Friday, March 15, 2024

शून्यकाल | ऐजेंडा में सबसे ऊपर हो बलात्कार-मुक्त समाज | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | नयादौर

दैनिक नयादौर में मेरा कॉलम...      
शून्यकाल
ऐजेंडा में सबसे ऊपर हो बलात्कार-मुक्त समाज
      - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
       सन् 2024 का चुनावी महासमर सामने है और सभी महारथी अपनी- अपनी कमर कस रहे हैं। सभी के अपने ऐजेंडा तैयार हो रहे हैं। बेशक सभी का ध्यान जनता की जरूरतों की ओर अटका रहेगा। आश्वासनों की थैलियां खुलती रहेंगी। किन्तु एक मुद्दा ऐसा है जिसे झूठे आश्वासन नहीं बल्कि एक शपथ के रूप में राजनीतिक दलों को अपने ऐजेंडा में सबसे ऊपर रखना ही होगा, वह है - बलात्कार-मुक्त समाज। क्योंकि, हर पंद्रह मिनट में बलात्कार की एक घटना आंकड़े के साथ कोई भी राजनीतिक दल अच्छे शासन का दम भर सकता है?
   माना जाता है कि राजनीति में कुछ भी संभव है। अपने ही भ्रम में जीने वाला राजनीतिक दल कब जड़ से उखड़ जाए इसका ठिकाना नहीं है। लेकिन इस भ्रम को तोड़ने वाली सबसे बड़ी शक्ति है जनता की इच्छाशक्ति। जनता क्या चाहती है इसका ध्यान रखना हर राजनीतिक दल के लिए जरूरी है। जो यह ध्यान नहीं रखता है, जनता भी उसका ध्यान नहीं रखती है। यही तो लोकतंत्र है। सन् 2024 का चुनावी महासमर सामने है और सभी महारथी अपनी-अपनी कमर कस रहे हैं। सभी के अपने ऐजेंडा तैयार हो रहे हैं। बेशक सभी का ध्यान जनता की जरूरतों की ओर अटका रहेगा। आश्वासनों की थैलियां खुलती रहेंगी। किन्तु एक मुद्दा ऐसा है जिसे झूठे आश्वासन नहीं बल्कि एक शपथ के रूप में राजनीतिक दलों को अपने ऐजेंडा में रखना ही होगा, वह है - बलात्कार-मुक्त समाज। 
 मध्यप्रदेश सरकार ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ के मुद्दे को ले कर बड़ी जागरूक रही है किन्तु इसी मध्यप्रदेश में लगभग हर दूसरे दिन बलात्कार की एक घटना घटित होने लगी है। ऐसा नहीं है कि यह अपराध सिर्फ़ मध्यप्रदेश में नहीं वरन् समूचे देश को कलंकित कर रहा है। लेकिन मध्यप्रदेश प्रदेश के पुलिस मुख्यालय ने  मार्च 2018 में एक चौंकाने वाला खुलासा किया था कि मध्यप्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जहां साल भर में पांच हजार से अधिक महिलाओं और नाबालिगों से बलात्कार और छेड़छाड़ के मामले सामने आये हैं। वर्ष 2022 में जारी नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार महिलाओं से अपराध के मामले में राजस्थान पहले नंबर पर रहा है तो तीसरा नंबर मध्य प्रदेश का रहा। शारीरिक शोषण के 1445 मामले प्रदेश में दर्ज हुए। महाराष्ट्र में 2796 केस इस मामले में दर्ज हुए तो मध्य प्रदेश में 3049 महिलाएं छेड़खानी की शिकार हुई। महिला दुष्कर्म के मामले भी प्रदेश में बढ़े। देश में मध्य प्रदेश इस मामले में तीसरे स्थान पर रहा। पूरे देश में वर्ष 2022 में दुष्कर्म के 31 हजार से ज्यादा केस दर्ज हुए हैं। उनमें से राजस्थान में 5399, उत्तर प्रदेश में 3690 और मध्य प्रदेश में 3039 केस दर्ज हुए। बुंदेलखंड में भी कुछ ऐसे ही आंकड़े हैं। 
     बलात्कार हत्या से भी जघन्य अपराध है। हत्यारा हत्या कर के एक जीवन का अंत कर देता है किन्तु बलात्कारी बलात्कार कर के एक जीवन को एक झटके में सारे समाज से काट देता है और एकाकी , भयभीत जीवन जीने को विवश कर देता है। मध्य प्रदेश सरकार ने 12 साल या उससे कम उम्र की लड़कियों के साथ बलात्कार के दोषियों को फांसी की सजा देने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। दण्ड संहिता की धारा 376ए और 376 डीए के रूप में संशोधन किया गया और सजा में वृद्धि के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है। इसके अलावा लोक अभियोजन की सुनवाई का अवसर दिए बिना जमानत नहीं होगी। इस विधेयक को विधानसभा में पारित कर केंद्र सरकार को भेजा जाएगा। मृत्युदंड