Friday, December 20, 2024

शून्यकाल | महात्मा गांधी का शिक्षा दर्शन अर्थात ‘द ब्यूटीफुल ट्री’ | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | नयादौर

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शून्यकाल
महात्मा गांधी का शिक्षा दर्शन अर्थात ‘द ब्यूटीफुल ट्री’
    - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह

   राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का यह मानना था कि सामाजिक उन्नति हेतु शिक्षा अति आवश्यक है। वे जिस शोषण-विहीन समाज की स्थापना का स्वप्न देखते थे, उसके लिए सभी का शिक्षित होना आवश्यक था। वे मानते थे कि शिक्षा के अभाव में एक स्वस्थ समाज का निर्माण असम्भव है। अतः महात्मा गांधी ने जो शिक्षा के उद्देश्यों एवं सिद्धांतों की व्याख्या की, ‘बुनियादी शिक्षा योजना’ उसी का मूर्त रूप है। शिक्षा के प्रति महात्मा गांधी का अद्वितीय योगदान है।

     महात्मा गांधी भारतीय शिक्षा को ‘द ब्यूटीफुल ट्री’ कहा करते थे। इसके पीछे कारण यह था कि उन्होंने भारत की शिक्षा के बारे में जो कुछ देखा, पढ़ा और पाया था, उससे उन्होंने यही निष्कर्ष निकाला था कि भारत में शिक्षा सरकारों के बजाय समाज के अधीन थी। वे भारतीय शिक्षा को भारतीय परिवेश एवं आवश्यकता के अनुरूप ढालना चाहते थे। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर उन्होंने बुनियादी शिक्षा के सिद्धांत प्रतिपादित किए। 
शिक्षा के आधारभूत सिद्धान्त
गांधी जी ने शिक्षाशास्त्रियों से निवेदन करने के बदले स्वयं चिन्तन किया। उन्होंने अपने प्रगाढ़ अनुभवों एवं देश की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए शिक्षा के आधारभूत सिद्धांतों का प्रतिपादन किया-
(1) 7 से 14 वर्ष की आयु के बालकों की निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा हो।
(2) शिक्षा का माध्यम मातृभाषा हो।
(3) साक्षरता को शिक्षा नहीं कहा जा सकता।
(4) शिक्षा बालक के मानवीय गुणों का विकास करना है।
(5) शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक के शरीर, हृदय, मन और आत्मा का सामंजस्यपूर्ण विकास हो।
(6) सभी विषयों की शिक्षा स्थानीय उपलब्ध माध्यमों से दी जाए।
(7) शिक्षा ऐसी हो जो नवयुवकों को बेरोजगारी से मुक्त कर सके।
सारांशतः गांधीजी के अनुसार शिक्षा का अर्थ- बालक के शरीर, मस्तिष्क और आत्मा में पाए जाए जाने वाले सर्वोत्तम गुणों का चहुंमुखी विकास करना है। अतः बालक के सर्वांगीण विकास हेतु उसके शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक गुणों का विकास करना शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए और शिक्षा में इन सबका समावेश होना चाहिए।
शिक्षा के उद्देश्य
महात्मा गांधी ने शिक्षा के उद्देश्यों पर समुचित प्रकाश डाला है। उनके अनुसार-
(1) जीविकोपार्जन का उद्देश्य- इसे महात्मा गांधी ने ‘तात्कालिक उद्देश्य’ भी कहा। उनके अनुसार शिक्षा ऐसी हो जो आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति करे, आत्मनिर्भर बनाए तथा बेरोजगारी से मुक्त करे।
(2) सांस्कृतिक उद्देश्य- महात्मा गांधी ने शिक्षा को संस्कृति का आधार माना। उनके अनुसार मानव के व्यवहार में उसकी संस्कृति तभी परिलक्षित होगी जब व्यक्ति सुशिक्षित होगा।
(3) पूर्ण विकास का उद्देश्य- महात्मा गांधी के अनुसार सच्ची शिक्षा वह है जिसके द्वारा बालकों का शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास हो सके।
(4) नैतिक अथवा चारित्रिक विकास का उद्देश्य-महात्मा गांधी ने चारित्रिक एवं नैतिक विकास को शिक्षा का उचित आधार माना है।
(5) मुक्ति का उद्देश्य- महात्मा गांधी मानते थे कि शिक्षा ही हमें समस्त बन्धनों से मुक्ति दिलाती है। अतः गांधीजी शिक्षा के द्वारा आत्मविकास के लिए आध्यात्मिक स्वतंत्रता देना चाहते थे। शिक्षा के सर्वोच्च उद्देश्य के अंतर्गत वे सत्य अथवा ईश्वर की प्राप्ति पर बल देते थे अर्थात् शिक्षा का मूल उद्देश्य मनुष्य को दूषित भावनाओं एवं अनुपयोगी बन्धनों से मुक्ति दिलाने का होना चाहिए।
