चर्चा प्लस
कहां गई सरस्वती नदी? वह थी भी, या नहीं?
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
गंगा, यमुना और सरस्वती - हमेशा एक साथ सुना है इन तीन नदियों का नाम। यह माना जाता है कि प्रयाग में इन तीनों नदियों का संगम होता है। वही प्रयाग जहां इआगामी कुंभ होने जा रहा है। वहां गंगा और यमुना के साथ सरस्वती का होना हमेशा संशय का प्रश्न रहा है। गंगा और यमुना दिखाई देती हैं किन्तु सरस्वती दिखाई नहीं देती। इसीलिए लोग मानते हैं कि सरस्वती अदृश्य रूप में वहां आ कर मिलती है। क्या यह संभव है कि कोई नदी धरती के ऊपर बह रही हो और वह दिखाई न दे? तो फिर यह मिथक है अथवा इसमें कोई सत्यता भी है? वैज्ञानिक भी इसकी सत्यता की खोज में लगे हुए हैं। पौराणिक कथाएं सरस्वती के लुप्त होने पर अवश्य प्रकाश डालती हैं।
सरस्वती नदी का उल्लेख प्राचीन शास्त्रों में मिलता है। उत्तर वैदिक ग्रंथों में भी इसका उल्लेख देखा जा सकता है। प्रचीन ग्रंथों एवं महाकाव्यों में सरस्वती नदी का स्पष्ट उल्लेख है। ‘‘महाभारत’’ में सरस्वती नदी का उल्लेख किया गया है किन्तु आचश्र्य का विषय है कि ‘‘महाभारत’’ में भी सरस्वती को लुप्त नदी माना गया है। ‘‘महाभारत’’ में उस स्थान को विनाशना तथा उपमज्जना के नाम से संबोधित किया गया है जिस स्थान पर सरस्वती नदी लुप्त हुई थी। लेकिन इस बिन्दु पर भी एक विरोधाभास मौजूद है। ‘‘महाभारत’’ में इसे प्लक्षवती, वेदस्मृति, वेदवती आदि नामों से भी उल्लेख किया गया है। कहा जाता हैं कि इस नदी के तट पर ही ब्रह्मावर्त कुरूक्षेत्र था। लेकिन आज वहां जलाशय है। शास्त्रों के अनुसार बलराम ने द्वारका से मथुरा तक की यात्रा इसी नदी से होकर की थी और युद्ध के बाद यादवों के पार्थिव अवशेषों को इसमें प्रवाहित किया था। अस्थियों को प्रवाहित करना तो तभी संभव था जब नदी का दृश्य अस्तित्व होता। अदृश्य नदी में भला को अदृश्य नदी में अस्थियां प्रवाहित कैसे करता? इससे यह माना जा सकता है कि जब अस्थियां प्रवाहित की गई होंगी तब नदी प्रवाहमाती होती हुई भी लुप्त होने की दिशा में जा रही थी। कोई भौगोलिक परिवर्तन अथवा जलवायु परिवर्तन की स्थिति बनती रही होगी। क्योंकि आज कई लोग यादव स्त्रियों सहित अर्जुन के कच्छ से गमन के दौरान समुुद्र का पानी उनके पीछे-पीछे आ रहा था और उस पानी में कृष्ण की द्वारका डूबती चली गई थी। इस घटना को आज सुनामी से जोड़ कर देखा जाता है।
वैदिक काल से ही भारत को नदियों और अध्यात्म की भूमि के रूप में जाना जाता है। ग्रहों और नदियों को देवी-देवताओं के रूप में माना जाता है और उनका सम्मान किया जाता है। सरस्वती नदी जिसे कभी शक्तिशाली, गौरवशाली और पवित्र माना जाता था, अब मृत, खोई हुई और विस्मृत मानी जाती है। सिद्धपुर गुजरात का एक छोटा सा शहर है जो सरस्वती नदी के तट पर स्थित है। नदी को सिद्धपुर की माँ के रूप में संदर्भित किया जा सकता है, एक ऐसा शहर जिसे ऐतिहासिक रूप से “श्रीस्थल” के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ है एक पवित्र स्थान। इस शहर का उल्लेख वेदों में किया गया है और इसे मातृगया तीर्थ के रूप में जाना जाता है। देश में एकमात्र स्थान जहां मां का श्राद्ध समारोह (अंतिम संस्कार) किया जा सकता है। सिद्धपुर के लोकप्रिय बिंदु सरोवर को भारत की पांच सबसे