बतकाव बिन्ना की| डॉ (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली में | प्रवीण प्रभात
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टाॅपिक एक्सपर्ट
देख तो रे बिन्ना! जे स्कूलन में का-का हो रओ?
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
‘‘देख तो रे बिन्ना, जे स्कूलन में का-का हो रओ?’’ मोरे पौंचतई साथ, भैयाजी हाथ में पकरो अखबार हिलाउत भए बोले।
‘‘का हो गओ भैयाजी? कोनऊं औ भाड़े के टीचर पकरे गए का?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘अरे नईं, जे तो ऊंसे बी गजबई की बात आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘का कोनऊं औ स्कूल में कोनऊं को दफ़ना दओ गओ का?’’ मैंने फेर के भैयाजी से पूछी। काए से के कछु दिनां पैले एक स्कूल के कैम्पस में लहासें दफनाई गई रईं।
‘‘अरे नईं बिन्ना, जे ऊंसे बी बड़ो कारनामो आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘अब का हो गओ?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘तुमने आज को अखबार नईं पढ़ो का?’’ भैयाजी ने उल्टे मोंसे पूछी।
‘‘नईं, अबे नईं पढ़ पाई।’’मैंने भैयाजी खों बताओ।
‘‘काए? काए नईं पढ़ पाईं? अब तो दुफारी होबे को आ रई, फेर कबे पढ़हो। संझा लौं तो अखबार पुरानो हो जैहे।’’ भैयाजी बोले।
‘‘अरे, तनक कछू औ काम लग गओ रओ, सो ओई में उरझी रई। औ रई अखबार पुरानो होबे की, सो जब लौं ने पढ़ो जाए बा ताजोई रैत आए। अबे आपके इते से लौट के पढ़बी। बाकी आप बताओ के आप कोन सी खबर के बारे में कै रए?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘अपने सागर जिला में शाहगढ़ ब्लाक आए, तुमें पतो न?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘हऔ खूब पतो! मैंने तो उते को इतिहास पढ़ो, उते को किला देखो। उते राजा बखतबली जू देव को सासन रओ, जोन ने राजा मर्दन सिंह के संगे अंग्रेजन के खिलाफ लड़ाई लड़ी रई। इत्तोई नईं, उन्ने झांसी की रानी लक्ष्मी बाई को सोई साथ दओ रओ।’’ मैंने मूंड़ ऊंचो कर के बताओ। मोए शाहगढ़ के बारे में पतो जो आए।
‘‘मगर बिन्ना, अब तुमाए बखतबली वारे ओई शाहगढ़ में का हो रओ, जे तुमें पतो?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘नई! अब का हो रओ?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘अब उते के एक स्कूले में उतई पढ़बे वारी नाबालिग बिटिया की जजकी करा दई गई।’’ भैयाजी बोले।
‘‘का? का कै रए भैयाजी?’’ मोए सुने से यकीन ने भओ। का कभऊं ऐसो हो सकत के कोऊ स्कूल में पढ़बे वारी बिटिया की जजकी उतई स्कूल में कराई जाए? जा सुन के मोरो मूंड़ चकरा गओ।
‘‘काए? का हो गओ?’’ मोए चुप देख के भैयाजी ने पूछी।
‘‘मोए तो भरोसो नईं हो रओ सुन के? सांची कै रए आप?’’ मैंने पूछी।
‘‘सो हम झूठी काए कैंहे? हमें का परी के हम शाहगढ़ को नांव बिगारें? उते जो भओ बा तो आज के सबरे अखबार में छपो धरो। जो तुमने आज को अखबार पढ़ो होतो तो तुमें सोई पतो रैतो।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, आज को अखबार अबे पढ़ो तो नइयां मनो मोए ऐसी खबर की उमींद ने हती।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हमें तो सोई हैरानी भई।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सो भओ का? कोन ने कराई जजकी?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘अखबार में सो जोई छपो आए के उते ब्लाक के एक स्कूले में दाई बुला के उतई ग्यारमीं में पढ़नवारी बिटिया की जजकी करा दई गई। उते के टीचरन ने बताई के भओ जे के बा बिटिया कछु दिनां से स्कूल ने आ रई हती। जब बा आई सो ऊको पेट पिरानों। टीचर हरें समझ गए के ऊकी जजकी होबे को टेम आ गओ, सो उन्ने दाई बुलाई औ उतई स्कूल में जजकी करा दई। कओ जा गओ के बा बच्चा मरो पैदा भओ सो ऊको शमसान में ले जाके जला-बरा दओ। मनो कोनऊं ने जा खबर पुलिस में दे दई सो पुलिसवारन ने पौंच के बा बच्चा की अधजली लहास बरामद करी औ बा बिटिया को अस्पताले पौंचाओ। अब पुलिस बा बच्चा की अधजली लहास को पोस्टमार्टम करा रई। जोन से पता परहे के बा बच्चा मरो पैदा भओ के मार दओ गओ।’’ भैयाजी ने बताई।
