Tuesday, May 27, 2025

पुस्तक समीक्षा | कुण्डलिया छंद को पुनर्स्थापना दिला सकती है ‘‘ढाई आखर की कथा’’ | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण

आज 27.05.2025 को 'आचरण' में प्रकाशित - पुस्तक समीक्षा


 पुस्तक समीक्षा
कुण्डलिया छंद को पुनर्स्थापना दिला सकती है ‘‘ढाई आखर की कथा’’
       - समीक्षक डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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काव्य संग्रह  - ढाई आखर की कथा (कुंडलिया-संग्रह)
कवि        - डाॅ. श्याम मनोहर सीरोठिया
प्रकाशक  - श्वेतवर्ण प्रकाशन, 212 ए, एक्सप्रेस व्यू अपार्टमेंट सुपर एमआईजी, सेक्टर 93, नोएडा-201304
मूल्य     - 349/-
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हिन्दी काव्य जगत को छंदबद्धता ने जितना समृद्ध किया है उतना काव्य की और किसी विधा ने नहीं किया। यह सही है कि काव्य की अनेक विधाएं समान्तर चलन में रही हैं और आज भी हैं लेकिन अपने गेयता के गुण एवं स्मरण रखने में सहजता के कारण छंदबद्ध काव्य अधिक लोकप्रिय रहा है। गीत और नवगीत में भी छांदासिकता रही और यदि प्रवाह को ध्यान में रख कर छंदमुक्त काव्य लिखा गया तो उसमें भी कुछ प्रतिशत छांदासिकता का अनुभव किया जा सकता हैं। कुंडलिया छंद का स्वर्णकाल भक्तिकाल को माना जाता है जब 16-17वीं शताब्दी में कुंडलिया छंद का सर्वाधिक सृजन हुआ। तुलसीदास ने ‘‘रामचरितमानस’’ में कुंडलिया छंद का प्रचुरता से प्रयोग किया, मीराबाई ने भी भक्ति और प्रेम की  सुंदर कुंडलिया लिखीं, रहीम ने भक्ति, नीति, प्रेम और श्रृंगार विषयों में कुंडलिया लिखी हैं। कबीर, रैदास, सूरदास आदि ने भी अपनी अभिव्यक्ति के लिए कुंडलिया छंद को अपनाया। किन्तु आधुनिक काल में काव्य के साथ विधागत श्रम न करने वालों ने छंदों को हाशिए में धकेल कर नई कविता की उस धारा को पोषित करना शुरू कर दिया जिसे आलोचकों ने ‘‘अकविता’’ एवं ‘‘गद्य कविता’’ जैसे नाम दिए। यह प्रसन्नता की बात है कि हिन्दी काव्य जगत में एक बार फिर छंदों के प्रति रुझान जागा है। दिलचस्प बात यह भी है कि जो छंदविधा के वर्तमान पुरोधा हैं उन्होंने सोशल मीडिया का एक पाठशाला की तरह उपयोग किया और छंद से घबराने वाले अथवा छंद विधान से अपरिचित कवियों को भी छंद में पारंगत करने का बीड़ा उठा लिया। डाॅ. श्याम मनोहर सीरोठिया उन कवियों में से एक हैं जो छंद विधा के पुरोधा भी हैं और जिन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी छांदासिकता से एक बड़े वर्ग को प्रभावित भी किया है। दोहा, सोरठा, चैपाई, रोला, कुंडलिया आदि छंद के वे सिद्धहस्त हस्ताक्षर हैं। डाॅ. श्याम मनोहर सीरोठिया का सद्यः प्रकाशित कुंडलिया संग्रह है-‘‘ढाई आखर की कथा’’।
‘‘ढाई आखर की कथा’’ कुंडली संग्रह के ब्लर्ब में राहुल शिवाय ने लिखा है कि ‘‘कुण्डलिया छंद हिन्दी साहित्य के लिए कोई नया छंद नहीं है। दोहा और रोला छंद से बने इस छंद का नाम कुण्डलिया, कुण्डली मुद्रा में बैठे सर्प से लिया गया है, जिसका पूँछ और मुख एक-दूसरे के सभीप या जुड़े दिखायी देते हैं। इसी प्रकार दोहे के चतुर्थ चरण को रोले के प्रथम चरण में प्रयुक्त कर हम इस छंद में कुण्डलीनुमा आकृति बनाते हैं और दोहे में कहे गये वाक्य को रोले में व्याख्यायित करते हैं। आरम्भिक काल से लेकर कुण्डलिया छंद की भाषा और विषयों में निरंतर प्रयोग होते रहे हैं। नीति, अध्यात्म और जीवनानुभवों, हास्य, व्यंग्य से होता हुआ आज यह आमजन की पीड़ा तक पहुँच गया है। वैसे भी कविता की प्रथम अनिवार्यता उसकी समसामयिकता ही होती है और डॉ. सीरोठिया इस बात को गंभीरता से समझने और अभिव्यक्त करने वाले रचनाकार हैं।’’
