Thursday, March 28, 2024

बतकाव बिन्ना की | सबसे नोनों अपनों बुंदेलखंड | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम

बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
सबसे नोनों अपनों बुंदेलखंड    
   - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
       भैयाजी के इते मैं पौंची तो मैंने देखी कि उते सयाने सरजी बैठे हते। मोय देखतई साथ उन्ने मोसे पूछी-‘‘कां थीं बिन्ना? कुल्ल दिनां से दिखानी नईं।’’
‘‘इतई हती। तनक तबीयत खराब रई सो बाहरे कम निकरी।’’ मैंने सयाने सरजी खों बताओ।
‘‘का हो गओ रओ?’’ उन्ने फेर पूछी।
‘‘अरे, जेई सर्दी-खांसी। आजकाल वायरल फैलो न!’’ मैंने कई।
‘‘हमने सुनी के तुम कहूं बाहरे हो आईं।’’ सयाने सारजी असल बात पे आ गए।
‘‘बाहरे तो नईं, मनो दिल्ली गई रई। उते साहित्य अकादमी को लिटरेचर फेस्टिवल रओ। उतई से लौटत बेरा में तो जा इंफ्ेशन लग गओ। उते रेल के डिब्बा में सबई जने छींक-खांस रए हते। मोय तो तभई समझ में आ गई रई के सागर पौंचत-पौंचत मोय सोई हो जाने। औ बोई भओ।’’ मैंने सयाने सरजी खों बताओ।
‘‘बाकी उते दिल्ली में का दसा आए? उते तो औरई प्रदूषण रैत आए।’’ सयाने सरजी ने पूछी।
‘‘हऔ, कै तो आप ठीक रए। उते तो बरहमेस प्रदूषण रैत आए। बाकी नई दिल्ली में तो चौराहा-मौराहा अच्छे कर दए गए आएं। उते फूलन के पौधा लगा दए गए आएं। तरे-ऊपरे मुतकी सड़कें बन गईं। बाकी हमने एक बात देखी के उते पैदल वारों के लाने तो कोनऊं ठिकानोंई नइयां। सबसे ज्यादा चार पहिया भगत-फिरत दिखात आएं औ दूसरे नंबर पे दो पहिया, मने मोटर सायकिल औ स्कूटरें। औ सबई कछू इत्ती-इत्ती दूरी पे आए के पैदल चलो बी नई जा सकत। मेट्रो औ सिटी बसें ने होंय तो बड़ी मुसकिल हो जाए।’’ मैंने सयाने सरजी से कई।
‘‘औ जब तुम उते गईं रईं तो बे मफलर वारे बाहरे हते के भीतरे बुक हो गए रए?’’ सयाने सरजी ने मुस्कात भए पूछी।
‘‘ऊ टेम पे तो बाहरे हते। मनो मैं उनसे मिलबे के लाने थोड़े गई रई, जो मोय उनको पूरो डिटेल पतो होय।’’ मैंने सयाने सरजी से कई। वैसे सरजी सयाने जेई से तो कहाउत आएं के बे बातकाव करत-करत कऊं से कऊं पौंच जात आएं। आएं तो बे सरकारी मास्टर, बाकी उनके घरवारी के नांव पे चार कोचिंग सेंटर चलत आएं। जेई से तो उनको नांव सयाने सरजी पड़ गओ।
‘‘उते दिल्ली में तुमें का अच्छो लगो?’’ सयाने सरजी ने पूछी।
‘‘कछू नईं। मोय दिल्ली में कभऊं कछू अच्छो नई लगत।’’ मैंने दो-टूक कै दई।
‘‘हैं? ऐसो का? काय अच्छो नईं लगत? इते तो सबरे दिल्ली जाबे खों मरत रैत आएं। औ अब तो जे दसा आए के जोन के मोड़ा-मोड़ी गुरुग्राम में या नोयडा में पौंच गए हैं, बे उते के गुनगान करत नईं थकत आएं। औ तुम कै रईं के तुमें उते कछू अच्छो नईं लगत।’’ सयाने सरजी ने पूछी। उने मोरी बात सुन के भौतई अचरज हो रओ तो।
