पत्रिका | टॉपिक एक्सपर्ट | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली में
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टाॅपिक एक्सपर्ट
कऊं ऐसो ने होन लगे
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
जे सबई जानत आएं के जोन गांव में पीबे के पानी की सुबिदा ने होय उते के मोड़ा संगे कोनऊं अपनी मोड़ी को ब्याओ नईं करबो चात। जेई टाईप से एक दिनां ऐसो ने होन लगे के अपने सागर के मोड़ा ब्याओ के लाने मोड़ियन खों तरसें। अब आप ओरें सोचन लगे हुइओ के ऐसो काए हुईए? अपने इते पीबे को पानी अबे मिल रओ। मनो, ईसे बी बड़ी समस्या आए इते। जे हमें तब पता परी जबे हमाए एक पैचान वारे चार-पांच साले बाद मिले औ कैन लगे के “अपने इते खींब लबरयाई चलत आए।” हमने पूछी के का मतलब तुमाओ? तुम तो अब इते रैत बी नइयां फेर ऐसो काय कै रए? तो बे बोले के जेई से तो हम कै पा रए। मने जे, के जोन काम पांचेक साल पैले सुरू भए ते बे आज लौं पूरे न भए। हमने पूछी, कौन से काम? सो, मुतके गिनान लगे के मकरोनिया से सदर वारो पुल आज लौं ने बनो, परकोटा वन-वे को जाने कां बिला गौ औ आवारा पशुमुक्त सिटी कां धरी? जे जो नेता औ अधिकारी हरें लबरापना दिखाऊत आएं, जोन जो ऐसई चलत रओ तो इते की पब्लिक की इमेज खराब हो जैहे। बाहर वारे इते सबई खों लबरा समझन लगहें। फेर को लबरयाई में अपनी मोड़ी इते ब्याहबे की सोचहे? तुमई बताओ? अब हम का कैते? उनकी बात में दम हती। बो कैनात आए न के अपनो खोटो सिक्का, गांकड़ मिले न टिक्का। हो सकत के सई में कल को कोऊ मोड़ी ने दे। बात सोचबे की आए।
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