चर्चा प्लस
‘‘गुलबकावली’’ की कहानी सिखाती है जलसंरक्षण बशर्ते हम सीख सकें
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह
पूरे ब्रह्मांड में पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ग्रह है जहां आज तक पानी और जीवन मौजूद है। इसलिए, हमें अपने जीवन में पानी के महत्व को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और सभी संभव तरीकों का उपयोग करके पानी बचाने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। जब हमें प्यास लगती है तो हम पानी पीते हैं। हम जानते हैं कि पृथ्वी मुख्य रूप से पानी से ढकी हुई है, लेकिन फिर भी, मानव उपयोग के लिए पर्याप्त पानी नहीं है। इसका कारण यह है कि यह पानी पीने लायक नहीं है. पृथ्वी पर केवल 3 प्रतिशत पानी ही मानव मांग को पूरा करने के लिए उपलब्ध है। इसलिए जल संरक्षण नितांत आवश्यक है। पुरानी कहानियों ने जल संरक्षण के बारे में जागरूकता पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस संदर्भ में “गुलबकावली” की कहानी भी अपने आप में अनोखी और संदेश देने वाली है।
मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष और अधिक गर्मी पड़ेगी। उनकी भविष्यवाणी का असर दिखने भी लगा है। अधिक गर्मी पड़ने का अर्थ होता है पानी की कमी। अधिक गर्मी पड़ती है तो जलस्तर गिरने लगता है। रेगिस्तान में रहने वालों से पूछने पर पता चलता है पानी का मोल। यह बात अलग है कि हम पानी की उपलब्धता होते हुए भी बोतलबंद पानी का मोल चुकाने में अपनी शान समझते हैं। न जाने कितने पुराने जलस्रोत हमारी लापरवाही से अब तक सूख चुके हैं। जो बचे हैं, वे भी संकट के दौर से गुज़र रहे हैं। हमने हाल ही में इस समाचार पर खूब चर्चा की कि दुबई में कृत्रिम बारिश कराने के प्रयास में बाढ़ आ गई और भारी नुकसान हुआ। क्या उन सारी चर्चाओं के दौरान यह सोचा कि दुबई को कृत्रिम बारिश कराने की ज़रूरत क्यों पड़ी? जहां पानी न हो या पानी की कमी हो, वहां इंसान पानी हासिल करने के सौ उपाय सोचता है। जिनके पास पानी के पर्याप्त स्रोत हैं, वे सौभाग्यशाली हैं। लेकिन वे अपनी लापरवाही से जलसंकट के दुर्भाग्य को न्योता देते रहते हैं। दुनिया का अरेबियन क्षेत्र जहां मीठे पानी का संकट हमेशा रहा, वहां पानी को सम्हाल कर उपयोग में लाने के कई किस्से प्रचलित हैं। उन्हीं में से एक है गुलबकावली का किस्सा। यह कहानी हमें भी बहुत कुछ सिखाती है।
कहानी कहने की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है। दुनिया भर में अनगिनत कहानियां बताई गई हैं। उनमें से कुछ बहुत प्रसिद्ध और शिक्षाप्रद रहे हैं। जैसे विष्णु शर्मा ने ‘‘पंचतंत्र’’ की कहानियों के माध्यम से राजकुमारों को आवश्यक शिक्षा दी थी। विश्व प्रसिद्ध ‘‘अरेबियन नाइट्स स्टोरीज’’ हमारा मनोरंजन करते हुए हमें सिखाती है कि विपरीत परिस्थितियों से कैसे निपटें और प्रकृति से कैसे प्यार करें। ये कहानियां उस क्षेत्र की हैं जहां हमेशा पानी की कमी रही है। इसलिए ऐसी कई कहानियां हैं जिनमें जल संरक्षण और पानी बचाने का संदेश मौजूद है। ऐसी ही एक कहानी है ‘‘गुल बकावली’’।