‘‘सुनो सरजी! दो-चार दिनां खों घूमबे के लाने तो दिल्ली अच्छी आए बाकी रहबे की जो बात होय तो मैं तो जेई कहबी के अपनो बुंदेलखंड से नोनो कहूं नईयां। उते बच्चा हरों खों लाखों को पैकेज मिलत आए, मनो खर्चा करोड़ों को होत आए। उते को स्टेटस मैंटेन करबे की दौड़ में सबरे भैराने से फिरत आएं। जबके अपने इते बड़ी चैन की जिनगी ठैरी। इते तो चार-छै हजार में भी रोटी-पानी चल जात आए।’’ मैंने कई।
‘‘पर इते कछू विकास कां हो रओ?’’ सयाने सरजी बोले।
‘‘कोन सो विकास चाउने आपके लाने? सड़कें जब चाए तब सुधरत रैत आएं। पानी की पाईपें डारबे के लाने सड़कें खोदत में कोनऊं कभऊं नई हिचकत। मनो काम रुकत नईयां, बरहमेस चलत रैत आए। औ कोन सो विकास चाउने?’’ मैंने हंस के सयाने सरजी से पूछी।
‘‘इते कोनऊं बड़ी इंडस्ट्री नोंईं। इते रेलें कम आएं। बस, एक ठईंयां हवाई अड्डा आए। इते आईटी सेक्टर नईयां।’’ सयाने सरजी अपने बुंदेलखंड की कमियां गिनाउन लगे। बे कै तो सई रै हते, मनो मोय उनकी बात ने पोसाई। कोऊ से बी तुलना कर ली जाए, मोय तो अपनो बुंदेलखंड नोनो लगत आए।
‘‘अच्छा आप जे बताओ के इते अच्छो हवा-पानी आए के नईं? मने औ जांगा के मुकाबले इते प्रदूषण कम आए के नईं?’’ मैंने सयाने सरजी से पूछी।
‘‘हऔ, इते प्रदूषण तो कम आए, मनो...’’ सयाने सरजी ने कई औ बे कछू आगे बोलबे जा रए हते के मैंने उने टोंकी,‘‘मनो का? जो प्रदूषण ने होय तो सेहत अच्छी रैत आए। औ जो सेहत अच्छी होय तो सबू कछू करो जा सकत आए।’’
‘‘तुमाई बात तो सही आए पर जे बी तो सोचो के खाली सेहत से पेट नईं भरत। जीबे के लाने पइसा चाउने परत आए।’’ सयाने सरजी बोले।
‘‘हऔ तो हमने कबे कई के पइसा नईं चाउने। मनो आप जे बी तो देखों के जो किराए के दो कमरा इते चार हजार में मिलत आएं, उते चालीस हजार में मिलत हैं। सो कमाई कां बची?’’ मैंने सयाने सरजी से कई।
‘‘मनो उते की लाईफ अलग आए।’’ अब सयाने सरजी ने दूसरो पैंतरा चलो।
‘‘कोन-सी लाईफ? जो इते सब जने साथ रैते तो अम्मा औ भौजी के हाथ को बनो ताजो भोजन जींमते। मनो उते तो पिज्जा, बर्गर औ चाउमिन खा के जिनगी कट रई। तनक याद करो के आपई ने बताई रई के आपको मोड़ा उते गुरुग्राम में कोनऊं मल्टीनेशनल कंपनी में आए। औ संगे बहू बी उतई काम कर रई। जे आपई ने बताई रई के उनको आॅफिस को टेम अलग-अलग आए। सात दिनां में एक-दो दिनां संगे भोजन कर पाउत आएं। ने तो एक को घरे आउत को टेम होत आए तो दूसरे को काम पे जाबे को टेम होन लगत आए। जब कभऊं संगे रैत आएं तो खाबे के लाने होटलें जाउत आएं औ संगे बियर-मियर पियत आएं। जेई लाईफ की बात कर रए आप? उनकी जे लाईफ में आप के लाने जांगा कां आए?’’ मैंने तनक करई बात पूछ लई।
