दैनिक 'नयादौर' में मेरा कॉलम - शून्यकाल 23 मई : विश्व कछुआ दिवस : केशव धृतकूर्मशरीर जय जगदीश हरे
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह
सन 2000 से प्रति वर्ष 23 मई को विश्व कछुआ दिवस मनाया जाता है। वही कछुआ जो हमारे ड्राईंरूम में गुडलक की निशानी के तौर पर सजा रहता है या फिर फिशपाॅण्ड में नन्हें जीव के रूप में तैरता रहता है। आज इस कछुए का अस्तित्व खतरे में हैं। इसके संरक्षण की जागरूकता लाने के लिए ही विश्व कछुआ दिवस मनाया जाता है। लेकिन भारतीय संस्कृति में कछुए को प्राचीनकाल से विष्णु के दशावतार में स्थान दे कर संरक्षित किया जाता रहा है। क्योंकि जो पूज्य है, उसे हानि नहीं पहुंचाई जा सकती है। वह तो पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव ने भारत में कछुओं पर संकट ला दिया अन्यथा दशावतार में दूसरे स्थान पर है कछुआ। जिसमें वैज्ञानिकता भी है।
विश्व कछुआ दिवस हर साल 23 मई को मनाया जाता है। इसकी शुरुआत अमेरिकन टॉर्टोइज रेस्क्यू द्वारा सन 2000 में हुई थी। इस दिन लोगों को कछुओं के बारे में विस्तृत जानकारी दी जाती है। कछुए के महत्व और उन पर मंडराते संकट के बारे में चर्चा की जाती है जिससे लोग जागरूक हों और कछुओं का संरक्षण हो सके। कछुए इस पृथ्वी के सबसे पुराने निवासियों में से एक हैं। वे लगभग 220 मिलियन वर्षों से वैश्विक पारिस्थितिक तंत्रों के अभिन्न अंग रहे हैं और कम से कम 400,000 वर्षों से मानव संस्कृति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। कछुए का खोल जैव विकास की वह विलक्षणता है जो उसे मीठे पानी और समुद्री खारे पानी के पारिस्थितिक तंत्रों में जीने की क्षमता प्रदान करता है। दुर्भाग्यवश, अभी तक कछुओं की 7 प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं और लगभग 360 कछुआ प्रजातियों में से लगभग 187 प्रजातियां विलुप्त होने की कगार में हैं। इसीलिए यदि अभी भी कछुओं की प्रजातियों को नहीं बचाया गया तो फिर कभी नहीं बचा सकेंगे।
कछुए क्यों विलुप्त हो रहे हैं? संक्षेप में कहा जा सकता है कि उनके आवास को क्षति, भोजन और पारंपरिक दवाओं के लिए मनुष्यों द्वारा मारा जाना और अंतरराष्ट्रीय पालतू व्यापार के लिए संग्रह के कारण कछुओं की आबादी तेजी से घट रही है। यह सचमुच चिंताजनक है।
भारतीय संस्कृति में ऋषि-मुनियों ने जैव विकास के प्रत्येक जीव के महत्व को भली-भांति समझ लिया था। वे जानते थे कि यदि सभी जीवों को महत्व मानस में स्थापित कर दिया जाए तो उन जीवों का संरक्षण सुनिश्चित हो सकता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण है भगवान विष्णु के दशावतार की संकल्पना। इस दशावतार में प्रथम अवतार मीन अर्थात् मछली को माना गया है और दूसरा अवतार कूर्म अर्थात कछुए को। इस संबंध में पुराणों में एक रोचक कथा भी है। जब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन शुरू किया, तो प्रश्न उठा कि समुद्र को मथा कैसे जाए? तब वासुकी सर्प को रस्सी के रूप में प्रयोग में लाया गया और मंदराचल पर्वत को मंथन के स्तम्भ के रूप में चुना गया। किन्तु जैसे ही मंथन आरंभ किया गया, मंदराचल पर्वत समुद्र में डूबने लगा। तब भगवान विष्णु ने कछुए का रूप धारण किया और पर्वत को अपनी पीठ पर रख लिया। कछुए की उभरी हुई पीठ पर रखा गया मंदराचल पर्वत सटीकता से घूम कर मंथन कर सका जिससे 14 रत्न निकले थे। इसीलिए भारतीय संस्कृति में कछुए को स्थिरता और समृद्धि का प्रतीक माना गया है।
जयदेव रचित ‘‘गीता गोविंदम’’ के दशावतार स्तोत्र में विष्णु के दशावतार की स्तुति की गई है। इसमें प्रथम और द्वितीय अवतार की स्तुति इस प्रकार है-
प्रलय पयोधि-जले धृतवान् असि वेदं
विहित वहित्र-चरित्रं अखेदं
केशव धृत-मीन-शरीर, जय जगदीश हरे।
क्षिति इह विपुलतरे तिष्ठति तव पृष्ठे
धरणि- धारण-किण चक्र-गरिष्ठे
केशव धृत-कूर्म-शरीर जय जगदीश हरे।
