Thursday, August 17, 2023

बतकाव बिन्ना की | मेरठ से पैलईं बुंदेलखंड से शुरू भई रई आजादी की लड़ाई | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

"मेरठ से पैलईं बुंदेलखंड से शुरू भई रई आजादी की लड़ाई" - मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की  
मेरठ से पैलईं बुंदेलखंड से शुरू भई रई आजादी की लड़ाई              
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
         बो का आए के भैयाजी तनक बिजी चल रए ई दिनां। पैले पंद्रा अगस्त के लाने झंडा बनवाउने रओ औ बुंदी बनावाउने रई सो ऊमें बिजी रए। औ अब उनको काम देख के कछु चुनाव की तैयारी वारे उनके पांछू लग गए आएं। सो, आज मैंने सोची के आपई लोगन से बतकाव कर लई जाए। ऊंसई अपन ओरन की जान-पैचान सोई पुरानी आए। चलो सुनो आप ओरें, अबे का भओ के एक दिनां एक कक्का जू से मोरी गिचड़ हो गई। बे ठैरे मेरठ के। सो, बे कैन लगे के जे जो आजादी को बिगुल फूंको गओ बा सबसे पैले हमारे इते फूंको गओ। मैंने कई के नईं कक्का जू, बुंदेलखंड से शुरू भई हती आजादी की लड़ाई। बस, फेर का हती, बे अपनी ठेन देन लगे औ मैं अपनी। बे उते की गिनान लगे औ मैं इते की गिनान लगी। बे मानबे खों तैयार नईं। उनको कैबो रओ के मंगल पांडे के बिद्रोह करे से शुरूआत भई। ईपे मैंने उने समझाई के कक्का जू, जे ठीक आए के मंगल पांडे ने बिद्रोह करो रओ, मने बा बिद्रोह भओ रओ 10 मई 1857 को औ हमाए बुंदेलखंड में सो 1842 को ई बुंदेला बिद्रोह हो गओ रओ।
‘‘बा सो, बुंदेला बिद्रोह रओ, बा कोन स्वतंत्रता संग्राम रओ?’’ कक्का जू काय को मानबे वारे हते, बे कछू के कछू तर्क देन लगे।
‘‘ऐसो नईं होत कक्का जू के जब कोनऊं बैनर लओ होय तभई आप मानों के बा ऐसो बिद्रोह रओ, के बा वैसो बिद्रोह रओ। ऊ टेम पे बे सबई जने अंग्रेजन के खिलाफ लड़त्ते। औ रई बिद्रोह शुरू होबे की बात की, सो मोरी मानो आप के मेरठ के बिद्रोह से 15 बरस पैले चित्रकूट में गऊ माता के मारे जाबे पे हिन्दू औ मुस्लिम दोई बिरादरी वारन ने मऊ तहसील में एक पंचायत बिठाई हती। ऊमें तै करो गओ के जोन अंग्रेज अफसरन ने गऊ माता खों मरवाओ आए उने सोई मौत की सजा दई जाए। फेर का हतो, पांच अंग्रेज अफसरन खों पकर के फंदा पे लटका दओ गओ।’’ मैंने कक्का जू खों बताओ। पर बे काए को मानबे वारे।
‘‘तुम सोई मनगढ़ंत कै रईं।’’ कक्का जू ने मोय लबरा कै दओ। मोय बड़ी गुस्सा आई। एक तो अतो ने पतो, ऊपे दए जा रए दोंदरा।
‘‘कक्का जू! जो आपको मोरी बात झूठी लगे, सो जा के पढ़ लेओ बांदा के गजेटियर में।’’ मैंने उनसे कई।
‘‘पर हमने सो कभऊं नईं सुनो!’’ कक्का जू बोले।
‘‘सो कक्का जू! सुनबे की सो ऐसी आए के अपन ओरन ने बहोत कछू अबे पढ़ो, सुनो नईयां। मने ईको मतलब जे तो नईं के ऐसो भओ नई रओ। तनक समझो करे! मैं कभऊं ऊंसई नईं कैत। मोय फंकाई देबे की आदत नोंई।’’ मोय भौतई गुस्सा आ रओ हतो कक्का जू पे। जो तुमें कोऊ बता रओ औ ई बारे में सोई के कां लिखो आए, फेर बी तुम ठेन देत फिर रए। अभईं कोनऊं तुमाए लाने बताए के बा तरां वारे की लुगाई बरां वारे के संगे घूम रई हती, सो तुम आंख मींच के मान लैहो, औ जो मैं कै रई ठक्काठाई से बा तुमाई समझ नई पर रई?
