प्रिय ब्लॉग साथियों,
"बतकाव बिन्ना की" - ये है मेरा नया कॉलम जो बुंदेली में रहेगा। दरअसल, छतरपुर से एक नया साप्ताहिक समाचारपत्र प्रकाशित हो रहा है जिसका नाम है "प्रवीण प्रभात"। इसके संपादक श्री प्रवीण गुप्त हैं जो बुंदेलखंड के प्रकांड विद्वान, ख्यातिलब्ध स्व.श्री नर्मदा प्रसाद गुप्त जी के सुपुत्र हैं तथा वे स्वयं भी बुंदेली भाषा, संस्कृति एवं साहित्य के विकास के लिए निरंतर प्रयत्नशील हैं। उनके आत्मीय आग्रह पर "प्रवीण प्रभात" में मैं यह कॉलम शुरू कर रही हूं।
बुंदेली सरल एवं सुगम क्षेत्रीय भाषा है जिसे सभी आसानी से समझ सकते हैं। मुझे आशा है कि मेरे सभी मित्र इसे पढ़ेंगे और बुंदेली बोली और मेरे कॉलम का आनंद लेंगे।
तो आज प्रस्तुत है कॉलम का पहला लेख - "कोऊ कए कऊं की, भैयाजी हूंके मऊ की"
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Batkav Binna Ki - Bundeli Column of Dr (Ms) Sharad Singh
बतकाव बिन्ना की
कोऊ कए कऊं की, भैयाजी हूंके मऊ की
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘काए बिन्ना, हमाए इते का अच्छी पढ़ाई-लिखाई नई होत है का?’’ सोचत भए भैयाजी बोले।
‘‘कोन ने कही? हमाए इते इत्ते नोने-नोने अंग्रेजी सकूल आएं। जीमें पढ के हमाए मोड़ा-मोड़ी हरें गिटर-पिटर अंग्रेजी बोलत हैं। बाकी हमें तो कछु पल्ले नईं परत, पर उने अंग्रेजी बोलत भए देख के मुदकी खुसी होत है।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘सो तो सांची कही तुमने बिन्ना, हमें सोई खुसी होत है। ऊपे जब हमाए मोड़ा-मोड़ी बो का कहाऊत है, इन्टरनेट औ व्हाटसअप की बातें करत हैं तो हमाओ जिगरा दूनो हो जात है। बाकी, हम सकूल के बारे में नई बोल रए। हम तो उन ओरन के बारे में सोच रए के जो बच्चा हरें बिदेश पढ़बे खों जात हैं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हां, भैयाजी! उनकी तो फिकर हमें रओ चाइए। अबई देख लेओ बा युक्रेन में हमाए इते के बे बच्चा हरें फंस गए, जो पढ़बे के लाने गए हते।’’ मोए समझ में आ गई के भैयाजी बे युक्रेन वारे मोड़ा-मोड़ी के लाने परेसान आएं। पर मोरी सोच गलत निकरी।
‘‘हऔ, बे ओरें उते जा के फंस तो गए हैं। कछु पैलें जब ससुरो जे कोरोना सुरू भओ रओ ऊ बेरा हमाए इते के पढ़बे वारे मोड़ा-मोड़ी चीन के वोई वारी जागां में जा फंसे रए, जां से जो कोरोना की सुरुआत भई रई। ससुरो नाम याद नई आ रओ ऊ सहर को।’’ भैयाजी अपनो मूंड़ खुझात भए बोले।
‘‘वुहान नाम हतो ऊको, भैया जी।’’ मैेने सुरता दुलाई।
‘‘हओ-हऔ! ठीक कही तुमने, बिन्ना। वुहान नाम हतो ऊ जागां को। रामधई ऊके पैलें तो हमने ऊको नाम लो नई सुनो हतो। जे मोड़ा-मोड़ियन ने कहां से ढूंढ लई रई ऊ जागां? हमें तो जे समझ में नई आती के जे ओरे उते काए की पढ़ाई पढ़बे जात आएं?’’ भैयाजी को मूड़ खुझाबो बादस्तूर जारी हतो। उने ऐसे मूड़ खुझात भए देख के मोरी भैतई इच्छा भई के मैं पूंछूं-‘‘काए भैयाजी, मूंड़ में जुआं पड़ गए का?’’ बाकी मैंने पूछी नईं। काए से के उनको बुरवौ लग जातो।
‘‘बे उते मेडिकल की पढ़ाई करबे के लाने गए रए।’’ मैंने भैयाजी खों बताओ।
‘‘औ, युक्रेन में कौन-सी पढ़ाई पढ़बे के लाने गए?’’ भैयाजी ने पूछा।
‘‘उते बी मेडिकल औ बिजनेस वगैरा जेई सब पढ़बे के लाने गए रए।’’ मैंने अपनो ज्ञान बघारो।
‘‘काए हमाए इते मेडिकल कालेज नईयां का? के बिजनेस की पढ़ाई पढ़ावे वारे नईयां? जो इते-उते बिदेस भगत फिरत हैं औ फेर कछु गड़बड़ हो जात है, सो सबई की जान संासत में पड़ जात है।’’ भैयाजी तुनकत भए बोले।
