बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
कछु खड़े, कछु अड़े औ कछु पिड़े
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
मंदिरन में माता को दरबार सज गओ। भक्तन की भीर परन लगी। बाकी ई टेम पे कछू स्पेशल भक्त सोई अपनी स्पेशल मन्नतें मांगबे के लाने माता के दरबार पे जान लगत आएं। मोरे भैयाजी सो आम पब्लिक वारे भक्त ठैरे। बे पैलेई दिनां रानगिर वारी देवी मैया के दरसन कर आए। सो मैंने सोची के उनसे उते को कछू हालचाल पता कर लओ जाए। काए से के एकाध दिनां मोए सोई जाने। सो मैं भैयाजी के घरे पौंची। भैयाजी माथे पे टीका-मीका लगाए पलकां पे बिराजे हते। उतई किलिया पे मूंड़ पे बांधत की माता की चुनरी सोई टंगी हती। रानगिर से लाए हुइएं।
मैं कछू पूछती के इत्ते में भौजी भीतरे से कढ़ आईं औ मोरे हाथन में प्रसादी औ माता की चूनरी देत भई बोलीं,‘‘अबई हम इनसे कै रए हते के, जा तो आप बिन्ना के इते पौंचा आओ, ने तो बिन्ना खों बुला लेओ। औ देखो तुम आई गईं।’’
‘‘जो माता को बुलाबो होय तो इंसान खुदई उते पौंच जात आए। जे सब माता ने आपके हाथन से मोरे लाने भेजो, जेई से मैं खुदई आ गई देख लेओ।’’ मैंने चुनरी औ प्रसादी ले लई।
‘‘ठैरो! औ कछू सोई आए तुमाए लाने।’’ कैत भई भौजी भीतरे के कमरा में गईं औ तुरतईं लौट आईं। उनके हाथ में एक पन्नी की थैली हती।
‘‘ईमें का आए?’’ मैंने पूछई लओ।
‘‘खुदई देख लेओ।’’ कैत भईं भौजी मुस्काईं औ बोलीं,‘‘जे तुम अल्लम-गल्लम हार-मार पैनत आओ, सो उते हमें तुमाए जोग कछू दिखा गओ सो हमने तुमाए लाने ले लओ। अब तुमें पोसाए, चाए ने पोसाय।’’
मैंने तुरतईं थैलिया खोली। ऊमें बड़ी सुंदर सी माला हती दो-तीन कलर की गुरियन की। खाली माला भर नोईं, संगे कान के बूंदा बी हते।
‘‘जे तो भौतई सुंदर आएं।’’ मैंने भौजी से कई।
‘‘हऔ, हमें लग रओ हतो के तुमें पसंद आ जेहे।’’ भौजी खुस होत भई बोलीं।
‘‘देख लेओ अपनी भौजी की पार्सलिटी। खुद के लाने सो सोना औ चांदी के नीचे बात नईं करत आएं औ तुमाए लाने उते रानगिर के मेला से जे गुरियन की माला ले आईं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘अब जे सोनो-चांदी पैनत नईयां, सो का करो जाए? जो इने पसंद आए, बोई तो लेबी।’’ भौजी अपनी सफाई सी देत भई बोलीं। उने लगो के भैयाजी की कई मोय बुरई ने लग जाए।
‘‘अरंे नई भैयाजी, जे भौतई नोनी आए। भौजी मोरी पसंद जानत आएं। इन्ने जे खूबई अच्छो लाओ आए।’’ मैंने भैयाजी से कई। ऊसईं, बात सामान के कीमती होबे औ सस्ती होबे की नईं, बात रैत आए भावना की। भौजी जब उते रानगिर के मेला में घूमत रई हुइएं सो उने मोरो खयाल आओ औ उन्ने मोरी पसंद के बारे में सोचो। फेर छांट-छूंट के मोरो पसंद को हार औ बुंदा को सेट खरीदो। उन्ने मोरे बारे में इत्तो सोचो, जेई तो सबसे बड़ो गिफ्ट आए।
‘‘का सोचन लगीं?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘मैं जे सोच रई के उते तो बड़ी भीड़ रई हुइए, आप ओरन खों अच्छे से दरसन मिल गए?’’ मैंने पूछी।
‘‘हऔ मिल गए। बाकी लम्बी लेन हती।’’ उत्तर भौजी ने दओ। फेर बोलीं,‘‘घंटा खांड़ ठाड़े रैने परो। मोरे तो गोड़े दुखन लगे हते। पर काय कछू बी हो जातो, माता के दरसन तो करनेई रओ। जो अच्छो रओ के जैसई हम ओरें माता के दरसन कर के निकरे आएं के ऊंसई बे बखरी वारे दाऊ पौंच गए। बे खास चढ़ाबो ले के खास मन्नत मांगबे पौंचे हते। सो, बाकी लोगन खों तनक वेट करने परो।’’
