Thursday, October 5, 2023

बतकाव बिन्ना की | तुम तो उम्मींदवार घांई घचा-पेल मचा रईं | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

"तुम तो उम्मींदवार घांई घचा-पेल मचा रईं" - मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की      
तुम तो उम्मींदवार घांई घचा-पेल मचा रईं
 - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
           ‘का हो गओ भैयाजी? भौजी भौत गुस्सा में दिखा रईं।’’ मैंने भैयाजी से पूछी। काय से के भैयाजी अपनो मूंड़ खुजाउत ठाड़े हते और भौजी कछू भुनभुनाए जा रई हतीं।
‘‘कछू ने पूछो! तुमाई भौजी पगला गईं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, हम काय पगला गए? पगलाए हो आप।’’ भौजी बमक के बोलीं।
‘‘हो का गओ? आप ओरें कछू बता रए के मैं अपनी दुकान बढ़ा लेऊं? फेर आप ओरे फुरसत से लड़त रइयो!’’ मैंने कई।
‘‘अरे नईं, तुम नई जाओ! जो तुम चली गईं सो जे औ पगलान लगहें।’’ भैयाजी हड़बड़ात भए बोले।
‘‘हऔ, तुम ने जाओ! इते ठैर हो तभईं तो जान पैहो के तुमाए भैयाजी कोन टाईप के नमूना आएं!’’ भौजी मोरी बांह पकरत भई बोलीं।
मैंने उतई डरी तखत पे आलथी-पालथी मारी और बैठ गई।
‘‘चलो, अब आप ओरें चालू हो जाओ! रामधई, अब आहे मजा! तनक भुनी मूंगफली होती, आवरां की चटनी के संगे, सो और मजो आ जात।’’ मैंने भैयाजी औ भौजी दोई से कई।
‘‘जे इनखों देखो, इते अपन ओरें गिचड़ कर रए औ इने लग रओ के इते डब्ल्यू डब्ल्यू एफ हो रओ। जे मोंमफली खात भईं कुश्ती देखन चा रईं। धन्य हो बिन्ना! तुमाई जै हो!’’ भैयाजी बोले।
‘‘अरे नईं! आप गलत समझ रए! डब्ल्यू डब्ल्यू एफ में तो झूठ-मूठ की लड़ाई करी जात आए। ने तो आपई सोचो के इत्ते उठा-उठा के पटकबे में सबरे पैलवान टें बोल जाएं। मनो इते तो सांची की लड़ाई देखबे खों मिल रई। इमें उसे ज्या मजा कहानो!’’ मैंने भैयाजी खों समझाई।
‘‘तुम दोई भैया-बैन टाॅपिक ने बदलो! हम जो कै रए पैले बा सुनो!’’ भौजी हम दोई की चाल ताड़ गईं।
‘‘आ बोलो न! आपई खों सुनबे के लाने सो मैं रुक गई, ने तो मोए मुतके काम आएं। आप तो बोलो!’’ मैंने भौजी से कई।
‘‘बो का आए के हम इनसे कै रए के हमने कई मईना से नई धुतिया नईं खरीदी, सो चलके हमें नईं धुतिया दिला दो।’’ भौजी बोलीं।
‘‘सो, ठीक तो कै रईं आप? ई में का मुसकिल पर गई?’’ मैंने भैयाजी खों देखत भई पूछी।
‘‘मुसकिल कछू नईं परी, हम जे कै रए के आजई कोन सो मुहूरत आए? अरे, चले चलबी काल-परों। लेबा देबी तुमाए लाने धुतिया। मनों जे सो जिद ठान के बैठीं के हमें सो आजई चलने। आजई लेवा देओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘मनो भौजी आप आज लेओ, चाए काल, पर अबे करै दिन खतम कां भए? ऐसे में नई धुतिया लेबो का ठीक रैहे?’’ मैंने भौजी से पूछी।
‘‘हऔ, तुमने अच्छी याद कराई। हम सो इनकी गिचड़-तान में भूलई गए के अबे तो करै दिन चल रएै’’ भैयाजी उचकत भए बोले। उने सो मनो बचबे को नुस्खा मिल गओ।
‘‘हऔ! हमाई नई धुतिया के लाने करै दिन दिखा रए, औ बे जो रोज-रोज नई योजनाओं की घोषणा कर रए, भूमि पूज रए, सो कछू नईं?’’ भौजी अपनों दाओं हाथ मटकात भई बोलीं।
‘‘जे सो सांची कई आपने!’’ मैंने भौजी की बात पे अपनी मुंडी हिला दई।
‘‘अब उनके आंगू चुनाव धरो। औ ऊंसे बी पैले आचार संहिता घली जा रई, सो बे ओरे का करें? जल्दी-जल्दी सबई कछू करने ई परहे। इते तुमाए लाने कोन सी आचार संहिता घलबे वारी आए के जो तुम उम्मींदवार घांईं इत्ती घचा-पेल मचा रईं?’’ भैयाजी बोले।
