प्रिय मित्रो, साप्ताहिक "प्रवीण प्रभात" (छतरपुर) में मेरे बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" अंतर्गत प्रकाशित मेरा लेख प्रस्तुत है- "ऊंटन खेती नईं होत"।
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बतकाव बिन्ना की
ऊंटन खेती नईं होत
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘अब काए मूंड औंधाए बैठे हो भैयाजी? तुमाए बाबाजी तो मनो चुनाव जीत गए। ओ ऐसे जीते के रिकार्डई तोड़ दऔ।’’ भैयाजी खों सोच-फिकर में परो देख मोसे नईं रओ गओ औ मैंने उने टोंक दओ।
‘‘ऊकी तो मोए भौतई खुसी आए। जो साजो काम करे ऊको बेर-बेर चानस मिलो चइए। बाकी मोए जे नई समझ में आ रओ के अब का हूंहे?’’ भैयाजी फिकर करत भए बोले।
‘‘अब का हूंहे? अरे, बाबाजी अपनो नओ मंत्रीमंडल बनाहें, औ का हूंहे?’’मैंने कही।
‘‘नईं बो तो सही कही, बाकी बिपक्ष तो मनो बचो सो नईंया।’’ भैयाजी बोले।
‘‘बचो काए नईयां? बाबाजी के प्रदेस में सपा नईं बचो का? अब आप अगर कांग्रेसई खों बिपक्ष मानबे खों टिके हो तो परमेसर की बात तुमाई सही कहानी के बिपक्ष बचो सो नई कहानो। पर भैयाजी, जो हमाओ प्ररजातंत्र आए। ईमें बिपक्ष को माने कांग्रेसई नईं होत आए। तनक बिचारो, पैले एक जमाना में कांग्रेस कुर्सी पे बैठत ती औ जनसंघ, जनतादल, भाजपा कछु बी नाम ले लेओ, जे ओरें बिपक्ष मेंई रैत ते। मोए सो भौतई अच्छे से सुरता आए के बालपन में मैंने एक दफा जो नारो सुनो रओ के -‘अटल बिहारी खों दे दो तार, जनसंघ की हो गई हार’। तनक बड़ी भई सो मोए सोई लगन लगो के जे ओरें बिपक्षई कहाउत आएं। जे कभऊ सत्ता की कुर्सी पे नईं बैठ सकत। पर तनक देखो, अटल बिहारी जी ने प्ररधानमंत्री बन के दिखा दओ।’’ मैंने भैयाजी खों बताबो चाओ, पर बे मोए टोंक परे।
‘‘सो, तुम कओ का चात हो? भैयाजी मोए टोंकत भए झुंझलाए।
‘‘मोरी अरज जे आए के प्ररजातंत्र में कोन कबे कहां पौंच जाए, कछु कओ नई जा सकत। बाकी, जे परमेसर की कांग्रेस सो मोए बी कहूं पोंचत भई नईं दिखा रई।’’ मैंने भैयाजी की बात को समर्थन करो।
‘‘जे इन ओरन खों का हो गओ है? का इने अपनी पतरी दसा नई दिखात आए? या तो ढंग से हुन्ना पैहनो, या के पहनबई छोड़ देओ, निकर जाओ कहूं जोग धर के।’’ भैयाजी बड़बड़ात भए बोले।
‘‘बे का जोग धरहें? जोग वारे तो सरकार चला रै। इनके बस को अब कछु नई बचो।’’ मैंने कही।
‘‘हओ, ने पंजा बचो, ने हाथी बचो, अब को जेहे लर्ड़यां के ब्याओ में? जमानत लो ने बचा पाए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हाथी की ने कहो। हाथी ने पैलेईं इत्तो खा लओ हतो के अब लो ऊको पेट खराब आए। अब तो वा अपनो पेटई सुधार ले, बोई भौत आए।’’ मैंने कही।
‘‘मनो, बे उते पंजाब में आप ने अच्छी बाजी मारी। बो मफलर वारे को उते इत्तो काए पूछो जात आए?’’ भैयाजी सोचत भए बोले।
‘‘जे तो उनई ओरन से पूछो चइए। उने कछु अच्छो दिखात हूंहे।’’ मैंने कही।
‘‘सो और जांगा वारों खों मफलर वारो अच्छो काए नईं दिखात?’’ भैयाजी की मुंडी मफलर ई पे अटक गई हती।
‘‘आपने सुनो नईयां का? सब जने कैत आएं के लैला काली-कलूटी हती, मनो मजनूं भैया खों पोसा गई सो पोसा गई। जेई से कहनात चल परी के लैला खों मजनूं की नजर से देखो चइए। अब आप सोई समझो करे। उते बे मफलर वारे उन ओरन खों लैला दिखात हूंहे।’’ मैंने समझाई।
‘‘जे कोन सी बात भई? लैला-मजनूं की तुमाई बात हमें ने पोसाई। जे राजनीति में काए की लैला, काए के मजनूं। अभईं कोनऊ और मुफत की बारिस करने लगहे सो बो ई अच्छो लगन लगहे।’’ भैयाजी कुढ़त भए बोले,‘‘मुहब्बत तो जो कहाउत आए जो हम ओरें करत आएं। देस में चाए सबसे ज्यादा टैक्स हमई खों देने पड़ रओ आए, मनो हम चीं बी नईं बोलत आएं। सारी मैंगाई चिमा के सैत रैत आएं। जे कहाऊत है सांची मुहब्बत।’’ भैयाजी अपनो मूंड़ उठा के बोले।
