बतकाव बिन्ना की
फोटू को हंसा लील गओ मोतियन की माला
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘का सोच रए भैयाजी?’’ मैंने भैयाजी से पूछी। काए से के बे अपने मूंड़ पे हाथ धरे बैठे हते।
‘‘सोचबे को का आए? कछू नईं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘ऐसो नईं, कछू तो सोच रए आप।’’ मैंने कई।
‘‘कछू नईं सोच रए।’’ भैयाजी लंबी संास भरत भए बोले।
‘‘अब आपको ने बताने होय सो ने बताओ।’’ भैयाजी खों उलायना दओ।
‘‘ऐसा कछू नईं। बस, जे ई आजकाल की दसा सोच के जी बढ़ा रओ हतो।’’ भैयाजी तनक दुखी होत भए बोले।
‘‘कोन सी दसा?’’ मैंने पूछी।
‘‘जे आजकाल का चल रओ, कछू समझ नईं परत।’’ भैयाजी फेर के गोलमोल बोले।
‘‘काए को? काए के बारे में सोच के दुखी हो रए आप?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘बड़े अंधरा से दौड़ रए कमाबे के लाने औ बच्चा हरों खों दौड़ा रए नंबरन के लाने। अरे, हमाए बब्बा कैत ते के उत्तई कमाओ जित्ते में अच्छे से गुजारा हो जाए। कोनऊं के आंगू हाथ ने फैलाने परे। पर इत्तो बी ने करो के कमातई भर रै जाओ औ ऊको चैन से खा बी ने सको।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सई कैत ते आप के बब्बा जू। मोरो सोई जेई सोचबो आए। अरे, दो रोटी चाए सूकी होय, पर चैन से खाओ तो सरीर में लगत आए। नेतो मैंगो-मैंगो खा के बी अस्पताले डरे दिखात आएं।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हऔ! मनो मैंगो जो खा रए ऊमें कोन सत आए? आजकाल बच्चा तो बच्चा, बड़े सोई पिज्जा औ बर्गर की होम डिलेवरी मंगा रए। आलस जे के को बनाए। एक फोन करो औ घरे के दोरे आ गओ पिज्जा, बर्गर। उते गुरुग्राम में हमाई फुआ के मोड़ा औ बहू कोनऊं कम्पनी में नौकरी कर रए। उनके घरे खाना तो कभऊं-कभऊं ई बनत आए। अभई पिछली मईना फुआ अपने मोड़ा के इते हो के आईं तो अंसुवां भर-भर के बता रई हतीं के उन्ने मोड़ा की दसा देखी तो बे उते ऊके लाने खाना बनाऊंन लगीं। मनो उनके हाथ की रोटी-सब्जी ने तो उनके मोड़ा खों पोसाई औ ने उनकी बहू खों। दोई ने साफ कै दई के तुमाए खाने में कोनऊं टेस्ट नोईं। बिचारी फुआ अपनो सो मों ले के रै गईं।’’ भैयाजी बतान लगे।
‘‘अब का करो जा सकत आए। उते ठैरी फास्ट लाईफ।’’ मैंने भैयाजी खों समझाओ चाओ।
‘‘लूघरा लगे ऐसी फास्ट लाईफ खों। अरे, कमा काए के लाने रए? इते अल्लम-गल्लम खा रए औ उते जिम जा के सेहत बनाबे में पइसा बहा रए। उत्तो टेम दोई मिल के घरे दे लेंवे सो जिनगी सुदर जाए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘ऐसो आए भैयाजी के अपने सागर में सोई देख लेओ के बायरे को खाना घरे मंगाबे औ बायरे जा के खाबे को चलन बढ़ो आए के नईं?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘बढ़ो आए, हमने मानो! पर इते रोज-रोज को जा रओ? हप्ता में दो-चार दिनां तो चलत आए। मगर उते तो अत्तें हो रईं। फुआ खों तो जे बात की सोई फिकर हो रई के जबें बहू के मोड़ा-मोड़ी हुइएं तो का हुइए? उनकी बहू जजकी के लड़ुवा के बजाए चाउमिन खाहे का?’’ भैयाजी ने फुआ की चिंता बताई। बा सुन के मोए हंसी छूट परी।
‘‘बे तो कछू ज्यादई सोच रईं। अकेली उनकी बहू उते नई रै रई। मुतकी बहुएं उते रै के नौकरी कर रईं औ मताई बन रईं। औ सबरी भली-चंगी आएं। आजकाल की बहुएं अपनो खयाल रखबो खूब जानत आएं।’’ मैंने भैयाजी से हंस के कई। फेर मैंने भैयाजी खों जे सोई याद दिलाओ के ‘‘तनक आप सोचो के अब तो चंद्रमा पे औ अंतरिक्ष में बसबे की प्लानिंग चल रई, सो का उते रैबे वारी बहुएं जजकी के लड़ुआ खाहें?’’