पवित्र झीलों में से एक माना जाता है। बिंदु सरोवर ने अद्वितीय पवित्रता और महिमा का आनंद लिया है क्योंकि यह भगवान के अवतार और सांख्य दर्शन के संस्थापक श्री कपिल देव की तपोभूमि है। कपिल देव ने बिंदु सरोवर के तट पर अपनी मां को मोक्ष प्राप्ति के महत्व के बारे में उपदेश दिया था। मान्यता है कि सरस्वती, पौराणिक नदी, अपने भौतिक स्वरूप को खोने के बाद भी, एक अलौकिक रूप में मौजूद है और फलती-फूलती रहती है। यह सदियों से शहर की पहचान बनी हुई है। सरस्वती पुराण में इस स्थान के प्राचीन इतिहास का बहुत विस्तार से वर्णन किया गया है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब महर्षि वेदव्यास सरस्वती नदी के तट पर गणेश से ‘‘महाभारत’’ की कथा लिखा रहे थे। उस समय उन्होंने सरस्वती नदी से धीरे बहने का निवदेन किया था ताकि वह उस पाठ को पूरा कर सकें। लेकिन सरस्वती नदी ने अपनी तीव्र प्रवाह के उन्माद में उनके निवेदन को अनसुना कर दिया जिसके बाद क्रोधवश गणेश ने सरस्वती नदी को पाताल से होकर बहने का श्राप दे दिया ताकि आगे से उसका धरती पर उसका बहाव ही ना रहे। लेकिन वैज्ञानिक तथ्यों को आधार मानते हैं, पौराणिक कथाओं को नहीं। सरस्वती नदी के अस्तित्व पर उठते सवाल को लेकर कई वैज्ञानिक अध्ययन किए गए। जिसमें से एक फ्रेंच प्रोटो-हिस्टोरियन माइकल डैनिनो ने अपने अध्ययन में बताया है कि शास्त्रों में जिस जगह और प्रकार से इसकी व्याख्या की गई है उसके आधार पर एक छोटी नदी घग्घर का पता लगाया जो कि शायद सरस्वती का ही रूप हो। स्त्रोतों से प्राप्त जानकारी और रिसर्च के आधार पर सरस्वती नदी के मूल मार्ग का पता लगाया। ऋगवेद के अनुसार भी यह नदी सतलुज और यमुना के बीच बहा करती थी। लगभग 2 हजार साल पहले भौगोलिक परिवर्तन के चलते यह नदी गायब हो गई हो। कुछ लोगों का कहना है कि सरस्वती नदी अदृश्य रूप से बहकर प्रयाग पंहुचती है और यहां आकर गंगा और यमुना के साथ संगम करती है। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि सरस्वती नदी का कहीं कोई वजूद ही नहीं है और यह केवल एक मिथकीय धारणा है। आखिर इस रहस्यमयी नदी की क्या सच्चाई है? ‘‘ऋग्वेद’’ के अनुसार यह नदी यमुना और सतलुज के बीच रही है और यह पूर्व से पश्चिम की तरफ बहती थी। नदी का तल पूर्व हड़प्पाकालीन था और यह 4 हजार ईसा पूर्व के मध्य में सूखने लगी थी।. अन्य बहुत से बड़े पैमाने पर भौगोलिक परिवर्तन भी हुए और 2 हजार वर्ष पहले होने वाले इन परिवर्तनों के चलते उलार-पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों में से एक नदी गायब हो गई और यह नदी सरस्वती थी।
एक ओर जहां सरस्वती लुप्त हो गई, वहीं दृषद्वती के बहाव की दिशा बदल गई। इस दृषद्वती को ही आज यमुना कहा जाता है। इसका इतिहास 4,000 वर्ष पूर्व माना जाता है। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार भूकंप आने के कारण जब जमीन ऊपर उठी तो सरस्वती का आधा पानी यमुना में गिर गया इसलिए यमुना में यमुना के साथ सरस्वती का जल भी प्रवाहित होने लगा। सिर्फ इसीलिए प्रयाग में 3 नदियों का संगम माना गया। सरस्वती नदी की सच्चाई का पता लगाने में भूगोलविदों के साथ ही पुरातत्वविद भी जुटे हुउ हैं। कुछ विशेषज्ञों ने साक्ष्यों का मूल्यांकन कर के और पिछले 10,000 वर्षों के दौरान घटनाओं के इतिहास का पता लगाया है।
