पत्रिका | टॉपिक एक्सपर्ट | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली में
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टाॅपिक एक्सपर्ट
इते माहौल बिगाड़बे की परंपरा नोईं
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
ज़र्रा सी बात को बतंगड़ बनाबे वारन को तनक सोचो चाइए के अपने सागर में माहौल बिगाड़बे की परंपरा नोईं। इते बरहमेस सब मिलजुल के रैत आएं हैं औ आगे बी मिलके रैहें। देखो जाए तो बात कछू ने हती। तनक सहूरी से काम लेते तो इत्ती बात ने बढ़ती। बो कई जात आए ने जो रबर के तनक से छल्ला खों खैंचों सो बा खिंच के लंबो हो जात आए। पर ऊ टेम पे खेंचबे वारो जे भूल जात आए के जबरिया खैंचों गओ रबर खैंचें से जब टूटत है सो खेंचबे वारे खों ई ‘तड़’ से घलत आए। सो ऐसी नासमझी ने करी जाए सोई अच्छो।
बाकी अपने सागर में जात-धरम नईं देखो जात आए। चाए कोनऊं धरम के होंय, सबई जने पीलीकोठी की दरगाह पे चादरें चढ़ात आएं, संगे मनौती सोई मांगत आएं। रोज़ा इफ्तार पे सबई धरम के लोग संगे बैठ के खात-पियत आएं। होली पे सबई मिलके ऱग खेलत आएं। ईद पे सिंवैया औ होली पे गुझिया सबई खों पोसात आए। औ जबे, शहीदी दिवस पे सिख समुदाय वारे राह चलत खों रोक-रोक के शरबत पियाउत आए़ं तो सबईं खों कित्तो अच्छो लगत आए। सबई उनके लाने दुआएं देत आएं। जबे जैन धरम वारे गरीबन खों कंबलें बांटत आएं, सो बे जात-धरम नईं पूछत। चाए पीलीकोठी को उर्स होय, चाए गरबा खेलो जाए, सबई खों इंतजार रैत आए। कैबे को मतलब जे के इते को माहौल बिगाड़बे की गलती कोनऊं ने करे, इते सब हिलमिल के रओ चात आएं। जो कनऊं गलती करई बैठे, सो ऊको समझा दओ जाए। तिल को ताड़ ने बनाओ जाए। काय से के, ईसे अपने शहर की जगहंसाई सोई होत आए।
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