पत्रिका | टॉपिक एक्सपर्ट | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली में
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टाॅपिक एक्सपर्ट
बिन्ना, भैया! मरबे में कोनऊं हल नोईं
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
हमने खबर में पढ़ी के बारमीं क्लास की एक मोड़ी ने कारीडोर से तला में छलांग लगा के मरबे की कोसिस करी। ईमें हमें दो बातें अच्छी ने लगीं। पैली बात तो जे के मरबे से का मिल जातो? जा तो पीठ दिखाबे वारी बात भई। औ दूसरी बात जे के सबई ने खबर पढ़ के कई के ‘‘जा तो अच्छो रओ के उते तला में जलकुंभी औ गिलावो भरो रओ, जोन से बा मोड़ी की जान बच गई।’’ सो का मरबे खों उधारे खाए जे चात आएं के तला की कभऊं साफाई ने होने पाए? हमने ओई खबर में जा सोई पढ़ी के जे कारीडोर से कूदबे की दूसरी घटना आए। तनक सोचो के जो जे कारीडोर खो ‘सुसाईट प्वांइट’ बानात रैहें तो ऊपे ऊंची जाली लगाने परहे। फेर औ का ब्यूटी रैहे उते? एक तो ऊंसई बा चपटो सो धरो। खैर! कारीडोर की बात तो फेर देखी जैहे, अबे तो जे सोचबे की बात आए के आजकाल तनक परीक्षा को पेपर बिगरो औ मोड़ा-मोड़ी मरबे खों दौर परत आएं। अरे, का मरबे से कोनऊं हल निकर आहे? बाकी मां-बाप जिनगी भर खुद खों कोसत रैहें के हमने अपने मोड़ा/मोड़ी को काय डांटो?
सो पढ़बे वारे मोड़ा, मोड़ियो तनक समझो के एक दफा के पेपर बिगरबे से जिनगी को मोल खतम नई हो जात आए। जिनगी में भौत कछू आए करबे के लाने। औ बा सब तभई करो जा सकत आए जो जिन्दा रैहो। औ मताई-बाप सोई ऐसी ठेन ने करें, के बच्चा हरें मरबे खों निकर परें। सो, बिन्ना औ भैया हरों, मरबे में कोनऊं हल नोई, सबरे हल हिम्मत से डट के जीने में आए।
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Thank you Patrika 🙏
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