Thursday, March 24, 2022

बतकाव बिन्ना की | उन्ने कही सो पता परी | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | सा. प्रवीण प्रभात

  साप्ताहिक "प्रवीण प्रभात" (छतरपुर) में  मेरे बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" अंतर्गत प्रकाशित मेरा लेख प्रस्तुत है- "उन्ने कही सो पता परी"।

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बतकाव बिन्ना की
उन्ने कही सो पता परी
   - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
  ‘‘काए बिन्ना, बा फिलम कश्मीर फाईल्स देख आईं?’’ भैयाजी ने हाल पूछी ने चाल औ दाग दओ सवाल।
‘‘नई भैयाजी, मैंने सिनेमाघर जा के बरसों से फिलम नहीं देखी। अब मनो आदतई छूट गई आए टाकीज में फिलम देखबे की। बा टीवी में मुतकी फिलम आउत रैत हैं, बेई नईं देखी जात आएं।’’ मैंने भैयाजी खों बताई।
‘‘अरे बाकी फिलम की छोड़ो, जा वारी फिलम गजब की कहानीं। ई खों देख के पतो परत आए के कश्मीर में कित्तो अत्याचार भओ है। रामधई मोए तो अंसुआ झरन लगे। औ तुम कै रईं के तुमने जे फिलम नई देखी? ऊंसई अपडेट बनी फिरत आओ।’’ भैयाजी ने फिलम की कही सो तो ठीक कही, मनो मोपे सोई तानो मार दओ। मोए जो ने पोसानो।
‘‘काए भैयाजी, जो मैंने ई फिलम नई देखी सो का मोए पतो नईंयां के कश्मीर में का होत रओ औ अब का हो रओ? मोए सब पतो आए। मैंने उते को इतिहास पढ़ो है, उते की खबरें पढ़ी हैं औ कछु उन कश्मीरी पंडितन से सोई मुलाकात करी है जिनको उते से जबरन भगा दओ गओ।’’ मैंने भैयाजी खों बताई।
‘‘बे ओरें कहां मिल गए तुमाए लाने?’’ भैयाजी खों यकीन नई भओ।
‘‘स्पेसल मोरे लाने नई मिले, मनो मोरे परिचय के कहाने। बे ओरें सोई साहित्यकार आएं।’’ मैंने भैयाजी खों जवाब दओ।
‘‘ठीक है, तुमाई बात मान लई। बाकी, जोन तुमने जे फिलम नई देखी तो कछु नई देखो। तुमाई जिनगी झंड कहानी।’’ भैयाजी के दिमाग पे फिलम को भूत सवार हतो। बे मोरी जिनगी झंड बतान लगे। मोए लगो के अब जे तो कछु ज्यादा सी हो रई कहानी।
‘‘भैयाजी, मोरी जिनगी जैसी आए ऊंसई आए, मनो मोए जे बताओ के फिलम वारों खों कश्मीरी पंडितों पे भए अत्याचारन खों गम्म आए के बाॅक्स आॅफिस को रिेकार्ड तोड़बे की खुसी आए? मोए पतो आए के ई फिलम में कश्मीरी पंडितों पे 1990 में करे गए जुलम खों दिखाओ गओ है। मनो, फिलम के नौवें दिना जे खबर धूम मचान लगी के ई फिलम ने नौ दिनां में 141 करोड़ को कलेक्शन कर लओ है। मोए तो ऐसो लगो के मनो कश्मीरी पंडितन की दुरदसा पे बोली लग रई होए।’’ मैंने अपने मन की खरी-खरी कै दई।
‘‘जे का कै रईं? अरे जे फिलम ने बनती सो, सब ओरन खों पतो कैसे चलतो? औ अब फिलम है सो टिकट बिकहें और बनाबे वारे पइसा कमाहें।’’ भैयाजी बोले।
‘‘काए भैयाजी, नब्बे से अब लों का हमें पतो नई रओ के कश्मीर में पंडितन के संगे का भओ? अपने परधानमंत्री जी ने धारा 370 ऊंसई हटवा दई? अरे जेई लाने तो उन्ने धारा 370 हटवाई के उते सब कछु सही हो सके। बाकी हमें सो आदत परी आए के उन्ने कही सो पता परी, ने तो पैने हते बंद घरी।’’ मैंने सोई भैयाजी की पिंची करी।
‘‘का मतलब तुमाओ? जे पैने हते बंद घरी को का मतलब?’’ भैयाजी तनक चैंके।
‘‘मोरो कहनो जे आए के अब हमें अपनो कष्ट तभई दिखात आए जब कोनऊ फिलम बना के हमाए आंगरे परस देवे। ऊ एक फिलम आई हती, अरे जी में मंहगाई डायन वारो गानो हतो, ऊमें आमीर खान हीरो रओ ओर वाई की लुगाई ने बनाई हती बा फिलम। मनो, अभई ऊको नाम याद नई आ रओ।’’
‘‘हौ तो, मोए सोई याद नई आ रओ, बाकी ऊ फिलम से का मतलब तुमाओ?’’ भैयाजी उतावले होत भए पूछन लगे।