बुनियादी शिक्षा
सन् 1937 में महाराष्ट्र के वर्धा में ‘अखिल भारतीय राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन’ हुआ। इस सम्मेलन में महात्मा गांधी ने अपनी बुनियादी शिक्षा (बेसिक एजुकेशन) की नयी योजना को प्रस्तुत किया, जो कि मैट्रिक स्तर तक अंग्रेजीरहित तथा उद्योगांे पर आधारित थी। इसी तारतम्य में डाॅ. जाकिर हुसैन की अध्यक्षता में ‘जाकिर हुसैन समिति’ का निर्माण किया गया तथा महात्मा गांधी के शिक्षा सम्बन्धी सुझावों तथा सम्मेलन द्वारा पारित किए गए प्रस्तावों के आधार पर ‘बुनियादी शिक्षा’ की योजना तैयार की गयी। यह योजना ‘वर्धा शिक्षा योजना’ के नाम से भी जानी जाती है। सन् 1938 में हरिपुर के अधिवेशन में योजना को स्वीकृति दे दी गयी।
बुनियादी शिक्षा के लिए जो विशेषताएं निर्धारित की गई थीं, वे इस प्रकार हैं-
(1) बुनियादी शिक्षा के पाठ्यक्रम की अवधि 7 वर्ष की हो।
(2) 7 से 14 वर्ष के बालकों एवं बालिकाओं को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा दी जाए।
(3) शिक्षा का माध्यम मातृभाषा रहे। हिन्दी भाषा का अध्ययन बालकों तथा बालिकाओं के लिए अनिवार्य रखा जाए।
(4) सम्पूर्ण शिक्षा का सम्बन्ध आधारभूत शिल्प (स्किल्स) से होता है। चुने हुए शिल्प की शिक्षा देकर अच्छा ‘शिल्पी’ बनाकर स्वावलम्बी बनाया जाए।
(5) शिल्प की शिक्षा इस प्रकार दी जाए कि बालक उसके सामाजिक एवं वैज्ञानिक महत्त्व को समझ सके।
(6) शारीरिक श्रम को महत्त्व दिया जाए ताकि सीखे हुए शिल्प के द्वारा जीविकोपार्जन करने के योग्य बन सके।
(7) शिक्षा बालकों के जीवन, घर, ग्राम तथा ग्रामीण उद्योगों, हस्तशिल्पों और व्यवसाय घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हो।
(8) विद्यालय में बालकों द्वारा बनाई गई वस्तुओं का प्रयोग करें एवं उनको बेचकर विद्यालय के ऊपर कुछ व्यय करे।
(9) बालकों एवं बालिकाओं का समान पाठ्यक्रम रखा जाए।
(10) छठवीं और सातवीं कक्षाओं में बालिकाएं आधारभूत शिल्प के स्थान पर गृहविज्ञान ले सकती हैं। 
(11) पाठ्यक्रम का स्तर मैट्रिक के समकक्ष हो।
इस प्रकार तैयार की गई बुनियादी शिक्षा राष्ट्रीय सभ्यता, संस्कृति के निकट थी। इसके साथ ही यह सामुदायिक जीवन के आधारभूत व्यवसायों से सम्बद्ध थी एवं सीखे हुए आधारभूत शिल्प की द्वारा व्यक्ति जीवकोपार्जन कर सकता था। अतः यह शिक्षा हमारे जीवन के बुनियाद या आधार से जुड़ी हुई थी, इसलिए इसका नाम ‘बुनियादी शिक्षा’ रखा गया।
बुनियादी शिक्षा का पाठ्क्रम
महात्मा गांधी ने बुनियादी शिक्षा के पाठ्क्रम के अंतर्गत आधारभूत शिल्प को स्थान दिया। इनमें कृषि, कताई-बुनाई, लकड़ी, चमड़े, मिट्टी का काम, पुस्तक कला, मछली पालन, फल-सब्जी की बागबानी, बालिकाओं हेतु गृहविज्ञान तथा स्थानीय एवं भौगोलिक आवश्यकताओं के अनुकूल शिक्षाप्रद हस्तशिल्प आदि थे। इसके अलावा मातृभाषा, गणित, सामाजिक अध्ययन एवं सामान्य विज्ञान, कला, हिन्दी, शारीरिक शिक्षा आदि को रखा।
शिक्षण विधि
महात्मा गांधी के अनुसार शिक्षण विधि सदैव व्यावहारिक होनी चाहिए। छात्रों को विभिन्न विषयों की शिक्षा किसी आधारभूत शिल्प के माध्यम से दी जाए। कार्य करके सीखना, अनुभव द्वारा सीखना तथा क्रिया के माध्यम से सीखने पर बल दिया जाए। गांधी जी ने बुनियादी शिक्षा में सीखने की समवाय पद्धति को उपयोगी बताया, जिसके अंतर्गत उन्होंने समस्त विषयों की शिक्षा किसी कार्य या हस्तशिल्प के माध्यम से दिए जाने की अनुशंसा की।
सर्वप्रथम महात्मा गांधी ने ऐसी शिक्षा पद्धति को सामने रखा जो पूरी तरह भारतीय परिवेश के अनुरूप थी। उन्होंने भारतीय संस्कृति को ध्यान में रखते हुए छात्रों में मानवीय गुणों का विकास करने पर बल दिया। उन्होंने शिक्षा को रोजगारोन्मुख बनाए जाने को आवश्यक ठहराया। एक उच्चकोटि के शिक्षाशास्त्री की भांति महात्मा गांधी ने भारत की आधारभूत शिक्षा के लिए ‘आधार शिक्षा’ अथवा ‘बुनियादी शिक्षा’ का सिद्धान्त दिया जो सदैव प्रासंगिक रहेगा। 
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