बतकाव बिन्ना की
को आ दुनिया को सबसे बड़ो अंधरा?
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘जो का कर रईं?’’ मैंने भौजी से पूछी। बे सूपा में पिसी फटक रई हतीं।
‘‘बस, काम ई कर रई।’’ भौजी पसीना पोंछत भईं बोलीं।
‘‘नौतपा चल रए।’’ मैंने कई।
‘‘हऔ, चल रए।’’ भौजी बोलीं।
‘‘सुन रए के ई साल मानसून जल्दी आओ जा रओ।’’ मैंने भौजी से कई।
‘‘हऔ, सुनो तो हमने सोई आए। बाकी, आ जाए सो अच्छोे।’’ भौजी पिसी फटकत भईं बोलीं।
‘‘पिसी मंगा लई?’’ मैंने दूजी बतकाव छेड़बे के लाने भौजी से पूछी।
‘‘हऔ मंगा लई। बोई तो फटक रए। काय से के पानी बरसे के पैले साफ-सूफ कर के धर लओ जाए, ने तो बाद में मुस्किल परहे।’’ भौजी पिसी फटकत भई बोलीं।
‘‘खुरई की हुइए जे तो।’’ मैंने पिसी के कछू दाना उठा के पूछो।
‘‘हऔ! हम तो हर दारे उतई से मंगात आएं। तनक मैंगी भले परत आए, मनो रैती सबसे अच्छी आए।’’ भौजी बोलीं।
‘‘काए बिन्ना! तुम तो अकबर औ बीरबल घांई कर रईं।’’ इत्ते देर से हम दोई की बतकाव सुन रए भैयाजी मोसे बोल परे।
‘‘का मतलब?’’ मैंने पूछी।
‘‘हमें तो खबर आ रई के तुमई ने जे किसां हमें सुनाई रई। मनो, चलो अब हम तुमें सुनाए दे रए। काय से के ई टेम पे जे तुमई पे फिट बैठ रई।’’ भैयाजी हंसत भए बोले।
‘‘कोन सी किसां? अकबर औ बीरबल की तो मुतकी किसां आएं। मोपे कोन सी वारी फिट कर रए आप?’’ मैंने सोई हंस के पूछी।
‘‘का भऔ के एक दिनां अकबर अपने दरबार में बैठे हते। उने बरहमेस कछू ने कछू सूझत रैत तो। सो ऊंसई उने सूझी औ उन्ने अपने दरबारियन से कई के आप ओरन में से जोन दरबारी हमाए लाने हमाए राज को सबसे बड़ो अंधरा ढूंढ लाहे, ऊको हम मुतको इनाम देबी। एक दरबारी ने पूछी के आ हम ओरन के लाने कित्ते दिनां को टेम दे रए? तो अकबर ने कई के तीन दिनां भौत आएं। आप ओरें ठैरे चतुरा, सो तीन दिनां में हमाए राज को सबसे बड़ो अंधरा ढूंढबे में आप ओरन खों कछू दिक्कत ने हुइए। बा दरबारी अकड़ के बोलो, अरे महराज तीन दिनां तो कुल्ल आएं। हम तो अबई संझा लों आपके आंगू सबसे बड़ो अंधरा ला के ठाड़ो कर देबी। अकबर ने देखी के बीरबल कछू नईं बोल रए, बे चुप्पई बैठे। सो, अकबर ने बीरबल से पूछी के काए बीरबल आप काए मों दाब के बैठे? आप खों सोई सबसे बड़ो अंधरा ढूंढ के लाने। ईपे बीरबल ने कई के हऔ महाराज आज से तीसरे दिनां हम आपके लाने आपके राज को का, ई दुनिया को सबसे बड़ो अंधरा लान देबी। सबरे दरबारी बीरबल की बात पे हंसन लगे। उने लगो के ई दफा बीरबल खों मों की खानी परहे। फेर का रओ के सबरे दरबारी पूरे राज भर से अंधरा पकर-पकर के लान लगे। कोनऊं कछू साल पुरानो अंधरा रओ, तो कोनऊं जनम को अंधरा रओ तो कोनऊं खानदानी अंधरा रओ। मने किसम-किसम के अंधरा दरबार में ला के ठाड़े करे जात रए। जेई-जेई में दो दिनां कढ़ गए। तीसरे दिनां जब अकबर अपने दरबार में पौंचे तो उने उनके सबरे दरबारी औ उनके लाए भए अंधरा तो दिखा रए हते, मनो उने बीरबल ने दिखानो।’’
