Tuesday, December 17, 2024

पुस्तक समीक्षा | ‘‘गंगोत्री’’ जहां से प्रवाहित है भावनाओं की गंगा | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण

आज 17.12.2024 को 'आचरण' में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई क्लीं जायसवाल राय जी के काव्य संग्रह "गंगोत्री" की समीक्षा।
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पुस्तक समीक्षा  
‘‘गंगोत्री’’ जहां से प्रवाहित है भावनाओं की गंगा
- समीक्षक डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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काव्य संग्रह   - गंगोत्री
कवयित्री     - क्लीं जायसवाल राय
प्रकाशक - बोधि प्रकाशन, सी-46, सुदर्शनपुरा इंडस्ट्रियल एरिया एक्सटेंशन नाला रोड, 22 गोदाम, जयपुर   
मूल्य        - 175/- 
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    गंगोत्री, गंगा नदी का उद्गम स्थान है एवं उत्तराखंड के चार धाम तीर्थयात्रा में चार स्थलों में से एक है। नदी के स्रोत को भागीरथी कहा जाता है। देवप्रयाग के बाद से यह अलकनंदा में मिलती है, जहां से गंगा नाम से जानी जाती है। गंगा के धरती पर अवतरण की रोचक कथा है जिसके अनुसार भगीरथ ने अपने परिजन के तर्पण के लिए कठोर तपस्या कर के गंगा को पृथ्वी पर आने के लिए मना लिया लेकिन गंगा का प्रवाह इतना तेज था कि वह पृथ्वी पर टिक ही नहीं पा रही थी। तब भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं पर धारण किया और फिर वहां से वेग को नियंत्रित कर गंगा पृथ्वी पर प्रवाहित हुई। जिस स्थान पर गंगा धरती पर प्रकट हुई वह स्थान गंगोत्री कहलाया। अर्थात् वह स्थान जहां से इस पवित्र नदी का उद्गम है। ‘‘गंगोत्री’’ नाम से प्रकाशित हुआ है कवयित्री क्लीं जायसवाल राय का काव्य संग्रह। संग्रह की कविताओं को पढ़ने के उपरांत संग्रह के नाम की सार्थकता को समझा जा सकता है।  
क्लीं जायसवाल राय का जन्म अम्बिकापुर, छत्तीसगढ़ में हुआ था किन्तु विवाह के उपरांत वे सागर आ गईं। क्लीं जायसवाल राय ने बी फार्मा, एम फार्मा, एमबीए, पीजीडीपीएचएम, पीजीडीआईपी, टी एंड डी आईएसटीडी की उपाधियां प्राप्त की हैं। वे बाल कल्याण समिति, महाकोशल प्रांत प्रमुख, महिला प्रकल्प, भारतीय शिक्षण मंडल, किशोर न्याय बोर्ड आदि अनेक संस्थाओं में सक्रिय हैं। सामाजिक कार्यों में उनकी रुचि उनकी भावनाओं को निश्चित रूप से विस्तार देती होगी। अब बात ‘‘गंगोत्री’’ में संग्रहीत कविताओं की। कवयित्री क्लीं जायसवाल राय के काव्य संग्रह ‘‘गंगोत्री’’ में भावनाओं की गंगा की अभिव्यक्ति है। भावनाएं ही वे संवेग हैं जो मनुष्य के विचारों एवं चरित्र का आईना होती हैं। सद्भावनाएं दूसरों को अच्छा संदेश देती हैं, हृदय में कोमलता का संचार करती हैं और जीवन की सार्थकता से परिचित कराती हैं। क्लीं जायसवाल राय की कविताएं भी जीवन से रागात्मकता का आग्रह करती हैं। संग्रह में कुल 80 कविताएं हैं। इन कविताओं आध्यात्मिक दर्शन की प्रधानता है। संग्रह की प्रथम कविता है ‘‘मातृ स्तुति’’-
