बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
भौजी की मानों तो हवलदारन खों पटा के राखियो
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
जैसई मैं भैयाजी के इते पौंची, ऊंसई मोरो जी खुस हो गओ। गाजर को हलुआ बनबे की महक दोरे सेई आ रई हती।
‘‘अरे वाह, आज तो हलुआ बन रओ!’’ मैंने खुस होत भई कई।
‘‘आओ बिन्ना! पधारो! मनो जे जान लेओ के जे हलुआ अपन ओरन के लाने नईं बन रओ!’’ भैयाजी मोए चैंकात भए बोले।
‘‘हें! का मतलब?’’
‘‘मतलब जे के ईमें अपन दोई खों एम चमचा लौं नई मिलने।’’ भैयाजी बोले।
‘‘काय? कोनऊं के आर्डर पे बन रओ का?’’ मैंने पूछी।
‘‘ऊंहूं!’’ भैयाजी ने इनकार में मुंडी हिलाई।
‘‘सो का कोनऊं पाउना आ रए?’’ मैंने फेर के पूछी।
‘‘कोऊ पाउना नईं आ रओ!’’ भैयाजी बोले।
‘फेर? अब आप बुझव्वल ने बुझाओ! आप सूदे से बता देओ के अपन ओरें खों काय ने मिलहे?’’ मोय तनक अचरज हो रओ तो औ संगे निरासा सोई हो रईती। इत्तो नोनो हलुआ और चींखबे खों बी ने मिले तो फूटे भाग कहाए।
‘‘हम सब सुन रए उते भीतरे से! बिन्ना खों काय बरगला रए। तुमें ने मिलहे हलुआ खाबे खों मनो बिन्ना खों तो ख्वाओ जैहे।’’ भौजी चौका से बाहरे आत भई बोलीं। उनकी जा बात सुन के मोय तनक सहूरी भई।
‘‘कोन के लाने बना रईं भौजी?’’ अब की मैंने भौजी से पूछी।
‘‘अरे बे नुक्कड़ के इते बे रैत आएं न, हवलदारन, ऊके इते के लाने।’’ भौजी ने कई।
‘‘कोन हवालदारन?’’ मोए समझ ने परी।
‘‘अरे! बा जो नुक्कड़ पे बरिया के तरे मकान आए, बा ऊ हवलदारन को तो आए।’’ भौजी ने तनक औ समझाओ।
‘‘अच्च्छा! बो!’’ अबकी मोरे समझ में आ गई।
‘‘हऔ ओई के इते के लाने!’’ भौजी खुस होत भई बोलीं।
‘‘मनो भौजी, आप तो कैत्तीं के बा हवलदारन बड़ी ऐंठू आए औ बा हवलदार बड़ो लंपट आए। का सुधर गए बे ओरें?’’ मैंने अचरज से भर के भौजी से पूछी। काय से के अबई पिछली हफ्ता भौजी उन दोई की खींबई बुराई कर रई हतीं औ अब उनई के इते के लाने गाजर को हलुआ बना रईं। मोए जा बात समझ ने परी।
‘‘बे काय सुधरहें? मनो तुमाई भौजी उने ले के दूर की सोच रईं!’’ कैत भए भैया हंसन लगे।
‘‘ज्यादा हीं-हीं ने करो! हम तो कै रए के तुम सोई बा हवलदार से तनक मेल-जोल बढ़ा लेओ।’’ भौजी ने भैया खों टोंको।
‘‘हऔ! औ फेर काल को उनके इते छापो परे सो हम सोई पकरे जाएं।’’ भैया मों बनात भए बोले।
‘‘उनके इते काय को छापो परहे? खात तो मुतके आएं, पर का उन सबई के इते छापो पर रओ? के बे पकरे जा रए? आप तो औ!’’ भौजी बोलीं।
अब उन ओरन की बतकाव मोय कछू-कछू समझ में आन लगी।
‘‘मोय लग रओ के आप ओरें ऊ 52 किलो सोना वारे हवलदार से इम्प्रेस हो के ई हवलदार के बारे में सोचन लगे। काय जेई बात आए न?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘सई पकड़ी तुमने! जेई बात आए। पर मोय नोईं तुमाई भौजी को दिमाक फिर गओ आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हमाओ दिमाक काए फिर गओ? हम तो दुनियादारी के संगे चलबे की कै रए।’’भौजी अपनी देत भईं बोलीं।
‘‘औ नईं तो का? ठीक! एक मिनट के लाने मान लेओ के इन ओरन के ऐंगर सोई बीस-तीस किलो सोनो होय तो का बे ओरें अपन खों बांटहें? तुमाई भौजी कछू ज्यादई बौरा रईं।’’ भौयाजी बोले।
