प्रस्तुत है आज 29.03.2022 को #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई कवि रमेश दुबे के काव्य संग्रह "ऐसा भी होता है" की समीक्षा... आभार दैनिक "आचरण" 🙏
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पुस्तक समीक्षा
वर्तमान बोध से परिपूर्ण कविताएं
समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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काव्य संग्रह - ऐसा भी होता है
कवि - रमेश दुबे
प्रकाशक - स्वयं लेखक (श्रीराम नगर, वृंदावन वार्ड, सागर, म.प्र.)
मूल्य - 150 रुपए
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कविता क्यों लिखी जानी चाहिए? निःसंदेह यह बड़ा विचित्र प्रश्न है। लेकिन यह प्रश्न कई बार उठा है और विद्वानों से उसे अपनी-अपनी तरह से व्याख्यायित किया है। आचार्य कुन्तक ने ‘वक्रोक्ति काव्यजीवितं’ कहकर कविता को परिभाषित किया है, वहीं दूसरी तरफ आचार्य वामन ने ‘रीतिरात्मा काव्यस्य’ अर्थात् रीति के अनुसार रचना ही काव्य है कह कर परिभाषा दी है। आचार्य विश्वनाथ ‘वाक्यम् रसात्मकम् काव्यं’’ अर्थात् रस युक्त वाक्य ही काव्य है, यह कहते हैं। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार “जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञानदशा कहलाती है, हृदय की इसी मुक्ति साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द-विधान करती आई है, उसे कविता कहते है।’’ मैथ्यू आर्नोल्ड के अनुसार- “कविता के मूल में जीवन की आलोचना है।’’ वहीं, शैले के मतानुसर “कविता कल्पना की अभिव्यक्ति है।’’
मेरे विचार से जो कविता अभिव्यक्ति के उद्देश्य को पूर्ण करती है, वही सर्वोत्तम कविता है। चाहे कविता स्वानुभूति से उपजी हो या लोकानुभूति से, भावों का संप्रेषण ही उसका मूल उद्देश्य होता है। कई बार कवि वह सब कुछ अपनी कविता में उतार देना चाहता है जो कुछ समाज में घटित हो रहा है। ये कविताएं एक वाक्य को जन्म देती हैं जो कभी उच्छवास के रूप में उभरता है कि ‘उफ! ऐसा भी होता है।’ तो कभी आश्चर्य बन कर सामन आता है कि ‘अरे, ऐसा भी होता है?’ किन्तु उन कविताओं को लिखने वाला कवि सूचनात्मक भाव से कहता है कि ‘‘ऐसा भी होता है’। जी हां, सागर नगर के कवि रमेश दुबे के कविता संग्रह का नाम है-‘‘ऐसा भी होता है’’।
इस कविता संग्रह की भूमिका डाॅ. वर्षा सिंह द्वारा लिखी गई है। उन्होंने संग्रह की कविताओं के बारे में विस्तार से टिप्पणी करते हुए लिखा है कि - ‘‘जीवन के अनुभवों से उपजी कविताओं का अपना अलग महत्व होता है। ऐसी कविताएं शैली अथवा भाषा पर केंद्रित न होकर भावनाओं पर तथा विचारों पर केंद्रित होती हैं। इस प्रकार की कविताओं की महत्ता से इनकार नहीं किया जा सकता है। सागर के साहित्य जगत में कवि रमेश दुबे का नाम ऐसे ही कवियों की पंक्ति में सम्मान से रखा जा सकता है जिन्होंने समाज और परिवेश के अनुभव जताते हुए उन्हें अपने काव्य में पिरोया है और इस प्रकार से सृजन करते हुए उन्होंने अभिव्यक्ति को महत्ता दी है, जबकि शैली की विशेषताएं उनके लिए गौण रही हैं।’’
