बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
इते ठां-ठां औ ने चलहे! जो अमेरिका नोईं, बुंदेलखण्ड आए!
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘काए बिन्ना, अपनो बुंदेलखंड खींब तरक्की कर रओ।’’ भैयाजी कछु सोचत भए बोले।
‘‘हऔ, लगत्तो ऐसोई आए। मनो, उत्तो नईं जित्तो हल्ला करो जात आए।’’ मैंने कई।
‘‘हम जा सकड़-मड़क औ पुल-वुल की तरक्की की बात नोंई कर रए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सो, काए की कर रए?’’ मैंने पूछी।
‘‘हम तो जा कै रए के अपनो बुंदेलखंड अमेरिका घांई बनो जा रओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘भैयाजी, अबे तो कोनऊं चुनाव नई दिखा रए, फेर आप काए बर्रया रए?’’मैंने भैयाजी खों टोंकी।
‘‘का मतलब?’’ भैयाजी पूछन लगे।
‘‘मतलब जे के ऐसो तो चुनाव के टेम में कओ जात आए के अपने इते की सड़कें अमेरिका की सड़कों से अच्छी आएं। हमें तो जे समझ में नईं आत के उते की सड़कन पे हमें तो कभऊं एकई गड्ढा नईं दिखात, फेर जे ओरें वां की सड़कों से अपने के इते की सड़कन की तुलना काए करन लगत आएं?’’मैंने भैयाजी से कई।
‘‘अरे हम बा सड़कन की नईं कै रए। हम तो ऊ गोली कांड की कै रए जोन में अपने जेई छतरपुर में बारमी में पढ़त मोड़ा ने अपने प्रिंसिपल खों गोली मार दई। बा प्रिंसिपल ने बा मोड़ा खों तनक सो डांटई तो हतो। औ बा मोड़ा कऊं से 1500 को देसी कट्टा ले आओ औ ठोंक दओ अपने प्रिसिंपल के करेजा में।’’ भैयाजी ने कई।
‘‘हऔ भैयाजी, आप सांची कै रए! जे तो पैले अमेरिका मे रैत्तो के उते कोऊ छात्र पे प्रिंसिपल खों गोली मार दई, तो कभऊं कोनऊं टीचर खों गगोली मार दई। अपने इते तो जे नई होत्तो के तनक सी बात पे कोऊ स्टूडेंट अपने प्रिसिंपल खों गोली मार दे। जे तो सई में ज्यादई होई जा रई।’’ मैंने कई।
‘‘अच्छा तुमई सोचो के कोन सो प्रिंसिपल औ कोन सो टीचर ई दुनिया में ऐसो हुइए जोन ने कभऊं अपने स्टूडेंट हरों खों डांटो ने होय।’’ भैयाजी बोले।
‘‘अरे आप डांटबे की कै रए? जोन टेम पे मैं स्कूल में दसमीं औ बारमीं कक्षा पढाउत्ती ऊ टेम पे मैंने तो अपने से ऊचे लड़कन खों थपड़ियाओ बी रओ। जोन जो ई टाईप को कोनऊं मोड़ा होतो मोरो तो तभई राम नाम सत्त हो गओे होतो। आज इते आप के संगे बतकाव करबे के लाने ने बैठी होती।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हऔ, सई तो!’’ भैयाजी बोले।
‘‘अरे, उल्टे बे लड़का आज बाल-बच्चा वारे हो गए आएं औ कऊं मिलत आएं सो तुरतईं पांव परत आएं। उनके मन में तनकऊं मैल नोईं। बे जानत आएं के उन्ने ऐसे करम करे हते के उने मोरे हाथन की मार परी। अब कोनऊं छात्र से कोऊ बी टीचर या प्रिंसिपल की पर्सनल रार तो रैत नइयां। बा तो उनके उल्टे करम रैत आंए जोन से डांटबे, मारे जरूरत परत आए।’’ मैंने कई।
‘‘का बतकाव हो रई? देख तो, जाड़ो कित्तो गिरन लगो।’’ भौजी हम ओरन के लिंगे बैठत भई पूछन लगीं।
‘‘हम ओरें बेई लड़का की बतकाव कर रए जोन ने अपने प्रिसिपल खों देसी कट्टा से ठोंक दओ।’’मैंने भौजी खों बताओ।
‘‘सई में, बा तो बड़ो बुरओ भओ। भला ऐसो कोऊ करत आए? का मिलो ऐसो कर के? बा बिचारो प्रिंसिपल शांत हो गओ औ बा मोड़ा जेल पौंच गओ। का मिलो ऊको जे सब का के?’’ भौजी ने कई।
