आज 20.05.2025 को 'आचरण' में प्रकाशित - पुस्तक समीक्षा
महिलाओं और बेटियों के अधिकारों की बात करती द्विभाषिक पुस्तक
समीक्षक - डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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पुस्तक - महिला सशक्तिकरण : बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
लेखिका - डाॅ. वन्दना गुप्ता
प्रकाशक - स्वयं लेखिका, शिवराम शिशु चिकित्सालय, मोतीनगर वार्ड, सागर-470002
मूल्य - 225/-
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डॉ. वंदना गुप्ता सागर नगर की एक संवेदनशील, कर्मठ एवं उत्साही समाजसेवी तथा साहित्यकार हैं। वे स्त्रीरोग विशेषज्ञ भी हैं। वे स्त्रियों की पीड़ा को गहराई से समझती हैं। विशेष रूप से समाज में बेटी की स्थिति और बेटे की ललक के चलते महिलाओं को जिस प्रकार उपेक्षा और प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है, बतौर चिकित्सक उन्होंने इसे निकट से देखा और महसूस किया है। डॉ. वन्दना गुप्ता इस स्थिति से भी भली भांति अवगत है कि समाज में स्त्रियां अपने स्वास्थ्य के प्रति सबसे अधिक लापरवाह रहती है। स्त्रियां परिवार को प्राथमिकता देती हैं तथा स्वयं के स्वास्थ्य एवं खान-पान को हमेशा अनदेखा कर देती हैं। यही कारण है कि खून की कमी यानी एनीमिया जैसी बीमारियां स्त्रियों में सबसे अधिक पाई जाती है जिसका असर उनके मातृत्व और संतान पर भी पड़ता है। यह सारी स्थितियां लेखिका को हमेशा विचलित करती रहती हैं इसीलिए डॉ. गुप्ता का लेखन समाजिक उत्थान के प्रति समर्पित रहता है। वे समाज को सभी प्रकार की बुराइयों से दूर और अच्छाइयों से युक्त देखना चाहती हैं। उनकी यही भावना उनकी रचनाओं में प्रतिबिंबित होती है। वे समाज से अपशब्दों शब्दों के विलोपन के लिए भी कृत संकल्प हैं। इस संबंध में उन्होंने देशव्यापी अभियान भी चला रखा है। वे बेटियों को सशक्त महिला के रूप में पुष्पित, पल्लवित होते देखना चाहती हैं। डॉक्टर वंदना गुप्ता की अब तक 18 कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं उनके ताज़ा कृति "महिला सशक्तिकरण : बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" समाज में बेटियों को उनके बुनियादी आधिकार दिलाने की दिशा में एक सराहनीय कदम है।
सर्व विदित है कि समाज में आदिकाल में महिलाओं की बहुत अधिक प्रतिष्ठा थी किंतु पहले विदेशी आक्रमण कार्यों की कुदृष्टि और फिर पाश्चात्य अंधानुकरण ने धीरे-धीरे समाज में वह अवनति ला दी कि स्त्रियां दोयम दर्ज़े की प्राणी समझी जाने लगीं। बेटियों को शिक्षा से दूर रखा जाने लगा। यदि बेटे और बेटी में से किसी एक को शिक्षित करने का प्रश्न हो तो सबसे पहले बेटी से ही उसके शिक्षा का अधिकार छिना जाता है और यह कृत्य स्वयं उसके माता-पिता करते हैं। कारण यही कि पीढ़ियों से यह धारणा चली आ रही है कि बेटियों को घर-गृहस्थी का काम आना चाहिए, पढ़ाई लिखाई उनके लिए जरूरी नहीं है। देखा जाए तो यह सबसे बड़ा दुर्भाग्य है और इस सोच ने भारतीय समाज में स्त्रियों को उनके अधिकारों से धीरे-धीरे वंचित कर दिया। लेकिन अब समाज में यह जागरूकता लाने की मुहिम विगत कई वर्षों से चलाई जा रही है कि बेटियों की भ्रूण हत्या न होने पाए, उन्हें इस दुनिया में आंखें खोलने दिया जाए तथा उन्हें शिक्षित होने का पूरा अवसर मिले। इस विषय में गांधी जी ने एक बहुत ही सटीक बात कही थी की "यदि एक पुरुष शिक्षित होता है तो इसका अर्थ है कि एक व्यक्ति शिक्षित होता है। वहीं जब एक स्त्री शिक्षित होती है तो उसका अर्थ होता है कि पूरा एक परिवार शिक्षित होता है।"
