Wednesday, December 18, 2024

चर्चा प्लस | बुंदेलखंड की लाईफ लाइन है दशार्ण उर्फ़ धसान नदी | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर


चर्चा प्लस
बुंदेलखंड की लाईफ लाइन है दशार्ण उर्फ़ धसान नदी
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
      नदीजल में कारखानों का विषाक्त पानी और शहरों की तमाम गंदगी मिलते रहने से, वह न केवल प्रदूषित हो रहा है वरन जलजन्तुओं के लिए भी घातक हो चला है। गंगा, शिप्रा आदि की सफाई पर ध्यान दिया जाता रहा है किन्तु दशार्ण उर्फ़ धसान नदी अपनी प्राचीनता के गौरव को सहेजती हुई अपने वर्तमान के अस्त्वि के लिए जूझ रही है। दशार्ण आज भी बुन्देखण्ड की लाईफ लाइन है। यह वही नदी है जिसके तट पर प्रागैतिहासिक कालीन मनुष्यों ने अपनी बस्तियां बसाईं और अपना राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक विकास किया।


‘‘धसान’’ शब्द ‘‘दशार्ण’’ का ही अपभ्रंश है। यह उस क्षेत्र का भी नाम रहा है जो दशार्ण नदी के तट पर स्थित था। इस क्षेत्र में प्रागैतिहासिक काल से मनुष्य ने अपना निवास बनाया। इससे पता चलता है कि उस समय दशार्ण नदी बहुत विस्तृत रही होगी जिससे उन मनुष्यों के सभी कार्यों के लिए पर्याप्त जलापूर्ति होती रही होगी। इस नदी की प्राचीनता का उल्लेख पुराणों से भी ज्ञात होता है। मार्कण्डेय पुराण (57/20) में मंदाकिनी और नर्मदा की भांति दशार्ण को श्रेष्ठ बताया गया है-
शोणो महानदश्चात्र नर्मदा सुरसरि क्रिया
मंदाकिनी दशार्णा च चित्रकूटस्त थैव च।

‘‘महाभारत’’ के विराट पर्व में नकुल की विजय के संदर्भ में दशार्ण नदी का भी उल्लेख है।
शान्ति रम्याः जनपदा बहन्नाः पारितः कुरून।
पांचालश्चेदिमत्स्याश्च शूरसेनाः पटचराः।
दशार्ण नवराष्ट्रं च मल्लाः शाल्वा युगंधरा।
‘‘महाभारत’’ काल में दशार्ण के शासक हिरण्य वर्मा की पुत्री हिरण्यमयी का विवाह द्रुपद के कथित पुत्र शिखण्डी से हुआ था। इस तरह महाभारत काल में दशार्ण का राजनीतिक महत्व बहुत अधिक था।
कालिदास ने अपने मेघदूत (पूर्वमेघ, 24-25) में विदिशा शहर को दशार्ण की राजधानी के रूप में उल्लेख किया है। कालिदास ने ‘‘मेघदूत’’ में दशार्ण का उल्लेख इस प्रकार किया है-
त्वयासन्ने परिणत फल जम्बू बनान्ताः,
संपन्स्यन्ते कतिपय दिनं स्थायि हंसा दशार्णाः।
बुन्देलखण्ड का दशार्ण नाम तेरहवीं शताब्दी तक रहा। चंदेल शासक परमर्दि देव (1165-1203 ई.) को ‘दशार्णाधिपति’, नाम से जाना जाता रहा है। दशार्ण जनपद को अकारा के नाम से भी जाना जाता था और रुद्रदामन प्रथम ने अपने जूनागढ़ शिलालेख में इस क्षेत्र को इसी नाम से संदर्भित किया है। महाभारत के अनुसार, चेदि राज्य के राजा वीरबाहु या सुबाहु की रानी और विदर्भ के राजा भीम की रानी (दमयंती की माँ) दशार्ण के राजा की बेटियां थीं। एरिच से प्राप्त एक ईंट का शिलालेख से दशार्ण के राजा, आशादमित्र और उसके पूर्वजों के बारे में जानकारी मिलती है। इस शिलालेख में, आशादमित्र, जिसने खुद को सेनापति बताया था, को सेनापति मूलमित्र (जो दशार्ण के राजा भी थे) का पुत्र, सेनापति आदिमित्र का पोता और सेनापति शतानीक का परपोता बताया गया है। इसी क्षेत्र में आशादमित्र का एक सिक्का भी मिला है जिसमें उसने खुद को अमात्य और दशार्ण का राजा बताया है।