‘‘हौ, तनक गरमी पड़न देओ, बिजली मैंगी ने हो जाए सो कहियो।’’ मैंने कही।
‘‘जेई लाने तो एक साजो, तगड़ो बिपक्ष चाउने परत आए ताके बो मैंगाई के लाने कछु तो हल्ला-गुल्ला करे। भैयाजी बोले। बे घूम-फेर के फेर के बिपक्ष पे आ टिके।
‘‘अब जे बिपक्ष को रोना रोबो छोड़ो भैयाजी! अब कोनऊ ने कोनऊ तो बिपक्ष में रैहे ही। ने तो सरकार में बैठबे वारे सोई विधानसभा में जा के बोर फील करहें। बाकी, कांग्रेस के पांछू ने लगो। उनसे अब कछु न हुंहे।’’ मैंने भैयाजी खों समझाई।
‘‘जेई तो, जेई तो हम कै रै। एक कांग्रेसई हती परमानेंट बिपक्ष बनबे जोग, सो वा बी फुस्स हो के रै गई। अब हर प्रदेस को बिपक्ष अलग-अलग हूंहे। का ससुरो, मजा सो ख़राब हो गओ आए।’’ भैयाजी कुनमुनात भए बोले।
‘‘कै तो आप ठीक रै हो भैयाजी, बाकी आप ई बताओ के कभऊं ऊंट खों हल चलात देखो है?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘अब जे ऊंट कहां से आ गओ?’’ भैयाजी चौंकत भए बोले।
‘‘नईं, तुम पैले बताओ तो, कभऊं देखो है के कोनऊ ने अपने हल में ऊट खों जोत रखो है?’’ मैंने फेरके पूछी।
‘‘नईं, कभऊ नईं। बैल, ट्रेक्टर जेई खेत जोतबे के काम में आत आएं। ऊंट तो हमने कभऊ खेत पे हल चलात भए नईं देखे। बाकी हमाई बात से ऊंट को का लेबो-देबो?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘मुतको लेबो-देबो आए। जोन तरा ऊंट खेती जोग नईं रैत आए ऊंसई अब कांग्रेस राजनीति जोग नईं रै गई। एक जमाना में सबसे बड़ी पार्टी भओ कर त्ती, पर अब बिपक्ष जोग नईं बची। अब बे ओरें बैल से ऊंट बन गए, जेई लाने कछु काम के नईं रै गए। मनो रेता में भले दौड़ लेंबे, पर खेतन में कोनऊं काम के नहीं कहाने। सो अब सोग ने करो कांग्रेस के लाने औ वो बी बिपक्ष में देखबे के लाने। अब सो इतिहास की किताबन में देखियो ऊको।’’ मैंने भैयाजी खों समझाई।
‘‘जे तो सब ठीक आए मनो एक बैल ऊट कैसे बन सकत आए? मोए जे समझ में नईं आई। जे तुमाई नूडल्स घांई उलझी-पुलझी बातें हमें समझ में नईं आत आएं, ने लप्सी घांई स्वाद की औ ने कोसन घांई सूदी। कछु तो समझ में आन जोग बात करो।’’ भैयाजी मूंड खुजात भए बोले।
‘‘चलो, सो सुनो भैयाजी! जिराफ के लाने का कहो जात आए के पेड़न के ऊपर की पत्तियां खात-खात ऊकी गरदन लम्बी हो गई। ऊंसई हमारे जे बैल हरें ऐसे अपनी गरदन अकड़ान लगे के उन्ने नीचे देखबो ई छोड़ दओ। उन्ने एक घड़ा पानी पी लओ और सोच लगो के हमने तो सगरो समन्दर ई पी डारो। कबे उनके पैरन तले जमीन खिसक गई औ कबे वे ऊंट घांई रेतन में सिमट गए उनको खुदई ने पतो चलो। मैं कोनऊं जेडर चेंज कराबे वारी बात नईं करई, मैं तो बेखबर होबे वारी बात कर रई। बे खरगोस घांई पेड़ की छइयां में सोए परे रहे के कछुआ कभऊं ने जीते पेहे, पर कछुआ हतो के जीततई चलो गओ और जे अपनई ख्वाबन में डूबे रै गए।’’ मैंने सोई भैयाजी खों अच्छे से समझा दओ।
‘‘बिन्ना, बड़ी खरी-खरी कै रईं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘मैं तो खरई बोलत हूं। चाए कोनऊं को मीठी लगे, चाए करई लगे। मनो अब मोए देर हो रई। आप डारो आदत दूसरों खों बिपक्ष की कुर्सी पे देखबे की औ मोए देओ इजाजत। बाकी जे जान लेओ के कछु हो जाए पर ऊंटन खेती नईं होत।’’ मैंने भैयाजी से कही औ उते से आगे बढ़ ली।
मोए बतकाव करनी हती सो कर लई। बाकी राजा जाने, प्रजा जाने, चोर अपनी सजा जाने। मोए का करने। बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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(17.03.2022)
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