निःसंदेह, मां ही बच्चे का लालन- पालन करती है और बुनियादी संस्कार और शिक्षा प्रदान करती है। व्यक्ति अपनी बाल्यावस्था में अपनी मां के ही सबसे निकट रहता है और जीवन के प्रत्येक गुण अपनी मां से ही ग्रहण करता है। यदि मां शिक्षित होगी तो अपने बच्चों को भी अच्छी शिक्षा दे सकेगी। इसके साथ ही आवश्यकता पड़ने पर धन कमा कर अपने परिवार को आर्थिक सहयोग भी कर सकेगी। इसी उत्कृष्ट विचारधारा को केंद्र में रखकर डॉ. वंदना गुप्ता ने यह पुस्तक लिखी है।
पुस्तक का संपूर्ण कलेवर तीन भागों में विभक्त है प्रथम भाग में स्वामी विवेकानंद के विचार वैचारिक स्वच्छता अभियान के बारे में जानकारी समाज की प्रकृति में नारी का योगदान जैसे आलेखों के साथ ही मां की शुभकामनाएं शामिल हैं। पुस्तक के संबंध में प्रो. नीलिमा गुप्ता कुलपति डॉ. हरि सिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय डॉ. आर.एच. लता भोपाल तथा डॉ. शरद सिंह वरिष्ठ साहित्यकार के पुस्तक के संबंध में उद्गार हैं। पुस्तक का प्रकृति बृजेश त्रिपाठी डीपीओ महिला बाल विकास सागर ने लिखा है।
पुस्तक में हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं की रचनाएं हैं। पुस्तक के प्रथम भाग में महिला सशक्तिकरण से संबंधित जो लेख और कविताएं समाहित की गई हैं उनके शीर्षक हैं महिला सशक्तिकरण ( वैदिक मध्यकाल एवं आधुनिक काल), आज महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता क्यों?, महिला सशक्तिकरण के महत्वपूर्ण बिंदु, महिला सशक्तिकरण कैसे संभव?, विचार करें हमें अपने आप को कहां-कहां सुधारना है, सख़्त कानून के बाद भी महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध का कारण, भारतीय नारी गौरव गरिमा एवं महिमा। इस प्रकार पुस्तक के प्रथम भाग में स्त्री सशक्तिकरण के संपूर्ण स्वरूप की चर्चा की गई है जिसे पढ़कर कोई भी पाठक भारत में महिला सशक्तिकरण की दशा और दिशा को भली भांति समझ सकता है।
पुस्तक के दूसरे भाग को “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” पर केंद्रित किया गया है। इस भाग में लेखों के साथ चार केस स्टडीज़ भी हैं। लेखों और कविताओं के शीर्षक हैं - मां मुझको जग में आने दो, चेतावनी, बेटी बचाओ की आवश्यकता क्यों पड़ी?, बेटियां कैसे बचेंगी?, दरिंदगी पर लगाम कब और कैसे?, चलो आज संकल्प उठाएं - बालिका शिक्षा देना, बेटी पढ़ाओ।
“मां मुझको जग में आने दो” कविता के माध्यम से डॉक्टर वंदना गुप्ता ने उस बालिका भ्रूण की पीड़ा को व्यक्त किया है जिसे गर्भ में ही मार दिया जाता था और आज भी इस दिशा में चोरी से प्रयास किया जाता है। एक बालिका भ्रूण की मार्मिक पुकार इस कविता में मौजूद है। इस कविता का अंग्रेजी संस्करण भी पुस्तक में दिया गया है जिसका शीर्षक है- “द वॉयस ऑफ ईच डॉटर हू लेफ्ट टू सून टेल्स अस समथिंग। मदर, लेट मी कम इन द वर्ल्ड”।
“चेतावनी” भी कविता है जिसमें कन्या भ्रूण हत्या करने के दुष्परिणाम को संक्षिप्त शब्दों में बड़े सुंदर ढंग से व्यक्त किया गया है। यह कविता भी हिंदी और अंग्रेजी दोनों में दी गई है। इस कविता की पंक्तियां देखिए-
हत्या कन्या भ्रूण करोगे,
नारी समाज मिट जायेगा।
बेटे के लिए वधू कहाँ से,
