पत्रिका | टॉपिक एक्सपर्ट | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली में
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टाॅपिक एक्सपर्ट
बूंदें परी नईं के खुल गईं पोलें
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
जे दो-चार दिनां अपने शहर में तनक सो पानी बरसो औ दिखा गई सड़कन की बुरई दसा। ऊंसईं चैत मास के बदरा गरजत ज्यादा आएं, बरसत कम आंए। जे बेरा बदरा घड़घड़ात हैं, सो ऐसो लगत आए के आसमान टूटो पड़ रओ होय। बड़ी-बड़ी बूंदें सोई तड़ातड़ घलत आएं। मनो, साउन-भादों घांई नईं रैत। मने कैबे को मतलब जे के अधकचरी-सी बारिश भई औ अधकचरी सड़कन की पोलें खुल गईं। लाखा बंजारा तला की तीन तरफी, मने कारीडोर खों छोड़ के चिकनी माटी को गिलावो मच गओ। बा माटी औ कऊं की नोईं, बेई तला की आए। कब से सबरे कै रये हते के बा माटी की धूरा से परेसानी होत है, ईकी सफाई करत जाओ। मनो, कछु ढंग से करबे में को जाने कोन के खेत कट जात आएं। उते देख लेओ, दो मईना से ऊपरे भए जा रये औ तीन मढ़िया की पूरी सड़क ने खोल पाए। तला कब लौं गहरो हुइए, ईको पतई नईयां। उते लाखा बंजारा की स्टेचू मों बंधी ठाड़ी।
खैर, जेई सोच समझ लेते के माटी डरी सड़कन पे, जो पानी बरसो तो का हुइए? उते दो चका वारे फिसल-फिसल के हाथ-गोड़े तुड़ा रये। यां तक के पैदल चलबे वारे सोई रपट रये। मने कोनऊं स्लीपर चप्पलें पैन्ह के अस्पतालें रोड पे निकरो तो रामधई जानियो के ऊको रपटबो तै कहानो। जा रओ हुइए मरीज खों देखबे, औ कऔ के खुदई की भरती होबे की नौबत आ जाए।
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