चर्चा प्लस
विचारणीय है स्त्री के विरुद्ध नृशंसता पर समाज का मौन
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता’’ - यही सुनते आए हैं कि जहां नारी को सम्मान दिया जाता है वहां देवता वास करते हैं। इसे याद रखते हुए प्रश्न पूछने का मन करता है कि जहां आए दिन नारी यौनहिंसा एवं जघन्य अपराध की शिकार हो रही हो वहां देवता कितने दिन और वास करेंगे? हम किस जगह आ गए हैं जहां निर्भया कांड जैसी नृशंस खंडवा की घटना भी हमें विचलित नहीं करती है। उस घटना के विरोध या पीड़िता के पक्ष में एक सामूहिक आवाज़ भी नहीं उठती है। प्रश्न यहां सरकार या सरकारी तंत्र का नहीं वरन सकल समाज का है जिसमें आज स्त्री स्वयं को असुरक्षित पा रही है और समाज को मानो इससे कोई वास्ता ही नहीं है।
हम बलात्कार के आंकड़ों का विषपान किए जा रहे हैं लेकिन वारदातें हैं कि थमने का नाम नहीं ले रही हैं। खंडवा की घटना निर्भया कांड से कम वीभत्स नहीं है। पीड़िता की दशा देख कर डाॅक्टर्स भी कांप उठे। पूरा समाचार पढ़ कर कोई भी इंसान कांप उठेगा। लेकिन आश्चर्य है कि प्रबल विरोध का वह स्वर कहीं सुनाई नहीं दे रहा है जो निर्भया कांड के समय उठा था या फिर कोलकता की ट््रेनी डाक्टर के समय आक्रोश के रूप में उमड़ा था। वस्तुतः किसी शासन या प्रशासन का नहीं बल्कि समाज को अपनी उस तटस्थता के विरोध करने की आवश्यकता है जो ऐसी घटना का शीर्षक पढ़ कर भी ठिठकता नहीं है, सिहरता नहीं है, उबलता नहीं है। क्या समाज अब ऐसी घटनाओं पर मौन साधने का अभ्यास कर रहा है अथवा खुद से नज़रें चुरा रहा है? क्या सामाजिक सहयोग एवं समर्थन के बिना अकेला कानून ऐसी जघन्य घटनाओं को रोक सकता है? क्या समाज का कोई दायित्व नहीं है? आखिर वह समाज ही तो है जिसमें ऐसे अपराधी पलते और बढ़ते हैं। उनके द्वारा की गई छेड़छाड़ की घटनाओं को यदि समय रहते समाज द्वारा संज्ञान में लिया जाने लगे तो क्या अपराधी के भीतर पलने वाला अपराध का कीड़ा समय रहते कुचला नहीं जा सकता है? महिलाओं के प्रति बढ़ती नृशंसता पर सामाजिक मौन पीड़ादायक है और चिन्तनीय भी।
देश में महिलाओं को अपराधों और अपराधियों से बचाने के लिए यू ंतो ढ़ेर सारे कानून बनाए गए हैं, लेकिन अपराध के आंकड़े शर्म से सिर झुका लेने को विवश करते हैं। आज देश में बार-बार यह प्रश्न उठता है कि बलात्कार की घटनाओं पर कैसे अंकुश लगाया जाए? महिलाओं को यौन अपराध से कैसे सुरक्षित किया जाए? नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार भारत महिलाओं के लिए अब भी सुरक्षित नहीं हो पाया है। सन् 2012 में नई दिल्ली में चलती बस में पैरामेडिकल की छात्रा से जघन्य बलात्कार और हत्या के ‘‘निर्भया कांड’’ के बाद देश में यौन हिंसा के मामले को लेकर सख्त कानून और फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए गए लेकिन महिलाओं के खिलाफ हिंसा अब भी बेरोकटोक जारी है। एनसीआरबी के मुताबिक 2018 महिलाओं ने करीब 33,356 बलात्कार के मामलों की रिपोर्ट की। एक साल पहले 2017 में बलात्कार के 32,559 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि 2016 में यह संख्या 38,947 थी। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों में हर साल बढ़ोतरी हो रही है। राज्यों की बात करें तो सन् 2018 में बलात्कार के मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा 5,433 मामले दर्ज हुए। दूसरे स्थान पर राजस्थान 4,335 तथा तीसरे स्थान पर उत्तर प्रदेश 3,946 था। यद्यपि 2022 तक आंकड़ों में उतार-चढ़ाव आया लेकिन घटनाएं कम नहीं हुईं।
