चर्चा प्लस
‘‘इंस्पायर इंक्लूजन’’ अर्थात महिलाओं में निवेश करें, विकास में तेजी लाएं
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2024 की थीम है ‘‘महिलाओं में निवेश करें, विकास में तेजी लाएं’’। इसके लिए मूल विषय तय किया गया है ‘‘ इंस्पायर इंक्लूजन’’ अर्थात् समावेशन को प्रेरित करना। यह एक अत्यंत विस्तृत उद्देश्य है जिसे समझना जरूरी है। दरअसल महिलाओं विकास का अर्थ है दुनिया की आधी आबादी का विकास। वह आबादी जो विकास में पिछड़े देशों में आज भी घुट-घुट कर जी रही है और स्वास्थ्य जैसे अपने बुनियादी अधिकारों से भी परिचित नहीं है। उस आधी दुनिया को उनके बुनियादी अधिकारों से जोड़ने के लिए निवेश करना इस बार का मूल मुद्दा है।
‘‘नो बियास, नो बैरियर’’! किसी प्रकार की सीमा नहीं, किसी प्रकार का बंधन नहीं। संयुक्त राज्य अमेरिका की पूर्व प्रथम महिला मिशेल ओबामा का कहना है कि -‘‘महिला होने के नाते हम जो हासिल कर सकते हैं उसकी कोई सीमा नहीं है।’’
स्त्री को यदि कुछ जानने की आवश्यकता है तो मात्र अपनी क्षमता और अपने अधिकारों को। इसीलिए नोबल पुरस्कार विजेता मलाला युसुफजई कहती हैं कि ‘‘मुझे लगता है कि यह महसूस करना महत्वपूर्ण है कि आप अकेले नहीं हैं, आप दुनिया भर में अपनी लाखों बहनों के साथ खड़ी हैं।’’
दुनिया की सभी स्त्रियों का परस्पर एक-दूसरे के लिए समर्थन दुनिया का स्वरूप बदल सकता है। एक स्त्री दूसरी स्त्री की स्थिति को बाखूबी समझ सकती है तथा सही हल ढूंढ सकती है। एक स्त्री दूसरी स्त्री को सही रास्ता दिखा सकती है, उसका सहारा बन कर उसे उठ खड़ा होने के लिए प्रेरित कर सकती है तथा अपनी प्रगति के उदाहरण से उसकी प्रेरणा बन सकती है जैसा कि मलाला युसुफजई ने कर के दिखाया। वहीं अपनी क्षमता को पहचानने के संदर्भ में सुप्रसिद्ध फैशन डिजाइनर तथा बिजनेस वुमेन कोको शनेल कहती हैं कि -‘‘एक लड़की को दो चीजों का पता होना चाहिए- वह कौन है और वह क्या चाहती है?’’
खुद को पहचान कर अपने व्यक्तित्व के निर्माण करने के विषय में अभिनेत्री और गायिका जूडी गारलैंड का यह कथन बहुत महत्वपूर्ण है ेिक ‘‘हमेशा किसी और के दोयम दर्जे के संस्करण के बजाय स्वयं का पहले दर्जे का संस्करण बनें।’’
अभिनेत्री एवं फिल्म निर्माता वियोला डेविस भी इस बात का समर्थन करती हैं कि महिलाओं को अपने नजरिए से जीना चाहिए, दूसरों के नजरिए से नहीं। वे कहती हैं- ‘‘कसी और का जीवन मत जियो और नारीत्व क्या है, इसके बारे में किसी और का विचार मत जियो। नारीत्व तुम हो।’’
2024 की थीम, ‘‘महिलाओं में निवेश, प्रगति में तेजी लाएं’। लैंगिक समानता, महिलाओं और लड़कियों के सशक्तिकरण और स्वस्थ जीवन के उनके अधिकारों के महत्व पर प्रकाश डालती है। यह एक शक्तिशाली विकास उपकरण है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2024 अभियान का विषय ‘‘इंस्पायर इंक्लूजन’’ (समावेशन को प्रेरित करना) है। वास्तव में समावेशन को प्रेरित करने का क्या मतलब है? समावेशन को प्रेरित करने का अर्थ है अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2024 और उसके बाद विविधता और सशक्तिकरण को स्थायित्व प्रदान करना। वस्तुतः अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक उपलब्धियों का एक वैश्विक उत्सव है। प्रत्येक वर्ष, यह दिन लैंगिक समानता की दिशा में हुई प्रगति की एक शक्तिशाली अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है और उस कार्य पर प्रकाश डालता है तथा आकलन करता है कि अभी भी कितना काम किए जाने की आवश्यकता है।
टेक्नालाॅजी के क्षेत्र में महिलाओं की क्षमता के निवेश को ले कर टेक्नालाॅजी एग्जीक्यूटिव एवं लेखिका शेरिल सैंडबर्ग टेक्नालाॅजी जगत से साफ शब्दों में कहती हैं कि- ‘‘हमें गतिशीलता को बदलने, बातचीत को नया आकार देने, यह सुनिश्चित करने के लिए शीर्ष सहित सभी स्तरों पर महिलाओं की आवश्यकता है कि महिलाओं की आवाज सुनी जाए और उस पर ध्यान दिया जाए, न कि नजरअंदाज और अनदेखा किया जाए।’’
