चर्चा प्लस
वर्ल्ड हैप्पीनेस डे एवं वर्ल्ड गौरैया डे:
गौरैया पास हो तो प्रसन्नता भी पास होगी
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह
20 मार्च अर्थात विश्व प्रसन्नता दिवस, 20 मार्च अर्थात विश्व गौरैया दिवस। दो उत्सव एक ही दिन। दोनों को यदि एक-दूसरे का परस्पर पूरक बना दिया जाए तो गौरैयां हमें खुश रहने के अनेक अवसर दे सकती है। वरना गौरैयें हमसे दुखी हैं और हम अपनी ज़िन्दगी में खुशी न मिल पाने के चक्कर में सदा खुशियों की तलाश में भटकते रहते हैं। तो चलिए खुश रहने का सबसे आसान तरीका ढूंढ निकालते हैं।
जिसके पीछे भाग रहे हो
वह तो असली खुशी नहीं
अस्ल खुशी तो दिल के भीतर
हरदम बैठी रहती है
हर साल दुनियाभर में 20 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय हैप्पीनेस डे यानी विश्व प्रसन्नता दिवस मनाया जाता है। इस दिन का मुख्य उद्देश्य खुश रहना और अपने जीवन में खुशी के महत्व को महत्व देना है। इसके साथ ही यह दिन खुशी के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाता है और दुनियाभर के लोगों को खुशी ढूंढने और बनाए रखने में मदद करता है। पहली बार यह दिवस 2013 में यूनाइटेड नेशन्स द्वारा मनाया गया था। तब से लेकर हर साल यह दिवस मनाया जा रहा है। दरअसल भौतिकता के चलते हमने अपने जीवन को कठिन बना लिया है। सुबह से शाम तक हम खुशी पाने के लिए धन कमाने में जुटे रहते हैं और धन कमाने में इतने डूब जाते हैं कि वास्तविक खुशी कभी मिल ही नहीं पाती है। अंतर्राष्ट्रीय ख़ुशी दिवस की स्थापना से पहले, वर्ल्ड हैप्पीनेस फाउंडेशन के अध्यक्ष लुइस गैलार्डो के साथ मिलकर, जयमे इलियन ने ‘‘हैप्पीटलिज्म’’ की स्थापना की। इलियन ने खुशी, कल्याण और लोकतंत्र की प्रधानता को प्रोत्साहित करने और आगे बढ़ाने के लिए 2006 से 2012 तक संयुक्त राष्ट्र में एक अभियान चलाया।
2011 में, जयमे इलियन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अंतर्राष्ट्रीय खुशी दिवस का विचार प्रस्तावित किया। वह चाहते थे कि संयुक्त राष्ट्र महासभा सभी देशों के आर्थिक विकास में सुधार करके दुनिया भर में खुशहाली अर्थशास्त्र को बढ़ावा दे। इस विचार को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाया गया था। 19 जुलाई 2011 को, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव 65/309, विकास के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की ओर खुशी, भूटान के तत्कालीन प्रधान मंत्री जिग्मे थिनले की एक पहल पारित की, जो एक ऐसा देश है जो खुशहाल देश के रूप में जाना जाता है। अंतर्राष्ट्रीय खुशी दिवस ने आधिकारिक तौर पर इसे 2012 में स्थापित किया और पहली बार 2013 में इसे मनाया। जयमे इलियन की अवधारणा पर निर्माण करते हुए, संयुक्त राष्ट्र ने लोगों के जीवन में खुशी के महत्व के बारे में लोगों को सूचित करने के लिए विश्व खुशी दिवस के साथ एक कदम आगे बढ़ाया है। सार्वजनिक नीतियों में खुशी को शामिल करने की आवश्यकता है।
रिपोर्ट के अनुसार, 137 देशों के वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स में भारत को 125 वें स्थान पर रखा गया है। 2022 में भारत 136 वें स्थान पर था। जबकि 2021 में भारत 139वें पायदान पर था। इसका कारण पता लगाया गया तो अधिकांश सर्वे वालों ने यही पाया कि जिस तबके के पास घर, गाड़ी, अच्छी नौकरी आदि सब कुछ था, वे ही अपनी जिन्दगी से सबसे अधिक नाखुश निकले। और पाने की चाहत उन्हें उन सबकी खुशी का अवसर ही नहीं दे रही थी जो उनके पास था। वहीं निम्न मध्यमवर्ग एवं निम्नवर्ग अपनी तंगियों के बावजूद खुश रहना जानता था। यहां तक कि एक फकीर भी एक रोटी मिलने पर उसमें से आधी रोटी एक आवारा कुत्ते को खिला कर खुश रहने का हुनर वाला पाया गया।
खुशी मनाने का सबसे आसान तरीका है कि अपनी छोटी-छोटी खुशियों को दोस्तों और परिवार के साथ खुशियां साझा करें। जिन चीजों के लिए स्वयं को आभारी होना चाहिए, उन्हें नोट करने और उनकी सराहना करने के लिए समय निकाले, यहां तक कि छोटी-छोटी चीजों के लिए भी, लोगों को जीवन में अधिक खुशी और अधिक संतुष्टि महसूस होगी। इसे दैनिक आदत बनाने पर खुशी अपने आप मिलती रहेगी। प्रियजनों के साथ समय बिताएं और उन रिश्तों को सुधारने का प्रयास करें जो कठिन दौर से गुजर रहे हैं क्योंकि अच्छी गुणवत्ता वाले रिश्ते खुशी के लिए महत्वपूर्ण हैं। समान विचारधारा वाले व्यक्तियों से मिलना। जरूरतमंदों की मदद करना। शहर की भीड़ छोड़ कर कम से कम एक दिन गांवों की ओर निकल पड़ना एक अच्छा विकल्प है। सोशल नेटवर्किंग भी खुशियां पाने का एक अच्छा तरीका है। बस, जरूरत है सकारात्मक सोच रखने वाले लोगों से जुड़ने की।