गुलबकावली एक पुरानी कहानी है जिसे अलग-अलग देशों में अलग-अलग संस्करणों में बताया गया है, लेकिन हर संस्करण में एक बात समान है, वह है कम पानी से अपनी जरूरतों को पूरा करना। मुझे आज तक गुलबकावली की कहानी याद है जो मेरे दादा, स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर श्याम चरण सिंह ने मुझे सुनाई थी। जब मैं बड़ी हुआ और गुलबकावली की कहानी के बारे में गूगल पर खोज की, तो मुझे पता चला कि मुंशी निहाल चंद लाहौर ने इसे उर्दू में लिखा था और इसे 1927 में दारुल इशात पंजाब, प्रकाशन लाहौर द्वारा प्रकाशित किया गया था। हालाँकि ये कहानी अरेबियन नाइट्स की कहानी है। इस कहानी पर 1962 में टी. रामाराव के निर्देशन में एन.एन. त्रिविक्रम राव ने तेलुगु में एक फिल्म बनाई थी। जिसे काफी पसंद किया गया था।
मैंने जो कहानी सुनी थी उसका कथानक यह था कि एक बादशाह की आँखों की रोशनी चली गयी। शाही हकीमों को बुलाया गया। हकीमों ने बहुत कोशिश की लेकिन वे बादशाह की ओखों में रोशनी लाने में सफल नहीं हुए। बादशाह निराश हो गया। मगर तभी एक बुजुर्ग हकीम ने एक इलाज बताया कि यदि गुलबकावली का फूल लाया जाए और उसका अर्क आंखों में डाला जाए तो आंखों की रोशनी वापस आ सकती है। तब बादशाह पुनः देख सकेंगें। हकीम ने यह भी बताया कि वह फूल सात समुद्र और सात पर्वतों से परे एक सुदूर स्थान पर पाया जाता है। बादशाह ने घोषणा की कि जो कोई गुलबकावली का फूल लाएगा उसे बड़ा इनाम दिया जाएगा। जान जाने के डर से लोग सामने नहीं आते, तभी यासीन नाम का एक गरीब युवक बादशाह के पास पहुंचा। उसने बादशाह को आश्वासन दिया कि वह किसी भी कीमत पर गुलबकावली के फूल लेकर आएगा।
यासीन गुलबकावली लेने निकला। रास्ते के समय उसे काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वह बिना डरे आगे बढ़ता रहता है। सात समुद्र और सात पर्वत पार करने के बाद उसे पता चलता है कि एक राजकुमारी के बगीचे में गुलबकावली के फूल हैं। लेकिन उस राजकुमारी के महल तक पहुंचना कठिन था। राजकुमारी के महल के चारों ओर कीचड़ से भरी एक खाई थी। उस पर शर्त यह थी कि जो कोई भी राजकुमारी के महल तक पहुंचना चाहेगा उसे कीचड़ से होकर गुजरना होगा। लेकिन जब वह राजकुमारी के पास पहुंचे तो उसके पैरों पर कीचड़ नहीं होना चाहिए। कीचड़ साफ करने के लिए पानी का एक बहुत छोटा कटोरा ही रखा गया था। राजकुमारी की सुंदरता की चर्चा सुनकर कई युवक वहां पहुंचे लेकिन पानी के एक बहुत छोटे कटोरे से अपने पैरों के कीचड़ को साफ नहीं कर सके और उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया।
जब यासीन उस कीचड़ भरी खाई के पास पहुंचा तो उसे पता चला कि उसे पार करने के बाद उसे पैर धोने के लिए पानी का एक बहुत छोटा कटोरा ही मिलेगा। यासीन एक बुद्धिमान युवक था। उसने पास की झाड़ी से दो-तीन पतली-पतली लकड़ियाँ तोड़ लीं, उन्हें छीलकर जीभी (टंग क्लीनर) की तरह बना लिया और अपनी जेब में रख लिया। फिर यासीन ने कीचड़ से भरी खाई को पार किया। उसके पैर घुटनों से लेकर पंजों तक कीचड़ से सने हुए थे। यासीन ने अपनी जेब से लकड़ी की जीभी (टंग क्लीनर) निकाली और अपने पैरों से कीचड़ साफ किया। फिर दूसरी जीभी से बची हुई मिट्टी भी साफ कर दी। जब उसके पैरों से कीचड़ साफ हो गया तो उसने अपने पैरों को अपने रुमाल से अच्छी तरह से पोंछा और फिर दिए गए कटोरी भर पानी को अपने पैरों पर तेल की तरह लगाकर दोबारा रुमाल से पोंछ लिया। अब उसके पैर इतने साफ थे मानो उन पर कभी कीचड़ लगा ही न हो।