महाभारत में वर्णित राजा पुरुरवा सरस्वती नदी के तट के पास अपनी होने वाली पत्नी उर्वशी से मिले थे। महाभारत का युद्ध न केवल सरस्वती नदी के पास लड़ा गया था बल्कि उसका पाठ भी तटों के पास ही हुआ था। पौराणिक कथाओं की मानें तो सरस्वती नदी देवी सरस्वती का ही एक रूप थी। माता सरस्वती को ज्ञान, संगीत और रचनात्मकता की देवी के रूप में पूजा जाता है, इसी वजह से इस नदी का भी महत्व बहुत ज्यादा है। एक अन्य कथा की मानें तो माता सरस्वती का जन्म भगवान ब्रह्मा के सिर से हुआ था, उन्होंने ब्रह्मांड का निर्माण किया था। वह उन सबसे खूबसूरत स्त्रियों में से एक थीं जिन्हें भगवान ब्रह्मा ने देखा था। उनकी सुंदरता को देखते हुए उन्होंने सरस्वती जी से विवाह का प्रस्ताव रखा। उस समय माता सरस्वती उनकी इस इच्छा से सहमत नहीं हुईं और नदी के रूप में जमीन के नीचे बहने लगी।
नदी और इसकी महिमा के ऐतिहासिक संदर्भों के अलावा, नदी की भौतिक उत्पत्ति और विशेषताओं को समझना महत्वपूर्ण है। भारतीय उपमहाद्वीप का भूगोल और इतिहास चार अलग-अलग सरस्वती नदियों के अस्तित्व का संकेत देता है, जिनमें से प्रत्येक का अपना रूप और विशेषताएँ हैं। गुजरात में सरस्वती का पूरा मार्ग मुश्किल से 200 किलोमीटर का है, जिसका स्रोत अरावली पहाड़ियों के दक्षिण-पश्चिमी सिरे पर है। यह कोटेश्वर में अंबाजी के पास से निकलती है, और विशाल कच्छ रेगिस्तान में विलीन हो जाती थी। चूँकि यह समुद्र से नहीं मिलती है, इसलिए नदी को लोकप्रिय रूप से कुमारी या वर्जिन नदी के रूप में जाना जाता है। यद्यपि जलमार्ग मुश्किल से प्रभावशाली है, लेकिन नदी के किनारे सिद्धपुर और पाटन (गुजरात के महत्वपूर्ण तीर्थस्थल) जैसे कुछ प्रसिद्ध ऐतिहासिक शहर हैं, जो नदी की स्मृति को संरक्षित करते हैं। नदी का संकरा बेसिन, साथ ही नदी के किनारे बसे शहर की वास्तुकला और बुनियादी ढाँचा, यह सुझाव देता है कि नदी का प्रवाह अनियमित और कम है, जो इसे गैर-बारहमासी के रूप में वर्गीकृत करता है। यहाँ कई बावड़ियाँ (सीढ़ीदार कुएँ), जलाशय, तालाब और कुंड हैं, जो यह दर्शाते हैं कि साल के कुछ महीनों में इन शहरों में पानी की कमी थी। नदी, जो अब सूखी है, कभी इन शहरों के लिए एक अच्छी तरह से काम करने वाले मानव निर्मित जल पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा थी। तो क्या इसका कोई संबंध नर्मदा से भी रहा है? नर्मदा जो स्वयं एक भ्रंश यानी दरार है। भूगोलविद डब्ल्यू. डी. वेस्ट ने सागर विश्वविद्यालय के अपने कार्यकाल के दौरान इस तथ्य को पहली बार प्रकाश में लाया था कि नर्मदा एक भ्रंश है। संभवतः शोधों के उपरांत सरस्वती को ले कर भी कई नई बातें सामने आएं।
लुप्त सरस्वती को ले कर प्रश्न अनेक हैं जिनका उत्तर शोधकर्ताओं के भावी प्रयासों में छिपा हुआ है। जो भी हो, किन्तु इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि सरस्वती नदी कभी भूमि के उपर बहती थी और कतिपय कारणों से वह भूमिगत हो गई। इन कारणों का सही पता चलने से अन्य नदियों को भी किसी भी संकट से बचाया जा सकता है।
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सरस्वती नदी के बारे में शोधपरक आलेख, कई नई जानकारियाँ मिलीं, आभार
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