‘‘बात तो तुमाई सई आए मनो, अब बूढ़े-पुराने लोगन खों चिंता तो होत आए। उने लगत आए के उनके बच्चा हरें सब कछू अच्छो खाएं औ अच्छे से रएं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘जे सब समै-समै औ किस्मत की बात रैत आए। चात तो सबई आएं के सब कछू अच्छे से रए मनो फेर बी दसा बिगड़ जात आए। हऔ जे बात सई आए के अच्छे करबे वारे जल्दी सम्हर जात आएं औ गलत आदत वारे देर से सई पर ज्यादा पिरत आएं। आपने बा नल महराज की किसां सुनी हुइए।’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘नल महराज की कैसी किसां? हमने नई सुनी। का किसा आए?’’ भैयाजी पूछन लगे।
‘‘किसां जे आए के एक राजा नल हते। उनको बड़ो भारी राज हतो। मनो उनें एक खराब लत हती, जुआ खेलबे की। उनकी रानी दमयंती उनें टोंकत रैत तीं के जुआ ने खेलो करो। जे अच्छी बात नोंई। पर राजा खों तो लत रई। एक दफा राजा नल जुआ में अपनो सगरो राजपाट हार गए। उने अपनों राज, अपनो महल सबई कछू छोड़ने परो। बे अपनी रानी के संगे जंगल की गैल निकर परे। तभई उने ढूंढत भओ उनको एक मित्र आ गओ। बा उन दोई खों अपने महल में लिवा ले गओ। दोई को अच्छे से सत्कार करो। दोई खों अच्छो खाबे खों दओ औ नए हुन्ना-लत्ता दए। संझा गप्पें मारत गुजारी, फेर ब्यालू करी औ फेर राजा नल औ उनके मित्र बैठ गए जुआ खेलबे के लाने। रानी दमयंती ने उने समझाओ के इत्ते पे बी आपके लाने अकल ने आई? अब तो जुआ से हाथ जोड़ लेओ। पर लत तो लत आए। राजा नल ने दमयंती की एकऊं ने सुनीं। बाकी अपने मित्र से जे जरूर कई के हमाए पास दांव पे लगाबे के लाने कछू नइयां। जो ऊंसई खेलने होय तो हम खेल सकत आएं। उनको मित्र बोलो के कछू फिकर नईं, हम आपके लाने सोनो-चांदी दे रए। जो आप जीते तो बा सब आपको हो जाहे औ जो आप हारे तो बा सब हमाए पास वापस आ जाहे। सो, ई टाईप से दोई देर रात तक जुआ खेलत रए। राजा नल की ग्रहदसा ऊंसई सई नईं चल रई हती तो बे हारत चले गए। अखीर में उनको मित्र बोलो के अब जा के आप आराम करो। कल संकारे बातें करबी। जे कै के बा अपने कमरा में चलो गओ औ राजा नल अपने कमरा में आ गए।’’ मैं राजा नल की किसां भैयाजी खों सुनान लगी।
‘‘फेर का भओ?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘फेर जे भओ के राजा नल अपने कमरा में आए तो देखी के रानी दमयंती गहरी नींद में सो रई हतीं। एक छोटो-सो दिया कमरा में जल रओ हतो। राजा नल धीमें से पलकां पे लेट गए। एक तो सबरो राज-पाट छिन गओ रओ औ ऊपे से जुआ में हार के चले आ रए हते, सो उनकी आंखन में नींद को नांव ने हतो। उनके