यह समाज फिर पायेगा।।
वधू नहीं मिल पाने से,
वहशीपन बढ़ जायेगा।
दरिंदगी की घटनाओं से
यह समाज दुख पायेगा ।।
यह यथार्थ संवाद प्रत्येक पाठक को सोचने को विवश करेगा। जब तक सरकार की ओर से लिंग जांच पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया था तब तक बालक और बालिकाओं के अनुपात में चिंताजनक अंतर आता जा रहा था। लेखिका ने बेटी बचाओ की आवश्यकता क्यों पड़ी इस लेख में उद्धृत किया है कि “2011 की जनगणना के अनुसार भारत में बाल लिंगानुपात 0.6 आयु वर्ग में प्रति 1000 लड़कों पर केवल 919 लड़कियां थीं।”
यद्यपि सरकार द्वारा लिंग जांच को अपराध घोषित किए जाने के बाद स्थिति में सुधार आया है। लेखिका ने अपने इस संक्षिप्त लेख में बेटी बचाओ की आवश्यकता के अन्य कारण भी गिनाएं हैं जैसे शिक्षा का अभाव, बाल विवाह आदि।
इस पुस्तक में एक महत्वपूर्ण लेख है “दरिंदगी पर लगाम कब और कैसे?” वास्तुतः बालिका का जन्म लेना और उसका पालन पोषण एक स्वस्थ सुरक्षित माहौल में होना दोनों आवश्यक हैं। किंतु जैसा कि हम सभी आए दिन पढ़ने सुनते रहते हैं कि महिलाओं के विरुद्ध हिंसा बढ़ती जा रही है। यह हिंसा घर के भीतर और घर के बाहर दोनों जगह होती है। दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि गालियों और मारपीट का सामना करना लगभग हर मध्यम वर्गीय एवं निम्न मध्यम वर्गीय स्त्रियों के जीवन का अनिवार्य हिस्सा होता है। ऐसी महिलाएं समाज और पारिवारिक दबाव के कारण अपनी प्रताड़ना की पीड़ा किसी से कह नहीं पाती है और चुपचाप सब कुछ सहती रहती हैं। उच्च वर्ग भी इससे अछूता नहीं है। वही प्रताड़ना का दूसरा और भयानक रूप है यौन हिंसा। वर्तमान में यौन हिंसा की दर बढ़ी है जो की चिंताजनक है। लेखिका ने स्त्रियों के विरुद्ध प्रताड़ना और हिंसा के कारण को खंगालते हुए इस बात को सामने रखा है कि शराब सोशल मीडिया तथा पारिवारिक दबाव सबसे अधिक जिम्मेदार हैं। लेखिका ने यह भी रेखांकित किया है कि इस दिशा में सरकार को जिम्मेदारी भली भांति निभानी चाहिए और स्त्रियों को सुरक्षित वातावरण उपलब्ध कराना चाहिए। लेखिका ने तीखा किंतु सटीक प्रश्न उठाया है कि “बलात्कारी का अपराध सिद्ध हो जाने के बाद भी लगातार सजा से बचाने वाली मानसिकता, न्याय में लगातार देरी, बलात्कारी की मनोदशा को बिना समझे कुछ समय की सजा के बाद जमानत पर छोड़ देना, वा ऐसे बलात्कारी का समाज में पुनः घटनाओं को अंजाम देना राष्ट्र के सभी कानूनविदों व न्यायविदों को मालूम है, सभी के घर परिवार हैं, फिर भी न्यायिक दंड प्रक्रिया क्यों आधी आबादी के इस दर्द को महसूस नहीं करती?”
लेखिका ने इस संदर्भ में मोहिंदर सिंह केस, निर्भया केस आदि का संदर्भ दिया है जो की आज भी स्मरण करने पर मानस को विचलित कर देता है।
पुस्तक के तीसरे भाग में कविताएं हैं जो नई की दशा और उसके जीवन पर केंद्रित हैं। बानगी के तौर पर “बेटी जन्म” शीर्षक की यह छोटी सी कविता देखिए-
कन्या रूप तुम्हारे घर में,
मातृशक्ति है आई।
जिसके आने के स्वागत में,
चहुँ ओर खुशी है छाई ।।
प्रेम सुधा रस छलके अविरल,
अनुपम छटा है छाई।
किलकारी आंगन में गूंजी,
तुमको आज बधाई ।।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह पुस्तक समाज को बेटियों के प्रति जागरूक बनाने तथा स्त्री सशक्तिकरण के महत्व को समझने में अपना भरपूर योगदान देगी।
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