करूं करबद्ध प्रणाम तुझे स्वीकार कर मां कालिके
करूं करबद्ध प्रणाम तुझे स्वीकार कर मां कालिके
विश्व मोहिनी ज्ञान दायिनी, 
करूं प्रणाम हे सृजन स्वामिनी 
मोहभंग कर ज्ञान दे मां, ले ले मेरी करांजलि, 
इस कर की हर रेखा में, देखा करूं तेरी ही छवि 
करूं करबद्ध प्रणाम तुझे, स्वीकार कर मां कालिके 

प्रकृति को पढ़ना और समझना भी एक कला होती है। जो व्यक्ति संवेदनशील है वह प्रकृति को पढ़ सकता है। कवयित्री क्लीं ने भी प्रकृति की ध्वनियों को सुना है और गुना है। उनकी ‘‘लहरें’’ शीर्षक कविता समुद्र की थाह लेती प्रतीत होती है, जब वे समुद्र की जुबान की बात करती हैं और समुद्र की विवशता को उल्लेख करती हैं- 
लहरें समंदर की जुबान होती हैं, 
अनगिनत लहरें अनगिनत जुबानें, 
लेकिन समंदर को बोलने की मनाही है 
लहरें कितना भी मचलें, कितना भी तड़पें, 
समंदर कभी कुछ कह नहीं पाता। 
प्रकृति और स्त्री एक अनूठा साम्य है दोनों में। दोनों में कोमलता भी होती है और असीम सहनशक्ति भी। कवयित्री ने स्त्रीत्व को परिभाषित करते हुए उसकी विशिष्टताओं को बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। स्त्री विषयक कविताओं में नारी के मनप्राण के नैसर्गिक स्पंदन को सजीवता से प्रकट किया गया है। कविता है ‘‘हाँ, स्त्री हूँ मैं’’। इस कविता की कुछ पंक्तियां देखिए-
हाँ, स्त्री हूँ मैं !!! 
कोई कोमलांगी नहीं, 
कभी तुलना मत करना मेरी... किसी षोडशी से, 
क्योंकि.. जैसे अंडे को तोड़कर चूजा बाहर निकल आता है न, 
मैं भी तोड़ चुकी हूँ षोडशी होने का वह त्वक, 
भर सकती हूँ मैं भी अब अपनी उड़ान, 
मेरे घर को मेरा पिंजरा मत समझना, 
वहीं खिड़की पर बैठकर मैं देती हूँ ऊँची उड़ान का हौसला, 
बच्चों को ऊँची उड़ान की समझाइश, 
जहाँ जहाँ मुझ से चूक हुई वहाँ संभलने की समझाइश, 
गर्व होता है मुझे अपने स्त्रीत्व पर। 
कवयित्री क्लीं की कविताओं पर चूरू (राजस्थान) की अर्थशास्त्र की सेवानिवृत्त प्रोफेसर प्रो. (श्रीमती) हिमांशु सेंगर ने भूमिका लिखते हुए उचित टिप्पणी की है कि -‘‘गंगोत्री का रूप-शिल्प व भाषापक्ष संप्रेषणीय है, सहज प्रवाह लिए। कहीं बिम्बात्मक शब्दसंयोजन लालित्य गुण से सुसज्जित है जो सीधे पाठक हृदय में उतर जाता। जहाँ कविताएँ दार्शनिकता लिए हैं, वहां दार्शनिक शब्दावली कहन की गहनता को और सघन कर रहीं। छंद मुक्त कविताएँ भी ध्वनि और लय पर नृत्यरत हैं। क्लीं जी समाज की धड़कनें चीन्ह भारतीय संस्कृति के दार्शनिक रूप को उकेरने में सफल रहीं हैं।’’