‘‘मोरो मतलब जे आए के ऊ बेरा जब मंहगाई डायन वारो गाना बजत त्तो, सबई खों मैंगाई सबसे बड़ी समस्या लगत्ती। बा फिलम पुरानी भई सो, मैंगाई के नाम पे सबई पल्ली ओढ़ के सो गए। जोन आज डीजल-पेट्रोल मैंगो होत जा रओ, सब्जी-भाजी सोई आसमान छू रई, पर कोनऊं खों मनो फिकर नईंया। ईंसई, कश्मीर फाइल्स फिलम जां दिनां पुरानी परी सो, सबई खों बिसर जाने है के उते का भओ, औ का भओ चाइए। अब हमें खुद बी खयाल करो नाइए। अपनी आंखें ख्ुाली रक्खें, कछु सोसें, विचारें सो खुदई पात चलत रैहे, ने तो हुन्ना की ने लत्ता की, उड़ गई बातें पत्ता की।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘बोल तो मनो तुम सही रई हो, पर जे फिलम नोनी आए सो नोनी आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘मैंने कब कही के जे फिलम नोनी नईयां। ऐसी फिलमें बनबी चाइए। भैयाजी, मोरी अरज जे आए के ई फिलम खों स्टेटस सिंबल बना के नई देखों चाइए। देखने है सो ऊकी कहानी से जुड़ के देखो चाइए। ऐंसई तो एक फिलम आई हती रोजा। बा सोई बड़ी नोनी फिलम हती। बा फिलम पुरानी भई सो कश्मीर में आतंकवादियन पे हमने धूरा डार दई। तब से अब लौं सैंकड़ा खांड आतंकी घटनाएं उते हो चुकीं, मनो हमने ढंग से अपनी आंखें ने खोलीं। सो भैया, ई फिलम खों देखबे वारे सोसल मीडिया पे कश्मीर के हालात खों गरियात फिर रए। पर उते जा के हाल सुधारबे की बात कोनऊं नई कर रओ। जेई हाल रैने हमाओ, जब लों हम अपनी आंखन से सबई कछु ने जानहें-परखहें, सो पड़ा सो शेर बने रैने। बाकी मोए सोई देखने है ई फिलम। सबई खों जरूर देखो चाइए। हमाई सरकार ने तो टैक्सफ्री कर दई ईको, सो टिकट को खरचा कम लगहे। पाॅपकार्न खात भए कश्मीर पे अंसुआ बाहाबे की बातई कछु ओर आए।’’ मैंने कही।
‘‘जेई तो हम कै रए हते, सो तुमने हमें लेक्चर पिला दओ।’’ भैयाजी खिझात भए बोले।
‘‘आप जे नईं कै रए हते। आपने कही हती के जो मैंने ई फिलम नई देखी तो मोरी जिनगी झंड कहानी। जे कही रई आपने। लेओ, अपनी कही अभईं के अभईं बिसर गए? फिलम की किसां का याद रखहो? जे सोई खूब रही।’’ मैंने तनक फिर पिंची करी।
‘‘हओ, अब ज्यादा ने बोलो। तुमाई बा लेखिका आए, बा का नाम उनखों, अरे बा बांगलादेस वारी....।’’
‘‘तसलीमा नसरीन?’’
‘‘हऔ, उन्ने सोई देख लई ई फिलम। औ फिलम देख के तुरंतई ट्वीट करो के उनकी आंखें भर आईं। उन्ने कही के कश्मीरी पंडितन खों उनको हक मिलो चाइए। उन्ने बांगलादेशी हिन्दुअन पे बी सवाल उठा दओ।’’ भैयाजी अपनो ज्ञान बघारत भए बोले।
‘‘हऔ सो, जो कल्ला गरम होए सो सबई अपनी रोटी सेंकन लगत आएं। खैर, उनकी बे जानें। बे पैलें अपने देस की तो सुधार लेंवे फिर इते टांग अड़ाएं। अपने इते बतकाव करबे वारन की कोनऊं कमी नई आए। अपन ओरें तो हेंई बतकाव-वीर। मों चलवा लेओ, जित्तो चलवाने होए, बाकी काम की ने कहियो। अब गरमी आन चा रई। अभईं भौजी कूलर सुधरवाबे की बोलहें सो आपई इते-उते को बहानों करत फिरहो।’’ मैंने फिर के पिंची करी। भौजी को जिकर तो भैयाजी की दुखती रग ठैरी।
‘‘हऔ, हम समझ गए, बिन्ना! अब हमें तुमसे कछु नई कैने। हमें माफ करो। अपनी भौजी औ कूलर की सुरता दिला के मोरो मूड खराब ने करो।’’ भैयाजी हार मानत भए, अपनो दोनों हाथ जोड़ के बोले।
‘‘चलो, मैंने सोई आपकी जान बक्सी कहानी। कुल्ल देर हो गई ठांडे-ठांडे। मोए अब चलो चाइए। बाकी अपने हाथन की घरी खुदई देख लओ करे के बा चल रई के ने चल रई।’’ मैंने कही औ भैयाजी खों कुनमुनात भओ छोड़ के उते से अपनी दुकान बढ़ा लई।      
मोए बतकाव करनी हती सो कर लई। बाकी फिलम जाने, इलम जाने, बाबाजी की चिलम जाने। मोए का करने। बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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(24.03.2022)
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