National Seminar On Vaidik Vangmay - Water Conservation Method in Vaidik Vangmay - Paper presented by Dr (Ms) Sharad Singh |
"पूरी दुनिया जल संकट से जूझ रही है अतः अब समय आ गया है कि हम अपने अतीत के उन पन्नों को पलटें जिन पर जल के महत्व और संरक्षण के बारे में ज्ञान संरक्षित है। जी हां, हमारा वैदिक वांग्मय वह असीमित ज्ञान का भंडार है जो हमें पर्यावरण से तादात्म्य स्थापित करने का मार्ग दिखाता है। अथर्ववेद में यह निर्देश है कि मनुष्य को चाहिए कि वह वर्षा, कुआ, नदी और सागर के जल को, अपने खान-पान, खेती और शिल्प- कला आदि के लिए उपयोग करे एवं अपने जीवन को सम्पूर्ण बनाए और चारों पुरुषार्थों को प्राप्त करे-
शं त आपो हैमवतीः शमु ते सन्तूत्स्याः ।
शं ते सनिष्पदा आपः शमु ते सन्तु वर्ष्याः।।
वैदिककाल में जल को सर्वोच्च स्थान दिया गया।
यदि हम अपने वैदिक वांग्मय का ध्यानपूर्वक अनुशीलन करें तो हम जल के महत्व को भली-भांति समझ सकते हैं। यह सर्वविदित है कि जो भी तथ्य अथवा तत्व हमें महत्वपूर्ण लगता है हम उसके प्रति सजग रहते हैं। अतः हमें जल के महत्व को समझते हुए उसके संरक्षण के बारे में भी तत्पर रहना होगा तभी हम अपनी आने वाली पीढ़ी को शुद्धजल सौंप सकेंगे। हमें प्रकृति और पर्यावरण के हर घटक को देवतुल्य मानकर संरक्षित एवं विकसित करने का प्रयास करना होगा। तभी पृथ्वी प्रसन्न रहेगी और अस्तित्व में रहेगी।" मैंने अपना शोध आलेख "वैदिक वांग्मय में जल की महत्ता एवं जल संरक्षण" का वाचन करते हुए अपने विचार रखे।
अवसर था कल 14.03.2022 को डॉ हरीसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर के संस्कृत विभाग एंव महर्षि संदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान उज्जैन के सम्मिलित आयोजन में "वैदिक वांग्मय के विविध आयाम एवं प्रासंगिकता" विषय पर दो दिवसीय अखिल भारतीय वैदिक संगोष्ठी का प्रथम सत्र। जिसकी अध्यक्षता की नई दिल्ली से पधारे जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रो गिरीश पंत जी ने।
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इसके ठीक पूर्व उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता की थी सागर विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ नीलिमा गुप्ता ने, मुख्य अतिथि थे डॉ राधावल्लभ त्रिपाठी, विशिष्ट अतिथि थे डॉ भवतोष इन्द्रगुरु। डॉ आनंद प्रकाश त्रिपाठी जी के संयोजकत्व में डॉ शशि कुमार सिंह, डॉ नौनिहाल गौतम, डॉ रामहेत गौतम डॉ विजय सिंह आदि संस्कृताचार्योंं ने आयोजन के विभिन्न सत्रों को संचालित किया।
देश के प्रमुख वैदिक विद्वानों एवं उद्भट संस्कृताचार्यों की उपस्थिति विश्वविद्यालय ही नहीं वरन सागर नगर के लिए भी प्रसन्नता एवं गौरव का विषय है जिसके लिए अध्यक्ष संस्कृत विभाग डॉ आनंद प्रकाश त्रिपाठी जी साधुवाद के पात्र हैं।
इस महत्वपूर्ण पटल पर मुझे अपने विचार रखने का अवसर देने के लिए हार्दिक आभार डॉ आनंद प्रकाश त्रिपाठी जी एवं डॉ शशि कुमार सिंह जी
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