2024 में, अभियान की थीम ‘‘इंस्पायर इंक्लूजन’’ समाज के सभी पहलुओं में विविधता और सशक्तिकरण के महत्व पर जोर देती है। इस वर्ष के अभियान का विषय लैंगिक समानता हासिल करने में समावेशन की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है। यह बाधाओं को तोड़ने, रूढ़िवादिता को चुनौती देने और ऐसा वातावरण बनाने के लिए कार्रवाई का आह्वान करता है जहां सभी महिलाओं को महत्व और सम्मान मिले। इंस्पायर इंक्लूजन हर किसी को जीवन के सभी क्षेत्रों की महिलाओं के अद्वितीय दृष्टिकोण और योगदान को पहचानने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिसमें हाशिए पर रहने वाले समुदायों की महिलाएं भी शामिल हैं। इंस्पायर इंक्लूजन के प्रमुख स्तंभों में से एक नेतृत्व और निर्णय लेने की स्थिति में विविधता को बढ़ावा देना है। महिलाएं, विशेष रूप से कम प्रतिनिधित्व वाले समूहों से संबंधित महिलाओं को नेतृत्व की भूमिकाएँ तलाशते समय बाधाओं का सामना करना पड़ता है। समावेशन की वकालत करके, संगठन और समुदाय विविध दृष्टिकोणों की पूरी क्षमता का उपयोग कर सकते हैं, जिससे बेहतर निर्णय लेने और नवाचार को बढ़ावा मिल सकता है।
शिक्षा और जागरूकता महिलाओं के समावेशन को बढ़ावा देने और उन्हें सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। परामर्श कार्यक्रमों, शैक्षिक कार्यशालाओं और वकालत अभियानों जैसी पहलों के माध्यम से, व्यक्ति और संगठन महिलाओं के लिए आगे बढ़ने के अवसर पैदा कर सकते हैं। सहायता और संसाधन प्रदान करके, महिलाओं को बाधाओं को दूर करने और अपनी पूरी क्षमता हासिल करने के लिए सशक्त बनाया जा सकता है।
महिला, औरत, वूमेन या कोई और सम्बोधन - किसी भी नाम से पुकारा जाए, महिला हर हाल में महिला ही रहती है....और मेरे विचार से उसे महिला रहना भी चाहिए। प्रकृति ने महिला और पुरुष को अलग-अलग बनाया है। यदि प्रकृति चाहती तो एक ही तरह के प्राणी को रचती और उसे उभयलिंगी बना देती। किन्तु प्रकृति ने ऐसा नहीं किया। संभवतः प्रकृति भी यही चाहती थी कि एक ही प्रजाति के दो प्राणी जन्म लें। दोनों में समानता भी हो और भिन्नता भी। दोनों परस्पर एक दूसरे के पूरक बनें, प्रजनन करें और अपनी प्रजाति को पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ाएं।
दुर्भाग्यवश, पुरुष और महिला ने मिल कर जिस समाज को गढ़ा था, पुरुष उसका मालिक बनता चला गया और महिला दासी। इतिहास साक्षी है कि पुरुषों ने युद्ध लड़े और खामियाजा भुगता महिलाओं ने। जब महिलाओं को इस बात का अहसास हुआ तो उन्होंने अपने दमन का विरोध करना आरम्भ कर दिया। पूरी दुनिया की औरतें संघर्षरत हैं किन्तु समानता अभी भी स्थापित नहीं हो सकी है। प्रयास निरन्तर किए जा रहे हैं। सरकारी और गैर सरकारी संगठन प्रयास कर रहे हैं लेकिन महिलाओं की अशिक्षा, अज्ञान और असुरक्षा जागरूकता के पहिए को इस प्रकार थाम कर बैठ जाती है कि सारे प्रयास धरे के धरे रह जाते हैं। दरअसल जागरूकता औरत के भीतर उपजनी आवश्यक है। स्वतः प्रेरणा से बढ़ कर और कोई शक्ति नहीं है जो शतप्रतिशत परिणाम दे सके। जिन महिलाओं ने अपने भीतर की पुकार को सुना और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया उन्हें अधिकार मिले भी हैं, साथ ही वे दूसरी महिलाओं को भी अधिकार दिलाने में सफल रही हैं।