जब दासियों ने देखा कि यासीन के पैर बिल्कुल साफ हैं तो वे उसे अपनी शहजादी के पास ले गईं। शहजादी यासीन की चतुराई से बहुत प्रभावित हुई। जब उसने यासीन से उसके आने का कारण पूछा तो यासीन ने उसे बताया कि वह राजकुमारी की सुंदरता देखने नहीं बल्कि उसके बगीचे से गुलबकावली फूल लेने आया है। वह चाहता है कि उसके बादशाह का अंधापन दूर हो जाये। यह जानकर राजकुमारी और भी खुश हो गई। उसे लगा कि यासीन न केवल चतुर है, बल्कि दयालु भी है, अन्यथा दूसरों के लिए अपनी जान जोखिम में कौन डालता? फिर भी शहजादी ने यासीन की कुछ और परीक्षाएँ लीं, जिनमें यासीन सफल रहा। शहजादी ने यासीन को गुलबकावली के फूल दिये। यासीन ने शहजादी से विदा लेते समय पूछा, ‘‘तुमने पैर धोने के लिए पानी का एक बहुत छोटा कटोरा ही क्यों रखा?’’
इस पर राजकुमारी ने कहा, ‘‘मैंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि जो व्यक्ति पानी के महत्व को समझता है और कम पानी में अपनी जरूरतें पूरी कर सकता है, वही मुझसे मिलने के योग्य साबित होगा।’’
यानी गुलबकावली की इस कहानी में जहां जड़ी-बूटी के रूप में गुलबकावली फूल की औषधि का वर्णन है, वहीं पानी की मितव्ययता की सीख भी है। आज दुनिया भर में बढ़ते जल संकट को देखते हुए हमें गुलबकावली की राजकुमारी की सीख याद रखने की जरूरत है।
पानी इतना कीमती है कि पृथ्वी पर उपलब्ध कुल पानी का केवल एक प्रतिशत ही पीने योग्य है। एक औसत इंसान को प्रतिदिन लगभग 250- 400 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त, हमारा शरीर 70 प्रतिशत पानी से बना है, इसलिए प्रतिदिन 2-3 लीटर ताजे पानी की आवश्यकता होती है। एक सदी पहले, मानव मांगों को पूरा करने के लिए पर्याप्त पानी था। भविष्य में जल की कमी की समस्या के समाधान के लिए जल संरक्षण ही जल की बचत है। भारत और दुनिया के अन्य देशों में पानी की भारी कमी है जिसके कारण आम लोगों को पीने और खाना पकाने के साथ-साथ दैनिक कार्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक पानी पाने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। दूसरी ओर, पर्याप्त पानी वाले इलाकों में लोग अपनी दैनिक जरूरतों से ज्यादा पानी बर्बाद कर रहे हैं। हम सभी को पानी के महत्व और भविष्य में पानी की कमी से होने वाली समस्याओं को समझना चाहिए। हमें अपने जीवन में उपयोगी जल को बर्बाद एवं प्रदूषित नहीं करना चाहिए तथा लोगों के बीच जल संरक्षण एवं बचत को बढ़ावा देना चाहिए। गुलबकावली जैसी कहानियाँ जल संरक्षण का महत्वपूर्ण संदेश देती हैं।
--------------------------
#DrMissSharadSingh #चर्चाप्लस #सागरदिनकर #charchaplus #sagardinkar #डॉसुश्रीशरदसिंह
#गुलबकावली #जलसंरक्षण
बहुत सुंदर कहानी
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनिता जी 🌹
Delete