बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
होली के भड़या हरों खों को पकर सको
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘काय भैयाजी, का कर रए? गूझा पपड़ियां बन गईं?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘हऔ बनत जा रईं। तुमाई भौजी जुटी आएं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘औ आप? आप नईं हाथ बंटा रए? आप तो गूझा बांधबे में मास्टर आओ।’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘सई कई। हमें गूझा बांधबे में भौतई मजो आत आए। हम सो ऐसो किनारो मोड़त आएं के का मशीनें औ का तुमाई भौजी, दोई हमाओ मुकाबला नईं कर सकत।’’ भैयाजी शान देत भए बोले।
‘‘जेई से तो मैं पूछ रई के आप उते किचन में ने हो के इते बाहरे ठाड़े दिखा रए।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘बो का आए के तुमने देखी हुइए हमने इते एक बिरंच डाल रखी हती बैठबे के लाने। ऐसे तो हमने ऊको जंजीर से बांध रखो हतो, मगर तुम तो जानत आओ के जे होली के भड़या हरों को पकर सकत आए? इते डरो रैन देतो तो भैया हरें ओई की होली जरा डारते। सो बा बिरंच भीतरे के आंगन में पेल दई आए। बाकी औ कछू तो ने बचो, जे ई हम देख रए हते।’’ भैयाजी ने बताई।
‘‘सई कई भैयाजी! अब तो मनो इत्तो नईं रै गओ, ने तो पैले तो जे होत्तो कि बगिया के जरवा लों खचोड़ ले जात्ते। एक दार हम ओरन के संगे जेई भओ। जा ऊ टेम की बात आय जब मैं स्कूल में पढ़त्ती। उते पन्ना में हिरणबाग में रैत्ती। हमाए इते अच्छी बड़ी बगिया हती। ऊ टेम पे जरवा की फेंसिंग करी जात्ती। मोरी नन्ना जू ने लकड़िया वारे से जरवा मंगा के बगीचा में लगवाओ रओ। बाकी होली जलबे की एक रात पैले का भओ के कोनऊ हमाए इते को जरवा खचोड़ ले गओ। औ ई टेम घांई ऊ टेम पे बी आवारा गैयां फिरत्तीं। भुनसारे नन्ना जू ने उठ के देखो के बगीचा से जरवा नदारत हतो औ एक गाय पिड़ीं हती बगीचा में। हम ओरन खों जरवा जाबे को उत्तो दुख नईं भओ जित्तो बा गैया के पिड़बे को दुख भओ। काय से के ऊने अच्छे फूल वारे पौधा चगल डारे हते। मनो अब करो का जा सकत्तो। अनजान भड़या हरों खों गरिया के अपनो जी जुड़ा लओ।’’ मैंने भैयाजी खों आपबीती सुना दई।
‘‘अरे ने पूछो बिन्ना! ईसे ऊंची तो हमाए सगे दद्दा के संगे हो चुको।’’ भैयाजी बोले।
‘‘कैसी?’’ मैंने पूछी।
‘‘का भओ के हमाए दद्दा ने तै कर लओ हतो के होली के भड़यां हरों खों कछू चुराने ने दैहें। सो बे पलका डार के बाहरे के आंगन में सो गए। भड़या हरों ने सोई ठान लई हुइए के जो तुम शेर हो सो हम सवा शेर ठैरे। सकारें जबे दद्दा की नींद खुली तो उन्ने देखी के बे तो गद्दा-पल्ली समेत जमीन पे सो रए हते औ उनको पलकां गायब हतो। मने जब बे सो रए हते तो कोनऊ ने उनकी गहरी नींद की बेरा उन्हें गद्दा-पल्ली समेत पलका से उतार के जमीन पे सोवा दओ और पलकां ले गए। ससुरों ने कां ले जा के पलका बारो, कछू पतो नईं परो। कछू जने कैत रए के उन ओरन ने दद्दा खों कछू सुंधा दओ हुइए। जेई से उने पतो नईं परो। औ कछू जने कैत रए के जो कछू सुंघाओ होतो तो बे गद्दा-पल्ली काय छोड़ जाते? बे सोई संगे ले जाते। ऊके बाद तो हमाए दद्दा ने होली को टेम आतई सात सब कछू उठा के भीतरे धरबे को काम शुरू कर दओ रओ। काय से के होली के भड़या हरों को भला को पकर सकत?’’ भैयाजी ने अपने दद्दा की किसां सुना डारी।
रामधई पैले ऐसई होत रओ।
‘‘भैयाजी, मोय एक बात खयाल आ रई।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘का बात?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘जे बात के पैले होली के भड़या ऐसे-ऐसे कांड कर देत्ते के अब सुने में अचरज होत आए। ऐसई आजकाल जो अपने इते की राजनीति में चल रओ ऊपे आबे वारे समै में लोगन खों अचरज हुइए।’’ मैंने कई।
‘‘मने?’’