दिल्ली के निर्भया कांड के बाद कानूनों में सुधार के बावजूद रेप की बढ़ती घटनाओं ने सरकार और पुलिस को कठघरे में खड़ा कर दिया। आखिर महिलाओं के खिलाफ जघन्य मामलों पर अंकुश क्यों नहीं लग पा रहा है? बलात्कार के सरकारी आंकड़े भयावह है। एनसीआरबी के आंकड़ों में बताते हैं कि वर्ष 2019 के दौरान रोजाना औसतन 88 महिलाओं के साथ रेप की घटनाएं हुईं। यहां ध्यान रखना होगा कि ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक कारणों एवं भय के कारण बलात्कार की हर घटना थाने में दर्ज़ नहीं हो पाती है। जिसका आशय है कि वास्तविक आंकड़े इससे और अधिक हो सकते हैं। यूं भी देश में बलात्कार को महिलाओं के लिए शर्म का मामला माना जाता है और इसकी शिकार महिला को कलंकित जीवन जीने के लिए मजबूर किया जाता है। बलात्कारी इसी मानसिक व सामाजिक सोच का फायदा उठाते हैं। कई मामलों में रेप का वीडियो वायरल करने की धमकी देकर भी पीड़िताओं का मुंह बंद रखा जाता है।
2024 में कोलकाता ट्रेनी डॉक्टर के रेप-मर्डर केस में जब लोग सड़कों पर आ गए तब पूरे मामने को तत्परता से संज्ञान में लिया गया। कोलकाता में रेजिडेंट डॉक्टर की रेप और उसके बाद हत्या का मामला चर्चा में आया। कोलकाता के इस रेप कांड ने 2012 के निर्भया कांड की यादें ताजा कर दीं। इसके खिलाफ सिर्फ कोलकाता ही नहीं, बल्कि देशभर के कई शहरों में प्रदर्शन हुए। इसके बाद अपराधी पकड़े गए और पश्चिम बंगाल विधानसभा में 3 सितंबर 2024 को एंटी रेप बिल पास किया गया। नए कानून के तहत रेप केस की 21 दिन में जांच पूरी करनी होगी। इसके अलावा पीड़ित के कोमा में जाने या मौत होने पर दोषी को 10 दिन में फांसी की सजा होगी। भाजपा ने भी बिल का समर्थन किया। इसे अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक 2024 (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून एवं संशोधन) नाम दिया गया।
देखा जाए तो महिलाओं के खिलाफ अपराध पर कड़े कानून हैं। आईपीसी में धारा 375 में रेप को परिभाषित किया गया है, जबकि 376 में इसके लिए सजा का प्रावधान है। जबकि, भारतीय न्याय संहिता में धारा 63 में रेप की परिभाषा दी गई है और 64 से 70 में सजा का प्रावधान किया गया है। आईपीसी की धारा 376 के तहत रेप का दोषी पाए जाने पर 10 साल तक की जेल की सजा का प्रावधान है। बीएनएस की धारा 64 में भी यही सजा रखी गई है। बीएनएस में नाबालिगों से दुष्कर्म में सख्त सजा कर दी गई है। 16 साल से कम उम्र की लड़की के साथ दुष्कर्म का दोषी पाए जाने पर कम से कम 20 साल की सजा का प्रावधान किया गया है। इस सजा को आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है। आजीवन कारावास की सजा होने पर दोषी की सारी जिंदगी जेल में ही गुजरेगी। बीएनएस की धारा 65 में ही प्रावधान है कि अगर कोई व्यक्ति 12 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ दुष्कर्म का दोषी पाया जाता है तो उसे 20 साल की जेल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। इसमें भी उम्रकैद की सजा तब तक रहेगी, जब तक दोषी जिंदा रहेगा। ऐसे मामलों में दोषी पाए जाने पर मौत की सजा का प्रावधान भी है। इसके अलावा जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है।
गैंगरेप के मामलों में दोषी पाए जाने पर 20 साल से लेकर उम्रकैद और जुर्माने की सजा का प्रावधान है। बीएनएस की धारा 70(2) के तहत, नाबालिग के साथ गैंगरेप का दोषी पाए जाने पर कम से कम उम्रकैद की सजा तो होगी ही, साथ ही मौत की सजा भी सकती है। ऐसे मामलों में जुर्माने का भी प्रावधान है। जबकि, आईपीसी में 12 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ गैंगरेप का दोषी पाए जाने पर ही मौत की सजा का प्रावधान था। बीएनएस की धारा 66 के तहत, अगर रेप के मामले में महिला की मौत हो जाती है या फिर वो कोमा जैसी स्थिति में पहुंच जाती है तो दोषी को कम से कम 20 साल की सजा होगी। इस सजा को बढ़ाकर आजीवन कारावास या फिर मौत की सजा में भी बदला जा सकता है।