‘‘अरे राम! जे का-का हो गओ?’’ भैयाजी की बात सुन के मोरो मों खुलो के खुलो रै गओ।
‘‘हऔ, आज सबरे अखबार में जेई-जेई छपो आए। देख तो बिन्ना, मोए तो बा बिटिया पे दया आ रई के ऐसी जजकी कराए में ऊको कित्ती तकलीफ भई हुइए।’’ भैयाजी दुखी होत भए बोले।
‘‘बा बिटिया नाबालिग आए?’’ मैंने पूछी
ं‘‘औ का?’’ भैयाजी बोले।
‘‘भैयाजी माए तो जे समझ में नई आ रई के जे जजकी को टेम रातई रात तो ने आओ हुइए, नौ मईना लगत ईमें। चलो, टेम की पैले की जजकी मान लई जाए सो ऊमें बी सात-आठ मईना तो पूरो होई जात आएं। इत्ते में तो पेट दिखान लगत आए। सो का पैले कोनऊं को पतो नईं परों? औ फेर अखीरी दिनां बा बिटिया स्कूले काए आई? का बा उते बच्चा पैदा करबे के लाने आई रई? ने तो का ऊको बोई दिन स्कूले लाओ गओ, ताकि ऊकी जजकी उते कराई जाए?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘जे सब सो अब जांच में पता परहे। बाकी जे आए के पुलिस ने बिटिया के चाचा खों पकरो आए औ बा लड़का को पता लगा लओ आए जोन के कारन बा बिटिया की जे दसा भई। बाकी हमें सोई स्कूलवारन पे बी डाउट हो रओ। उने बा बिटिया की दसा पैले काए ने पता परी? औ जो पता पर गई रई सो उन्ने पुलिस को, ने तो कोनऊं बड़े अधिकारी खो काए ने बताई? खुदई दाई बुलाई औ जजकी करा दई। भले बे कैंहे के हमने तो ऐसो बिटिया के प्रान बचाबे के लाने करो, मगर ऊके पेट से होबे की खबर काए छुपाए रए? औ जो बा दो-तीन मईना से स्कूल ने आ रई हती तो उन्ने ऊके लाने का करो? कोन सो कदम उठाओ? ईमें अबे तो कुल्ल बुझव्वल बाकी आएं।’’भैयाजी बोले।
‘‘हऔ सई में भैयाजी! मनो आप ठीक कै रए के जे स्कूलन में का-का हो रओ? पैले स्कूलन में परमानेंट टीचर हरें भाड़े के टीचर रख के पढ़वाउत पकरे गए औ अब जे इत्तो बड़ो कांड कर डारो। अपन ओरन के टेम पे टीचर हरें कित्तो ध्यान रखत्ते सब बच्चा हरों को। कोनऊं दो-तीन दिनां के लाने स्कूल ने पौंचे तो ऊके घरे कोनऊं खों भेज के पतो कराओ जात्तो के बा बच्चा स्कूल काए नई आ रओ? औ अब जा देखों के या तो पता नई करीं, ने तो पता होबे पे बी चिमाएं रए। धन्न हैं रे आजकाल के टीचर हरें। जे कछू टीचर हरें काए सबरे टीचरन को नांव डुबाबे के लाने टिके आएं?’’ मैंने भैयाजी से कई। ई खबर पे बतकाव कर के मोरो जी सोई अकुलान लगो।
‘‘हमाई समझ से तो जे जो गांव में नियुक्त टीचर आएं उन सबको नायं से मायं करो चाइए। जो अपनी जागां से दूसरी जागां जाने परे तो तनक समझ में आहे औ जे दाऊगिरी दिखा रए, बा सब भूल जैहें।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ भैयाजी, आप ठीक कै रए। जे पूरोई स्कूल शिक्षा विभाग में एक दार झाडू फेरबे की जरूरत दिखा रई। सबसे ज्यादा साफ-सफाई की तो उतई जरूरत आए। ने तो अबे न जाने औ का-का देखने परहे।’’ मैंने भैयाजी को समर्थन करो। मनो मोरो तो मूंड़ चकरा गओ हतो सो मैंने भैयाजी से बिदा लई औ अपने घरे खों चल परी।
बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर के ई बारे में, जे स्कूलवारन खों कैसे सुधारो जा सकत आए?
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