वैसे सच तो यह है कि खुशी ढूंढने कहीं जाने की जरूरत नहीं है, न तो घर से बाहर और न सोशल नेटवर्किंग पर, बस एक गौरैया परिवार को अपने घर की बाल्कनी, टैरेस या आंगन में घोंसला बनाने दें। फिर देखिए हर दिन उसकी नई गतिविधियां आपको ढेर सारी खुशियां देंगी।
नन्हीं चिड़िया रोज सबक दे जाती है
खुश रहने के हुनर सिखाती जाती है
पहले गौरैयें हमारे घर में रहती थीं। हमारे घर में एक सदस्य की तरह। फिर हमने अपनी आधुनिक जीवन शैली में गौरैयों को अपने घरों से निष्कासित कर दिया। इसके साथ ही अपनी खुशियों के एक स्वाभाविक अवसर को भी खो दिया। वैसे गौरैया के संरक्षण और उनके सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से हर साल यह दिवस मनाया जाता है। भारत व अन्य देशों में पक्षी गौरैया की संख्या लगातार कम हो रही है। ऐसे में 2009 में भारत के संरक्षणवादी डॉ. मोहम्मद दिलावर ने कल्पना की और फिर 2010 में फ्रांस में इको-सिस एक्शन फाउंडेशन के सहयोग से 20 मार्च को पहला विश्व गौरैया दिवस आयोजित किया गया था। तब से हर साल यह दिवस मनाया जा रहा है।
हर साल 20 मार्च को नेचर फॉरएवर सोसाइटी (भारत) और इको-सिस एक्शन फाउंडेशन (फ्रांस) के सहयोग से विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरुआत नासिक के रहने वाले मोहम्मद दिलावर ने गौरैया पक्षी की लुप्त होती प्रजाति की सहायता करने के लिए नेचर फॉरएवर सोसायटी की स्थापना कर की थी। विश्व गौरैया दिवस मनाने का उद्देश्य गौरैया पक्षी की लुप्त होती प्रजाति को बचाना है। पेड़ों की अंधाधुंध होती कटाई, आधुनिक शहरीकरण और लगातार बढ़ रहे प्रदूषण से गौरैया पक्षी विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी है। एक वक्त था जब गौरैया की चीं-चीं की आवाज से ही लोगों की नींद खुला करती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है। यह एक ऐसी पक्षी है जो मनुष्य के इर्द-गिर्द रहना पसंद करती है। गौरैया पक्षी की संख्या में लगातार कमी एक चेतावनी है कि प्रदूषण और रेडिएशन प्रकृति और मानव के ऊपर क्या प्रभाव डाल रहा है। तो इस ओर काम करने की जरूरत है।
संरक्षणवादी मोहम्मद दिलावर ने नासिक में घरेलू गौरैया की विशेष देखभाल के लिए अभियान शुरू किया। अभियान को आधिकारिक बनाने का विचार नेचर फॉरएवर सोसाइटी के कार्यालय में एक अनौपचारिक चर्चा के दौरान पैदा हुआ था। इसके बाद, दुनिया भर में 2010 में पहला विश्व गौरैया दिवस मनाया गया। इसमें पक्षी संरक्षणवादियों के नेटवर्क और संरक्षण में सुधार के लिए विचारों का आदान-प्रदान करने के लिए एक मंच तैयार किया। इसका उद्देश्य दुनिया भर के लोगों को एक साथ आने और आम जैव विविधता या कम संरक्षण वाली प्रजातियों की सुरक्षा के लिए आवश्यकता के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए संपर्क बिंदु प्रदान करना है।
गौरैया या घर की गौरैया को शहरी क्षेत्रों में हरे-भरे हिस्सों और पिछवाड़े में चहकने के लिए जाना जाता है, हालांकि, भयंकर गर्मियों के दौरान, उन्हें ठंडी छाया और पानी की आवश्यकता होती है। वे हमेशा आवासीय क्षेत्रों में काफी आम रहे हैं, लेकिन वर्तमान में ध्वनि प्रदूषण, आधुनिक इमारतों में घोंसले के शिकार स्थलों की कमी, कीटनाशकों के उपयोग और भोजन की अनुपलब्धता के कारण विलुप्त होने के कगार पर हैं, जैसा कि पक्षी विज्ञानी द्वारा बताया गया है। जागरूकता पैदा करने के कारण 2012 में घरेलू गौरैया दिल्ली का राज्य पक्षी बन गई।
तो ये है आईडिया कि दो उत्सवों यानी विश्व प्रसन्नता दिवस और विश्व गौरैया दिवस जो दोनों ही एक ही दिवस को मनाए जाते हैं, इन्हें परस्पर पूरक बना लिया जाए। यानी गौरैयों को दाना दें, पानी दें, अपने घर में आश्रय दें और अपने दिल को खुशियों से हमेशा भरा-पूरा रखें। खुश रहने वाले ही खुशियां बांटना जानते हैं, वो कहते हैं न कि ‘मुर्दा दिल क्या ख़ाक जिया करते हैं?’।
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