प्रस्तुत है आज 02.04.2024 को #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई मुनिश्री क्षमा सागर जी के काव्य संग्रह (चयन एवं सम्पादन : प्रताप राव कदम) "चिड़िया लौट आई है" की समीक्षा।
--------------------------------------
पुस्तक समीक्षा
इन वीतरागी कविताओं में है जीवन का सच
- समीक्षक डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
-------------------
काव्य संग्रह - चिड़िया लौट आई है
कवि - मुनिश्री क्षमासागर
चयन एवं सम्पादन - प्रताप राव कदम
प्रकाशक - राधाकृष्ण प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड 7/31, अंसारी मार्ग, दरियागंज, नई दिल्ली-110 002
मूल्य - 95/-
-------------------
कविताएं और वह भी एक मुनिश्री की! यह सोच कर ही हर पाठक पूर्वाग्रही हो उठता है। उसे लगता है कि इन रचनाओं में तत्व दर्शन, ज्ञान दर्शन, धर्म दर्शन तथा दर्शन के तमाम कठिन आयाम होंगे। ऐसे में पाठक थोड़ा सतर्क हो कर, भयभीत होकर, पढ़ना शुरू करता है। ऐसे साहित्य को पढ़ते समय मन के किसी कोने से बार-बार एक ध्वनि की आवृत्ति होती है कि हम एक मुनिश्री की रचनाएं पढ़ रहे हैं। एक ऐसे व्यक्ति की रचनाएं जो तमाम कषाय को बहुत पीछे छोड़ चुका है। जो वितरागी है। जो जीवन के प्रपंचों से बहुत दूर निकल गया। जो आत्म चिंतन में लीन रहता रहा। लेकिन जब हम मुनि क्षमासागर जी की कविताओं से हो कर गुजरते हैं तो यह अनुभव करके चकित रह जाते हैं कि उनके वीतरागी चिंतन में जीवन का सटीक परिचय है। मुनि क्षमासागर का चिंतन सकल मानवता को अभिव्यक्ति देता है। वे चिड़िया, नदी, आकाश, रोशनी, खिड़की आदि के बहाने मानवता की ही बात करते हैं। वे कहीं भी जिंदगी से पलायन की बात नहीं करते बल्कि जीवन को पूरे जोश और होश से जीने की बात उन्होंने अपनी कविताओं में की है। उनकी हर कविता में जिंदगी का एक सबक है, एक अनुभव है।
मुनि क्षमासागर जी की कविताओं का चयन एवं संपादन किया है प्रताप राव कदम ने, जो स्वयं एक प्रतिनिधि साहित्यकार हैं। प्रताप राव कदम ने संग्रह की भूमिका में मुनिश्री की कविताओं के संबंध में बहुत सटीक बात लिखी है कि-‘‘मुनि क्षमासागरजी की कविताओं से गुजरकर चीजें वह नहीं रहती जो पूर्व में थीं। उन्हें देखने का नजरिया अलहदा हो जाता है।’’
जब कोई रचना पाठक का दृष्टिकोण बदलने की क्षमता रखती हो तो उसका प्रभाव सर्वकालिक हो जाता है। मुनिश्री की कविताएं सर्वकालिक संवाद की कविताएं हैं। वे भीड़ में एकाकीपन की व्याख्या करते हैं। जीवन में भीड़ महत्वपूर्ण नहीं होती। भीड़ तो मात्र एक भ्रम पैदा करती है। व्यक्ति भीड़ से घिरा हो तो वह स्वयं को सक्षम और सर्वप्रिय मान लेने की भूल कर बैठता है। इस बात को आकाश की उपमा के माध्यम से मुनिश्री ने बहुत सटीकता से सामने रखा है, अपनी ‘‘आकाश’’ शीर्षक कविता में -
रात आती है
सारा आकाश
तारों से
भर जाता है
दिन होते ही
मानो सब
झर जाता है
इसमें सोचो
तो सोचते ही रहो
हाथ क्या आता है?
