14 मार्च 2024 को एक ख़ूबसूरत पल आया जब मैं टहलती हुई उस ओर जा पहुंची जहां साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित पुस्तकों की प्रदर्शनी लगी थी... मैंने देखा कि दो पाठक मेरी पुस्तक "बुंदेली लोककथाएं" अपने हाथों में लिए हैं... मैंने उनमें से एक से पूछा "आप बुंदेलखंड के हैं?" तो उस व्यक्ति ने जवाब दिया "नहीं, हम ओड़ीसा के हैं।"
उसका उत्तर सुनकर मुझे आश्चर्य हुआ। फिर उस व्यक्ति ने बताया कि वह हिंदी जानता है तथा विभिन्न क्षेत्रों के लोक जीवन के बारे में जानना चाहता है। जब उसे यह पता चला कि यह किताब मेरी है तो उसने तुरंत हस्ताक्षर के लिए किताब मेरे आगे बढ़ा दी। एक अहिंदी भाषी का हिंदी क्षेत्र की लोकसंस्कृति के प्रति यह प्रेम देखकर मेरा मन भावुक हो उठा ... सचमुच लोक संस्कृति में व्यक्तियों को परस्पर जोड़ने की क्षमता होती है....🚩
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