‘‘हमें उनके संगे रहने ई नोईं। हम तो इतई अच्छे।’’ सयाने सरजी बोल परे।
‘‘काय? आपको उनके संगे नईं रहने के बे आपको अपने संगे ने राखहें? औ जो आपको सोई इतई अच्छो लगत आए तो आप उते की बड़वारी काय कर रए?’’ मैंने तनक औ खरी-खरी कै दई।
‘‘अब हो गई, जान देओ। औ ने गिचड़ों।’’ सयाने सरजी हथियार डारत भए बोले। बे दुखी दिखाई देन लगे। उनकी जा दसा देख के मोय अच्छो नई लगो। मैंने सोई तनक ज्यादई करई बोल दई रई। सो मैंने बात सम्हारी।
‘‘बात गिचड़बे की नोंईं। जा तो बात में बात निकरत गई। मनों जोन को जो लाईफ अच्छी लगत होय, ऊको बोई में रओ चाइए। मैं तो अपनी कै रई हती के मोय तो अपने बुंदेलखंड में अच्छो लगत आए। इते ने तो भागम-भाग, ने तो हाय-तौबा। चैन से कटत चल रई इते जिनगी। इते सबई सबखों चींनत आएं। घरे के दोरे से निकरो तो -कां जा रई बिन्ना?- पूछ लओ करत आएं। जा ठीक आए के कभऊं-कभऊं ऐसो पूछो जानो अच्छो नईं लगत, मनो जो ने पूछो जाए तो ज्यादा बुरौ लगत आए। अपने बुंदेलखंड घांईं लप्सी औ लपटा कां मिल रए? इते घाईं राई औ नौरता कऊं नचत न दिखहें। जा ठीक आए के अपने इते तनक गरीबी आए। इते किसानी कछू अच्छी नईं रैत आए। पर इते के मानुस चंट नोईं, दिल के साफ आएं।’’ मैंने कई।
‘‘सांची कै रईं बिन्ना!’’ अब के भैयाजी बोल परे, जोन अबे लौं हम दोई की बतकाव सुन रै हते।
‘‘औ का भैयाजी! रई तरक्की की बात तो तरक्की सो हुइएई। तनक धीरे-धीरे सई, पर बा तो हो के रैहे। आपई सोचो के एक टेम बा रओ के जब अपन ओरें बिजली औ सड़कों के लाने तरसत्ते। तीन घंटे को रस्ता आठ घंटा में पूरो होत्तो। बिजली कटौती को ऐसो-ऐसो टेम फिक्स करो गओ रओ के आदमी पगला जाए। मनो अब देखो, अपन ओरन खों पूरे टेम बिजली मिल रई। अच्छी सड़कें बन गईं। औ नई-नई बनत जा रई। जे तरक्की नोंई तो औ का आए?’’ मैंने कई।
‘‘मनो बुंदेलखंड राज्य बन जातो तो औ साजो रैतो।’’ सयाने सरजी अपने सयानपना से बाज नई आए औ बोल परे।
‘‘सुनो सरजी! जे फालतू की राजनीति ने करो। जो अच्छो भलो चल रओ ऊको चलन देओ। बुंदेलखंड को जोन इलाको उत्तरप्रदेश में आए, ऊके लाने उते की सरकार करत रैत आए औ जोन इलाको अपने मध्यप्रदेश में आए ऊके लाने अपने इते की सरकार काम करत रैत आए। जे काय नई सोच रै के अपने बुंदेलखंड के लाने दो-दो सरकारें लगी आएं। जो अलग राज्य बन जैहे सो एकई सरकार मिलहे।’’ मैंने सयाने सरजी खों हंस के समझाई।
‘‘बात तो ठीक कै रईं। मान गए तुमाई बात के अपनो बुंदेलखंड सबसे नोनों।’’ सयाने सरजी ने सोई मोरी बात पे ठप्पा लगा दओ।
बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की।
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