बतकाव बिन्ना की
ऑपरेशन सिंदूर मने अब जा के जी जुड़ाओ !
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘बिन्ना तुमने सुनी? अपनी सेना वारन ने उते के आतंकियान के ठिकानों खों ठोंक डारो।’’ संकारे से भौजी भगत भईं मोरे लिंगे आई।
‘‘हऔ! रात खों ई एयर स्ट्राईक कर दई गई आए।’’ मैंने कई।
‘‘रामधई! अब जा के जी जुड़ाओ! हम तो कब से बाट आ जोह रए हते के उनखों छठीं को दूद याद करा दओ जाए। जब देखों ससुरे बरहमेस इते आ के दोंदरा देत रैत आएं। अब समझ आहे उनके लाने।’’भौजी बड़ी जोस में भर के बोलीं।
‘‘सई कई भौजी! उने मजा तो चखाओ जाने चाइए। इत्ते निरदोस लोगन खों मारो उन्ने, ईकी सजा तो उने मिलो चाइए।’’ मैंने भौजी से कई।
‘‘तुम संकारे से इते कां चली आईं? हमने पूरो घर छान मारो, तुम ने दिखानी तो हम समझ गए के तुम शरद बिन्ना के इते पौंची हुइयो।’’ भैयाजी सोई दरवाजा से भीतरे आत सात भौजी से बोले।
‘‘हऔ! हमसे रऔ नई जा रओ तो। बा तो हमने सोची के बिनना सो रई हुइएं ने तो हम रात ई को भगत आते।’’ भौजी मुस्क्यात भई बोलीं। उनकी खुसी उनके चेहरा पे दिख रई हती।
‘‘बा सब तो ठीक, मनो हमाए लाने चाय तो बना दओ होतो।’’ भैयाजी बोले।
‘‘उते इत्तो बड़ो काम हो रओ औ आपको इते चाए की परी!’’ भौजी उलायना देत भई बोलीं।
‘‘आप ओरन खों आपस में जित्तो गिचड़ने होय इते बैठ के गिचड़ो, तब लौं मैं अपन सबई के लाने चाय नास्ता बना ला रई।’’ मैंने हंस के भैयाजी औ भौजी दोई से कई। बे दोई बी मुस्क्यात भए सोफा पे बैठ गए।
‘‘नास्ता ने बनइयो, खाली चाय बना लेओ।’’ भौजी ने मोसे कई।
‘‘सुबै से खाली चाय नई पियो चाइए, ने तो पेट में जलन होन लगत आए।’’ मैंने कई औ मैं किचन में आ गई। जल्दी से पोहा धो के एक तरफी रखो। फेर प्याज औ धना की पत्ती काटी। मैंने अपने घरे एक गमला में मीठी नीम सोई लगा रखी आए। मीठी नीम मने करी को पत्ता। सो भुनसारे गमला में पानी डारबे के समै दो-चार पत्ता तोड़ के रख लेत हौं। चाय के डग्गा में दूद औ पानी नप्प के डारो औ चूला के एक बर्नर पे चढ़ा दओं संगे शक्कर औ पत्ती सोई डार दई। इत्ती देर में पोहा फूल गओ। सो, बस कढ़ाई में तनक सो तेल डारो, तेल गरम होतई सात ऊमें राई औ करी को पत्ता औ एक छोटी-सी मिर्ची डारी। राई के चटपट करते संगे ऊमें हल्दी डार के तुरतईं पोहा डार के चला दओ। ऊपरे से कटो भओ हरा धना को पत्ता डारो और बस, बन गओ गरमा-गरम पोहा। इत्ते में दूसरे बर्नर पे चढ़ी भई चाय उबल के चुर गई हती। सो, चाय छान लई। सई कओ जाए तो पोहा सबसे अच्छो फास्ट फूड आए। तुरतईं बनत आए औ तनक ज्यादा सो खा लेओ तो कओ फेर भोजन के लाने भूखई ने लगे। औ आप ओरन खों अपनो एक सीक्रेट बता रई के मोरो पोहा सुद्ध नारियल के तेल में बनत आए। बोई सुद्ध नारियल तेल जोन खों वर्जिन कोकोनट आॅयल कओ जात आए। ऊमें बनो पोहा ऐसो लगत आए के मनो ऊमें कच्चो नारियल कतर के डारो गओ होय। आप ओरें सोई ट्राई कर के देखियो। भौतई अच्छो लगहे।
मैं जब चाय औ पोहा ले के बैठक में पौंची तो भैयाजी कै रए हते के ‘‘पाकिस्तान को अब अड़ो नई चाइए। ऊको खुदई कओ चाइए के आतंकियों के खिलाफ हम खुदई मदद करबी।’’
‘‘लूघरा बा मदद करहे? जो ऐसो होतो तो बा पैलई नईं मदद मांगतो? कोन सा देस चात आए के उनके इते कोनऊं आतंकी रहे।’’ भौजी बमकत भई बोलीं।
‘‘चलो अब आप दोई जने अपनी बहस खों टर ब्रेक देओ औ शांती से चाय-नास्ता कर लेओ।’’ मैंने भौजी खों पहो की प्लेट पकराई।
‘‘तुमाए इते को पोहा मोए भौतई पुसात आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सो आप ओरे आ जाओ करे न! मोय तो बनाबो खिलाबो भौतई अच्छो लगत आए। पैले तो खूब बनात्ती, अब अकेली पर जाने से मन नई करत...।’’ मैंने कई।
