साप्ताहिक "प्रवीण प्रभात" में मेरे बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" अंतर्गत 10.03.2022 को प्रकाशित मेरा लेख प्रस्तुत है- "अपनी टेक भंजाई, बलमा की मूंछ कटाई"।
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बतकाव बिन्ना की
अपनी टेक भंजाई, बलमा की मूंछ कटाई
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
'‘राम धई कैसो जमानो आ गओ? कसम से आग लगे जा दुनिया में।’’ भैयाजी बमकत भए बोले।
‘‘का हो गओ भैयाजी? काए का हड़ा दुखा रए? के भौजी ने लपाड़ा मार दओ?’’ मैंने भैयाजी की चुटकी ले लई।
‘‘तुम और बिन्ना, जबईं देखो हंसी-ठिठोली सूझत रैत आए। कभऊं तो सीरियस हो जाओ करो।’’ भैयाजी को मूड खराब हतो। सो उन्ने मोपे अपनो गुस्सा थेप दओ।
‘‘भैयाजी, मोसे जो सीरियस होबे की ने कही करो, जा दिना मैं सीरियस हो गई तो ऊ दिना तुमे चुटकी लेन वारो कोऊ न रैहे। जान लेओ, हां!’’ मैंने सोई अपनो भाव दिखाओ। मनो जे का के हम तो तुमें हंसाओ चात हैं औ तुम हो के हमें सीरियस बनाओ चा रए। न, जे तो न चलहे। मैंने अपने मन में सोची औ भैयाजी से कही,‘‘सो बात का है जे तो बताओ?’’
‘‘तुमने अख़बार नईं पढ़ो का?’’
‘‘पढ़ो है।’’
‘‘का पढ़ो?’’
‘‘सबई कछु। खबरन से ले के विज्ञापन तक, सबई कछु। आज सेल लगी है साड़ियन की, कओ तो भौजी खों कै देऊं?’’ मैंने कही।
‘‘तुम ओरन को साड़ी-कपड़ा के अलावा कछु और दिखात है के नईं? ऐसे तो बड़ी-बड़ी बातें लिखत हो और जहां सेल की बात आई तो धरी रै गई लिखाई-पढ़ाई।’’ भैयाजी ने मोए तानो मारो।
‘‘सो ऊंमें का भओ? का लिखबे वारे उघारे फ़िरत आएं? भैयाजी, आप कहो का चात हो? मोए जे सब नईं पोसात, हऔ, समझ लेओ!’’ मैंने झूठ-मूठ की आंखें तरेरीं।
‘‘अब जे लो, तुम कहां की कहां ले जा रईं। अरे, बिन्ना हमओ मतलब जे नई हतो।’’
‘‘सो का हतो?’’
‘‘अरे, छोड़ो!’’
‘‘नईं, नईं, तुमे बताने परहे, नईं तो मैं अभई भौैजी को सगरो हाल बता देहों के तुमें उनके हुन्ना-कपड़ा खलत आएं।’’ मैंने सोई ब्लैकमेल करबे में कोनऊं कसर ने छोड़ी। काए से के भैयाजी भौजी के गुस्सा से डराता आएं, औ जब भैयाजी खों डराने होए सो भौजी से शिकायत करबे की कै देओ, फेर देखो के भैयाजी पूंछ दबाए बिलौंटा घांई बैठ जात आएं। ई बेरा भी जेई भओ।
‘‘चलो, तुमने जो सोची, बा हमने ने कही हती। मनो हम तुमाए हाथ जोरें, पांव परें बिन्ना, अपनी भौजी से कछु अल्ल-गल्ल ने कइयो।’’ भैयाजी हते सो सरेंडर हो गए।
‘‘चलो, भौजी से कछु ने कैबी। अब बताओ के आपको मूड काए खराब हतो? की पे चिंचिया रए हते?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘अरे, हमाओ मूड खराब हो गओ खबरें पढ़ के।’’
‘‘अब ईमे नओ का? खबरे पढ़ के सबई खों मूड खराब हो जात है ई दिनां। लड़ाई-मड़ाई की खबरें नोनी नई लगत आएं।’’ मैंने कही।
‘‘जे ई तो बात आए। तुमे पता के जे लड़ाई जल्दी खतम होबे वारी नइयां।’’ भैयाजी बोले।