‘‘गंगोत्री’’ की कविताओं में देश, समाज, प्रकृति, परिवेश, आध्यात्म के साथ ही कवयित्री के मन के संसार को भी अभिव्यक्ति मिली है। अपनी हर कविता में कवयित्री जीवन और जगत से संवाद रचती दिखाई देती हैं।  सागर के सेवानिवृत चिकित्सक गीतऋषि डॉ. श्याम मनोहर सीरोठिया ने कवयित्री  के उद्गारों के शब्दों, शिल्प तथा भावनाओं पर सटीकता से दृष्टि डालते हुए भूमिका के रूप में लिखा है कि- ‘‘कवयित्री ने गंगोत्री में मुक्त छंद की रचनाएँ रखीं है अतः पाठक मन को विधा के स्थान पर भाव पक्ष की श्रेष्ठता अधिक प्रभावित करती है। कविताओं में जीवन की विविधवर्णी स्थितियों, परिस्थितियों की भावनात्मक अभिव्यक्ति बड़ी सहजता से की गई है। व्यापक वैश्विक विषयों से लेकर निजी स्तर तक कविताओं के संग्रह गंगोत्री में सकारात्मकता का सौंदर्य बोध पाठक को अपने आप से साक्षात्कार का अवसर भी देता है।’’
जीवन के लिए क्या जरूरी है, यह ज्ञात होना बहुत महत्व रखता है। कहा जाता है न कि मन के हारे हार है, अर्थात जीने के लिए सबसे पहले हौसले की जरूरत होती है। इस विषय पर ‘‘सुन जिंदगी’’ कविता को रेखांकित किया जा सकता है-
जंग खाती तलवार से ज्यादा, 
कमान से छूटता तीर जरूरी है। 
श्रृंगार की सजती कविताओं से ज्यादा, 
रणभेरी गान जरूरी है।
पर अनेकों शर संधान से, 
एक वरदान कहीं ज्यादा जरूरी है,
जैसे जिंदा रहने के लिए, 
सांसों से कहीं ज्यादा जज़्बा जरूरी है।
प्रेम एक पवित्र अनुभूति है यदि उसमें आध्यात्म जुड़ जाए तो प्रेम के दर्शन का स्तर कई सीढ़ियों ऊपर पहुंच जाता है। प्रेम जहां मन में उमंग भरता है, वहीं आध्यात्म ठहराव देता है। एक अद्भुत संतुलन जो अनुभूति को प्रगाढ़ बना देता है। ‘‘गुरबानी’’ कविता में कवयित्री क्लीं की आध्यात्मिक पकड़ की गहराई बखूबी अनुभव की जा सकती है-
कब तक भटकन जीवन में, नयनों में गंगा का पानी, 
प्रेम नहीं यह संगत है, उस अनंत को पाने की, 
हद बेहद के पार है चलना, सीखा तुझसे यही जुबानी, 
तुम से ही तो जाना मैंने, प्रीत की क्या होती गुरबानी।
आध्यात्म जब विवेक की उंगली थाम कर सांसारिकता के बीच विचरण करता है तो स्वयं के अस्तित्व का भान होने लगता है। इस अस्तित्व में पूर्णता एवं अपूर्णता दोनों व्याख्यायित होते हैं। ‘‘तुम से ही मैं हूँ पूर्ण’’ की ये चंद पंक्तियां विचारणीय हैं जो पूर्णता रूप में ब्रह्म का घोष करती हैं-
तुम से ही तो पूर्ण हूँ मैं, 
तुम बिन नितांत शून्य हूँ मैं, 
तुम से एकल अनंत हूँ मैं, 
पूर्ण अपूर्ण सब तुम में हूँ मैं
क्लीं जायसवाल राय की कविताओं में आध्यात्मिक गहराई है और सांसारिक आकलन है जो उनकी अभिव्यक्ति को उच्चता के शिखर पर पहुंचाता है। कवयित्री भली-भांति जानती हैं कि वे क्या कह रही हैं और किन शब्दों में किस प्रकार कह रही हैं। क्लीं राय की कविताओं को पढ़ना जीवन के झंझावात में शीतल पुरवाई को अनुभव करने के समान है। इनकी कविताओं का वैचारिक स्तर सघन है जिसमें सतही मन से कोई प्रवेश नहीं कर सकता है। संग्रह की कविताओं को पढ़ने के लिए पाठक के भीतर एक आंतरिक आग्रह होना चाहिए। संग्रह पठनीय है क्योंकि इसमें भावनात्मक सामग्री के साथ वैचारिक संवाद भी निहित है।
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