‘‘सो का लिखो ऊ गजेटियर में?’’ कछू सोचत भए कक्का जू ने पूछी।
‘‘ऊमें लिखो आए के आबे वारे समै में एक कक्का जू हुइएं जो कभऊं कोनऊं की बात ने मानहें।’’ मैंने चिढ़ के कई।
‘‘हऔ चलो, हमाओ मजाक ने उड़ाओ। हमें कछू अच्छे से बताओ के ऊमें का-का लिखो?’’ कक्का जू ने अब तनक ढंग से पूछी। सो, मोय ठीक लगो। अरे, तुमें नईं पतो सो ईमें का? कोन को सब कछू पतो रैत आए? मैंने सोई जब पढ़ी सो पता परी।
‘‘उमें लिखों आए के 1842 में अंग्रेज हरें चित्रकूट की मंदाकिनी नदी के किनारे गऊ माता खों मरवा के उनको मांस बंगाल औ बिहार भेजो करत्ते। बदले में बे उते से रसद औ हथियार मंगाउत्ते। चित्रकूट के लोगन से जो पाप होत देखो नई जा रओ हतो। एक तो गऊ माता की हत्या, ऊपे मंदाकिनी नदी के किनारे। ऐसो नइयां के जे बात हिन्दुअन को बुरई लग रई हती, मुसलमान सोई जे बात से खफा हते। सो चित्रकूट के हिन्दुअन औ मुसलमानन दोई ने पैले मराठा राजाओं से जे पाप बंद कराबे की गुहार करी, पर बे हते तनक कमजोर। उनकी हिम्मत ने परी के अंग्रेजों खों ऐसो करबे से रोक सकें। फेर की गई गुहार नयांगांव के चैबे राजाओं से। बे सोई अंग्रेजन के खिलाफ कछू करबे की दसा में ने हते।’’ मैंने तनक सांस लई, के कक्का जू पूछ बैठे के ‘‘फेर का भओ?’’ मनो अब उने जानबे की लगन जाग उठी हती। जा देख के मोय अच्छो सो लगो।
‘‘फेर बो भओ, जोन के बारे में कोनऊं ने सोची ने हती। ऊ टेम पे हरबोला होत्ते जो गांव-गांव घूम के अपने गाना में दसां औ किसां सुनात्ते। सो, कछू हरबोले गऊ माता के मारे जाबे की औ चित्रकूट वारन की पीड़ा की किसां गा-गा के गांव-गांव में सुनान लगे। जोन ने उनकी किसां सुनीं बे फड़क उठे। उने लगो के जे सो गजबई पाप हो रओ। ईसे भओ जे के सबई के मन में अंग्रेजन के खिलाफ कछू करबे की इच्छा होन लगी। बा 1842 की जून मईना की छठीं तारीख रई, के मजदूर, किसान, बुरका वारी लुगाइयां सबई ने मिल के मऊ तहसील को घेर लओ। सबई ने खूबई नारे लगाए। कछू देर में तहसील में मौजूद पांच अंग्रेज अफसरन खों पकर लओ गओ। उते लोग कैन लगे के इन्ने हमाई मताई समान गऊ माता को मारो, सो इने सोई बचो नईं चाइए। सो उतई एक पेड़ के नैचें पंचायत बैठी औ फैसला सुना के बोई पेड़ पे उन पांचों अंग्रेजन खों फंदा लटका दओ गओ।’’
‘‘जो अच्छो करो!’’ कक्का जू खुस होत भए बोले।
‘‘इत्तई नईं कक्का जू! का भओ के जो जे खबर राजापुर पौंची, सो उते अंग्रेजन खों लतिआओ गओ। फेर मर्का, समगरा, बबेरू, जौहरपुर, पैलानी, बीसलपुर, सेमरी से अंग्रेजन खों खेदेड़ो गओ। मगर बो का आए के अपने इते कछू कछू ने समै समै पे भांजी मारी रई। बेई से तो अंग्रेज दो सौ बरस हमाए मूंड पे टिके रए। इते बिद्रोहियन ने 15 जून को बांदा छावनी के प्रभारी मिस्टर काकरेल को मूंड़ काट दओ औ युद्ध परिषद को गठन करत भए बुंदेलखंड को आजाद घोषित कर दओ। उते अंग्रेजन के कैबे पे पन्ना, छतरपुर, अजयगढ़ और बांदा से फौजें भेजी गईं बिद्रोह दबाने के लाने, जिने भीतरे से जता दओ गओ रओ के उते बिद्रोहियन को साथ देने आए। इतई मात ख गए सबरे। जो उन रियासतों के राजा हरें खुल के हथियार उठाउते तो बात कछू औ रैती। अंग्रेज ज्यादा चतुर औ सयाने हते, उन्ने जे बात फैला दई के राजा सो हमाए संगे आएं। सो, करत-करत बिद्रोह दबत गओ। बाकी मेरठ के पैलेई शुरू भओ रओ बिद्रोह बुंदेलखंड के चित्रकूट औ मऊ में।’’ मैंने पूरी किसां सुना डारी कक्का जू खों।
‘‘देखो तो, मोय सो पतोई नई रओ!’’ कक्का जू तारीफ करत भए बोले।
‘‘सो मान गए न आप?’’
‘‘हऔ मान गए।’’ कक्का जू  खों  माननई परो।  
आप ओरन खों सोई कछू पतो होय सो आपस में कै-सुन लेओ करे। बाकी, जै हिंद! जै बुंदेलखंड! काए से के बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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