‘‘सो, बीरबल कां गओ?’’ भौजी ने पूछी। बे पिसी फटकत भईं भैयाजी को किसां सुन रई हतीं।
‘‘जेई तो अकबर महराज सोच में पर गए के बीरबल कां गए? सो उन्ने दरबारियन से पूछी। दरबारियन ने कई के हो सकत के बीरबल को सबसे बड़ो अंधरा ने मिलो हुइए सो सरम के मारे बे दरबार ने पधारे। बीरबल के ने आए से दरबारी तो बड़े खुस हते पर अकबर को कछू चिंता सी भई। उन्ने सिपाई दौड़ाए के बीरबल के घरे जा के ऊके बारे में पता कर के आओ। सिपाई बीरबल के घरे गए औ उते लौट के उन्ने अकबर को बताई के बीरबल तो अपने घरे खटिया गांथ रए। जा सुन के अबकर को मूंड़ चकरा गओ। आज तीसरो दिन आए औ बीरबल ने कई रई के बे राज को नईं बल्कि दुनिया को सबसे बड़ो अंधरा से मिलवाहें औ खुदई खटिया गांथत बैठो आए। जो का?
सो अकबर महराज सिपाइयन के संगे खुदई चल परे बीरबल के घरे। उनके पांछू-पांछू सबई दरबारी लेन लगा के चल परे। सो, पूरो जुलूस बीरबल के घरे पौंचों। अकबर ने देखी के बीरबल सई में अपने अंगना में बैठे खटिया गांथ रए हते। बे बीरबल के लिंगे पौंचे औ पूछन लगे के बीरबल! जो का कर रए? तुमे तो आज सबसे बड़े अंधरा से हमें मिलाने रओ। जा सुन के बीरबल ने खटिया गंाथना छोड़ो औ हात जोर के बोलो, महाराज दुनिया को सबसे बड़ो अंधरा इतई आए, आप देख लेओ। अकबर ने इते-उते नजर फेरी। कोनऊं ने दिखाओ। सो उन्ने बीरबल से पूछी के कां आए अंधरा? सो बीरबल ने ऊंसई हात जोर के कई के बा ई परदा के पांछू आए। आप जो परदा हटाहो से बा आपके लाने दिखा जाहे। अकबर को बड़ो अचरज भओ। ऊने आगे बढ़ के परदा हटाओ तो ऊके पांछू लगे आईना में ऊको अपनी सकल दिखानी। जा देख के अकबर तिन्ना गओ। बा भड़कत भओ बोलो के जे का मजाक आए? जे तो आईना में हम दिखा रए। अंधरा कां आए? ईपे बीरबल ने कई के महाराज जान की अमान राखियो, ई दुनिया के सबसे बड़े अंधरा तो आपई हो। जा सुन के अकबर रै गओ। ऊके पांछू ठाड़े दरबारी सोई सनाका खा के रै गए। फेर तनक सम्हरत भए अकबर ने कई के बीरबल तुम होस में तो आओ? कऊं पगला तो नई गए? जे का बक रए? ईपे बीरबल बोलो के महराज हम बक नोईं रएं, आपके लाने दुनिया को सबसे बड़ो अंधरा पेश करो आए हमने। अकबर ने पूछी, बा कैसे? बीरबल बोलो के, बा ऐसे मालक के जे जो दरबारी हरें आपके लाने अंधरा ढूंढ-ढूंढ के लाए बे तो किस्मत के मारे अंधरा आएं। कोनऊं जनम से, तो कोनऊं खानदानी, तो कोनऊं बीमारी के मारे अंधरा हो गओ। मनो आप तो पूरे भले चंगा आओ। आपको अपनी दोई आंखन से पूरो सई-सई दिखात आए। बोलो दिखात आए के नईं? अकबर ने कई के हऔ दिखात आए, तो ई से का? बीरबल बोलो के ईसे जे के आप आए, आपने देखी के हम खटिया गांथ रए फेर बी आपने आतई पूछी के बीरबल जो का कर रए? मने आप खों दिखा बी रओ, फेर बी आपने पूछी। सो आप सबसे बड़े अंधरा कहाए के नईं? औ जो आप बुरौ ने मानो तो हम औ खोल के समझाए दे रए के आंख के अंधरा से बड़ो अकल को अंधरा