राहुल शिवाय का कथन सही है कि डॉ. सीरोठिया समसामयिकता के महत्व को समझते हैं। उनके कुंडली संग्रह का नाम भले ही ‘‘ढाई आखर की कथा’’ है, जिससे ध्वनित होता है कि इस संग्रह में मात्र प्रेमासिक्त कुंडलिया होंगी, किन्तु डाॅ. सीरोठिया प्रेम को जिस व्यापक अर्थ में देखते हैं, उसी व्यापकता के दिग्दर्शन इस संग्रह की कुंडलियों में किए जा सकते हैं। इस संग्रह में संग्रहीत कुंडलियों में श्रृंगार जनित प्रेम है तो, प्रकृति के तत्वों से प्रेम और पारस्परिक भाईचारा युक्त प्रेम भी है। डाॅ. सीरोठिया ने कुंडलिया को छंद माध्यम के रूप में अपनाते हुए प्रेम की विराटता एवं व्यापकता की बात की है। शिल्प और कथ्य की दृष्टि से उनकी कुंडलिया इतनी सक्षम हैं कि वे हाशिए पर खड़ा कर दिए गए कुंडलिया छंद को पुनः मुख्य धारा से जोड़ सकती हैं। इस संबंध में संग्रह की भूमिका में फिरोजाबाद के साहित्य भूषण डॉ. रामसनेही लाल शर्मा ‘‘यायावर’’ ने लिखा है कि ‘‘कविवर डॉ. श्याम मनोहर सीरोठिया यद्यपि व्यवसाय से चिकित्सक हैं, परंतु उन्हें काव्य की प्रतिभा ईश्वरीय अनुकंपा के रूप में मिली है। वे बहुमुखी प्रतिभा संपन्न कवि हैं। उनके गीतों में ऐसा माधुर्य और लालित्य होता है कि वे अत्यंत हृदयग्राही हो जाते हैं। इसी तरह उनके दोहे भी संक्षेप में बड़ी और गहरी बात कहने में सक्षम होते हैं। इस बार वे अपनी प्रतिभा का उत्कर्ष कुंडलियों के रूप में लेकर उपस्थित हुए हैं।’’
‘‘चमकदार शुद्ध रत्नों जैसी बहुमूल्य कुंडलियों का संग्रह’’ शीर्षक से जबलपुर के वरिष्ठ गीतकार एवं साहित्य भूषण आचार्य भगवत दुबे ने लिखा है कि ‘‘मेरा विश्वास है कि डॉ. श्याम मनोहर सीरोठिया का कुंडलिया संग्रह ढाई आखर की कथा हिंदी साहित्य जगत में स्नेह के साथ पढ़ा जाएगा एवं सुधी पाठकों में आदर के साथ स्वीकार किया जाएगा। कालांतर में यह कुंडलिया संग्रह श्रेष्ठ संग्रहों के रूप में चर्चित होगा एवं डॉ. सीरोठिया गीतों की तरह कुंडलिया सृजन के क्षेत्र में अपने यश का परचम फहराने में सफल होंगे।’’
डाॅ. सीरोठिया ने अपनी कुंडलिया सर्जना के संबंध में अपने प्राक्कथन में कुछ अनुभव एवं प्रेरणास्पद घटनाओं का उल्लेख किया है। उनमें से एक प्रसंग है- ‘‘कुछ समय पूर्व देश के प्रतिष्ठित कुंडलियाकार आद त्रिलोक सिंह ठकुरेला जी ने कुंडलियां लिखने का आग्रह किया कुछ कुंडलियां लिखीं भी लेकिन कोई उल्लेखनीय उपलब्धि इस क्षेत्र में नहीं हो सकी। सन 2023 में एक एक्सीडेंट के बाद मेरा बड़ा आपरेशन हुआ एवं इसी बीच धर्मपत्नी सरला जी को ब्रेन स्ट्रोक हो गया गहन अवसाद के इस दौर में कलम ने संबल दिया और मैंने प्रत्येक दिन सृजन को समर्पित कर दिया। इस बीच प्रथम सोरठा संग्रह चिंतन के आयाम लिखा गया एवं उसके बाद ही कुंडलिया संग्रह ‘ढाई आखर की कथा’ लिखा गया।’’
डाॅ. सीरोठिया के इस संग्रह की कुंडलियों के सरोकार व्यापक हैं। उन्होंने ‘‘सामाजिक जीवन की विसंगतियों के साथ-साथ व्यक्तिगत जीवन की कही-अनकही कथाएं, रिश्तों की इंद्रधनुषी छटाओं की सुकोमलता के साथ उनका खुरदरापन, अपनों के रंग बदलते चेहरों की भाव भंगिमाएं, प्रेम में डूबे हृदय की मिठास और स्निग्धता, राजनीति के मुखौटों की सच्चाई, जीव-जगत की उपादेयता, पर्यावरण की चिंता एवं चिंतन, मानवीय मूल्यों की संवेदनाओं के साथ व्यक्ति चेतना को कुंडलियों के माध्यम से ढाई आखर की कथा में’’ पिरोया है। इसीलिए इस संग्रह की गुणवत्ता उवं मूल्यवत्ता दोनों श्रेष्ठ हैं। जैसे वे संग्रह की प्रथम कुंडलिया में ही कहते हैंकि -