‘‘ऐसो ने कहो भैयाजी! बिदेश की पढ़ाई बिदेश की होत है। उते के पढ़े-लिखे को इते अच्छो काम मिलत है। जेई के लाने सबई अपने मोड़ा-मोड़ी खों बिदेश भेजबो चात हैं।’’ मैंने भैया खों समझाओ।
‘‘तुमाई जे बात हमाए गले नई उतरी बिन्ना! काए से के तुमई बताओ के, का हमाए परधानमंत्री मोदी जी बिदेस से पढ़ के आए हैं? के हमाए शिवराज सिंह भैया बिदेस से पढ़ के आए हैं। एक जने देस चला रए औ एक जने प्रदेस चला रए। जे का कोनऊ छोटो काम आए?’’ भैयाजी तर्क देत भए बोले।
‘‘बरे, इन ओरन की बात और आए। जे ओरें राजनीति वारे ठैरे।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘चलो, मान लौ, के जे ओरें राजनीति वारे हैं सो बे कोन वारे हते, जो मिसाईल मैन कहे जात आएं? अरे, बेई हमाए पुराने राष्ट्रपति स्वर्गीय अब्दुल कलाम जी, का बे सोई राजनीति वारे हते? बे तो राकेट बनाउतते। साईंसिस्ट हते बे। औ हमने उनके बारे पढ़ रखो है, बे पढ़बे के लाने कहूं बिदेस-फिदेस नई गए रए, उन्ने अपनी पूरी पढ़ाई इतई अपने देस में करी रई। तुम हमें न बनाओ!’’ भैयाजी तिनकत भए बोले।
‘‘हओ, हमने मानी के आप सांची कै रए। हमाए अब्दुल कलाम जी ने पूरी पढ़ाई इतई करी रई, अपने जेई देस में। मनो, हमाए गांधी बापू तो बैरिस्टरी पढ़बे के लाने बिदेस गए रए।’’ मैंने सोई अड़ी बिधा दई।
‘‘सुनो बिन्ना! हम समझ रए के तुम दोंदरा देबे की कोसिस कर दईं मनो ईसे असली बात ने दब जेहे। पैली तो जे के ऊ समै हमाए देस में बैरिस्टरी की पढ़ाई ने होत ती। सो बापू को पढ़बे के लाने इंग्लैंड जानो पड़ो रओ। औ, दूसरी बात जे के इंग्लैड की बैरिस्टरी की पढ़ाई उनके लाने कोनऊ ज्यादा काम ने आई। उन्ने तो नाम की बैरिस्टरी करी। बे तो जब देस लौटे तो इतई के हिसाब से उन्ने आंदोलन चलाए। अहिंसा को पाठ पढ़ाओ, चरखा चलान लगे, लठिया औ लंगुटिया अपना लई। काए से के उने लगो के इते इत्ती गरीबी है, लोगन खों पैनने के लाने पूरो कपड़ा नई मिलत है, सो हम काए पूरो कपड़ा पैनें? बिन्ना, जे बिदेस की पढ़ाई ने हती, जे हमाए इतई के संस्कार हते।’’ भैयाजी जोश में भर आए।
‘‘बात तो ठीक कै रै भैयाजी! मगर आजकल तो लोग बिदेसई की ओर भगत आएं...।’’
‘‘औ, लड़ाई-मड़ाई छिड़ जात है सो फेर उते से भगत हैं।’’ भैयाजी मोरी बात काटत भए बोले,‘‘अपने देस में इत्ते अच्छे काॅलेज आएं, इत्ती अच्छी पढ़ाई होत है। मनो, कैम्ब्रिज-वैम्ब्रिज में पढ़बे जा रएं होएं तो बी समझ सकत हैं, पर जे वुहान, युक्रेन जोग छोटी जागां में का हमाए देस से अच्छी पढ़ाई होत हूहे? हमाई करेंसी और खर्च करत रहत हैं।’’ भैयाजी तनक जादई जोस में आ गए। सो मैंने सोची के अब बात इतई रफा-दफा करो ने तो जे अबई राजनेता घांई भाषण देबे लगहें।
‘‘मैं जा रई भैयाजी! जो के टीवी में देखूं के अपने देस के कित्ते लोग उते से निकर पाए।’’ मैंने अपने हाथ जोड़े औ भैयाजी से विदा लई।
‘‘बिन्ना, ई बारे में सोचियो जरूर।’’ भैयाजी पीछे से आवाज़ देत भए बोले।
भैयाजी की बातें कोनऊ खों बुरई लगें तो दिल पे ने लइयो। काए से के बो कहनात मनो भैयाजी के लाने बनी आए के -‘‘कोऊ कए कऊं की, दाऊ हूंके मऊ की’’। सब ओरन खों इते-उते फंसे डरे लोगन खों निकारबे की परी आए और हमाए भैया जी जे सोच रै के बे ओरे बिदेस गए काए को? मनो, भैया जी की बे जानें। मोए बतकाव करनी हती सो कर लई। बाकी आग जाने, लुहार जाने, औ धोंकन हारें की बलाए जाने, मोए का करने।
बतकाव हती सो बढ़ा गई, औ हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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