वर्तमान भौगोलिक मानचित्र के अनुसार रायसेन जिला के जसरथ पर्वत से निकलकर धसान नदी सिलवानी तहसील की सिरमऊ, बेगमगंज तहसील की पिपलिया जागीर, बील खेड़ा, रतनहारी, सुल्तानागंज, उदका, टेकापार कलो, बिछुआ, सनेही, पडरया, राजधर, सोदतपुर ग्रामों के समीप से प्रवाहित होकर सागर जिले के नारियावली के उस पार तक बहती है। सागर जिले में यह सिहोरा, नरियावली, उल्दन, धामौनी, मैंहर, ललितपुर की (महारोनी तहसील) वनगुवा के तीन किलोमीटर पूर्व प्रवेश करती हुई यह टीकमगढ़ के दतना और छतरपुर की 70 किलोमीटर की सीमा बनाती हुई झांसी हमीरपुर और जालौन के संधि स्थल के नीचे बेतवा में मिल जाती है।
सिरमऊ पहला स्थान है जो धसान के किनारे बसा हुआ है। धसान नदी उत्तर में बहुत दूर तक सागर और ललितपुर जिलों के मध्य की सीमा की विभाजन रेखा है। टीकमगढ़ जिले में धसान नदी के किनारे पर स्थित या आस-पास स्थित लगभग ग्यारह गाँव हैं, जिनके नाम हैं- ककरवाहा, भैंसवारी, बड़ागाँव, धसान, मौखरा, सुजारा, पटौरी, चंदपुरा, पचेर, कोटरा और आलमपुर। छतरपुर से टीकमगढ़ या प्राचीन बिजावर राज्य से ओरछा राज्य तक धसान 70 किलोमीटर की सीमा बनाती है। धसान का पूर्वी किनारा नैसर्गिक रूप से छतरपुर जिले की बिजावर तहसील की सीमा रेखांकित करता है। इसके तटवर्ती ग्राम सोरखी, खरदूती और देवरान हैं। देवरान में इसकी सहायक नदी बीला (काठन) दशार्ण में विसर्जित हो जाती है। यह नदी बुंदेलखण्ड में लगभग 352 किलोमीटर तक प्रवाहमान रहती है।
धसान नदी की घाटियों एवं तट के आसपास पाषाण काल से लेकर मौर्य युग तक के पुरातत्व प्रमाण मिले है। पुरातात्विक खोजों के आधार पर दशार्ण नदी के आसपास घाट कोपरा, विरगुवां, देवरी, इमलौटा आदि ग्रामीण इलाकों में प्राचीन बस्तियों और ग्रामीण अंचल मारकुआं, इमलौटा, खेड़ों आदि घाटी वाले इलाकों में मनुष्यों के खेती करने के प्रारंभिक दौर का पता चलता है। प्रतिहार, चंदेल काल के मंदिर, मूर्तियां भी इस क्षेत्र से प्राप्त होती हैं जिससे अनुसार धसान का ऐतिहासिक महत्व ज्ञात होता है।
धसान के संबंध में धार्मिक मान्यनाएं भी हैं। इस नदी का जल गंगा एवं नर्मदा की भांति पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि इस नदी के तट में तर्पण करने से मनुष्य दस ऋणों से मुक्त होता है। यह कहा जाता है कि पूर्वजों को तर्पण, श्राद्ध आदि का कार्य नदी के तट पर होना चाहिए इससे पूर्वजों को माक्ष मिलता है।
सागर जिले के मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर सिहौरा के पास दशार्ण नदी के निकट ‘पाषाण युगीन’ एक उद्योगशाला प्राप्त हो चुकी है। इसी नदी के किनारे सागर से 29 किलोमीटर की दूरी पर धामौनी दुर्ग स्थित है। जहाँ धसान दो गहरी खाइयों के बीच से दो धाराओं में बहती है। उल्दन नामक गाँव में भाण्डेर नदी इसी नदी में मिल जाती है। यह स्थान बण्डा से 16 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। भाण्डेर के धसान के संगम पर मकर संक्रांति के पर चार दिवसीय परंपरागत मेले का आयोजन किया जाता है। धसान के ही किनारे सागर-ललितपुर मार्म पर मेहर गाँव में हिंगलाज देवी का मंदिर है। दशार्ण