पलकां के सामने वारी दीवार पे एक फोटू टंगो हतो। ऊ फोटू में एक हंसा बनो रओ। ऊ फोटू के ऊपर मोतियन की एक माला सजा के टंागी गई रई। राजा नल मन लगाबे खों बा हंसा की तरफी देखन लगे। अब बुरए दिनां की दसा देखो आप, के राजा ने देखी के बा फोटू को हंसा असली मोतियन की माला को खान लगो। देखत ई देखत ऊने पूरी माला निगल लई। अब राजा नल जे सोच के डरा गए के जब संकारे उनको मित्र उनके कमरा में मोतियन की माला ने पाहे तो बा तो जेई सोचहे के राजा नल ने चुरा लई आए। काए से के बे रात को जुआ में हारत चले गए रए। ऊको ई बात पे भरोसो थोड़ी हुइए के बा चि़त्र वारो हंसा माला खों निगल गओ। राजा नल खों लगो के जे तो बड़ी अपमान वारी बात हुइए। ईसे तो अच्छो आए के मों अंदियारे इते से निकर जाओ जाए। राजा नल रानी दमयंती खों जगाबे जा रए हते के उने लगो के अपनी बुरई लत को भोगना बे अकेले भोगें, बिचारी रानी खों काए परेसान करो जाए। सो बे रानी खों उतई सोऊत छोड़ के महल से चले गए। तभई से जे कैनात चल परी के जो बिपदा आत आए तो फोटू को हंसा बी मोतियन की माला निगल जात आए। पर जे बिपदा राजा नल की जुआ की लत के कारण आई रई। ने तो उनको अच्छो-खासो राजपाट रओ।’’ मैंने भैयाजी खों राजा नल की किसां सुना दई।
‘‘सई आए! बाकी रानी को का भओ?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘संकारे रानी ने राजा नल खों उते ने पाओ तो ढूंढ-खोज कराई। पर राजा को पतो ने परो। राजा नल के मित्र ने रानी दमयंती खों अपने सिपाइयन के संगे उनके भैया के घरे भिजवा दओ। जां बे तब लौं रईं जब लौं राजा नल फेर के अपनो राज-पाट जीत के उने लेबे ने आएं। बाकी राजा नल खों जे जान के भारी अचरज भओ रओ के संकारे रानी ने बा माला हंसा के ऊपरे टंगी देखी रई। मने राजा नल खों अपने जुआ खेलबे के गलत काम के बदले भोगना भोगबे परो।’’ मैंने भैयाजी खों पूरी किसां बता दई।
‘‘जे तो सई आए। लोग चाए कित्तों बी भ्रष्टाचार कर लेबें कोनऊं ने कोनऊं तरीका से उनको गलत पइसा उनई खों रोवात आए। जे सई आए के कछू जने अबे बी बिदेस से पकर के अपने देस नई लाए गए आएं, पर मुतके ऐसे बी आएं के जो बंधे-बंधे फिर रए।’’ भैयाजी बोले। अब बे तनक चैन में दिखा रए हते। ने तो जब मैं उनके इते पौंची ती तो बे चिंता में मों लटकाए बैठे हते।
बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लौं जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर ई बारे में के आजकाल बी गलत को नतीजा गलत होत आए के नईं?
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