जो समझते हैं
वे समझते हैं
कि डूबते-उगते
सितारे हैं
आकाश
अकेला था
अकेला ही
रह जाता है।
जीवन का एक शाश्वत सत्य है मृत्यु। लोग मुत्यु को भूले रहना चाहते हैं। किन्तु मुनिश्री अपनी कविता के माध्यम से आग्रह करते हैं कि मृत्यु से भयभीत रहते हुए जीवन व्यतीत करने से अच्छा है कि उसका स्वाभाविक रूप से स्वागत करो। उसे याद रखो। तभी जीवन को अच्छे ढंग से जिया जा सकता है। ‘‘द्वार-दीप’’ में यही संदेश रेखांकित किया है मुनिश्री ने-
मौत को
प्रणाम करता हूं
कि मैं /जीने की
शुरुआत करता हूं
डूबते सूरज को
प्रणाम करता हूँ
कि मैं /द्वार पर
इक दीप धरता हूं
मृत्यु पर ही एक और बहुत सुंदर कविता है ‘‘जवाब’’, जिसमें मुनिश्री ने सरल, सहज शब्दों में मृत्यु के अकाट्य सत्य को निरूपित किया है-
हमारी हर सांस
मौत के नाम
रोज-रोज
खत लिखती है
लेकिन मौत
एक रोज आकर
खुद जवाब देती है।
मुनि क्षमासागर जी का प्रकृति को देखने का दृष्टिकोण मानव जीवन के सापेक्ष रहा। वे प्रकृति के तत्वों को मनुष्य की भांति संघर्षरत देखते रहे। “रोशनी के लिए” कविता में कवि ने सूरज को एक निरंतर, चिरंतन, सतत प्रयास का प्रतीक माना है -
सांझ के किनारे
खड़े हो कर
मैंने पहाड़ से उतरती
रात को देखा
और सोच में
डूब गया/कि अँधेरा
कितने जल्दी
उतर आया/सुबह
रोशनी के लिए
सूरज को /पूरा पहाड़
चढ़ना होगा।
आज हम भौतिकवाद से इतने अधिक घिर गए हैं कि चौबीस घंटे संग्रहण की चिंता में डूबे रहते हैं। हर व्यक्ति को यही लगता है कि उसे यह भी मिल जाए, वह भी मिल जाए। और जो मिलता है वह उसे हमेशा अपर्याप्त प्रतीत होता है। यह संग्रहण की प्रवृत्ति व्यक्ति को हमेशा बेचैन बनाए रखती है। उसका सुकून खो जाता है जब वह व्यक्ति किसी को देखता है और स्वयं की उससे तुलना करके सोचता है कि ‘उसकी कमीज मेरी कमीज से सफेद क्यों?’ यहीं से सारा टेंशन शुरू हो जाता है। जब टेंशन होगा तो मन में सुकून कहां से रहेगा? इसीलिए जैन धर्म सहित सभी धर्मों में उतना ही संग्रहण करने की बात कही गई है जितना पारिवारिक स्थिति में नितांत आवश्यक हो। इस बात को मुनि क्षमासागर जी ने अपनी कविता ‘‘सुकून’’ में तार्किकता से कहा है जिसमें वह चिड़िया के माध्यम से भौतिकतावाद और आत्मसंतोष तथा आत्मिक सुख की बात करते हैं-
चिड़िया के पास
जेब नहीं है
जिसमें वह रुपए
रख सके।
दुकान नहीं है
जिससे व्यापार कर
चार पैसे कमा सके
और आड़े समय में
अपनी गृहस्थी
सुख से बिता सके।
उसके पास है
निस्पृहता,
कुछ नहीं होते
हुए भी/सब कुछ,
जीवन का सुकून ।
‘‘चिड़िया लौट आई है’’ के नाम से प्रकाशित मुनिक्षमासागर जी की चयनित कविताएं कालजयी हैं। इन्हें बार-बार पढ़ा जाना ज़रूरी है। इन्हें जितनी बार पढ़ा जाए उतनी बार चिंतन के उतने विविध आयाम मस्तिष्क का द्वार खटखटाएंगे। वस्तुतः मुनि क्षमासागर की वीतरागी कविताओं में है जीवन का सच। मुनिश्री की कविताओं से होकर गुजरना जीवन के यथार्थ से परिचित होने के समान है। उनकी कविताएं जीवन जीने का सही रास्ता दिखाती हैं। चिड़िया, नदी, आकाश आदि प्राकृतिक बिंबो के द्वारा मुनिश्री ने काषाय को त्याग कर जीवन को सार्थक बनाने का मार्ग सुझाया है। मुनि क्षमासागर एक जैन मुनि होने के साथ ही बहुत बड़े दार्शनिक, चिंतक एवं श्रेष्ठ कवि थे। साहित्य, धर्म, दर्शन और समाज के लिए उनका अवदान हमेशा याद रखा जाएगा। तथा इस संग्रह में चयनित एवं संग्रहीत उनकी कविताएं मनुष्यत्व का पाठ पढ़ाती रहेंगी।
-------------------------
#पुस्तकसमीक्षा #डॉसुश्रीशरदसिंह #bookreview #bookreviewer #आचरण #DrMissSharadSingh
#चिड़ियालौटआईहै #मुनिक्षमासागर
No comments:
Post a Comment