Thursday, October 12, 2023

बतकाव बिन्ना की | भरोसा पुरानई पे करो जात आए, समझे के नई? | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

"भरोसा पुरानई पे करो जात आए, समझे के नई?" - मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की      
भरोसा पुरानई पे करो जात आए, समझे के नई?
 - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
            हम ओरें भाजपा  के उम्मींदवारन की लिस्ट पे बतकाव कर रए हते। हम ओरें मने, मैं औ भैया जी। भैयाजी कै रए हते, ‘‘सब उनई ओरन खों चुनाव लड़ाओ जा रओ जो पैले ठाड़े हो चुके औ जीत चुके।’’
‘‘सो, सई तो आए! जो कछू कर चुके उनई पे संगठन वारे भरोसा कर सकते आएं। बाकी जोन के काम से जनता खुश ने हो पाई हुइए, उने बाहरे को रास्ता खुदई दिखा देहै।’’ मैंने कई।
भैयाजी की बात सई हती के भाजपा  ने ई बेर के चुनाव में बी उनई लोगन खों टिकट दई जोन खों पिछली बेरा दई हती। मने भाजपा कोनऊं रिस्क नई लेबो चा रई।
‘‘तुमें नईं लगत बिन्ना, के ईसे उन ओरन खो कित्तो दिल टूटो हुइए जो कई बरस से काम कर रए जेई आशा में कभऊं ने कभऊं तो टिकट मिलहे?’’ भैयाजी ने मोसे पूछी।
‘‘सो, उनको वारो कभऊं अबकी नईं आओ, जेई उने मान लओ चाइए। पार्टी बोई घोड़ा पे दांव लगाबो पसंद करत आए जोन को रेस जीतबे को भरोसो होय।’’ मैंने तनक भैयाजी खों तनक अच्छे से समझाने को प्रयास करो।
‘‘हऔ, चाए बो घोड़ा दलबदल कर के दूसरी पार्टी से आओ होय!’’ भैयाजी ठिठोली करत भए बोले।
‘‘हऔ, चाय कऊं से आओ होय। हरेक पार्टी के लाने जीत जरूरी होत आए, उम्मींदवार को नरा नोईं।’’ मैंने भैयाजी से कई।
मोरी बात सुन के भैयाजी खों खूबई हंसी आई। फेर बे हंसत भए बोले,‘‘तुमाई नरा वारी बात पे हमें एक सांची किसां याद आ गई। कओ तो सुनाएं?’’
‘‘हऔ! सुना देओ!’’ मैंने कई।
‘‘का भओ के ऊ टेम पे डालचंद जी जैन पन्ना-दमोय सीट के सांसद हते। सबई जानत आएं के उने चुटुकला सुनाबो अच्छो लगत्तो। सो, एक दफा बे अपने क्षेत्र को दौरा करत भए हटा पौंचे। उते कोनऊं ने उनसे कई के इते तो समस्या ई समस्या आए, जो एक खतम नईं हो पात के दूसरी ठाढ़ी दिखात आए। आप कछू ऐसी करो के जे क्षेत्र खों समस्याओं से छुटकारा मिल जाए। जे सुन के डालचंद दादा मुस्काए फेर बोले के भैया, ऐसो नईं हो सकत। जे सुन के उते ठाड़े सबई जने मों बाए रै गए। अरे, कां तो उने कओ चाइए रओ के अब हम आ गए सो अब कोनऊं समस्या ने रैहे, मगर जे का? बे कै रए हते के सबरी समस्या कभऊं नई मिटहें। दादा डालचंद हते चतुर। बे ताड़ गए के बे ओरें का सोच रए। सो, दादा बोले, के तुम ओरे जेई सोच रए न, के हम जे का कै रए। सो जान लेओ के हम तुम ओरन से झूठ नई बोल सकत आएं। औ सच जेई आए जो हमने तुम ओरन से कई।’’