‘मने, जे के चाए बड़े होंय, चाए छुटकुल होंय सबई के सबई नेता हरें अपनी पार्टी खों गरिया के भाजपा की कैंया पे चढ़े जा रए। जोन के दादा-परदादा हरें कांग्रेस में रए औ कभऊं नांय से मांय नई भए, बे कांग्रेस खों सौतेली कै के भाजपा खों सगी बता रए। खाली टिकट के लाने कोनऊं अपनी पार्टी से ऐसी कट्टी करत रओ,, ईपे आबे वारे समै में लोगन खों विश्वास ने हुइए।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘बोई तो बात आए बिन्ना के होली के भड़या हरों खों को पकर सकत आए? जे जो तनक-मनक में नांय से मांय होत रैत आएं, जे सबरे होली के भड़या आएं। उने तो होली जलाबे के लाने सामान से मतलब आए। चाय इते से मिले के उते से मिले। बस, मिलो चाइए। जित्ती बड़ी होलिका, उत्ती बड़ी बड़वारी। सो जे सब तो हुइए। ऊंसई चुनाव को टेम आए। अब हम तुमें का बताएं बिन्ना!’’ भैयाजी बोलत-बोलत ठैर गए।
‘‘का बताने? बताओ ने आप!’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘का भओ के परों की बात आए। हमाए संग पढ़े रहे भैयाजी आजकाल राजनीति में मेवा मिलबे की आसा में लटके आएं। बे परों हमें मिले सो हमने उनसे साफ कई के भैया तुमाई कांग्रेस ने जो ई बार सई उम्मींदवारों खों टिकट ने दई तो समझ लइयो के कोनऊं नांव लेवा लों ने बचहे। सो बा कैन लगो। हमाई कांग्रेस काय? उते तो हमें कोनऊं पूछ बी नई रओ। हम तो होली के बाद भाजपा में जा रए। सो हमने ऊसे कई के तुम जा कैसे कै रए के तुमें उते कोनऊं पूछ नई रओ? तुम तो सबरे बड़े नेता हरों के खासमखास रए? तो जानत हांे, ऊने का कई?’’ भैया तनक सांस लेबे खों ठैरे।
‘‘का कई उन्ने?’’ मैंने पूछी।
‘‘बा कैन लगो के चाय कमलनाथ होंय, चाय दिग्विजय सिंह होंय, कोनऊं ठीक से मिलतई नइयां औ जो मिल जाएं तो सीधे मों बोलत नइयां। ऐसे में हम उते कैसे रै सकत आएं? तब हमने ऊसे कई के मगर तुम तो सैंकड़ा-खांड़ ऐसी फोटुवें सोशल मीडिया पे डार चुके हो जीमें तुम उन दोई के संगे सट के ठाड़े हो। कोऊ-कोऊ में तो उन ओरन ने तुमाए कंधा पे हाथ धरे आएं औ तुमसे बतियाते दिखात आएं। औ तुम कै रए के बे ओरे तुमें पूछ नईं रै? सो का, बे फोटुएं फोटोशाप वारी आएं? मैंने सोई पूछ लई। सो बा बमकत भओ बोलो के नईं बा सब सई की फोटुएं आएं, कोनऊं फोटोशाप वारी नोंई। सुनो, अब हम तुमें बता दें के जो पार्टी बदलने होय सो ऐसो कैने परत आए। ने तो जनता ने पूछहे के जब उते तुमाई पूछ-परख हती तो तुम काय उते से खसक रए? सो कछू तो कैनेई परत आए। अब तुमई बताओ के उते हमाओं का भविष्य रै गओ? बा मानुस हमई से पूछन लगो। सो, हमने कई भैया, जो तुमें साजो लगे से करो, हमें का?’’ भैयाजी ने अपने संगवारे को हाल-चाल बता डारो।
‘‘जेई तो सबई तरफी चल रओ भैयाजी! वैसे ई टेम सबसे सई टेम आए।’’ मैंने कई।
‘‘काय के लाने?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘पार्टी बदलबे के लाने। जो काऊं खों कोनऊं से डील करने होय सो मों पे रंग डार के मिलबे जा सकत आए। कोनऊं पैचान ने पाहे। औ जो खुदई कऊं छुपने होय सो मों पे रंग मल के तिगड्डा पे बैठे रओ, कोऊं ने पैचान पाहे।’’ मैंने हंस के कई।
‘‘सई कई बिन्ना!’’ भैयाजी सोई हंसन लगे। फेर बोले, ‘‘हमें होरी को एक गाना याद आ रओ, चलो तुमें सुनात आएं।’’ कैत भए भैयाजी ने गाबो शुरू कर दओ-
मोय मिले ऐसे करिया सैंया
कोनऊं रंग डारो दिखत नईयां
साली ने डारो, सरहज ने डारो
डारो नंदेऊं, ससुरा ने डारो
उनपे तो कछू जंचत नइयां
कोनऊं रंग डारो दिखत नईयां
कोनऊं रंग डारो ........
भैयाजी को गानो सुन के भौजी सोई बाहरे कढ़ आईं। फेर हम तीनोई मिलके फगुआ गान लगे। न जाने कां से भौजी को जो होरी को जो गाना याद आ गओ औ बे गान लगीं-
जरवा ले जाओ चाय, खटिया ले जाओ
होलिका परमेसरी खों बारई के आओ
सुनो मोरे होली के भड़या हरो.....
भौजी को जो गाना सुनतई साथ हम दोई भैया-बैन की हंसी फूट परी। काय से के ईसे पैसे हम ओंरे होली के भड़यां हरों की तो बात कर रए हते। भौजी को कछू समझ ने परी के हम दोई काय हंसे? बे अपनो गीत गात चली गईं औ बाकी, बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की।
खेलियो होरी, मनो सूखी वारी।
पानी की ने करियो बरबादी।।
हैप्पी होली।।
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