प्रगति के हिसाब से समूची दुनिया की महिलाओं की दो तस्वीरें हैं। पहली तस्वीर उन महिलाओं की है जो अपने साहस, अपनी क्षमता और अपनी योग्यता को साबित कर के पुरुषों की बराबरी करती हुई प्रथम पंक्ति में आ गई हैं या प्रथम पंक्ति के समीप हैं। दुनिया के उन देशों में जहां महिलाओं के अधिकारों की बातें परिकथा-सी लगती हैं, औरतें तेजी से आगे आ रही हैं और अपनी क्षमताओं को साबित कर रही हैं। चाहे भारत हो या इस्लामिक देश, औरतें अपने अधिकार के लिए डटी हुई हैं। वे चुनाव लड़ रही हैं, कानून सीख रही हैं, आत्मरक्षा के गुर सीख रही हैं और आम महिलाओं के लिए ‘आइकन’ बन रही हैं। औरत की दूसरी तस्वीर वह है जिसमें औरतें प्रताड़ना के साए में हैं और अभी भी संघर्षरत हैं। वैश्विक स्तर पर कोई भी देश ऐसा नहीं है जहां लैंगिक भेद पूरी तरह समाप्त हो गया हो। स्कैंडिनेवियन देश जैसे आईलैंड, नार्वे, फिनलैण्ड और स्वीडेन ही ऐसे देश हैं जो लैंगिक खाई को तेजी से पाट रहे हैं। इसके विपरीत मध्य पूर्व, अफ्रीका और दक्षिण एशिया में ऐसी महिलाओं की संख्या बहुत अधिक है जिनमें जागरूकता की कमी है। उन्हें अनेक वैधानिक अधिकार प्रदान कर दिए गए हैं लेकिन वे उनका लाभ नहीं ले पाती हैं। क्योंकि वे अपने अधिकारों से बेख़बर हैं।
2030 के सतत विकास के एजेंडे में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण की अनिवार्यता को पहली बार समझा गया है और इसकी पुष्टि की गई है। इस एजेंडे में कहा गया है, -‘‘यदि आधी मानव जाति को उसके पूर्ण मानवाधिकारों और अवसरों से वंचित रखा जाता है तो सतत विकास संभव नहीं है।’’ इसे शिखर सम्मेलन स्तर पर दुनिया के 193 देशों द्वारा अपनाया गया है। यह लक्ष्य न केवल लैंगिक समानता को प्राप्त करने के बारे में है बल्कि समस्त महिलाओं और लड़कियों को सशक्त करने के बारे में है, इसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि ‘‘कोई भी पीछे न छूटे।’’ महिलाओं और लड़कियों के प्रति हर प्रकार के भेदभाव को क़ानून और व्यवहारिक रूप से समाप्त करना और महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को समाप्त करना सतत विकास के लक्ष्य हैं। इसी प्रकार महिलाओं द्वारा किये जाने वाले अवैतनिक देख-रेख के कार्यों का मूल्यांकन और नियोजन करना, आर्थिक, राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की बराबर की भागीदारी और नेतृत्व, उनके लैंगिक और प्रजननीय स्वास्थ्य और प्रजननीय अधिकारों की सार्वभौमिक सुनिश्चितता, संसाधनों तक सामान पहुंच, स्वामित्व और नियंत्रण और आर्थिक सशक्तिकरण भी सतत विकास के लक्ष्य हैं।
गैर बराबरी की ऐसी स्थितियां ना केवल महिलाओं की दुश्वारियां बढ़ा रही हैं बल्कि उनके मन को भी ठेस पहुंचाती हैं। काबिल होने के बावजूद जिंदगी के किसी भी मोर्चे पर महिला होने के नाते पीछे छूट जाना महिलाओं के साथ यह अन्याय ही है। दुखद है कि असमानता का यह व्यवहार सशक्त होने की राह पर भी उनका मनोबल भी तोड़ता है। यह गैर बराबरी की सोच का नतीजा है कि महिलाओं के लिए सम्मान और सुरक्षा के मोर्चे पर भी हालात तकलीफदेह बने हुए हैं। घर और बाहर वे हिंसा और अपमान झेलने को विवश हैं। लेखिका, वेलनेस एजुकेटर और पॉडकास्ट होस्ट एलेक्स एले इस गैर बराबरी और संघर्ष में ही आगे बढ़ने का रास्ता पाती हैं। वे अपने जीवन के अनुभवों के आधार पर कहती हैं कि ‘‘मैं अपने संघर्ष के लिए आभारी हूं, क्योंकि इसके बिना, मैं अपनी ताकत से खड़ी नहीं पाती।’’
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2024 मना कर और इंस्पायर इंक्लूजन की थीम पर विचार कर कें, हम एक ऐसी दुनिया बनाने की अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि कर सकते हैं जहां सभी महिलाएं सशक्त, अर्थवान और सहभागी हों। बाधाओं को तोड़ने और विविधता को बढ़ावा देने के लिए स्त्री-पुरुष मिलकर काम करके, आने वाली पीढ़ियों के लिए अधिक न्यायसंगत और समावेशी समाज का निर्माण कर सकते हैं। अमेरिकी प्रोफेशनल सॉकर खिलाड़ी मेगन रापिनो बहुत सटीक बात कहती हैं कि ‘‘प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वह इस समाज में भागीदार बने और इसे हर किसी के लिए एक बेहतर स्थान बनाये, चाहे वह किसी भी क्षमता में हो।’’
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सार्थक लेखन
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