Thursday, July 4, 2024

बतकाव बिन्ना की | ऊ राजा के दो सींग हते | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम

बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
ऊ राजा के दो सींग हते
   - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
    का आए के भौजी औ भैयाजी हफ्ता- खांड़ से बाहरे गए, सो उनसे बतकाव ने हो पा रई। सो मैंने सोची के आप ओरन से बतकाव बी कर लई जाए औ आप ओरन खों अपने इते की एक किसां सोई सुना दई जाए। काय से के ऐसी किसां कभऊं पुरानी नोई होत। ईको जो साहित्य की भाषा में कई जाए तो बरहमेस ‘‘समसामयिक मूल्य’’ होत आए। जे किसां आए एक राजा की। बाकी मैं पैलई कै रई के ई किसां को कोनऊं से जोर के ने देखो जाए, ने तो जो कछू नुकसान हुइए ऊकी जिम्मेदारी मोरी ने कही जैहे। सो, किसां को किसां घांई लइयो, ईकी ‘‘प्रासंगिकता’’ में ने परियो। सो, किसां ऐसी आए के -
एक हतो राजा। ऊको एक हतो नाई। कहो जाए तो बा राजनाई हतो। बा सिरफ राजा के मूंड़ को बाल काटत्तो, औ कोनऊं के मूंड़ को नईं। बा राजा के बाल काटत समै नायं-मायं की सबरी खबरें राजा को सुना देत्तो। एक दिनां का भओ के नाई राजा के मूंड़ को बाल काट रओ हतो औ खबरें सुनात जा रओ हतो। इत्ते में नाई को राजा के मूंड़ में कछू कड़ो-कड़ों सो लगो। ऊको लगो के राजा अपने मूंड़ में इत्तो तो चमेली को तेल डरवात आए, सो जे इनके बाल तो कर्रे हो नईं सकत। सो फेर का आय? ऊने तनक अच्छे से थथोलो। सो, बा जे देख के दंग रै गओ के राजा के मूंड़ में दो ठईयां सींग उग आए रए। तब लों राजा को सोई कछू गड़बड़ लगो के जे नाई हमाए मूंड़ में का थथोल रओ आए? सो, ऊने सोई अपने मूंड़ पे हाथ फेरो। जैसई ऊके समझ में आई के ऊके मूंड़ पे सींग आएं, सो बा घबड़ा गओ। राजा को जे बात को डर लगो के सींग उगे, सो उगे, मनो अब जे बात नाई सब खों बता दैहे तो सबरे ऊको राच्छस समझन लगहें। नाई सोई ताड़ गओ के राजा को जे पंसद ने आहे के नाई को ऊको भेद पतो रए। सो, राजा कछू कैतो ऊके पैलेई नाई राजा के आंगू हाथ जोड़ के ठाड़ो हो गओ।
‘‘महाराज! हमने आपको नमक खाओ आए, सो हम नमकहरामी कभऊं ने करहें। जो हम जे बात कोनऊं मानुस से कहें सो, रामधई, आप हमाओ मूंड़ कटवा दइयो।’’
‘‘पक्को! जे बात कोऊ से ने कैहो?’’ राजा ने पूछी।
‘‘पक्को! आप चाए जोन की कसम उठवा लेओ। का हमें अपनी जान प्यारी नोंई?’’ नाई गिड़गिड़ात भओ बोलो।
राजा ने सोची के अगर जे नाई खों मरवा दओ जाए तो ईसे का हुइए? बाल तो कोनऊं ने कोनऊं से कटवानेई परहे। जे तो हमााओ बरसों पुरानो सेवक आए, जे तो एक बेरा कोनऊं से ने कैहे। मनो नओ नाई को कोन भरोसो? ऊने कऊं बक-झक दओ तो फेर कोन-कोन को मों बंद करत फिरबी?