‘‘हऔ, जबके नेता हरें फंकाई पे फंकाई देत रैत आएं।’’ मैंने कई।
‘‘हऔ, आगे की तो सुनो! दादा बोले के हम चाए कित्तौ मूंड़ फोड़ लेबें, एक न एक समस्या सो बनई रैहे। फेर उन्ने एक किसां सुनाई। बोले हम बता रए के समस्याएं काय नई मिट सकत आएं। का है के एक गांव में एक तला हतो। ऊ तला में कऊं से एक मगरमच्छ आ गओ। जनता ने सोची के एक मगरमच्छ से का फरक परत आए? रैन दो! बे तला में सपरत-खोंरत रए औ मगरमच्छ उते रैत रऔ। कछू दिनां बाद एक मगरमच्छ औ आ गओ। गांव वारन ने सोची के जे दो हो गए सो होन दो। जे दो मगरमच्छ हमाओ का बिगार लेहैं। पर गंाव वारन ने ध्यान नई दओ के उनमें एक मगरमच्छ हतो औ एक मगरमच्छी हती। कछू दिनां में दोई प्राणियन ने अपनों परिवार बढ़ा लओ। देखत-देखत मगरमच्छन से तला पुर गओ। बे गांव वारन के गाय-गरुआ मार के खान लगे। खुद गांव वारन के जान पे बन आई। तब बे भगे-भगे राजा के ऐंगर पौंचे और गुहार लगाई के कछू करो, हमें बचाओ। राजा ने एक शिकारी से बात करी। शिकारी बोलो के जे बड़ो जोखिम को काम आए सो हमें एक मगरमच्छ मारबे के बदले सोने के दस सिक्का दइयो। राजा ने सोची के जे एक बेरा को खर्चा आए। एक दफा जो जे सारे मगरमच्छ मारे जेहैं, फेर जे शिकारी को का काम? सो राजा ने शिकारी की बात मान लई। शिकारी गांव पौंचो। ऊंनंे मगरमच्छ मारबो शुरू करो। कछू दिनां में सबरे मार दए, मनो दो छोड़ दए। एक नर औ एक मादा। कछू दिनां गांव में सहूरी रई। फेर कछू दिनां बाद बोई समस्या फेर के आ गई। तला मगरमच्छन से पुर गओ। गांव वारे फेर के राजा के ऐंगर भगत गए। राजा ने फेर के शिकारी को भेजो। शिकारी ने फेर के सबरे मगरमच्छ मारे। औ फेर के दो छोड़ दए। जब ऐंसई-ऐंसई दो-तीन दफा भओ सो राजा ने शिकारी से पूछी के जे तुम हर बेरा दो मगरमच्छ काए छोड़ आत आओ? सब के सब काय नईं मारत? सो बो शिकारी बोलो के महाराज! आप राजा हो के इत्तई नईं समझे? अरे, जो हम सब के सबई मार देहैं औ दो ने छोड़हें सो हम को पूछहे? जबलौं मगरमच्छ आएं, तबलौं हमाई पूछ-बकत आए। जे किसां सुना के दादा डालचंद जैन जी ने उते ठाड़ी जनता से पूछी के कछू समझे के नईं? सो जभईं एक सच्चो चुटकुला हो गओ। के उतई ठाड़ो एक आदमी बोलो के हम कां से समझें, हमाए बब्बा ने सो हमाओ नरा उते तला ई में गाड़ो रओ। बा पगला की बात पे सबई हंस परे। मनो, बात जे आए के राजनीति में ने तो सांची चलत आए औ ने झूठी, जनता जो समझ लेवे बोई दौड़त आए।’’ भैयाजी पूरी किसां सुनात भए बोले।
‘‘हऔ, जे किसां बे अकसर सुनात्ते। मैंने सोई कई दफे सुनी रई। बाकी बा नरा गड़े की बात खूबई रई।’’ मैंने हंस के कई।