‘‘औ का, मनो कल को बा सजा पूरी कर के जेल से बाहरे बी जा जाहे तो का, ऊके ऊपर हत्यारो होबे का ठप्पा लगो रैने जिनगी भर। ऐसी पगलेटपना काए करी ऊने?’’ भैयाजी बोले।
‘‘आजकाल के मोड़ा-मोड़ी इत्ते जिद्दी होन लगे के का कई जाए। अबे हम बा कानपुर वाली के इते गए रए। ऊकी मोड़ी आई रई। मोड़ी के दोई बच्चा ऐसे उधमी, ऐसे जिद्दी के मोए लगन लगो के खींच के दो थपाड़ा लगाएं औ सुदार देंवे। तनक सो बच्चा औ ठेन ऐसी के का कई जाए। ऊने मताई से पीबे को पानी मांगो। मताई ने गिलास भर के पानी दे दओ। सो बा कैन लगो के मोए आधो गिलास चाउने, ईको आधो करो। मताई बोली के जित्तो पीने हो पी लेओ औ बाकी छोड़ दइयो। मताई की जेई बात पे बा मोड़ा भड़क गओ औ ऊने ठन्न से उतई पटक दओ गिलास। पूरो पानी बगर गओ। मोए कै आओ के जो का करो। मगर ऊकी मताई बोली, जे तो ऐसई करत आए। औ बा पोंछा ला के फर्श पोंछन लगी। अपन ओरन को टेम होतो तो मोरी मताई तो पैले खींच के सुंटाई करती फेर कछू औ कैती। अब ऐसे में बच्चा जिद्दी तो हुइएं ई।’’ भौजी बोली।
‘‘सई कई भौजी! अब ने तो बाप-मताई ढंग से बच्चा पाल पा रए औ ने बच्चा बड़ों खों रिस्पेक्ट दे पा रए।’’ मैंने कई।
‘‘जे सब तो ठीक, बाकी तनक जे बी तो सोचो के टीचरन ने सोई अपनो रिस्पेक्ट खो दओ आए। स्कूलन में का-का हो रओ बा सब सो अपन देखई रए। औ ऊपे से जे जो शिक्षा की दूकानदारी को चलन बढ़ गओ ऊने रओ-सओ नास मिटा रखो आए।’’भैयाजी बोले।
‘‘हऔ भैयाजी, जे तो आप सांची कै रए। जब मोड़ा-मोड़ी जानत आएं के उने अपनी जिनगी बनाने के लाने कोचिंग में जा के पढ़नेई पढ़हे, तो बे अपने स्कूल के टीचरन के लाने रिस्पेक्ट कां से लाहें? अब सो शिक्षा बिजनेस बन गओ आए, अब दान नईं रओ। औ जिते ब्यवसाय को काम होन लगे उते बस दिखावे की रिस्पेक्ट रैत आए।’’ मैंने कई।
‘‘सबई जांगा झोलई-झोल आए बिन्ना। बाकी जे तो आए के ऊ लड़का ने अपने प्रिंसिपल खो गोली मारबे को भौतई गलत काम करो आए, मनो ईपे बी बिचार करने परहे के बा लड़का ने ऐसो काय करो? जोन जो बा ऐसो मारा-पीटी वारो हतो तो ऊके बारे मे पैले काय ध्यान काए नईं दओ गओ। जो ऊ मोड़ा की पैलई काउंसलिग कराई जाती तो ऐसो कांड ने होतो। आ प्रिंसिपल बी आज जिंदा रैतो औ बा मोड़ा सोई जेल ने जातो। सबने लापवाई करी औ सबई भुगत रए। बा प्रिसिपल के घर वारन पे का बीत रई हुइए? औ बा मोड़ा के घर वारे अलग घबड़ात फिर रए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘औ भैयाजी देखो तो, अमेरिका घांई इते बी इत्ती आसानी से बा मोड़ा खों 1500 में कट्टा मिल गओ। जे अपने इते की व्यवस्था देखो तनक। इत्ते आराम से कट्टा खरीदो-बेंचो जा रओ औ कोनऊं खों खबरई नइयां। जो ऊको कट्टा ने मिलतो तो कओ बा अपनो इरादो बदल सकत्तो।’’ मैंने कई।
‘‘जेई से तो हम कै रए हते के अपनो जे बुंदेलखंड अमेरिका बनो जा रओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘मनो अब तो खयाल रखो जाए के जे अमेरिका नोईं बुंदेलखण्ड आए। इते ऐसी घटना फेर के नईं घटो चाइए।
बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर के ई बारे में, जे घटना को होबे से कैसे रोको जा सकत्तो?
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