‘‘चलो ठीक आए। जब लौं तुम हमाए सींग को भेद, भेद राखहो, तब लौं तुमाई जान बख्शी रैहे।’’ राजा ने नाई को भरोसो दिलाओ।
नाई राजा खों तो मना-मुनू के महल से बाहरे निकर आओ, मनो कोनऊं से बताए बिना ऊको पेट पिरान लगो। मगर बा कोनऊं से कै नई सकत्तो। जो कोनऊं से कैतो औ राजा को पता पर जाती तो ऊकी तो जिनगी गई कहानी।
ऐसईं में कुल्ल मईना निकर गए। नाई जातो, राजा के मूंड़ के बाल काटतो औ राजा के मूंड़ पे बढ़त भए सींगन के बारे में कोनऊं से ने कह पाबे के कारण मन मसोस के रै जातो। जेई-जेई में ऊकी तबीयत बिगरन लगी। उकी लुगाई ने देखी के जाने कोन सी फिकर में ऊके घरवारे की तबीयत बिगरी जा रई, सो ऊने पूछी के का हो गओ। नाई ने कई के हम तुमें नई बता सकत, औ तुमें का कोनऊं खों नई बता सकत आएं, ने तो राजा हमाओ मूंड़ कटवा दैहे। ईपे ऊकी लुगाई ने कई के ऐसो करो के हारे में जा के कोनऊं पेड़ से तुम सब कछू कै आओ। ऐसे तुम कै बी लेहो औ कोनऊं मानुस सुन बी ने पाहे। नाई खों अपनी घरवारी की बात सई लगी। बा हारे गओ। उते पौंचे के जोन सबसे ऊंचो पेड़ दिखानों, ऊके गले लग के ऊको राजा के सींग के बारे में बता दओ। बतातई साथ नाई को जी हल्को हो गओ। ऊकी तबीयत सोई सुधर गई। लौट के आ के बा मजे से अपनो काम करन लगो।
कुल्ल समै बीत गओ। एक दिना राजा के दरबार में एक बाजो वारो आओ। ऊने कई के ऊके पास मंजीरा, सांरगी औ तबला आए। जो बा राजा खों भेंट करबो चात आए। राजा के मंत्री ने कई के पैले अपने बाजे बजा के दिखाओ के जे भेंट में लेने जोग आएं के नईं? बा बाजो वारो मान गओ। ऊने पैले सांरगी बजाई। सांरगीं से आवाज निकरी के -‘‘राजा के दो सींग।’’ जा सुन के राजा चैंक गओ। दरबारी सोई सन्नाटा खा गए। बाजो वारो सोई घबरा गओ। ऊने सारंगी एक तरफी धरी औ मंजीरा बजान लगो। मंजीरा से आवाज कढ़ी के ‘‘किन्ने कई? किन्ने कई?’’
     राजा को कछू समझ ने आ रई हती के जे बाजे ऐसो काय बोल गए? बाजा वारो सोई डरा गओ। ऊने तुरतईं मंजीरा छोर के तबला पकर लओ। जैसई ऊने तबला बजाओ, सो तबला बोल परो,‘‘नाई बब्बा ने कई, नाई बब्बा ने कई।’’
अब तो राजा समझ गओ के ऊकी पोल खुल गई आए। ऊने नाई खों बुलाओ औ बोलो के हमने तुमसे कई रई के तुम कोनऊं खों नई बताइयो औ तुमने कसम सोई खाई रई के ने बताहो, फेर जे सब का आए?’’
‘‘महाराज! हम सांची कै रै के हमने कोनऊं मानुस खों नई बताओ। आप चाओ तो हमाओ मूंड़ कटवा लेओ, मनो हम सांची कै रए के हमने कोनऊं मानुस से आपके सींगन के बारे में कछू नई कई।’’ नाई थरथर कांपत भओ बोलो।
राजा औ नाई की बात सुन के मंत्री को कछू शंका भई। ऊने बाजा वारे से पूछी के तुमने जे बाजा कां से बनवाए?