अपने चिंतन से करें, सारे निर्णय आप।
असफल भी होते कभी, मत समझो अभिशाप।
मत समझो अभिशाप, सफलता निश्चित आए।
हर पल का उत्साह, नया विश्वास जगाए।
कहे श्याम कविराय, कोशिशों से हैं सपने।
जीवन में दें साथ, सदा शुभ चिंतन अपने।।
कवि इस बात से व्यथित है कि आधुनिकता के जाल में जकड़ कर लोग पारस्परिक सौहाद्र्य, पारिवारिकता एवं सत्कार की भावना को भूलते जा रहे हैं-
रिश्तेदारी के सभी, बदल गए व्यवहार।
पहले जैसे अब नहीं, होते हैं सत्कार।
होते हैं सत्कार, लोग बनते अनजाने।
परंपरा को भूल, काम करते मनमाने।
कहे श्याम कविराय, हुए रिश्ते अब भारी।
खुशियों से है दूर, आजकल रिश्तेदारी।।
किन्तु ऐसा भी नहीं है कि कवि नूतनता का विरोधी है। कवि उन विचारों का पक्षधर है जो जड़ता को तोड़ कर नई तकनीक से नया जीवन गढ़ कर जीवन में नई ऊर्जा भर सकता है-
तोड़ो जड़ता सोच की, लाओ नए विचार।
चलो समय के साथ में, कहे लोक व्यवहार।
कहे लोक व्यवहार, नई तकनीकी आई।
दुनिया की आवाज, आज दे रही सुनाई।
कहे श्याम कविराय, नए से नाता जोड़ो।
जो बनता अवरोध, उसे हिम्मत से तोड़ो।।
          डाॅ. सीरोठिया ने धन कमाने के लोभ में देश से पलायन करने वालों पर भी दृष्टिपात किया है तथा उन्हें समझाने का प्रयास किया है-
रोजी-रोटी के लिए, भागें लोग विदेश।
लेकिन जाकर भूलते, वे अपना परवेश।
वे अपना परिवेश, संपदा बहुत कमाते।
फिर भी इसके बाद, हृदय से दुखी बताते।
कहे श्याम कविराय, नौकरी कर लो छोटी।
बना रहेगा चैन, यहाँ है रोजी-रोटी।।
      कवि ने जीवन के शाश्वत दर्शन को भी अपनी कुंडलिया के माध्यम से सामने रखा है और स्मरण कराया है कि शोक की घड़ी में धैर्य रखना ही एक मात्र विकल्प है-
रोने-धोने से नहीं, वापस आते लोग।
नहीं किसी के हाथ में, लिखती नियति कुयोग।
लिखती नियति कुयोग, साथ असमय में छूटे।
काल चले चुपचाप, प्राण पल भर में लूटे।
कहे श्याम कविराय, कौन रोके होने से।
जाने वाले लोग, नहीं आते रोने से।।

संग्रह में कुल 260 कुंडलिया हैं। ये सभी परस्पर भिन्न विषयों एवं समसामयिक प्रतिबद्धता लिए हुए हैं। इस प्रकार डाॅ श्याम मनोहर सीरोठिया ने अपन कुंडलियों में वर्तमान की स्थिति, परिस्थिति एवं संभावनाओं को रच कर कुंडलिया छंद को हर दृष्टि से प्रासंगिक बना दिया है। डाॅ. सीरोठिया का कुंडलिया संग्रह ‘‘ढाई आखर की कथा’’ प्रेम की व्यापकता, कथ्य की समकालीनता एवं कुंडलिया छंद शिल्प की पुनर्स्थापना की दृष्टि से महत्वपूर्ण है एवं पठनीय है।            

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4 comments:

  1. आदरणीया कुंडलिया छंद के विषय में ये भ्रामक जानकारी कहाँ से मिली ?

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  2. समीक्षक जी ने पूर्णतया कुंडलिया छंद के बारे में गलत जानकारी दी है ,

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  3. गलत जानकारी

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  4. समीक्षक बनने का शौक है ही मात्र क्षमता बिलकुल भी नहीं। कुंडलिया छंद रामचरितमानस में! आश्चर्यजनक

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