को अमल में लाने के लिए दुष्कर्म की धारा 376 में ए और एडी को जोड़ा जाएगा, जिसमें मृत्युदंड का प्रावधान होगा। सरकार ने बलात्कार मामले में सख्त फैसला लेते हुए आरोपियों के जमानत की राशि बढ़ाकर एक लाख रुपये कर दी। इस तरह मध्य प्रदेश देश का पहला राज्य बन गया, जहां बलात्कार के मामले में इस तरह के कानून के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। साथ ही शादी का प्रलोभन देकर शारीरिक शोषण करने के आरोपी को सजा के लिए 493 क में संशोधन करके संज्ञेय अपराध बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। महिलाओं के खिलाफ आदतन अपराधी को धारा 110 के तहत गैर जमानती अपराध और जुर्माने की सजा का प्रावधान किया गया। महिलाओं का पीछा करने, छेड़छाड़, निर्वस्त्र करने, हमला करने और बलात्कार का आरोप साबित होने पर न्यूनतम जुर्माना एक लाख रुपए लगाया जाएगा। भाजपा ने 12 वर्ष से कम आयु की बच्ची से बलात्कार के मामले में दोषी पाए जाने पर मृत्युदंड सहित कठोर दंड वाले प्रावधान संबंधी इस अध्यादेश को ऐतिहासिक करार दिया था तब वहीं विपक्षी दलों ने सवाल किया था कि सरकार को यह कदम उठाने में इतना समय क्यों लग गया? दूसरी ओर देश भर के बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से बलात्कार के मामले में मौत की सजा का प्रावधान करने के लिए पॉक्सो कानून में संशोधन के सरकार के फैसले का विरोध किया। केंद्रीय कैबिनेट ने 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से बलात्कार के दोषियों को मौत की सजा देने की अनुमति देने वाले एक अध्यादेश को मंजूरी दी। इसके साथ ही देश की राजनीति गरमा उठी। पक्ष अपनी पीठ ठोंकता रहा तो विपक्ष खामियां गिनाता रहा। इसी दौरान राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के पूर्व सदस्य विनोद टिक्कू ने कहा कि ‘‘मुझे आशंका है कि मौत की सजा का प्रावधान हो जाने पर ज्यादातर लोग बच्चियों से बलात्कार के मामले दर्ज नहीं कराएंगे क्योंकि ज्यादातर मामलों में परिवार के सदस्य ही आरोपी होते हैं। दोषसिद्धि दर भी और कम हो जाएगी।’’ 
वहीं कुल 86 प्रतिशत मामले लंबित रहे। संक्षेप में कहा जाए तो इन आंकड़ों के अनुसार देश में हर घंटे में चार बलात्कार हुए, अर्थात हर पंद्रह मिनट में एक बलात्कार। निर्भया बलात्कार (16 दिसंबर 2012) केस के बाद कानूनों में बदलाव किये गये, कानूनों को पहले से ज्यादा सख्त बनाया गया इस उम्मीद में कि शायद महिलाओं के साथ होने वाली आपराधिक वारदात कुछ कम होंगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। जितने कानून बन रहे हैं उससे दोगुनी गति से अपराध कारित हो रहे हैं। क्या कानून को लागू करने में कहीं कोई चूक हो रही है या फिर कोई और कारण है? इस कारण का पता लगाना और इसे दूर कर महिलाओं के लिए स्वच्छ, निर्भय समाज बनाना अब जरूरी हो चला है।  
     आज के ग्लोबल युग में भारत में घटने वाली घटना विश्व के कोने-कोने तक असर डालती है। विचारणीय है कि दुनिया के लगभग हर देश में भारतीय समुदाय रहता है। वह समुदाय क्या इन घटनाओं पर विदेशियों के सामने अपना सिर उठा पाता होगा? दुनिया के सामने देश की छवि तो बिगड़ ही रही है और स्वयं देश के अंदर महिलाएं भयभीत हो कर जीने को विवश हो रही हैं। जब आंकड़े हर पंद्रह मिनट में एक बलात्कार तक जा पहुंचे हों तो क्या इस आंकड़े के साथ कोई भी राजनीतिक दल अच्छे शासन का दम भर सकता है? इस मुद्दे पर तमाम राजनीतिक दलों को आत्ममंथन करना होगा अपना चुनावी एजेंडा तय करने से पहले और इसे प्रथमिकता देनी होगी। जब तक देश की महिलाएं सुरक्षित नहीं होंगी तक तक देश सही अर्थ में ‘‘विश्व गुरु’’ नहीं कहला सकता है। यदि देश को दुनिया के पटल पर गौरव दिलाना है तो चुनावी ऐजेंडा में बलात्कार मुक्त समाज की अवधारणा को प्राथमिक रूप से रखना होगा।
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