‘‘काए, आपको कैसे पता? आपको का पुतिन ने फोन करो के जेलेंस्की ने फोन करो है?’’ मैंने कही।
‘‘जे ओरें हमें काए फोन करहें? जे ओरे मोदीजी की नई मान रए सो हमाई का सुनहें। बाकी आज हमने अखबार में खबर पढ़ी के अमेरिका युक्रेन खों हथियार दे रओ है।’’ भैयाजी बोले।
‘‘जे तो अच्छो आए! दूबरे खों खाबो-पीबो देओ चइए। रूस के ऐंगर युक्रेन दूबरो ई कहानो। अमेरिका ऊको हथियार दे के अच्छो ई कर रओ है।’’ मैंने भैयाजी की मंसा जानबे के लाने तनक उल्टो बोलो।
‘‘तुम नई समझ रईं बिन्ना, जे ई तो खेल आए। जैसे बच्चा हरें घर-घर खेलत आएं ऊंसई जे जो महासक्ति कहाऊत हैं न, बे सबई जने हथियार-हथियार खेल रई आएं।’’ भैयाजी बड़े सयानपन से बोले।
‘‘का मतलब? मोए कछु समझ में ने आई।’’ मैंने कही।
‘‘अब ईमें न समझबे जोग का आए? जो अमेरिका की मंसा कछु अच्छी होती तो रूस का डरातो, समझातो, कछु बी हथकंडा अपनातो, पर बा तो हथियारों के कंडा थोप के बैठो आए सो ऊको तो अपनो कंडा ठिकाने लगाने ई है। अब चाए ऊपे बाटी बने, भंटा भुने या गांकरें सिंके। ऊ को का। ऐसईं कछु जने रूस खों हथियार देबे खों आ जैहें और लड़ाई आए सो चलत रैहे।’’ भैयाजी बोले।
‘‘बात तो सांची कै रै भैयाजी! मनो, लेबे वारो को लेबे परहेज नइयां सो देबे वारो काए फिकर करहे?’’ मैंने कही।
‘‘लैबे वारो सो ऊंसई लुट-पिट रओ आए सो वा का सोचहे। जो सोचने को है सो, दूसरई जनन को सोचने है। ऐसे तो अमेरिका बड़ो भाई बनो फिरत आए औ अब का भओ? रूस को डरा नईं सकत? अमेरिका तो अभी लों यूनाईटेड स्टेट्स आए, जबके रूस तो सिंग्ल हड्डी को बचो कहानो। जे ई से तो बा अपनी पुरानी हड्डियां जोड़बे की फिकर में टूटो पड़ रओ आए। अमेरिका चाए तो भौत कछु कर सकत है।’’ भैयाजी एकई सांस में सबई कछु बोल गए।
‘‘सही कही भैयाजी, हमें सोई उन सबई की नाक घिसत भई दिखा रई जो बड़ी नाक बारे बने फिरत हते। मनो अब हो का सकत आए? युक्रेन खों तो अमेरिका सबसे बड़ो वालो सगो दिखा रओ हूंहे। बा को लग रओ हूहे के एक अमेरिका ई आए जो यारी निभा रओ, बाकी सबरे बातन के शेर निकरे।’’ मैंने सोई चिंता जताई।
‘‘जे ई तो फिकर की बात आए बिन्ना! देखियो अमेरिका की जा नीति के चलते बोई होने है, वो कहनात आए न के अपनी टेक भंजाई औ बलमा की मूंछ कटाई। अमेरिका अपनो हथियार ठिकाबे लगा लेहे मनो युक्रेन खों तो लड़त रैने परहे। जे सब ठीक नई हो रओ, बिन्ना!’’ भैयाजी दुखी होत बोले।
‘‘मन छोटो ने करो भैया! अब मोए चलन देओ। कहूं भौजी बाहरे आ गईं तो मोए लाने उनके लाने साड़ियन की सेल के बारे में बताने परहे। सो मोए जान देओ अब।’’ मैंने भौयाजी को फिरके छेड़ो औ उते से बढ़ा लई अपनी दुकान।
मोए बतकाव करनी हती सो कर लई। बाकी अमा जाने, सुआ जाने, सूखो पड़े सो कुआ जाने। मोए का करने। बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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