बतकाव बिन्ना की
ऊधमी छोटे भैया खों लपाड़े काय नईं लगा रए?
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘बिन्ना, चलो आज तुमें हम एक किसां सुनाएं।’’ भैयाजी ने मोसे कई।
‘‘कोन सी किसां?’’ मैंने पूछी।
‘‘तुम सुनो तो, फेर खुदई समझ जैहो।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, सुनाओ आप!’’ मैंने कई।
‘‘का भओ के एक गांव में दो पड़ोसी हते। बे पड़ोसी पैले सगे भैया रए। फेर दोई में जमीन जायदाद खों ले के झगड़ा होन लगो। बाप-मताई तो चात्ते के दोई भैया मिल के रएं मगर छोटे भैया खों उनकी सलायें पुसा नई रई हती। ऊको तो अलग होबे की सनक सवार हती। ऊनें तरां-तरां की उठा-पटक करी। अखीर में ऊके मन की हो गई। दोई भइयों में बंटवारा हो गओ। घर के दोरे अलग-अलग कर दए गए। आंगन के बीच दीवार खड़ी कर दई गई।’’ भैयाजी किसां सुना रए हते।
‘‘फेर का भओ?’’ मैंने पूछी।
‘‘ऊ घर में एक बगिया बी रई। छोटे भइया ने पटवारी खों पटा के ऊके बी दो हींसां करा लए। बाकी बा तो पूरी बगिया हड़पो चात्तो, मनो ऊको दिखानो के पूरी बगिया तो ऊको ने मिल पाहे, सो ऊने बगिया के दो हींसा करा लए। बगिया को एक हीसां पा के बी ऊको चैन कां? ऊकी तो नज़र गड़ी हती पूरी बगिया पे। मने ऊ हीसां पे बी जो ऊके बड़े भैया खों मिली हती।’’ भैयाजी बोले।
‘‘तो का ऊने कोर्ट-कचेरी करी?’’ मैंने पूछी।
‘‘हऔ, करबे की कोसिस तो करी, मनो हर की बेर ऊकी अपील खरिज कर दई गई। बा गांव भरे में हल्ला देत फिरो पर कोनऊं ने ऊकी बात पे कान ने दओ। सो बो तिलमिलात रओ। फेर ऊने ऊधम मचानो सुरू कर दओ। बा बड़े भैया के इते कभऊं गिलावो मेंक देतो, तो कभऊं पटाखा जला के मेक देतो। बड़े भैया की गलती जे के ऊने ऊको लोहरो मान के अनदेखा करो औ दो लपाड़ा नईं दए।’’ भैयाजी तनक ठैर के सांस लई।
‘‘फेर? फेर का भओ?’’ मैंने पूछी।
‘‘फेर जो भओ के बा अपने उचकबे से बाज ने आ रओ तो औ बड़ो भैया संत बनो फिर रओ तो। यां तक के छोटे भैया के लड़का-बच्चा बड़े भैया के इते खेलबे खों आ जाते तो बड़े भैया उनको कैंया में ले के टाॅफी, चाॅकलेट देत रैते। औ बईं, जो बड़े भैया के मोड़ा-मोड़ी छोटे भैया के इते चले जाते तो छोटो वारो उनें जुतिया-जुतिया के भगा देतो।’’ भैयाजी सुनात जा रए हते।
‘‘जे तो बड़ी गलत बात हती। कोऊ ऐसो करत आए का?’’ मैंने कई।
‘‘जेई तो! बा बरसों लौंे जेई करत रओ। नाती-नतना हो गए तो बी ऊको रवैया बोई को बोई रओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘औ फेर भी बड़े भैया ने कछू नईं करो? ऊको सबक ने सिखाओ?’’ मैंने पूछी। काए से के मोय सुन के ई गुस्सा सी आन लगी हती।
‘‘कछू नईं करो। सबक काय खों बड़ो तो अपनी तरफी ओको बुला के ऊके संगे किरकेट खेलत रओ। जबके पता हती के मौका मिलत साथ बा पीठ में छुरा घोंप दैहे। पर नईं, बड़े भैया खों संतगिरी को चस्का जो लगो रओ। ऊने छोटे के बच्चा हरों को अपने घरे अच्छे-अच्छे कमरा दे के राखो। उन ओरन की खींबई सेवा करी। छोटो वारो जा देख-देख के हंसत रओ। जेई-जेई में ऊकी हिम्मत औ बढ़न लगी। एक दइयां ऊने बड़े भैया के नाती-नतना के मूंड़ फोड़ दए। ऊ दिना बड़े भैया ने गरियाओ तो जम के मने करो कछू नईं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘जे कोन टाईप की किसां आए? जे कछू ज्यादा नई लग रई के छोटो गर्रया रओ औ बड़ो भैया चीं नई बोल रओ?’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘बिलकुल ज्यादा लग रई। जोन बी जे किसां सुनत आए ऊको जे ज्यादई लगत आए। सबई जे बोलत आएं के बड़ो भैया चिमाएं काए बैठो? खींच के दैबे दो लपाड़ा, सो छोटो सुधर जाए। मगर जेई तो ई किसां की ट्रेजडी आए के बड़े भैया कैत तो रैत आए पर लपाड़ा लगात नइयां।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सांची कएं भैयाजी? बुरौ ने मानयो। जे किसां मोए नई पुसाई। जे का के बड़ो कुटत जा रओ औ छोटो कूटत जा रओ। जे ऐसी किसां कोनऊं बच्चा खों ने सुनाइयो, ने तो ऊको मारल डाउन हो जैहे औ बा डिप्रेशन में आ जैहे।