बलात्कार की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए कई कड़े कानून बनाए गए हैं लेकिन जैसाकि आए दिन होने वाली जघन्य घटनाओं से स्पष्ट है कि बलात्कारियों को किसी कानून का भय नहीं है। किसी जुनूनी हैवान की तरह वे अपराध को अंजाम दे डालते हैं। बलात्कार की निरंतर बढ़ती हुई आपराधिक प्रवृत्ति का कारण सभी अपने-अपने स्तर पर ढूंढते दिखाई देते हैं। बलात्कार के साथ जो सबसे खतरनाक और विकृत ट्रेंड जुड़ता जा रहा है, वह है बलात्कार के बाद नृशंसतापूर्वक हत्या किया जाना। एक तो बलात्कार का अपराध ही हमारी सामाजिक व्यवस्था में किसी भी स्त्री, युवती या बच्ची के सामान्य जीवन के अधिकार छीन लेता है, उस पर जीने का अधिकार छीन लिया जाना, वह भी प्रताड़ित कर के, विकृति की घातक स्थिति को दर्शाता है।
चूक कहां हो रही है जो महिलाओं के विरुद्ध नृशंस अपराध के आंकड़े कम होने के बजाए बढ़ रहे हैं? राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की 2022 की रिपोर्ट की 546 पेज की रिपोर्ट के अनुसार देश में महिलाओं के विरुद्ध अपराध के कुल 4 लाख 45 हजार 256 केस दर्ज किए गए, यानी हर घंटे लगभग 51 एफआईआर हुईं। 2021 में यह आंकड़ा 4 लाख 28 हजार 278 था। जांच एजेंसियों के अनुसार भारत में हर घंटे 3 महिलाएं रेप का शिकार होती हैं, यानी हर 20 मिनट में 1 महिला। इन डरावने आंकड़ों के पीछे मौजूद एक कड़वा सच यह भी है कि देश में रेप के मामलों में 96 प्रतिशत से ज्यादा आरोपी महिला को जानने वाले होते हैं। क्या उन्हें दण्ड का भय नहीं होता?
दुखद यह है कि रेप के मामलों में 100 में से 27 आरोपियों को ही सजा होती है, बाकी बरी हो जाते हैं। 2022 तक देश में 2 लाख रेपकेस लंबित थे। इनमें 18517 का ही ट््रायल पूरा हुआ। 5067 कन्विक्ट रहे यानी दोषी ठहराए गए और 12062 बरी हुए। यह स्थिति भी कहीं न कहीं विचारणीय है। हमारे देश में बलात्कार गैर-जमानती अपराध है। लेकिन एक सर्वे के अनुसार ज्यादातर मामलों में सबूतों के अभाव में अपराधियों को जमानत मिल जाती है। ऐसे अपराधियों को राजनेताओं, पुलिस का संरक्षण भी मिला रहता है। न्यायाधीशों की कमी के चलते मामले सुनवाई तक पहुंच ही नहीं पाते। ज्यादातर मामलों में सबूतों के अभाव में अपराधी बहुत आसानी से छूट जाते हैं। लेकिन कानून में छेद भी सामाजिक व्यवस्था के चलते ही बने हैं। क्योंकि आज भी ऐसे अपराधों के बाद पीड़िता की तरफ ही उंगली उठती हैं। इससे अपराधियों का मनोबल बढ़ता है। कई पीड़िताएं और उनके परिजन बदनामी के डर से केस दर्ज ही नहीं कराते हैं और यह बदनामी सामाजिक सोच ही देती है जिसमें हर अपराध के जिए लड़की को ही जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है।
दरअसल कड़े कानून लागू किए जाने के साथ ही राजनीतिक दलों, सरकारों और पुलिस में उसे लागू करने की प्रबल इच्छाशक्ति का होना भी जरूरी है। इसके साथ ही सामाजिक सोच में बदलाव भी जरूरी है यानी बलात्कारी का सामजिक बहिष्कार भी जरूरी है। जब तक बलात्कारी मानसिकता वाले व्यक्ति के मन में कानून और समाज का भय नहीं होगा तब तक निर्भया कांड से ले कर खंडवा कांड तक के नृशंस अपराधों पर रोक लगना कठिन है।
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