पत्रिका | टॉपिक एक्सपर्ट | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली में
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टाॅपिक एक्सपर्ट
इते की होली उते जैसी नोईं
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
होली को हुल्लड़ होय औ राधा-कृष्ण की होली खों याद ने करो जाए, भला जे कैसे हो सकत? उते ब्रज में कन्हैया होली के बहाने राधारानी खों सताउत्ते। होली को कोनऊं गीत चाए लोकगीत उठा के देख लेओ, जेई सीन मिलहे के बेचारी राधारानी कृष्ण से बिनती कर रईं के , “मोपे रंग ने डारो सांवरे!” मने उते ब्रज वारी राधारानी कृष्ण से बचती-बचातीं, लुकी-लुकी फिरबे की कोसिस करती दिखातीं आएं। पर अपने सागरे की राधारानियां डराबे वारों में नोईं। बे तो उल्टे कृष्ण लला खों चुनौंती देत रईं हतीं। जो ऐसो ने होतो तो सागर के अपने महाकवि पद्माकर जे कैसे लिखते के-
फाग के भीर अभीरन में गहि
गोबिंदैं लै गई भीतर गोरी।
भाई करी मन की ‘पद्माकर’
ऊपर नाइ अबीर की झोरी।
मने राधारानी ने भरी भीड़ में से कृष्ण खों खैंचों औ भीतरे खचोड़ ले गईं। औ अपने मन की करत भई उनपे झोरी भर अबीर उलट दओ। सो, बे उते ब्रज की राधा लुकाए फिर रईं, इते सागर की राधा कृष्ण खों मजा चखाए दे रईं। इत्तई नई, उन्ने कृष्ण को पीतांबर कम्मर से खैंच लऔ औ गाल पे जम के गुलाल मल दओ-
छीन पितंबबर कम्मर तें
सु बिदा दई मीड़ि कपोलन रोरी।
जो कृष्ण घबरा के भगन लगे सो राधारानी बोलीं-
नैन नचाइ कही मुसकाइ
लला फिरि आइयौ खेलन होरी॥
सो जे रई अपने सागर की होली। सो, ने तो इते की राधारानी ब्रज की जैसीं डरात रईं औ ने इते की होली उते जैसी रई। संगे जे औ ध्यान राखियो के महाकवि पद्माकर ने रोरी मने सूको रंग-गुलाल कपोलन पे मीड़बे की बात कई आए, पानी वारे रंग की नोईं। सो, सूकी होली खेलियो, औ कोनऊं ज्यादई रार करे सो ऊको रंगे बिगैर ने छोड़ियो। सो, सबई जने खों हैप्पी होली !!!
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Thank you Patrika 🙏
Thank you Dear Reshu Jain 🙏
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