‘‘हजूर! हमने जे बाजा अपने इन्हईं हाथन से बनाए आएं। हम खुदई हारे गए रए। उते हमने खुदई पेड़ काटो औ ऊकी लकरिया से सारंगी औ तबला बनाओ। बाकी जे मंजीरा कांसे खों गला के बनाओ रओ।’’ बाजा वारे ने बताई। बाजा वारे की बात सुन के मंत्री समझ गओ।
‘‘नाई महाराज! अब तुम बताओ के तुमने का हारे जा के कोनऊं पेड़ से राजा को भेद कओ रओ?’’ मंत्री ने नाई से पूछो।
‘‘हओ हजूर! का करो जाए, कोनऊं से कै बिना हम मरे जा रए हते, औ कोऊ मानुस से कै ने सकत्ते सो हमने हारे जा के सूना-सन्नाटा में एक पेड़ से सब कै दई रई।’’ नाई डरात भओ बोलो।
‘‘महाराज!’’ फेर मंत्री ने राजा से कई,‘‘अब आपको भेद सब खों पता परई गओ आए। बाकी आपके सींगन से हमें कोनऊं परेसानी नोंई। काय से के आपको राज-काज अच्छो आए। कोऊ ने कोऊ गड़बड़ तो हर मानुस में रैत आए, इस, ऊको काम अच्छो भओ चाइए। सो आप के मूंड़ पे चाए सींग काय ने उग आएं, आपतो हमाए राजा हो, औ रैहो।’’
‘‘पर जे बताओ के जे तुमें कैसे समझ परी के जा नाई ने कोनऊं पेड़ से कई हुइए?’’ राजा ने मंत्री से पूछी।
‘‘महाराज! सूदी सी बात आए। आप तनक याद करो के जब सारंगी बजाई गई तो वा बोली के -राजा के दो सींग। फेर मंजीरा ने पूछी हती के -किन्ने कई, किन्ने कई? काय से ऊको पता ने रई। फेर तबला खों पता हतो सो बा बोल परो के -नाई बब्बा ने कई, नाई बब्बा ने कई। जा सुन के ई हम समझ गए रए के जा सारंगी औ तबला एकई पेड़ की लकरिया से बने हुइएं सो इन दोई खों आपको भेद पतो आए। जबकि सारंगी ठैरी कांसे की, सो बा ने जानत्ती, जेई पे किन्ने कई पूछन लगी।’’राजा मंत्री की बात सुन के ऊकी हुसियारी पे भौतई खुश भओ।
‘‘महाराज! जा नाई सोई अपन ओरन घांई इंसान की जात आए। भौत बड़ो भेद होय, सो ऊको पचानो मुस्किल होत आए। मनो ईने तो अपनी जान में कोनऊं से नई कई। ईको का पतो रओ के कभऊं पेड़ खों काट के बाजा बनाए जाहें औ बाजा सबरे भेद खोल दैहें। सो जा नाई को माफ करो जाए। जा आपके लाने भौतई ईमानदार आए।’’ मंत्री ने राजा खों समझाई। मंत्री के कहे पे नाई को बी माफ कर दओ गओ।    
सो भैया औ बैन हरों, जे हती ‘‘राजा के दो सींग’’ वारी किसां। जे किसां से दो बातें समझ में आउत आएं के राजा खों अपनी परजा से कोनऊं भेद नई रखो चाइए, बस अच्छो-अच्छो काम करो चाइए। परजा राजा की ब्यूटी नईं देखत आए औ ने हुन्ना-लत्ता देखत आए, ऊको तो सबसे पैले अपने लाने औ अपने परिवार के लाने रोटी, हुन्ना औ घर दिखात आए। सो, जो मैंगाई कम करे, बो सबसे अच्छो राजा कहाय, चाए फेर ऊके सिर पे सींग होंय, चाय पांछू पूंछ होए। औ दूसरी बात जे के जो भेद राखबे की बात करी होय, सो भेदई राखो, फेर दीवार होय चाए पेड़ होय, सबई के कान औ मों हो सकत आएं।
सो, जा अपने बुंदेलखंड की इत्ती नोनी किसां आए। बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की।
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