‘‘अब बे काय की खास मन्नत मांगबे पौंचे? उने तो टिकट मिली नइयां।’’ भौजी की बात सुन के मोय अचरज भओ।
‘‘जोन खों मिली आए, उनके लाने मन्नते करबे पौंचे हते। उते से निकरबे के बाद हमाई उनसे बात भई न।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ एक जमाना में तो बे आपके सगेवारे रए।’’ मैंने मुस्का के कई।
‘‘काय के सगे? जे नेता हरे कोनऊं के सगे नई होत। पावर मिलो नई के तुम को, औ हम को?’’ भैयाजी बोले।
‘‘सो का बातकाव भईं उनसे?’’ मैंने पूछी।
‘‘ने पूछो! जे तुमाई भौजी ने पैलई उनकी कटी पे उंगरिया चुभो दई। जे उनसे बोल परीं के हम सो आपके लाने बधाई देबे वारे हते। औ संगे शिकायत सोई करने हती के टिकट मिल गई सो मों नईं दिखा रए।’’ भैयाजी हंसत भए बतान लगे। भौजी सोई हंसन लगीं।
‘‘सो ऐसी तो भाव देत रए पैले। अब हमाई बारी हती सो हमने बी छुबा दई लुघरिया।’’ भौजी हंसत भई बोलीं।
‘‘फेर? बे का बोले?’’ मैंने पूछी।
‘‘बे बोले के अरे कां भौजी, हमें कां टिकट मिली। कछु ससुरन ने हमाओ पत्ता काट दओ। बाकी चिन्ता नोईं। जोन खों मिली आए बे अपनई संगवारे ठैरे। उनई के लाने सो मन्नते करबे आए हैं। फेर अपने चेला हरों से कैन लगे के, चलो रे! हमाई दो चार फोटू-सोटू औ खेंच लेओ। कल के अखबार में जा खबर आ जाए के बखरीवारे दाऊ सांसद पद के उम्मींदवार की जीत के लाने रानगिर वारी माता जू के दरबार में मन्नतें मांगबे पौंचे रए। उनके चेला हरें औरई उस्ताद ठैरे। बे बोले के दाऊ चिन्ता ने करो हमाए चैनल में तो आपकी जा खबर चलनई लगी आए।’’ भैयाजी बात रए हते।
‘‘कौन सी चैनल में?’’ मैंने बीचई में भैयाजी से पूछ लई।
‘‘को जाने? आजकाल इत्ते तो यू-ट्यूब चैनल आएं। जोन खों देखो बई अपनो एक ठइया चैनल बना के धरी पटकन लगत आए। काय से के, उनको कोनऊं बड़ो चैनल वारो सो पूछहे नोंईं?’’ भैयाजी बोले।
‘‘सांची कई आपने। ऊंसई आजकाल सबके हाल बिगरे परे। कछू खड़े, कछू अड़े औ कछू पिड़े। औ जोन पिड़े आएं बे बाहरे आबे खों छटपटा रए।’’ मैंने कई।
‘‘हऔ! औ कऊं टीवी पे न्यूज चैनल खोल लेओ सो लगत आए के तीसरो विश्वयुद्ध शुरूई हो गओ आए। सबरे झगड़त दिखात आएं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘बाकी अब तो आचार संहिता लग चुकी आए।’’ मैंने कई।
‘‘सो का भओ? दोंदरा देबे वारन खों का, बे कोनऊं ने कोनऊं मुद्दा ढूंढई लेत आएं। बाकी जोन खों टिकट मिल गई बे तो मनो खड़े कहाए औ जोन पकरे गए बे पिड़े कहाए, बाकी जे अड़े कोन के लाने तुमने कई?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘बखरी वारे दाऊ टाईप के लोगन के लाने। जेई अड़े भए कहाए। काय से के जोन खों कभऊं कोऊं पूछत नइयां फेर बी उचकत भए फिरत रैत आएं। अरे इने तो राजनीति में अड़े रैने के बदले सन्यास ले लेने चाइए।’’ मैंने भैयाजी खों बताओ।
‘‘लेकिन बिन्ना, रौनक तो इनई ओरन से रैत आए। हीरो होय, हिरोईन होय, विलेन होय औ जो कामेडियन ने होय फिलम में, सो का मजो आहे?’’ भैयाजी हंस के बोले।
‘‘चलो अब दोई जने चाय पियो औ प्लानिंग करो के माता के दरसन के लाने बाघराज कबे चलने?’’ भौजी ने हम दोई खों चाय पकरा दई। बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की।
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