‘‘हम कबे कै रै के बे अपन ओरन खों दैहें। मनो ऐसे बड़े लोगन से मेल-जोल रखे में अपनी सोई इज्जत बढ़त आए।’’ भौजी बोलीं।
‘‘काय की इज्जत भौजी? अब तो सबरे हवलदार ऊंसई दिखा रए। बोई सोना सो ले डूबो बा हवलदार खों। ने तो अच्छी-भली नौकरी करतो रैतो। अब ने माया मिली ने राम! औ खानदान भरे के इज्जत को हो गओ राम नाम सत्त!’’ मैंने भौजी से कई।
‘‘औ का बिन्ना! जेई तो हम संकारे से तुमाई भौजी खों समझा रए के जे उल्टे-सूदे लोगन के चक्कर में ने परो। जे जो आज उनकी चार माला की बिल्डिंग दिखा रई, कल कओ जेई बिल्डिंग उनके गले को फंदा बन जाए। हराम को पइसा फलत नइयां। मेनत की कमाई से चाए सूकी गांकरें मिलें, मनो बा फलत आए। पर तुमाई भौजी ने तो जब से बा ऊ हवलदार सौरभ शर्मा के इते 52 किलो सोनो पकरे जाबे की न्यूज पढ़ी, तभई से इनको मुंडा फिर गओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘तुम दोई भैया-बैन समझ नई रए। अबे तो बे पकरे जा नईं रए। सो उनसे मेल-जोल रखे में जे आए के कल को बे कोनऊं पार्टी-सार्टी करें औ अपन ओरे उनके इते गिफ्ट ले के जाएं सो हो सकत के बे रिटर्न गिफ्ट में चार-पांच ग्राम सोनोईं दे दें।’’भौजी शेखचिल्ली बनत भई बोलीं।
‘‘जागत को सपना ने देखो भौजी!’’ मोसे रई ने गई, सो मैंने भौजी खों समझाओ,‘‘बे ऐसो कछू ने करहें सो आप ईमें ने परो। औ जैसो अबे भैयाजी ने कई के जो उनके लिंगे हराम को पइसा हुइए तो बा में से जोन को हींसा मिलहे, ऊको बी ने फलहे। सो आप लालच में ने परो। अगर बा सई में गलत कर रओ हुइए तो कोऊ दिनां धर लओ जैहे। औ फेर उनके संगी बने में आप ओरे सोई फंसहो। बुरए लोगों से दूर रैबे में भलाई आए।’’
‘‘ईकी का गारंटी के बे ओरे बुरए आएं?’’ भौजी ने पूछी।
‘‘गारंटी तो कोनऊं नइयां, मनो सावधानी तो राखो चाइए।’’ मैंने कई।
‘‘जब लौं मेलजोल ने बड़हे, तब लौं पता कैसे परहे के बे बुरै आएं के अच्छे आएं?’’ भौजी ने फेर तर्क दओ। उनकी बात बी सई हती। हर कोऊ के बारे में बिना जाने-समझे गलत कैसे सोचो जा सकत आए?
‘‘कै तो आप सई रईं!’’ मोए भौजी की बात माननी परी।
‘‘जेई तो! जेई बात जे तुमाए भैयाजी की समझ में ने आ रई। अरे, इत्ती-सी बात आए के हम पैले उनसे मेलजोल बढ़ाहें। फेर बे ओरें ठीक लगे सो ठीक, औ ठीक ने लगे सो जै राम जी की।’’ भौजी चहकत भईं बोलीं।
‘‘जे ने मानहें! जाओ तुम तो गाजर को हलुआ ले के उनको पटाबे के लाने।’’ भैयाजी अपनो माथा ठोंकत भए बोले।
‘‘कछू कओ भैयाजी! पर 52 किलो सोनो कछू तो कहाऊत आए। ऊने तो सबई हवलदारन की मार्केट वैल्यू रातो-रात बढ़ा दई। ईमें भौजी को दोस नोंई के बे बा बरिया वारी हवलदारन खों पटाबे के लाने हलुआ ले के जा रई।’’ मैंने भैयाजी से कई।
भौजी मोरी बात सुन के इत्ती खुस भईं के उन्ने तुरतईं कटोरा भर हलुआ मोए खाबे के लाने दे दओ। भैयाजी खों बी दओ। फेर बे साजे से डिब्बा में बाकी हलुआ धर के हवलदारन के इते निकर परीं। औ हम ओरें हलुआ जींमन लगे। बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर के ई बारे में, के चाए कोऊ कित्तो बी गलत कर के पइसा कमाए, कभऊं ने कभऊं पकरो जात आए, सई न!
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