हम ओरें बतकाव करई रै हते के इत्ते में भौजी लौट आईं। बे कऊं सुहागनें करबे खों गई रईं।
‘‘का बतकाव हो रई भैया-बैन में?’’ भौजी मुस्कात भई बोलीं औ उतई हम ओरने के लिंगे बैठ गईं।
‘‘कछू खास नईं। चुनाव औ उम्मीदवारन की चर्चा कर रए हते।’’ मैंने कई।
‘‘हऔ, सबरे बेई चेहरा दिखाहें।’’ भौजी बोलीं।
‘‘चलो तुम दोई जनी बैठो हम सबई के लाने चाय बना लात आएं।’’ कैत भए भैयाजी ठाड़े हो गए।
‘‘तुम कां चले, चाय तनक देर में बना लइयो! पैले उम्मींदवारन की चर्चा सो कर लेओ! बताओ बिन्ना खों के का भओ?’’ भौजी ने भौयाजी को कुर्ता को छोर पकर उने रोकत भई कई।
‘‘अरे बिन्ना खों का बताने? हम सो ऐसई ठिठोली कर रए हते।’’ भैयाजी घबड़ात भए बोले।
‘‘का भओ? कछू तो बताओ!’’ मैंने भौजी से पूछी।
‘‘का भओ बिन्ना के आजकाल अखबार में खूबई विज्ञापन छप रए। कऊं कार के तो कऊं टीवी के तो कऊं बरतन-भाड़े के। उनमें एक्सचेंज आॅफर सोई रैत आए। सो परों जे तुमाए भैयाजी एक विज्ञापन देख के बर्रान लगे के जे सबई कछू को विज्ञापन देत रैत आएं मनो घरवाली के लाने कोनऊं विज्ञापन नई रैत? हमने पूछी के का मतलब तुमाओ? तो जे कैन लगे के जो कोनऊं घरवाली बदलवे के लाने कोनऊं आॅफर होतो सो हम सोई तुमें बदल देते।’’ भौजी सुनात भई हंसन लगीं।
‘‘हैं? ऐसी कई भैयाजी ने?’’ मोय बड़ो अचरज भओ।
‘‘हऔ! रामधई ऐसई कई रई। हमने सोई कै दई के सोच लेओ, बदलबे खों तो बिना आॅफर के तुम बदल सकत आओ। कओ तो हमई तुमाए लाने ढूंढ देंवें। मनों एक बात याद राखियो के पुरानी टिकाऊं औ भरोसे की होत आए। नई के भरोसे तुमाई जिनगी ने चल पाहे। औ देख लेओ, अबे जो भाजपा के उम्मींदवारन की लिस्ट आई सो ऊंमें का भओ? राजनीति वारे बी पुरानों पे भरोसो कर रए। हमने पढ़ा दई पूरी लिस्ट इनके लाने, के देखों औ ने गर्रेयाओ!’’ भौजी भैयाजी खों कुतका दिखात भईं हंस के बोलीं।
‘‘सई कई भौजी। जो टिकाऊं होय बोई पे भरोसो करो चाइए और जोन पे भरोसो होय, उनेई टिके रैन दओ चाइए।’’ मैंने भौजी से कई।
‘‘हमें तो तुमाए भैया पे खूबई भरोसो आए तभईं तो हम इने टिकाए भए आएं।’’ भौजी ठठा के हंस परीं। भैयाजी सोई झेंपत-झेंपत हंसन लगे।
‘‘देखों, अब कांग्रेस औ दूसरी पार्टियन में का होने जा रओ?’’ मैंने कई।
‘‘उनकी बे जाने! ओ काय बिन्ना के भैयाजी ! भरोसा पुरानई पे करो जात आए, समझे के नई?’’ भौजी हंसन लगीं औ भैयाजी उते से उठ के खसक गए चाय बनाबे खों।  
सो, बात तो मनो सई आए के। भरोसो पुराने पे करो जा सकत आए बाकी जे ईको जे बी मतलब नोंई के नओं खों मौकई ने दओ जाए। हम जे जग की कै रए राजनीति की नोईं। मनो बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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