और बीला काठन के संगम पर मठ, मंदिर और प्रतिमाओं के भग्नावशेष, बछरानी गाँव के पूर्वी तट पर गुप्तकालीन दो मंदिर, ईसानगर, कुर्रा रामपुर, गर्रौली और आलीपुरा के किले दशार्ण और कुकड़ेश्वर नदियों के संगम पर, अचट्ट में खजुराहो के समान चंदेलकालीन मूर्तियाँ एवं पुरावशेषों की धसान सदियों से साक्षी रही है। यह सभी स्थान छतरपुर जिले के अन्तर्गत आते हैं। इतना ही नहीं इसी जिले में धसान के ही समीप देवरा गाँव में दो स्थान प्राचीन भित्तिचित्रों के पाये जाते हैं। जिन्हें ‘पौर का दाता’ और ‘पुतली की दाता’ के नाम से जाना जाता है
टीकमगढ़ जिले में दशार्ण के तट पर मौखरा गाँव में गुप्तकालीन शिखर विहीन मंदिर, दूबदेई देवी का मंदिर, पचेर का किला, ककरवाहा और बड़ागाँव धसान के बीच गुर्जर प्रतिहार कालीन ऊमरी का प्रसिद्ध सूर्य मंदिर, शिव मठ, जैन मंदिर, छौटा सा दुर्ग और हनुमान जी का विग्रह आदि स्थल स्थित हैं। दशार्ण के नजदीक लघु दुर्ग स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की शरणस्थली रहा है।
उत्तरप्रदेश में हमीरपुर और झाँसी जिलों के मिलन बिन्दु पर लहचूरा बाँध और गाँव के समीप लगभग 2 किलोमीटर क्षेत्र में पाषाणयुगीन औजार प्राप्त हुए हैं। झाँसी से ही 18 किलोमीटर दशार्ण के बाँयें किनारे गरौठा गाँव से 10 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में दो पुराने महादेव मंदिर, चंदेला बैठक, दशार्ण नदी में आकंठ डूबी विश्वमित्र की प्राचीन पाषाण प्रतिमा आदि दर्शनीय स्थान है। इस स्थान पर प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा एवं मकर संक्रान्ति को मेला भरता है।
धसान के तट पर मानव सभ्यता ने विकास किया। सांस्कृतिक विकास के साथ तत्कालीन मनुष्यों ने मंदिर, महन तथा अन्य स्मारक बनाए। उत्तर प्रदेश के ललितपुर की महरौनी तहसील के गिरार गाँव के किनारे कुछ खूबसूरत मंदिरों के अवशेष हैं। जिनमें राम और शिव के मंदिर प्रमुख हैं। यहाँ एक पहाड़ी की गुफा में भी शिव मंदिर है। ऐसा कहा जाता है कि यह गोंडों ने बनवाये थे। यहाँ मार्च में प्रतिवर्ष एक मेला भी लगता है। झाँसी जिले में धसान पर लहचूरा बाँध बना है। इस नदी पर देवरी में भी एक बाँध बनाया गया है-राठ-उरई सड़क मार्ग से 18 किलोमीटर दूर मुहाना घाट से 2 किलोमीटर बायीं ओर धसान नदी के गहरे स्थाई दोहों में मगरों का आश्रस्थल देखा जा सकता है। हो सकता है कि मगरों के कारण ही इस गाँव का नाम मगरौठ पड़ा है। मगरौठ को विनोबा भावे के भू-दान अभियान के अन्तर्गत ‘प्रथम ग्राम दान गाँव’ का सम्मान मिला था।
आज जब देश की विभिन्न नदियों की भांति बुंदेलखंड की नदियां भी संकट के दौर से गुजर रही हैं तथा मानवजनित प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को झेल रही हैं, धसान नदी भी इसी दौर से गुजर रही है। ये नदी जो सदैव बुंदेलखंड की लाईफ लाइन मानी जाती रही है, उसे आज स्थान-स्थान पर स्वयं के अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। इसके तटों पर मौजूद वन संपदा और ग्रामीण जीवन को ध्यान में रखते हुए धसान नदी का संरक्षण भी उतना ही जरूरी है जितना गंगा या यमुना का।
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