होत आए। जोन देख के बी पूछे के का हो रओ? जा सुन के दरबारियन ने सोची के आज तो बीरबल गओ काम से। अब ईसे छुटकारा मिल जाहे। मनो अकबर समझ गओ औ बोलो हमें जेई जवाब तो चाउने रओ। जे हमाए बाकी दरबारी ने समझ पाए औ तुमने समझ लओ। चलो अब खटिया खों छोड़ो औ दरबार चलो। सो अकबर बीरबल के कंधा पे हात धर के ऊको अपने दरबार लिवा ले गए। बौ बाकी दरबारी अपनो सो मों ले के धरे के धरे रै गए।’’ भैयाजी पे किसां पूरी करी।
‘‘हऔ हम समझ गए के आप मोए दुनिया को सबसे बड़ो अंधरा बोल रए। काए से के मैंने आतई सात भौजी से पूछी रई के का कर रईं? जबके मैंने देखी रई के बे पिसी फटक रई हतीं।’’ मैंने हंस के कई।
‘‘इत्तोई नईं। तुमने जे सोई पूछो के पिसी मंगा लई? जब के तुम देख रईं हती के तुमाई भौजी पिसी फटक रई हतीं।’’ भैयाजी हंसत भए बोले।
‘‘सई कै रए आप! मनो का करो जाए, जमाना जेई को आए। सबको पतो के कोन की गइया रई औ कोन ने चारा खाओ मनो चुनाव आतई सात गइया औ चारा याद आन लगो। अरे हऔ! औ अबे बड़े मजे की भई। सुनो तो आप!’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘का भओ?’’ भैयाजी ने पूछो।
‘‘मैं आप के घर के लाने निकरी के पप्पू भैया मिल गए। बे चोरी के डायलाग बोलत भए बतान लगे के आज हमने बी छुटकल को बोल दओ आए के बा ज्यादा टर्र-टर्र ने करे ने तो ऊको हमाई गोली खाने परहे। पप्पू भैया जे बताई रै हते के उत्तई में पांछू से छुटकल आन टपके औ पप्पू भैया से पूछन लगे। कै तो रए हो मनो जे तो बताओ के कोन सी गोली ख्वाहो- ताकत वारी, के गटापरचा की, के संतरे वारी, के पिपरमिंट वारी? छुटकल के चिड़काए पे चिड़कत भए पप्पू भैया बोले के देसी कट्टा वारी गोली ख्वाहें तुमें तो। ईपे छुटकल हंसत भओ बोलो के गरजे वारे बदरा बरसत नइयां। औ मों चिढ़ात भओ उते से भाग गओ। अपने पप्पू भैया खिजियात भए ऊको गरियाबे टिके। हमने उने समझाओ के छुटकल की बातन में आप ने आओ। ऊको जो करने हतो, बा तो बा कर के भाग गओ अब आप को जो बर्रायानो मोए सुन्ने पर रओ। सो आप गम्म खाओ, ने तो उते बिहार चले जाओ। उते चुनाव को टेम आओ जा रओ सो उते अपने गले की खुजरी मिटा लइयो। उने मोरी बात जम गई आए। कऔ रात की गाड़ी से बे पटना के लाने निकर परें।’’ मैंने भैयाजी खों बताई।
‘‘जे सोई खूब रई। मनो इते नौतपा तप रए औ उते चुनाव के तपा चलन लगे। अब तो मुतकी डायलाग बाजी चलने।’’ भैयाजी बोले।
‘‘बात तो मजे की आए, मनो जे बताओ के तुम दोई में से हमाए लाने चाय बना के को ला रओ?’’ भौजी अपनी कम्मर पे हात देत भई बोलीं। पिसी फटकत-फटकत उने कुल्ल देर हो गई रई।
‘‘मैं बना रई।’’ मैंने कई औ मैं चौंका की तरफी चल परी।
बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लौं जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर ई बारे में के बिहार वारे चुनाव में सबसे बड़ो अंधरा को निकरहे?
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