से हटा कर विभिन्न भारतीय भाषाओं, विशेषकर हिन्दी, को उपयोग में लाया जाएगा, लेकिन तब भी संसद को यह अधिकार दिया गया था कि वह विधिक रूप से उसके बाद भी अंग्रेजी का उपयोग हिन्दी के साथ केन्द्र स्तर पर और अन्य भाषाओं के साथ राज्य स्तर पर चालू रख सकती है।

भारतीय संविधान द्वारा, 1950 में, देवनागरी लिपि में लिखित हिन्दी को संघ की आधिकारिक भाषा घोषित किया गया। यदि संसद द्वारा तुष्टिकरण वाला निर्णय नहीं लिया जाता, तो 15 वर्षों बाद अर्थात 26 जनवरी, 1965 को अंग्रेजी का उपयोग आधिकारिक कार्यों के लिए समाप्त होना था। लेकिन अहिन्दी-भाषी राज्यों में विरोध की लहर चली। परिणामस्वरूप संसद द्वारा आधिकारिक भाषा अधिनियम के तहत आधिकारिक कार्यों के लिए अंग्रेजी के उपयोग को हिन्दी के साथ-साथ 1965 के बाद भी जारी रखने को स्वीकृति दी गई। परिणामस्वरूप, भारत की कोई राष्ट्रीय भाषा नहीं है। जबकि 22 आधिकारिक भाषाएं हैं। 

पं. मदन मोहन मालवीय ने हिन्दी को प्रतिष्ठा दिलाने के लिए सतत् प्रयास किया। न्यायालय में हिन्दी को स्थापित कराया। महामना पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने हिंदी भाषा के उत्थान एवं उसे राष्ट्र भाषा का दर्जा दिलाने के लिए इस आन्दोलन को एक राष्ट्र व्यापी आन्दोलन का स्वरुप दे दिया और हिंदी भाषा के विकास के लिए धन और लोगों को जोड़ना आरम्भ किया। आखिरकार 20 अगस्त सन् 1896 में राजस्व परिषद् ने एक प्रस्ताव में सम्मन आदि की भाषा में हिंदी को तो मान लिया पर इसे व्यवस्था के रूप में क्रियान्वित नहीं किया। लेकिन 15 अगस्त सन् 1900 को शासन ने हिंदी भाषा को उर्दू के साथ अतिरिक्त भाषा के रूप में प्रयोग में लाने पर मुहर लगा दी। बीसवीं सदी में थियोसोफिकल सोसाइटी की एनी बेसेंट ने कहा था, ‘भारत के सभी स्कूलों में हिंदी की शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए।’

पुरुषोत्तम दास टंडन ने महामना के आदर्शों के उत्तराधिकारी के रूप में हिंदी को निज भाषा बनाने तथा उसे राष्ट्र भाषा का गौरव दिलाने का प्रयास आरम्भ कर दिया था। सन् 1918 ई. में हिंदी साहित्य सम्मेलन के इन्दौर अधिवेशन में सभापति पद से भाषण देते हुए महात्मा गांधी ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा के योग्य ठहराते हुए कहा था कि, ‘मेरा यह मत है कि हिंदी ही हिन्दुस्तान की राष्ट्रभाषा हो सकती है और होनी चाहिए।’ इसी अधिवेशन में यह प्रस्ताव पारित किया गया कि प्रतिवर्ष 6 दक्षिण भारतीय युवक हिंदी सीखने के लिए प्रयाग भेजें जाएं और 6 उत्तर भारतीय युवक को दक्षिण भाषाएं सीखने तथा हिंदी का प्रसार करने के लिए दक्षिण भारत में भेजा जाएं। इन्दौर सम्मेलन के बाद उन्होंने हिंदीसेवा को राष्ट्रीय व्रत बना दिया। दक्षिण में प्रथम हिंदी प्रचारक के रूप में महात्मा गांधी ने अपने सबसे छोटे पुत्र देवदास गांधी को दक्षिण में चेन्नई भेजा। महात्मा गांधी की प्रेरणा से सन् 1927 में मद्रास में तथा सन् 1936 में वर्धा में राष्ट्रभाषा प्रचार सभाएं स्थापित की गईं। स्वतंत्र भारत में अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्रसंघ के अधिवेशन में हिन्दी में भाषण दिया था। वे चाहते रहे कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा होने का सम्मान मिले। इसीलिए जो हिन्दी के प्रति अनिच्छा प्रकट करते थे उनके लिए अटल बिहारी का कहना था कि ‘‘क्या किसी भाषा को काम में लाए बिना, क्या भाषा का उपयोग किए बिना, भाषा का विकास किया जा सकता है? क्या किसी को पानी में उतारे बिना तैरना सिखाया जा सकता है?’’

हिन्दी के मार्ग में सबसे बड़ा रोड़ा इसकी रोजगार से बढ़ती दूरी है। इस तथ्य से हम मुंह नहीं मोड़ सकते हैं कि हमने वह वातावरण निर्मित होने दिया है जहां अंग्रेजी पढ़ कर अच्छे रोजगार के अवसर बढ़ जाते हैं जबकि हिन्दी माध्यम से की हुई पढ़ाई कथित ‘स्लम अपाॅच्र्युनिटी’ देती है। हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्ज़ा दे कर ही इस बुनियादी बाधा को दूर किया जा सकता है। हिन्दी लोकप्रिय भाषा तो है ही, बस, एक सीढ़ी और ऊपर चढ़ जाए अर्थात् हिन्दी राष्ट्रभाषा बन जाए तो वह दुनिया में देश की भाषाई पहचान बन सकती है।
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(दैनिक सागर दिनकर में 14.09.2020 को प्रकाशित)
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