इसके बाद शूकर, नरहरि, वामन, भृगुपति, राम, हलधर, बुद्ध और कल्कि अवतारों का उल्लेख है। वैज्ञानिक दृष्टि से जीवों के विकास क्रम पर दृष्टि डालते ही दशावतार की संकल्पना की वैज्ञानिकता भी स्पष्ट हो जाती है-1. एक कोशिकीय जीव, बहुकोशिकीय जीव, फिर बहुकोशिकीय जीवों ने विभिन्न प्रकार के जीवों का विकास किया, जिसमें पौधे, जानवर और अन्य जटिल जीवन रूप शामिल हैं। जीवों का विकास विभिन्न चरणों में हुआ, जैसे कि उभयचरों से सरीसृपों का विकास, और फिर सरीसृपों से स्तनधारियों का विकास। लेकिन न केवल हम भारतीय बल्कि पूरी दुनिया मानो विकासक्रम और प्रत्येक जीव के महत्व को भूलती या अनदेखा करती जा रही है। यद्यपि हर देश में अब कछुओं की हत्या अथवा अवैधानिक व्यापार के विरुद्ध कानून बनाए जा चुके हैं किन्तु यह अभी भी पूरी तरह कारगर नहीं है।
मेडागास्कर में, प्लॉशेयर कछुआ या एंगोनोका ( एस्ट्रोचेलिस यनिफोरा ) को विलुप्त होने के कगार पर संरक्षित किया गया है और संभवतः यह दुनिया का सबसे लुप्तप्राय कछुआ है। इसे शायद ही कभी मेडागास्कर के बाहर पाला गया हो, और जैसे-जैसे इसकी आबादी घटी है, काले बाजार में इसका मूल्य बढ़ता गया है। कानूनी रूप से संरक्षित स्थिति के बावजूद, प्लॉशेयर को नियमित रूप से उच्च कीमतों पर इंटरनेट पर बिक्री के लिए रखा जाता है और उन्हें दक्षिण पूर्व एशिया में व्यापारिक केंद्रों के माध्यम से मेडागास्कर से अवैध बिक्री करना जारी है। कुछ समय पहले दक्षिणी मेडागास्कर के एक घर से लगभग 11,000 गंभीर रूप से लुप्तप्राय रेडिएटेड कछुए ( एस्ट्रोचेलिस रेडिएटा ) जब्त किए गए थे। छह महीने बाद, लगभग 7,000 और जब्त किए गए। उनमें से अधिकांश को अंतरराष्ट्रीय पालतू व्यापार के लिए एशिया में तस्करी किए जाने की संभावना थी, जिनमें से सबसे बड़े जानवर घरेलू खाद्य बाजार के लिए थे।
भारतीय स्टार कछुए जैसी प्रजातियां वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित हैं। दण्ड संहिता में यह प्रावधान है कि जो लोग इन संरक्षित प्रजातियों के व्यापार, बिक्री या यहां तक कि इनके मालिक होने में संलिप्त पाए जाएंगे, उन्हें गंभीर दण्ड के भागी बन सकते हैं।
कछुओं के अस्तित्व के लिए संकट पैदा करने वाले कुछ प्रमुख कारण हैं- जलवायु परिवर्तन, अवैध शिकार, समुद्री कचरा, नदियों में कारखानों के विषैले पदार्थों का बहाव, तेज गति से चलने वाली नौकाएं आदि। दरअसल, समुद्र के स्तर में वृद्धि, तटीय कटाव, और गर्म तापमान कछुओं के लिए खतरा बन रहे हैं। भोजन और पारंपरिक चिकित्सा के लिए कछुओं का अवैध शिकार किया जा रहा है, जिससे कुछ प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर आ गई हैं। समुद्री प्लास्टिक कछुओं के लिए खतरनाक है, क्योंकि वे इसे भोजन समझकर खा लेते हैं या इससे फंस जाते हैं। समुद्री कछुओं के लिए एक और खतरा है जो उनके आवासों को नुकसान पहुंचाती हैं और उन्हें नुकसान पहुंचाती हैं।
कोयला खनन, सीवेज अपवाह और नदी अवरोधों से गाद जमने से ये धाराएं क्षरित हो गई हैं। कछुआ प्रजातियों के ऐतिहासिक निवास का केवल लगभग 7 प्रतिशत ही बचा है, और आबादी में तेजी से गिरावट आई है। गाद और रेत खनन ने भी बाटागुर वंश के एशियाई नदी कछुओं की आबादी पर भारी असर डाला है ।
बांध बनाया जाना कछुओं के जीवन के लिए भी नुकसानदेह है। बांध निर्माण से जीन प्रवाह में बाधा उत्पन्न होती है। नदियों के तटीकरण और तटरेखा को सख्त करने से कछुओं के घोंसले और धूप सेंकने के क्षेत्र खत्म हो सकते हैं और आवास को बनाए रखने वाली हाइड्रोडायनामिक प्रक्रियाएं बदल सकती हैं । वैश्विक नदी की मात्रा का कम से कम 48 प्रतिशत प्रवाह विनियमन बांधों के कारण बदल गया है। इससे कछुओं को प्रजनन एवं जीवन विकास के अवसर कम होते जा रहे हैं।
कछुओं को बचाने के लिए उनके आवास को संरक्षित करके और पुनः स्थापित करना जरूरी है। इस दिशा में सबसे पहले जलवायु परिवर्तन की गति को कम करना भी आवश्यक है। इससे भी पहले अब तक बची हुई कछुओं की प्रजातियों को अवैध शिकार से बचाना जरूरी है। कछुओं को पालतू जीव के रूप में एक छोटे से पाॅण्ड में रखना ठीक उसी प्रकार है जैसे किसी पक्षी के पर काट कर उसे पिंजरे में कैद रखा जाए। माना जाता है कि स्फटिक कछुआ वित्तीय स्थिरता को बढ़ाता है और धन को आकर्षित करता है। अतः हम जिससे अपने शुभ-लाभ की प्रार्थना करते हैं, उसे बचाना भी हमारी जिम्मेदारी होनी चाहिए। यूं भी इकाॅलाॅजी सिस्टम का एक भी जीव कम होने से पूरा इकाॅलाॅजी सिस्टम गड़बड़ा सकता है क्योंकि इस पृथ्वी के स्वस्थ पर्यावरण के लिए हर जीव आवश्यक है।
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