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘होन देओ जो होने होय, काय से के जे किसां सांची आए। अब जे तो बड़े भैया खों समझो चाइए के बा छोटे भैया की ऊटपटांग हरकतों खों कैसे रोके औ कैसे ऊको ऊकी औकात दिखाए। अब श्रीराम जू की किसां में देख लेओ। रामजी ने दशरथ जू के कहे पे अपनो अधिकार छोड़ दओ औ जंगल में मारे-मारे फिरे। पर जबे बालि औ सुग्रीव को मामलो आओ तो उन्ने दोई भैया में सई वारे को साथ दओ औ गलत वारे खों निपटा दओ। ने तो बे चायते तो सुग्रीव को सलाय देते के जैसे हम जंगल में फिर रए ऊंसई तुम सोई फिरो। फेर चाय कोनऊं रावन तुमाई लुाई खों धोखा से काए ने ले जाए। मनो उन्ने ऐसो नईं करो। रामजी खों लगो के बालि खों सजा मिलो चाइए तो उन्ने बालि खों सजा दे दई। मने सजा दई जानी सोई जरूरी आए।’’ भैयाजी ने मोसे कई।
‘‘मगर जे किसां में तो बड़ो कछू करतई नईं दिखा रओ!’’ मैंने कई।
‘‘जेई तो बात आए बिन्ना के ई किसां में बड़ो भैया छोटे पे चिचिया तो रओ आए, पर तरीके से कोनऊं ऐसी सजा नई दे रओ के छोटे खों सहूरी बंध जाए औ बा मारा-कूटी करबे की बजाए गम्म खा के बैठे औ बड़े की तरफी आंख उठा के बी ने देखे।’’ भैयाजी ने कई।
‘‘जा तो तभई हो सकत आए जबे बड़ो भैया अपनी पे आ जाए औ बता दे के बड़ो को आ, औ छोटो को आ!’’ मैंने कई।
‘‘औ का बताओ चाइए। ने तो पूरे गांव भरे में भद्द पिट रई। कोनऊं समझ ने पा रओ के बड़ो छोटे से दबत काय रैत आए?’’ भैयाजी बोले।
‘‘भैयाजी, जे तो ओई टाईप को प्रश्न भओ जोन टाईप को बेताल बिक्रमादित्य से पूछो करत्तो। उत्तर देओ तो सल्ल, ने देओ तो सल्ल। बेताल महराज खों तो बिक्रमादित्य के कंधा से उतर कर पेड़ पे लटकनेई आए। बाकी आपने मोय जे किसां सुना के मोरो मगज दुखा दओ। मोरो तो मन कर रओ के मैं ई उते जा के बड़े भैया की तरफी से छोटे की गतें बना आऊं।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘अकेलो तुमाओ जी नईं कर रओ, ऐसो जी सबई को कर रओ। काल हमें हमाए एक पुराने दोस्त मिले रए। बे सोई हमसे कै रए हते के अब तुम जे किसां सुनानी बंद करो ने तो हम तुम्हई को कोनऊं दिना कूट देबी। अब ईमें हमाओ का दोस? जो जैसी किसां आए, ऊसई तो कई जैहे। बे हमई खों कूटबे की कै रए हते।’’ भैयाजी हंसत भए बोले।
‘‘सो जे तो हुइए, जो आप ऐसी किसां सुनाहो। जे कोनऊं राजेश खन्ना की ‘‘अवतार’’ घांई फिलम नोईं के राजेश खन्ना को ऊ फिलम में खूबई सताओ जात आए मनो बा चीं लौं नई बोलत। लेकन बा फिलम हती। ऊको बनाने वारो जानत्तो के जो अखीर में राजेश खन्ना से सबई माफी ने मांगहें तो फिलम पिट जैहे। सो ऊने बी रिस्क ने लओ। पूरी फिलम में राजेश खन्ना वारे रोल को बिचारा बनाए रखो गओ, मनो अखीर में ऊकी बड़वारी दिखा दई गई। आपकी किसां में तो बड़े भैया की बड़वारी को अेम आई नई पा रओ। जो आप की ई किसां पे फिलम बनहे तो देखबे वारे गुस्सा के टाकीज को पर्दा ई फाड़ दैहें।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘मगर ईमें हम का कर सकत? हमने तो पैलई कई के जे असली किसां आएं। अब जो आए, सो आए।’’ भैयाजी अपनो पल्ला झारत भए बोले।
‘‘सो फेर मोय किसां काय सुनाई?’’ मैंने भैया जी खों आड़े हाथ लओ।
‘‘ईसे सुनाओ के तुम न्यूज-म्यूज तो देखत नइयां, सो तुमें दसा-दिसा बताबे खों जे किसां सुनाई।’’ भैयाजी बोले।
‘‘ऐसो नइयां! भले मैं टीवी पे बा बहसें नई देखत पर मोय सबरी नालेज रैत आए। औ मैं समझ गई के जे किसां कोन की सुना राए। अब आप हमाओ मों ने खुलवाओ।’’ मैंने भैयाजी खों उलायना दओ।
‘‘हमें पतो रओ के तुम समझ जैहो के जे कोन की किसां आए।’’ भैयाजी हंसत भए बोले।
भैयाजी को हंसबो देख के मोए औ गुस्सा सी आन लगी।
बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लौं जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर ई बारे में के बड़े भैया खों अब एक्शन में आ के छोटे खों लपाड़े लगाने चाइए के नईं?
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