‘‘अरे, सो का भओ? हम ओरे तो आएं। पड़ोसी औ काय के लाने होत आएं? फेर हम तो तुमाए भैया-भौजी आएं।’’भैयाजी ने मोए टोकों।
‘‘जेई तो बात आए के बे ओरें पड़ोस वारी बात नईं समझत। कओ जात आए ने के जो कभऊं बिपत परे तो रिस्तेदार बाद में आ पाऊंत आए, पड़ोसी पैले संगे ठाड़े मिलत आएं। सैंतालीस से अब तक लौं इत्तो बुड्ढो भओ जा रओ बा पाकिस्तान, पर ऊको अब बी समझ नईं पर रई। जोन के दम पे बा गर्राया रओ, ऊके दुख की बेरा में बे कोनऊं ऊको सात ने दैहें। जे भारत ई आए जो ऊके अंसुवां पोंछहे। का जाने कब ऊको जा बात समझ में आहे।’’ भौजी पाकिस्तान खों खरी-खोटी सुनात भईं बोलीं।
‘‘एक न एक दिन तो ऊको समझ में आई जैहे। औ जो ने समझहे तो अपनोई नुकसान करहे।’’ मैंने कई।
‘‘औ का! ऊको समझो चाइए के हथियारन की खेती करे से पब्लिक को पेट ने भर पाहे। एक दफा तुमने एक बा राजा की किसां सुनाई हती, बा ई टेम पे हमें याद आ रई।’’ भैयाजी बोले।
‘‘कोन सी किसां?’’ मैंने पूछी।
‘‘अरे बा राजा, जोन ने भगवान से वर मांगो रओ के बा जोन चीज खों छू देवे बा सोने की हो जाए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘अरे बा, बा तो राजा मिडास की किसां आए।’’ मैंने कई।
‘‘हऔ, बई वारी। बा राजा वर पा के कित्तो खुस भओ, मगर जब ऊने खाबे के लाने भोजन को छुओ तो बा सोना को हो गओं पानी को छुओ तो बा सोने को हो गओ औ अपनी बिटिया को छुओ तो बा सोई सोना की पुतरिया बन गई। भूको, प्यासो और बिटिया को पुतरिया बनत देख के राज खों समझ में आओ के ऊने का गलती करी आए। फेर ओई को रो-रो के भगवान से बिनती करनी परी के बे अपनो वरदान वापस ले लेवें। ऐंसई सब कछू हथियार में फूंक के बा अपनी पब्लिक खों कां से खिलाहे, पिलाहे? फेर कोनऊं से मदद ने मिलहे तो खुदई रोहे। हथियारन की खेती से पेट नईं भरो जा सकत।’’ भैयाजी बोले।
‘‘आप सई कै रए भैयाजी! मनो अब बा बात आगे ने बढ़ाए तो सई रैहे ने तो सबई खों नुकसान हुइए। लड़ाई-झगड़ा अच्छो नई होत आए।’’ मैंने कई।
‘‘सो तो आए, पर जो कोनऊं की कए से ने मान रओ होए तो ऊको थपड़ियाने सोई जरूरी हो जात आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘चाय, नास्ता, बतकाव सब हो गई, अब चलो चलिए औ बिन्ना खों अपनो रोजीना के काम करन दओ जाए। ईको अबे लिखा-पढ़ी बी तो करने हुइए।’’ भौजी बोलीं।
‘‘अरे सब हो जैहे, आप ओरें तो बैठो। अच्छो लग रओ।’’ मैंने कई।
‘‘अरे, ऐसो करियो ने के आज संझा खों ब्यालू के लाने हमाए इते आ जाइयो। काय से के कओ आज संझा खों कोनऊं टेम पे मौक ड्रिल होय औ कओ ब्लैक आउट सोई होए, सो घरे अकेली ने रहियो। हमाए इते आ जइयो औ उतई संगे खाबी-पीबी औ बतकाव करबी। अंदियारे में तुमें अकेले अच्छो बी ने लगहे।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, तुमाए भैयाजी ठीक कै रए! तो संझा को पक्को रओ। तुमे हमाए इते आने औ मौक ड्रिल के टेम पे उतई रैने। अपन तीनों मिल के उन आतंकियन खों भेजबे वारे खों खूब गरियाहें।’’ भौजी हंसत भई बोलीं।
‘‘हऔ आ जाबी!’’ मैंने उन दोई की बात मान लई।
बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लौं जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर ई बारे में के आपरेशन सिंदूर के बाद ऊको अकल आहे के नईं? के अपने सेना वारन खों औ कछू करने परहे उने सबक सिखाबे के लाने?
---------------------------
#बतकावबिन्नाकी #डॉसुश्रीशरदसिंह #बुंदेली #batkavbinnaki #bundeli #DrMissSharadSingh #बुंदेलीकॉलम #bundelicolumn #प्रवीणप्रभात #praveenprabhat
No comments:
Post a Comment