‘‘जेई समझ लेओ के हमाए लाने सोई आचार संहिता लग जैहे।’’ भौजी बोलीं।
‘‘काय खों समझ लेओ? का तुम कोनऊं नेता आओ, के चुनाव में ठाड़ी हो रईं? करै दिन के बाद लेबे में तुमें का फरक पर जैहे?’’ भैयाजी ने भौजी से पूछी।
‘‘भौत फरक पर जैहे! बाकी जो फरक हमें नईं तुमें परहे। काय से के काल से तुमें ने अचार मिलने, ने पापड़ मिलने औ न तुमाई पसंद की सब्जी तुमें मिलहे।’’ भौजी धमकात भई बोलीं।
‘‘काय? काय ने दैहो हमें जे सब?’’ भैयाजी चैंकत भए बोले। उने जे उम्मींद ने हती के बात बढ़त-बढ़त इते लों आ जैहे।
‘‘काय देबी हम तुमें? जो तुम हमाई बात नई मान रए, हमाओ साथ नई दे रए, सो हम काय तुमें पूछबी?’’ भौजी ने साफ-साफ कै दई।
‘‘हे मोरी भागवान! तुम तो ऐसी कर रईं, के जैसे हम विरोधी पार्टी के होंए। कई जात आए के जो पार्टी केन्द्र सरकार में होय, बोई पार्टी की सरकार जो राज्य में ने बन पाए, सो ऊ राज्य के लाने कोनऊं नई पूछत आए। काय से के उते विरोधी पार्टी होत आए। सो तुमने सोई हमें विरोधी पार्टी को बना दओ।’’ भैयाजी भौजी से बोले।
‘‘आप हमाओ विरोध कर रए, तो आप हमाए विरोधी भए के नईं भए?’’ भौजी ने भैयाजी से कहा।
‘‘अरे हम कोनऊं विरोध नई कर रए। हम तो बस, जे कै रए के आज नई कल या परों चलो! मनो, अब करै दिन की याद आ गई, सो अच्छो हुइए के करै दिन के बाद चलियो! हम तुमें एक नईं दो धुतिया लेवा देैंहें।’’ भैयाजी भौजी खों मनात भए बोले।
‘‘आपसे कोन ने कई के मोय एक धुतिया चाउने? एक धुतिया लेने होती तो कोनऊं चुनाव वारन के संगे फिर आती, सो एकाध धुतिया फोकट में मिल जाती। मनो हमें नोनी-सी, साजी-सी तीन-चार धुतिया लेने।’’ भौजी मुस्कात भई बोलीं।
‘‘का कई चार धुतियां?’’ भौजी को मों खुलो के खुलो रै गओ।
‘‘सो ईमें मों फाड़बे वारी कोन सी बात आए? हम कै रै न के हमने कुल्ल मईना से नई धुतिया नई लई।’’ भौजी बोलीं।
‘‘बा करै दिन....’’ भैयाजी कछू कै चा रए हतें मनो उनके मों से आवाज ने कढ़ी।
‘‘ऊकी चिन्ता आप ने करो! ऊकी व्यवस्था हमने बना लई आए।’’ भौजी औ गहरी मुस्कात भई बोली।
‘‘कैसी व्यवस्था?’’ भैयाजी की दसा देखबे जोग भई जा रई हती।
‘‘देखो हमाए दिमाग में सोई जे बात आई रई, के जो जे ओरें कऊं भूमि पूज रए सो कईं नई योजनाएं बांट रए। ई बारे में हमने एक जने से पूछी, सो बा बोलो के कछू नईं जे सबरी योजनाएं सो पैले बनीं, फेर पास भईं, सो जे सब छुबी कहाईं। छुबी मने जो अपने खों करै दिन में जो घर की पुताई कराने होत आए सो करै दिन शुरू होगे के पैलऊं चूना या डिस्टेम्पर की कुची फिरवा देत आएं। सो बो काम करै दिन से पैले को कओ जात आए।’’ भौजी समझान लगीं।
‘‘सो ई सब से तुमाई धुतिया को का मेल?’’ भैयाजी खों मूंड़ चकरा गओ।
‘‘मेल जो आए के हमें जोन-जोन करल की धुतिया खरीदने हमने ऊंकी मैचिंग की कऊं चुड़ियां, तो कऊं ब्लाउज को कपड़ा तो कऊं रुमाल, पैलई खरीद लओ आए। अब तो बस, इन सबके मैंचिंग की धुतिया खरीदने आए।’’ भौजी बोलीं।
‘‘हाय कित्ती सयानी हो आप!’’ मैंने उठ के भौजी खों गले लगा लओ। ऐसी अच्छी तरकीब सो, भौजी सोंच सकत आएं के बे चुनाव में ठाड़े होबे वारे।    
 सो, भैया जी भौजी की घचा-पेल में फंसई गए। जे बात आ ओरें सोई गांठ बांध लेओ के चुनाव आयोग की आचार संहिता से ज्यादा कठोर होत आए घरे की आचार संहिता। मनो बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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