डॉ. वर्षा सिंह ने आगे लिखा है कि-‘‘रमेश दुबे की कविताओं का स्वरूप भले ही अनगढ़ प्रतीत हो किंतु उनके भावों और विचारों की गहनता उनकी कविताओं को प्रभावी बना देती है। उनकी कविताओं में मौजूद जीवन के प्रति चिंतन एवं चिंता दोनों ही महत्वपूर्ण ढंग से सामने आती हैं जो युवा कवियों का मार्ग प्रशस्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण हैं।’’
कवि रमेश दुबे की कविताएं समाज की विसंगतियों को पूरी ईमानदारी से उजागर करती हैं। साथ ही व्यक्ति में हो रहे मानवता के क्षरण की ओर भी इशारा करती हैं। ये कविताएं वर्तमान बोध से परिपूर्ण हैं और इनमें आंचलिकता के तत्व भी है जो इन कविताओं को विश्वसनीय बनाते हैं। स्वयं कवि रमेश दुबे अपने इस संग्रह की कविताओं के बारे में लिखते हैं कि ‘‘मैंने तात्कालिक वातावरण में जो देखा उसी पर कोशिश करते हुए लिखने लगा। मेरे काव्य संग्रह का शीर्षक ‘‘ऐसा भी होता है’’ मात्र इसी धारणा से रखा गया है। क्योंकि वास्तव में जो लिखा है ऐसा ही हो रहा है। मेरी रचनाएं पढ़ने में आपको छंद विहीनता अवश्य दिखेगी परंतु कुछ न कुछ कहने में सार्थक अवश्य ही हैं।’’
रमेश दुबे की कविताएं बहुत कुछ कहती हैं। वे जीवन के प्रत्येक पक्ष को खंगालती हैं। प्रकृति एवं पर्यावरण की चिन्ता भी उनकी कविताओं में मुखर हुई हैं। ‘‘वृक्ष’’ शीर्षक कविता की कुछ पंक्तियां देखिए-
वृक्ष रात दिन प्रहरी की भांति खड़े हैं
बिना पानी बिना खाए जी रहे हैं
हमें फल छाया और हवा दे रहे हैं
पक्षियों को घर, हमें घर दे रहे हैं
पहाड़ों पर खड़े रहकर
बादलों को रोककर
पानी बरसा रहे हैं
फिर भी हम उन्हें काट-काट कर
नष्ट कर रहे हैं
इतना सब सह कर भी वे
हमें सुख दे रहे हैं
फिर भी दया का भाव
उन पर नहीं
वह दुख, हम सुख भोग रहे हैं
हम उन्हें उनकी जिंदगी
जीने नहीं दे रहे हैं।
देश में व्याप्त बेरोजगारी पर कवि कठोर टिप्पणी करते हुए ‘‘नेता कहलाएंगे’’ शीर्षक कविता में लिखते हैं-
नादान बच्चे
पढ़ेंगे लिखेंगे
पढ़ लिखकर
डिग्री ही पाएंगे
डिग्री लेकर नौकरी के लिए
ऑफिस ऑफिस चक्कर लगाएंगे
नौकरी बिना अपना सा मुंह लेकर
घर चले आएंगे
पढ़े-लिखे कहलाएंगे ।
जो नादान बच्चे
सिर्फ स्कूल ही जाएंगे
मौज मस्ती में दिन बिताएंगे
स्कूल से नाम कटाएंगे
धीरे-धीरे नेता के गुण पाएंगे।
वर्तमान जीवन में स्वार्थपरता का प्रतिशत बढ़ते हुए देखकर कवि ‘‘सोच दिल की’’ शीर्षक कविता में अपनी व्यथा इन शब्दों में व्यक्त करते हैं-
लोग दिल से नहीं
दिमाग से सोचते हैं
हिसाब पहले लगाते फिर
दिल जोड़ते हैं
सोच हमारा आज
क्यों इतना बदल गया
क्या सोचने का दायरा
इतना सिमट गया
दायरे पहले देखते उनके
फिर हम बोलते हैं
सोच दिल की
अब तो पुरानी हो गई
कहने, सुनने की यह
एक कहानी हो गई
लोग दिल से नहीं
अब दिमाग से सोचते हैं।
निश्चित रूप से कवि रमेश दुबे की कविताओं में संवेदनाओं का गहन समावेश है। इसीलिए उनका यह संग्रह ‘‘ऐसा भी होता है’’ पठनीय एवं विचारणीय कविताएं हैं जो वर्तमान बोध से परिपूर्ण है।
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